पार्क संस्कृति में घटते तालाब

पार्क संस्कृति में घटते तालाब

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‘पक्का तालाब’, जम्मू के वार्ड नम्बर तेरह में अब एक मोहल्ला बन गया है। यहाँ जाने पर यह सवाल किसी के मन में कौंध सकता है कि मोहल्ले के अन्दर पक्का तालाब कहाँ है? जिसके नाम पर यह काॅलोनी ‘पक्का तालाब’ कहलाती है।

पक्का तालाब की तलाश में तालाब को बाँधने के लिये तैयार किये गए घाट की ईंटें मिलती हैं लेकिन तालाब नहीं मिलता। इस तालाब के नाम पर तैयार किये गए पार्क के उद्घाटन का बोर्ड जरूर मिलता है।

शिलान्यास के पत्थर से जानकारी मिली कि इस पार्क का उद्घाटन जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल जीसी सक्सेना ने 27 जनवरी 1991 में किया था। उससे पहले यह पार्क तालाब हुआ करता था।

एक स्थानीय नागरिक ने बताया कि स्थानीय नेता बलवान सिंह ने तालाब को भरवाने में बड़ी भूमिका निभाई। अब तालाब की सरकारी जमीन पर कई लोगों ने अपना घर बना लिया है।

पार्क के पास रहने वाले जगदीश के अनुसार- पक्का तालाब की ही तरह जम्मू शहर में दर्जनों तालाबों को भर दिया गया। लेकिन इस बात की चिन्ता किसे है?

जगदीश के साथ खड़े पंजाबू राय कहते हैं कि तालाब यदि बचे रहेंगे तो वह पर्यावरण को बेहतर बनाने में भी मदद करेंगे। और जल संरक्षण में भी सहायक होंगे।

रानी तालाब, वन तालाब, खटिंका तालाब, टिलू तालाब भी स्थानीय प्रशासन पर पड़े शहरीकरण के दबाव की भेंट चढ़ गए। जब शहर अपना विस्तार करता है तो हम कहते हैं कि यह विकास हो रहा है लेकिन साथ-साथ प्रकृति के हो रहे विनाश को हम देख नहीं पाते। अधिक पुरानी बात नहीं है, कुछ दशक पहले तक ये तालाब पानी के एक प्रमुख स्रोत होते थे। इसका पानी पीते थे और इसके किनारे बैठकर लोग राहत पाते थे। खासतौर से गर्मी के दिनों में। अब ये तालाब नहीं बचे। जम्मू शहर में अब तालाब तलाश पाना मुश्किल है।

जम्मू शहर से बाहर निकलने पर कुछ तालाब हैं, लेकिन उनकी स्थिति भी अच्छी नहीं है। उनकी तरफ देखने को ना सरकार तैयार है और ना समाज। वे बचे सिर्फ इसलिये हैं क्योंकि उन तक शहरीकरण का प्रकोप नहीं पहुँचा है।

पक्का तालाब पार्क में सुबह की सैर के लिये आये सुभाष भी कहते हैं कि अच्छा हुआ कि तालाब हटाकर यहाँ पार्क बना दिया गया। वर्ना तालाब की गन्दगी से हम सब परेशान थे।

जम्मू के पुराने लोगों को याद है कि 30-35 साल पहले जो लोग पानी पीने के लिये इन्हीं तालाबों पर निर्भर हुआ करते थे, आज पानी के लिये तालाब पर निर्भरता खत्म होते ही जम्मू में जहाँ तालाब बचे हैं, वहाँ लोगों ने तालाबों को मोहल्ले का कूड़ाघर बना दिया है।

जिस तरह देश के अलग-अलग हिस्सों से पानी की किल्लत की खबर बढ़ती जा रही है और तालाब कम होते जा रहे हैं। आने वाले समय में यदि हम अपने इस अपराध को समझ पाये तो सम्भव है कि पुराने तालाबों की तलाश में एक बार फिर पार्क को तालाब बनाया जाएगा। आज की पार्क में सुबह की सैर में मशरूफ पीढ़ी समझ नहीं पा रही कि वे तालाबों को भरकर आने वाली पीढ़ी के लिये अन्धा कुआँ खोद रहे हैं।
 

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