सोनभद्र में विजुल नदी सूखने के कगार पर

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ओबरा ( सोनभद्र). मध्यप्रदेश के सीधी जिले में औषधीय वृक्षों के जल से बनी रेणुकापार क्षेत्र की जीवनरेखा विजुल नदी पहली बार सूखने के कगार पर है. गुप्त काशी को अपनी अविरल धाराओं से सींचकर गोठानी स्थित प्रत्यक्ष संगम में समाहित हो जाने वाली विजुल नदी पर आये गंभीर संकट से तीन लाख से ज्यादा आदिवासियों के सामने जीवन-मरण का प्रश्न खड़ा हो गया है. करीब सौ किमी लंबी इस नदी का जल काला पानी कहे जाने वाले भाट क्षेत्र के लिए सदैव चिकित्सक का काम करता है. हालांकि कभी इसका वैज्ञानिक सत्यापन करने की कोशिश नहीं हुई. वर्तमान में नदी में एक फुट पानी भी नहीं रह गया है. विजुल नदी के सूखने के कगार पर पहुंचने से सोन नदी का पानी काफी कम हो गया है जिसका असर पूरे सोनांचल और मध्य बिहार पर पड़ा है.

विद्युत गति से बहने वाली इस पहाड़ी नदी का आदि नाम वेगवती है. दरअसल जब यह गोठानी स्थित संगम में पहुंचती है तो इसकी धाराएं सोन व रेणुका नदी को धकेल देती है. विजुल नदी लगभग 70 किमी तक बरगद, पीपल, जामुन, कठ जामुन, कौवा सहित अनेक औषधीय वृक्षों वाले वनों के बीच से गुजरती है. जलीय वृक्ष वाले वनों से होकर गुजरने के कारण विजुल नदी का पानी औषधि के रूप में जाना जाता है. हालांकि शासन ने इस तथ्य को मान्यता नहीं दी है.

बरसात के मौसम में इस पहाड़ी नदी को ग्रामीण पार नहीं कर पाते हैं. इसके कारण जुलाई, अगस्त व सितंबर में यहां के लगभग 300 से ज्यादा गांव देश से कटे रहते हैं. इस नदी के तटवर्ती गांव में ही विश्व के सबसे पुराने फा़सिल्स पाए गए हैं.

सीधी से सोनभद्र में प्रवेश करने के बाद परसोई, टूस, घटीहटा, टापू आदि जगहों से होते हुए चोपन के पास गोठानी गांव में यह सोन, रेणुका के संगम में समाहित हो जाती है. इस नदी से भाट क्षेत्र के 70 किमी क्षेत्र के तटवर्ती गांव के ग्रामीण सिंचाई करते हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों से पड़े सूखे ने आदिवासियों की जीवन रेखा को रोक दिया है.

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