टिहरी बांध के चलते गंगा नदी का जीवन समाप्त होने की कगार पर
परमपूज्य शंकराचार्य जी, स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी व हरिद्वार सम्मेलन में उपस्थित सन्त-महात्माओं एवं प्रतिनिधियों के चरणों में !
प्रातः स्मरणीय स्वामी रामतीर्थ जी के निर्वाण दिवस पर उनकी निर्वाणस्थली टिहरी में भागीरथी के तट पर बैठकर मैं आपके चरणों में अपना साष्टांग दण्डवत प्रणाम भेजता हूं। गंगा को अपने ही मायके उत्तराखण्ड में टिहरी बांध बनाकर हमेशा के लिए समाप्त किया जा रहा है। नदी का जीवन उसके वेग और अविरल प्रवाह में है, उसी से वह अपना शुद्धिकरण भी करती जाती है, यह एक वैज्ञानिक सत्य है। अपने कीटनाशक गुणों के कारण गंगा जल में दूसरे दूषित जल को पवित्र करने की क्षमता है।
नगरों के मल-प्रवाह के कारण मैदानों में उसकी यह क्षमता समाप्त हो चुकी है, पर उत्तराखण्ड में लक्ष्मण झूला तक यह कायम है। यह कैसी विडम्बना है कि लक्ष्मण झूला से ही भैरों घाटी तक पवित्र गंगा को बांधकर कैद करने या सुरंगों में लुप्त करने की योजना बन चुकी है, जिससे आने वाले वर्षों में भगीरथ की लाई हुई वह गंगा, जो अपने मायके में कल-कल, छल-छल करती हुई किशोरी की तरह स्वच्छंद बहती थी और जिसने सैकड़ों लोगों को उसके तट पर बैठकर तपस्या करने की प्रेरणा दी थी, अगली पीढ़ियों को दर्शन नहीं देगी।
गंगा का लुप्त हो जाना भारतीय संस्कृति के उस महान् संदेश का लुप्त होना होगा, जिसने भारत की आत्म ज्ञान के क्षेत्र में विश्व में प्रभुता कायम की थी, गंगा का कुछ मैगावाट बिजली या कुछ हेक्टेयर सिंचाई के लिए मूल्यांकन करना हमारी आस्थाओं पर कठोर प्रहार है। मैं इसकी कल्पना मात्र से उद्विग्न हूं। यहां पर जन्म लेने और गंगा की गोद में पलने, इस पवित्र उत्तराखंड में वास और तपस्या करने वाले कई महान् संतों स्वामी विष्णु दत्त जी. स्वामी तपोवनम् जी. स्वामी कृष्ण आश्रम जी, स्वामी शिवानन्द जी, श्री श्री आनन्दमयी माँ के प्रत्यक्ष दर्शन और सम्पर्क में आयें तथा इस समय जीवित कई महान् संतों के सत्संग के फलस्वरूप मैंने यह अपना परम कर्त्तव्य समझा कि अपनी दूसरी प्रवृतियों को छोड़कर यहां भागीरथी के तट पर, जहां बांध बन रहा है, खतरे का लाल झण्डा लेकर चौकीदार की तरह सारे देश को सजग करने के लिए बैठ जाऊँ। इस प्रकार छः वर्ष पूरे हो रहे हैं।
सत्य को देखने और सुनने के लिए भोगवाद ने देश की आंखें और कान बन्द कर दिये हैं, उसको उजागर करने के प्रयासों को दबाया जा रहा है। यह बहुत ही सोचनीय स्थिति है।आप हरिद्वार के उस पवित्र क्षेत्र में हैं, जहां पर सन् 1916 में महामना मालवीय जी ने अंग्रेजों को हर-की-पौड़ी में उसका अविरल प्रवाह जारी रखने के लिए विवश किया था। उनके पीछे सारे देश की नैतिक और राजा-महाराजाओं के रूप में भौतिक शक्ति भी थी। आपके चरणों में मैं देश की नैतिक शक्ति को जगाने और लोक-तंत्र के युग में लोक-शक्ति के रूप में भौतिक-शक्ति को गंगा की रक्षा के लिए प्रकट करने का निवेदन करता हूं।
मुझे मालवीय जी के मृत्य-शैय्या पर कहे हुए ये शब्द बेचैन कर रहे हैं,
"मुझे भय है कि मेरी मृत्यु के बाद फिर गंगा की अविरल धारा को रोकने का प्रयास होगा।"उन्होंने जस्टिस शिवनाथ काटजू से कहा था, "मैं तुम्हारा वचन चाहता हूं, यदि फिर गंगा की अविरल धारा में रुकावट डालने की घोर योजना हो तो उसके विरुद्ध तुम अपनी आवाज उठाओगे मुझे अपना वचन दो।"
हर-की-पौड़ी पर खड़ी मालवीय जी की सौम्य मूर्ति हम सबसे आज इस संकट की घड़ी में जब गंगा की हत्या का काम रात-दिन चलने वाली भीमकाय मशीनें और गगन भेदी विस्फोटको के द्वारा अविरल गति से चल रहा है, गंगा को बचाने के लिए सक्रिय कदम उठाने का आहवान् कर रही है। मुझे विश्वास है कि गंगा के क्रन्दन को सुनकर आप खतरे को प्रत्यक्ष अपनी आंखों से देखने आयेंगे। संकट की घड़ी में मां का दामन पकड़े रखने की योजना बनायेंगे। आज मेरे उपवास का सोलहवां दिन है। यह अनिश्चित है और मैंने अन्तिम सांस तक मां की गोदी में रहने का संकल्प किया है, क्योंकि मुझे यह अनुभूति हुई है:-
गंगा स्नान, गंगा जल पान, गंगा दर्शनम् ।
ए ते ते मोक्ष साधनम् ।