हिमाचल प्रदेश में तीर्थन नदी का उद्गम क्षेत्र
हिमाचल प्रदेश में तीर्थन नदी का उद्गम क्षेत्रस्रोत: tirthanvalley.org

क्या इतिहास हो जाएगी हिमाचल में तीर्थन नदी की रेनबो ट्राउट?

हिमाचल प्रदेश की तीर्थन नदी के किनारे बढ़ते होटलों और गंदगी के कारण यहाँ की ट्राउट मछली का अस्तित्व खतरे में है। जानें कैसे प्रशासन की अनदेखी इस खतरे को बढ़ा रही है।
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कुल्लू की बंजार घाटी में बहती तीर्थन नदी अपनी स्वच्छ और शीतल जलधारा के लिए जानी जाती रही है। इसके अलावा यह अपनी ट्राउट मछली के लिए भी मशहूर है, जो भारत में हिमालय और पश्चिमी घाट की कुछ नदियों में पाई जाती   है। ट्राउट, मछली पकड़ने के शौकीन पर्यटकों को तो लुभाती ही है, इसके अलावा यह एक पारिस्थितिकी संकेतक भी है। इसका अर्थ हुआ कि यह मछली सिर्फ़ स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण में ही पनपती और पाई जाती है। पर तीर्थन नदी में बढ़ता प्रदूषण अब ट्राउट मछली के प्राकृतिक आवास के लिए खतरा बनता जा रहा है।

बीसवीं सदी की शुरुआत में ट्राउट को यूरोप से भारत लाया गया। वर्ष 1909 में तीर्थन  नदी में ट्राउट मछली को बढ़ाने का काम शुरू हुआ और 1975 में इसे संरक्षित प्रजाति घोषित कर दिया गया। ट्राउट मछली तीर्थन का गौरव है। यह पर्यटन को बढ़ावा देती है और स्थानीय लोगों के लिए रोजगार उपलब्ध कराती है, लेकिन प्रदूषण और अवैध शिकार के चलते इसका अस्तित्व खतरे में है। 

पर्यावरण संरक्षण के कड़े नियमों के बावजूद, तीर्थन नदी के किनारों पर लगातार निर्माण कार्य चल रहा है, जिसमें नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्रों की सुरक्षा के लिए मौजूद राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) के नियमों की सरेआम अनदेखी की जा रही है। नतीजा यह है कि नदी में पानी कम हो रहा है, एक संरक्षित प्रजाति पर अस्तित्व का खतरा मंडरा रहा है और स्थानीय लोग अपनी विरासत की लड़ाई खुद लड़ने की कोशिश कर रहे हैं। 

तीर्थन नदी में ट्राउट
तीर्थन नदी में ट्राउटस्रोत: हिमालयन आउटफ़िटर

नदी किनारों पर बन रहे होटल विनाश की तस्वीर हैं

पिछले कुछ सालों में तीर्थन पहुँचने वाले सैलानियों की संख्या काफ़ी बढ़ी है। नतीजतन यहाँ बड़ी संख्या में नए होटल और रिज़ॉर्ट बन रहे हैं। इससे इलाके की अर्थव्यवस्था तो बेहतर हुई है पर यह जिस कीमत पर हुआ है, वह बेहद निराशाजनक है। बहुत से होटल नदी के बेहद नज़दीक हैं, जो पारिस्थितिकी के लिए भयावह है। होटलों से निकलने वाली गंदगी को बिना किसी उपचार के सीधे नदी में बहाया जा रहा है। अन्य कचरे को भी बेरोकटोक सीधे नदी में डाला जा रहा है। । 

स्थानीय लोग चिंतित हैं कि होटलों और नालियों से आता कचरा इसी तरह नदी में मिलता रहा, तो तीर्थन में ट्राउट गुज़रे ज़माने का किस्सा बनकर रह जाएगी।

तीर्थन में इन दिनों गुशैनी की ओर गहिधार के पास नदी के अंदर बन रही इमारत चर्चा में है। स्थानीय लोग नदी पर बढ़ते अवैध अतिक्रमण तथा नदी की पवित्रता को लेकर चिंतित हैं। सोशल मीडिया पर इस संबंध में कुछ वीडियो वायरल हुए हैं, जिससे लोगों में जागरूकता और नाराज़गी दोनों बढ़ी हैं । इसके चलते, वन विभाग को हरकत में आना पड़ा है।

वन विभाग नदी में बन रही इस इमारत का सीमांकन कर रहा है। विभाग की मानें तो यह  इमारत निजी ज़मीन पर बन रही है और सरकारी विभागों  ने इस निर्माण को अनुमति दे दी है। लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्हें संपत्ति के मालिकाना हक को लेकर कोई शंका नहीं है, असल विषय यह है कि पवित्र नदी में निर्माण कितना तर्कसंगत और वैध है। वे इस बात पर स्पष्टता चाहते हैं कि व्यावसायिक निर्माण नदी से कितनी दूरी पर होना चाहिए। नियम के अनुसार यह तय करना वन विभाग की ज़िम्मेदारी है।

सोशल मीडिया पर मामला उठाने पर धमकी

जिन लोगों ने इस मुद्दे को सोशल मीडिया पर उठाया उन्हें धमकियां मिल रही हैं। संबंधित वीडियो पोस्ट करने वाले एक स्थानीय नागरिक अमर ज्याला को कांगड़ा के एक अनजान व्यक्ति ने फेसबुक मैसेंजर पर  संदेश भेजकर उनके घर का पता पूछा और धमकी दी कि उनपर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। उन्हें एक फ़ोन नंबर देकर कहा गया कि वे इस पर बात कर लें। बात करने पर उस ओर मौजूद व्यक्ति ने बताया कि वे ऐसा कोई निर्माण कार्य नहीं कर रहे हैं। 

इस घटना के बाद यही अंदाजा लगाया जा रहा है कि तीर्थन नदी के बीच किए जा रहे इस निर्माण कार्य के पीछ कोई प्रभावशाली व्यक्ति है। लोगों का मानना है कि कुल्लू जिला प्रशासन को तुरंत घटना का संज्ञान लेते हुए सबसे पहले नदी के बाढ़ क्षेत्र की पैमाइश करनी चाहिए और इस निर्माण को मिली स्वीकृतियों का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए।

बंजार के संभागीय वन अधिकारी मनोज कुमार से जब इस मामले के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि इस निर्माण कार्य को फिलहाल रोक दिया गया है। उन्होंने कहा कि अप्रैल 2024 में पटवारी की उपस्थिति में इसका सीमांकन किया गया था हो चुकी है, जिसमें मालूम हुआ कि यह निर्माण कार्य खसरा नंबर 25 पर किया जा रहा है और यह निजी भूमि है। उन्होंने यह भी कहा  कि वे इस मामले में जिला उपायुक्त को   पत्र  लिख चुके हैं और अब  वन रेंज क्षेत्राधिकारी की उपस्थिति में फिर से सीमांकन किए जाने तक निर्माण कार्य को रोक दिया गया है।

हिमालियन नीति अभियान ने जताई आपत्ति

टिकाऊ पर्वतीय विशिष्ट विकास मॉडल की हिमायत करने वाले समूह हिमालियन नीति अभियान के अध्यक्ष गुमान सिंह ठाकुर ने इस तरह के निर्माण पर आपत्ति जताते हुए कहा कि प्रदेश सरकार और विभागीय अधिकारियों द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के नियमों को धज्जियां तो उड़ाई ही जा रही हैं, साथ ही  हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश की भी अवहेलना की जा रही है जिसके अंतर्गत नदियों के 100 मीटर के दायरे में निर्माण कार्य पर रोक लगाई गई है। 

उनकी चिंता जायज़ है। पिछले साल ही हिमाचल प्रदेश ने बाढ़ की तबाही का सामना किया है। बाढ़ में नदी-नालों के किनारे बने 400 से अधिक भवन ध्वस्त हो गए, जबकि 2,300 से ज्यादा मकानों को भारी नुकसान हुआ। तबाही के चलते 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। इस आपदा के बाद प्रदेश सरकार ने वादा किया था कि नदी किनारे होने वाले निर्माण को लेकर कड़े नियम बनाए जाएँगे, पर धरातल पर अबतक इस संबंध में कोई पहल नहीं की गई है। गुमान सिंह का कहना है कि तीर्थन नदी के दोनों ओर निजी ज़मीन पर बनते जा रहे होटल तीर्थन की सुंदरता और पारिस्थितिकी के भविष्य के लिए खतरा हैं।उन्होंने कहा है कि वे  इस मामले को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल तक लेकर जाएंगे।

तीर्थन और ट्राउट को बचाने के लिए तत्पर समुदाय

स्थानीय लोगों के लिए तीर्थन नदी सिर्फ़ एक सुंदर पर्यटन आकर्षण भर नहीं, बल्कि आस्था का एक पवित्र और पूजनीय प्रतीक है। नदी के किनारे हंस कुंड, चूली चो और गुशैनी संगम जैसे कई पवित्र स्थल हैं, जहाँ सदियों से पूजा-अर्चना होती रही है। लगातर बढ़ते प्रदूषण और अवैध अतिक्रमण के चलते लोगों में प्रशासन के खिलाफ़ गुस्सा और निराशा बढ़ी है। उनका मानना है कि अगर तुरंत उचित कदम नहीं उठाए गए, तो जल्द ही नदी अपना आध्यात्मिक और पारिस्थितिक महत्व खो देगी।

वे प्रशासन से जानना चाहते हैं कि:

  • नगर एव ग्राम नियोजन विभाग इस तरह के अवैध निर्माण को कैसे अनुमति दे रहा है?

  • ऐसे निर्माण को अनुमति देने से पहले क्या प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सभी तरह के दुष्परिणामों का आकलन कर रहा है?

  • क्या मस्त्स्य विभाग से यह पूछा गया है कि इस निर्माण का रेनबो ट्राउट पर क्या असर होगा? 

इन वाजिब सवालों के बावजूद प्रशासन की ओर से कोई हरकत होती नज़र नहीं आ रही। स्थानीय लोग मांग कर रहे हैं कि नदी के किनारों पर मौजूद हर भवन का सीमांकन हो और इस बात का आकलन किया जाए कि उनसे नदी की पारिस्थितिकी को कितना खतरा है।

तीर्थन और ट्राउट को बचाने की लड़ाई प्रकृति के संतुलन, लोगों की रोज़ी-रोटी और सांस्कृतिक विरासत को बचाने की लड़ाई है। अगर जल्द ही उचित कदम न उठाए गए, तो शायद हिमाचल की यह खूबसूरत नदी और यहाँ की ट्राउट मछली इतिहास का हिस्सा बन जाएगी।

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