आगरा में पुलिस कचरा व प्रदूषण करने वालों के खिलाफ कार्यवाही करती हुई
आगरा में पुलिस कचरा व प्रदूषण करने वालों के खिलाफ कार्यवाही करती हुई

संदर्भ गंगा : वृंदावन-मथुरा-आगरा की यमुना की दर्द-ए-दास्तां (भाग 2) 

वृंदावन-मथुरा-आगरा की यमुना नदी का प्रदूषण: सीवेज, उद्योग और गंदे नालों का दर्दनाक सच। जानिए कैसे यमुना का पानी पीने और नहाने लायक भी नहीं रहा।
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वृंदावन-मथुरा

वृंदावन में यमुना के प्रदूषण का मुख्य स्रोत शहर का सीवेज और गंदा पानी है। सन् 1963 में वृंदावन शहर में सीवर लाइनें डाली गयी थीं। इसमें शहर का गंदा पानी मुख्य पंपिंग स्टेशन से 60 एकड़ के एक सीवेज फार्म में पहुंचाने की व्यवस्था थी। लेकिन 1978 की बाढ़ में सीवर प्रणाली टूट-फूटकर जगह-बे-जगह चोक हो गयी। इसके बाद से शहर का सीवेज और गंदा पानी 18 नालों से यमुना नदी में जा रहा है। जल निगम द्वारा तैयार की गयी एक परियोजना रिपोर्ट के अनुसार प्रतिदिन लगभग 19 लाख लीटर मलजल इन नालों के जरिये यमुना में गिरता है।

उप्र राज्य सरकार के पर्यावरण विभाग ने वर्ष 1984-85 में जल निगम के माध्यम से यमुना नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए एक करोड़ रु० से अधिक लागत की एक परियोजना प्रारंभ की है। जलनिगम अधिकारियों के अनुसार सीवर प्रणाली फिर से दुरुस्त कर लेने पर ग्यारह नालों सूरजघाट, जंगलछुट्टी, जुगलघाट, बिहारघाट, राणापत, गोविन्दघाट, चीरघाट, भूराघाट, राणाघाट, बाजार नागलाघाट, सीएसीएफसी और म्युनिस्पिल बोर्ड नाला का गंदा पानी टैप करने फिर से सीवेज फार्म पहुंचाया जायेगा। किन्तु सात नाले केसी घाट, चेरा कपटिया, छावनी रंगजी, बंसीबट, टेम्पुल बट, ज्ञान गुदड़ी तथा काली दह में ये सात नाले फिर भी यमुना में गंदगी गिरायेंगे। इन नालों को अप करने के लिए प्रस्ताव विचाराधीन है।

वृंदावन से निकलकर यमुना मथुरा पहुंचती हैं। मथुरा में यमुना को प्रदूषित करने में शहर के गंदे नालों एवं धोती छपाई कारखानों के अलावा रिफाइनरी का मुख्य योगदान है। मथुरा में नदी का पानी भी बहुत कम रहता है।

मथुरा शहर में सीवर लाइन 66 साल पहले सन् 1923 में डाली गयी थी। इस प्रणाली के अंतर्गत एक पंपिंग स्टेशन से सीवेज 189 हेक्टर के फार्म में ले जाया जाता है। बाढ़, सिल्ट या अन्य कचड़ों से सीवर लाइन चोक होने और पांचों के पुराने पड़ जाने से यह प्रणाली अब बेकार हो गयी। जिससे शहर का मलजल 17 नालों से होकर सीधे यमुना में जाता है।

इन नालों से रोजाना दो करोड़ लीटर से अधिक गंदगी यमुना में गिरती है। राज्य सरकार ने यहां भी जल निगम को नालों को टैप करके यमुना को प्रदूषण मुक्त करने का काम सौंपा है। इस परियोजना में जल निगम 13 नालों शाहगंज, चुंगी चौकी, किशनगंगा, गऊघाट, दौल-मौला, रानीघाट, स्वामीघाट, मकदूम शाह, अष्कुंड घाट, विश्राम घाट, कुतकल्यानः बंगाली घाट और ध्रुवघाट नाला टैप करेगा। किन्तु महादेव घाट, सतरंगी नाला और अम्बेदकरघाट नाला इतने ज्यादा क्षतिग्रस्त हैं कि फिलहाल उन्होंने अपनी गंदगी सीधे यमुना में डालने के लिए छोड़ दिया गया है। इन्हें द्वितीय चरण के लिए छोड़ा गया है।

लेकिन जल निगम ने मसानी नाला प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के लिए छोड़ दिया है, क्योंकि उसमें क्रोमियम का उपयोग करने वाले साड़ी छपाई कारखानों का जहरीला उत्प्रवाह आता है। प्रदूषण बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय के अनुसार मथुरा में 200 से अधिक ऐसे साड़ी छपाई उद्योग हैं। बोर्ड ने राजस्थान साड़ी इम्पोरियम और नेशनल टैक्सटाइल्स पर मुकद‌मा भी कायम किया है।

मथुरा में वायु और जल प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत तेल शोधक कारखाना है। इस कारखाने से तेल व अन्य जहरीला पदार्थ मिश्रित गंदगी यमुना नदी में गिरती है। मथुरा रिफाइनरी आधा कच्चा तेल वास्ते बाम्बे हाई का और विदेश का इस्तेमाल करती है। आयातित कच्चे तेल में सल्फर की मात्रा बहुत अधिक होती है।

अलीगढ़ विश्वविद्यालय के डा० अजमल की रिपोर्ट में बताया गया है कि मैंगनीज और सीसा मथुरा के यमुना जल में सर्वाधिक पाया गया है। औद्योगिक विष विज्ञान केन्द्र, लखनऊ की जांच रिपोर्ट में यहां के पानी में प्रति लीटर सस्पेंडेड सोलिडस 116 मि०ग्रा०, डिजाल्वड सॉलिड्स 284 मि०ग्रा०, बीओडी० 9.5, सीओडी० 14, नाइट्रोजन 3.9, क्लोराइड 44, सल्फेट 36, फिजाल 4, फ्लोराइड 7 पाया गया। इनके अलावा भारी धातुओं में तांबा, मैगनीज, लेड, आयरन, क्रोमियम, कैडमियम, निकिल और जिंक अवशेष भी कुछ मात्रा में पाये गये। इन सबका सामूहिक असर जीव जन्तु और आदमी सबके लिए खराब है। जल में प्रदूषण के फलस्वरूप नदी में सीवर भी काफी अधिक हो गया है।

मथुरा में यमुना इतनी अधिक प्रदूषित है कि यह न तो पीने लायक है और न नहाने लायक। उपरोक्त परीक्षण से यह भी स्पष्ट है कि घुलित ऑक्सीजन की मात्रा अत्यधिक कम होने के कारण यहां मछलियां जिन्दा रह ही नहीं सकतीं। मछलियों के जिन्दा रहने के लिए न्यूनतम 4 मिग्रा० प्रति ली० घुलित ऑक्सीजन अनिवार्य है।

मथुरा जिले के शहजादपुर कस्बे में चमड़ा पकाने की टैनरी है। यहां जानवरों के अलावा सांपों आदि की खाल भी पकायी जाती है। इस कस्बे का यह जहरीला पानी गोवर्धन ड्रेन के जरिये यमुना में गिरता है।

आगरा

आगरा शहर ताजमहल के कारण पूरी दुनिया में मशहूर है। देशी-विदेशी पर्यटकों के अलावा दिल्ली आने वाले तमाम राष्ट्रध्वज और राजनयिक भी समय निकालकर यहां जरुर आना चाहते हैं। लेकिन विभिन्न उद्योगों की वजह से यहां वायु और जल प्रदूषण दोनों ही चरम पर हैं। हरियाणा के तातेवाला, फरीदाबाद, दिल्ली, गाजियाबाद, हिंडन नदी, वृंदावन और मथुरा का कूड़ा-कचड़ा, मलजल तथा औद्योगिक उत्प्रवाह समेटती और सिंचाई अथवा पेयजल के लिए पानी देती हुई यमुना आगरे में (बरसात को छोड) एक गंदे नाले की शक्ल लिये रहती है। ओखला से आगरा तक 225 कि0मी0 की दूरी में यमुना में सीवेज इतनी अधिक मात्रा में गिरती है कि उससे जलकुंभी बढ़ने से नदी में ऑक्सीजन संतुलन भी गड़बड़ा जाता है।

मथुरा तेल रिफाइनरी और शहजादपुर के चमड़ा कारखानों का गंदा तथा विषैला उत्प्रवाह ताजा-ताजा लिए हुए यह गंदगी यमुना जब आगरा में प्रवेश करती है तो वह एक बड़े नाले का ही रूप लिये होती है।

आगरा प्रवेश करने पर सबसे पहले महाजन टैनरीज व अन्य कई फैक्ट्रियों का गंदा पानी आता है, इसके बाद दयालबाग टैनरीज का नाला गिजौली गांव के पास गिरता है। फिर सिंघल सिलीगेट साबुन फैक्ट्री का केमिकल्स युक्त गंदा पानी रजवाड़े का नाला लाता है। कालकेश्वर नाला कृष्णापुरी क्षेत्र की गंदगी यमुना तक पहुंचाता है और यहीं यमुनापार फाउंड्रीनगर इंडस्ट्रियल एरिया का कनफटा नाला तमाम विषैला औद्योगिक कचड़ा यमुना में घोलता है। जवाहर ब्रिज पार करने के बाद स्थित वाटर वर्क्स यही विषैला और लाल रंग का गंदा पानी नगर वासियों के लिए खींचता है। गर्मियों में जब कभी यमुना बिल्कुल सूख जाती है और केवल गंदा औद्योगिक उत्प्रवाह तथा मलजल ही बचता है तो कीठम झील से भी गंदा पानी यमुना में छोड़ा जाता है। यही गंदगी शहर के नलों से कीड़े गिराती हैं।

वाटरवर्क्स से लालकिले के बीच पुराने शहर के चार नाले यमुना में गिरते हैं। उस पर एतमाउ‌द्दौला के पास एक नाला गिरता है तथा दूसरा नाला मरघटा के करीब है। यहां शहर के मुर्दे जलाये जाते हैं। जले-अधजले मुर्दों की राख, शरीर के टुकड़े, लावारिस लाशें आदि यहां यमुना जल को प्रदूषित करती हैं। लालकिले से आगे चलने पर पुनः दो नाले गिरते हैं और यहीं पास में शहर का दूसरा श्मशान घाट है। यही विषैली, बदरंग और बदबूदार यमुना ताजमहल के नीचे पहुंचती है, पर उसका पानी अब ऐसा नहीं रहा कि सफेद संगमरमर की खूबसूरत परछाई दिखे। ताजमहल से सटकर ही एक बड़ा धोबीघाट है और उसके बाद ताज टेनरीज में से चमड़ा पकाई तथा रंगाई का विषैला गंदा पानी यमुना में गिरता है। फैक्ट्री के पीछे जहां यह पानी जमीन में गिरता है, वह ढालदार जमीन नीली पड़ गयी है। टैनरी अपना पानी दो-दो नालियों से यमुना में गिराती है। आगरा में यमुना को सबसे ज्यादा प्रदूषित करने वाले उद्योग हैं- ताज टैनरीज, महाजन टैनरीज, वासन ऐंड कंपनी, दयालबाग को-आपरेटिव टैनरी, पार्क लेदर इंडस्ट्री, बायोलॉजिकल इवान्स, आगरा लेदर बोर्ड, आगरा बेवरीज और ताज ब्रेवरीज ।

वृंदावन और मथुरा की तरह आगरा की सीवर प्रणाली भी बेकार हो चुकी है और शहर का मलजल तथा औद्योगिक कचड़ा 16 नालों से यमुना में गिरता है। इस समय केवल 5 करोड़ ली० मलजल सीवेज कार्य में और शेष 25 करोड़ ली० रोजाना इन्हीं नालों से यमुना में गिरता है। जल निगम ने यहां के लिए भी एक परियोजना तैयार की है। सिकंदरा के पीछे स्थित चर्म उद्योगों और बिहारी का नंगला स्थित सरिया कारखाने का तेजाबी और खली से तेल बनाने वाले कारखाने का पानी भी यमुना में आता है।

यहां के बाद शाहदरा, टूंडला, फिरोजाबाद, शिकोहाबाद (एटा), इटावा तथा कालपी (जालौन) जिलों का गंदा पानी भी यमुना में गिरता है। लेकिन आगरा से लगभग दस कि०मी० आगे चलकर यमुना का पानी साफ होने लगता है।

आगरा जनपद से निकलने से पहले इस क्षेत्र के वायु, प्रदूषण पर गौर करना आवश्यक होगा, जिसका असर अंततः बरसात के साथ जल पर पड़ता है। यह वायु प्रदूषण ताजमहल को प्रत्यक्षतः प्रभावित करता है। 1984 में किर्लोस्कर कंसल्टेंट्स लि० पुणे द्वारा पर्यावरण निदेशालय उत्तर प्रदेश के लिये किये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार इस क्षेत्र में विभिन्न क्षमताओं की 126 फाउंड्रीज हैं। ये फैक्ट्रियां रोजाना 2.28 टन सल्फर डाइऑक्साइड छोड़ती हैं। आगरा फोर्ट एवं एतमाउद्दौला ताप बिजलीघर कैंट और ईदगाह मार्शलिंग यार्ड से निकले धुएं से वातावरण प्रदूषित होता था जो अब बंद करवा दिये गये हैं। मथुरा रिफाइनरी से रोजाना 12 टन सल्फर डाइऑक्साइड निकलती है। इनके अलावा शहर के औद्योगिक क्षेत्र में कई आयरन रोलिंग मिल्स हैं।

समीपवर्ती शहर फिरोजाबाद, जो अब अलग जिला बन चुका है, कांच उद्योग के लिए मशहूर है। यहां की 211 कांच औद्योगिक इकाइयां रोजाना लगभग 23.68 टन सल्फर डाई आक्साइड छोड़ती हैं।

इस तरह यमुना नदी ओखला (दिल्ली) से आगरा तक बेहद प्रदूषित चलती है या यूं कहें कि इस पूरे दौर में नदी मृत प्राय है। वैज्ञानिक परीक्षण में पाया गया है कि यमुना नदी में कैडमियम, तांबा और लोहा भारी धातुएं सबसे ज्यादा आगरा में हैं।

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