सिंचाई स्वावलंबन चाहिए तो खेत-तालाब बनाएं
कुओं और गहरे बोरवेल से सिंचाई के लिए पानी खींचने के कारण भूमिगत पहली परत तथा भूमिगत गहरी परत का संचित जल भी तेजी से निकाला जा रहा है और भूमिगत जलस्तर में गिरावट तेजी से हो रही है महोबा जिले के चारों विकासखण्डों के अधिकांश भाग को भूगर्भ वैज्ञानिकों ने डार्कजोन घोषित कर दिया है। पूर्व में जल संरक्षण हेतु प्रायः गाँव के आस-पास तालाब या पोखर बनाने की परंपरा थी जो धीरे-धीरे कम हो गई थी अब पुनः हमारे किसानों द्वारा सिंचाई के लिए खेत बनाकर जलसंरक्षण एवं पुर्नभरण की एक अच्छी परंपरा को आगे बढ़ने की शुरुआत की गई है। महोबा। क्षेत्र में सिंचाई के लिए अनेक तरीके प्रचलित हैं जैसे बरसात के पानी से मेड़बंधी, कुंआ बनाकर, नहर या गूल के माध्यम से पानी लेकर सिंचाई करना आदि। पर समय के साथ ये सभी धीरे-धीरे हमें पानी देने मे असफल होते दिखाई देते हैं। इसका कारण वर्षा का अनियमित होना।
बरसात का मौसम जून महीना के मध्य से प्रारम्भ हो जाता था और धीरे-धीरे बरसात 4-6 दिन के अंतर से होती रहती थी जो सितम्बर के पहले सप्ताह तक चलती रहती थी। इस बीच कुछ दिन ऐसे भी होते थे जिनसे एक दो बार लगातार 4-5 दिन वर्षा का क्रम चलता रहता था जिसे हम झिर लगना कहते हैं। इस प्रकार हमें 80 से 90 दिन वर्षाजल मिलता था। इससे हमारी खरीफ की फसल को पर्याप्त पानी तो मिल ही जाता था तथा अगली फसल के लिए भी पर्याप्त नमी बनी रहती थी।
पर्याप्त नमी के साथ ही नदी-नालों में भी पानी की उपलब्धता बनी रहती थी। परन्तु कुछ वर्षों से पानी बरसने के क्रम में बदलाव आया है अब 80 दिनों की अपेक्षा वर्षा के दिन 25-28 दिन ही रह गए हैं। तथा वर्षा के जल की मात्रा में भी कमी आई है जिसके चलते विगत 10-12 वर्षों में बुन्देलखण्ड का क्षेत्र सूखे की स्थिति से गुज़र रहा है सूखे का असर इतना ज्यादा है कि कुओं का जलस्तर पूर्व के 12-15 फीट गहराई से घटकर 40-60 फीट पर पहुंच गया है। बुन्देलखंड में अधिकांश क्षेत्रों में 40-45 फीट के नीचे ग्रेनाइट स्टोन की परत मिलती है अब कुओं का पानी 5-8 फीट तक ही भरा मिलता है जो सिंचाई की आवश्यकता की पूर्ती नहीं कर पाता। यही स्थिति बोरवेल की भी है ग्रेनाइट चट्टानों में बोंरिग करने से 100 में 7-8 स्थानों पर ही पानी की पर्याप्त मिलने की संभावना रहती है अन्यथा की स्थिति में बोरवेल फेल ही रहते हैं तथा आवश्यकता के अनुसार पानी नहीं दे पाते। कुओं और गहरे बोरवेल से सिंचाई के लिए पानी खींचने के कारण भूमिगत पहली परत तथा भूमिगत गहरी परत का संचित जल भी तेजी से निकाला जा रहा है और भूमिगत जलस्तर में गिरावट तेजी से हो रही है महोबा जिले के चारों विकासखण्डों के अधिकांश भाग को भूगर्भ वैज्ञानिकों ने डार्कजोन घोषित कर दिया है। पूर्व में जल संरक्षण हेतु प्रायः गाँव के आस-पास तालाब या पोखर बनाने की परंपरा थी जो धीरे-धीरे कम हो गई थी अब पुनः हमारे किसानों द्वारा सिंचाई के लिए खेत बनाकर जलसंरक्षण एवं पुर्नभरण की एक अच्छी परंपरा को आगे बढ़ने की शुरुआत की गई है।
1- खेत तालाब की परंपरा- किसान द्वारा कृषि कार्य सफल की सिंचाई तथा जल प्रबंध हेतु अपनी ज़मीन में किसी ऐसे हिस्से में जहां खेत का पानी सर्वाधिक एकत्र होता है अपनी कुल ज़मीन के लगभग 1/10 हिस्से में एक छोटे तालाब का निर्माण कर जल एंव नमी का संरक्षण की पद्धति को खेत तालाब बनाने की परंपरा (पद्धति) कहा जाता है यह तालाब आवश्यकता अनुसार किसी भी आकार माप या गहराई के हो सकते हैं जिसे किसान अपने खेत की आवश्यकता को देखते हुए तय कर सकता है।
2- खेत तालाब की आवश्यकता- ऐसे क्षेत्रों में जहां वर्षा अनियमित ढंग से होती है ढालदार ज़मीनें हैं तथा खेती करने के लिए जल की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं है खेत तालाब बनाना एक अच्छा तरीका है इसके माध्यम से खेत की ज़मीन मे जल संरक्षण नमी संरक्षण तथा मिट्टी का संरक्षण करने के साथ-साथ किसान अपने खेत की फसल की सिंचाई कर सकते है खेत की ज़मीन के भूमिगत जल स्तर को सुधार सकते हैं तथा नमी और मिट्टी के उपजाऊपन को भी संरक्षित रख सकते है। खेत तालाब ज़मीन के भूमिगत जल स्तर को सुधारने तथा जल आवश्यकता के संदर्भ में किसान को स्वावलंबी सिंचाई व्यवस्था बनाने का एक आसान और सफल तरीका है।
3- खेत तालाब की कार्य पद्धति- खेत तालाब के माध्यम से जल संरक्षण करने में खेत का पानी खेत में अच्छी तरह से संरक्षित होता हैं और संरक्षित जल खेत की ज़मीन में नमी को बढ़ाता है तथा भूमिगत जल स्तर को ऊंचा उठाता है पूरे वर्षा काल में यह खेत तालाब कई बार भरता है तथा प्रत्येक बार 7-10 दिन जल का ठहराव रहने पर खेत तालाब में एकत्र जल जमीन में शोषित हो जाता है। यदि पूरे वर्षा काल में 3-4 बार खेत तालाब का पानी ज़मीन के अंदर शोषित हो गया तो यह खेत की वर्तमान फसल तथा अगली फसल की आवश्यकता के लिए पर्याप्त नमी एवं जल संरक्षित कर देता है तथा आगे आने वाली फसल की सिंचाई की आवश्यकता कम से कम रह जाती है वर्षा के समाप्त होते-होते अंत में खेत तालाब के आस पास की ज़मीन जल संतृप्त हो जाती है और खेत तालाब पानी से भरा रहता है जब हम आगामी फसल बोते हैं तो यह पानी अगली फसल की पहली सिंचाई में काम आता है इस प्रकार खेत तालाब से फसल की एक-दो सिंचाई आसानी से की जा सकती है। फसल तैयार हो जाने पर कभी-कभी असमय भी वर्षा हो जाती है और खेत में पानी भरने से नुकसान की संभावना रहती है तो उस समय भी खेत तालाब अतिरिक्त पानी को अपने में समेट लेता है तथा खेत की फसल को सड़ने से बचाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि खेत तालाब खेत की सिंचाई नमी संरक्षण जल संरक्षण में सहायक है तथा बाद में फसल को सड़ने से भी बचाता है और खेत के वर्षाजल को पूर्ण रूप से प्रबंधित करने में सहायक है।
4- खेत तालाब बनाने की प्रक्रिया-
खेत तालाब द्वारा खेत में प्राप्त वर्षाजल को खेत के ढाल की ओर बनाए गए एक छोटे तालाब में एकत्र होने दिया जाता है। खेत तालाब सदैव खेत के साइज (माप) के 1/10 हिस्से में बनाना चाहिए इसके लिए खेत के ढाल के सबसे निचले किनारे पर जहां खेत का पानी एकत्र हो सके उस स्थान का चयन करना चाहिए तथा खेत के आकार (माप) के अनुसार खेत तालाब का साइज चुनना चाहिए जैसे गेहूँ की 1 एकड़ फसल की सिंचाई हेतु पानी की जरूरत 800 घन मीटर (1 घन मी0 =1000 ली0 अर्थात 800000 ली0) तथा चना की 1 एकड़ फसल हेतु पानी की जरूरत 400 घन मीटर पानी 40000 ली0 की आवश्यकता होती है जिसके लिए एक 20.6 मी.X20.6 मी.X3 मी. के गड्ढे में 1002 घन मीटर पानी जमा किया जा सकता है जिससे 1 एकड़ खेत की सिंचाई होती है तथा वर्षा के मौसम में दो-तीन बार पानी का ठहराव होता है जिससे जल संरक्षण होता है यह साइज एक एकड़ का 10 प्रतिशत मॉडल है। खेत तालाब की सतह पर ढाल को नीचे की ओर खुदाई करते वक्त प्रत्येक फीट की खुदाई पर धीरे-धीरे कम करते जाते है। तथा 3 मी. तक गहरा होने पर नीचे तली का माप 15.8X15.8 फीट तक रह जाता है इस प्रकार खेत तालाब को हम अनुप्रस्थ काट कर देखें तो एक उल्टे शंकु के आकार का दिखाई देगा! खेत तालाब के चारों ओर की किनारों से नीचे की ओर गहराई में जाते समय सीढ़ीदार बनाया जाता है जिसे इस चित्र तथा सारणी के माध्यम से समझा जा सकता है
1.1 की ढाल | लंबाई (मी. में) | चौड़ाई (मी. में) | गहराई मी. में) | मात्रा (घन.मी.) |
पहला सीढ़ी | 20.6 | 20.6 | 0.6 | 245.6 |
दुसरी सीढ़ी | 19.4 | 19.4 | 0.6 | 225.6 |
तीसरी सीढ़ी | 18.2 | 18.2 | 0.6 | 198.7 |
चौथी सीढ़ी | 17 | 17 | 0.6 | 173.4 |
पाँचवी सीढ़ी | 15.8 | 15.8 | 0.6 | 149.8 |
कुल |
|
|
| 1002.4 |