उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने गंगा के बहाव के मुद्दे को केंद्र के पाले में डाला
लोहारी नागपाला परियोजना निरस्त करने की मांग की
नई दिल्ली, 15 अगस्त। गंगा नदी पर बड़ी बांध परियोजनाओं के जरिए पानी के बहाव को रोकने के मुद्दे को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने अब केंद्र सरकार के पाले में डाल दिया है। उनका कहना है उत्तराखंड सरकार गंगा के अतिरिक्त उपलब्ध जल पर लघु जलविद्युत परियोजना की पक्षधर है। लेकिन पूरी गंगा टनल में चली जाए इसकी कदापि पक्षधर नहीं है। उनकी मांग है कि भारत सरकार की सार्वजनिक उपक्रम एनटीपीसी की ओर से बन रही लोहारी नागपाला योजना को फिर से शुरू करने का फैसला अनुचित है क्योंकि इससे गंगा विलुप्त होकर सोलह किलोमीटर लंबी टनल से गुजरेगी।
मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को तीन अगस्त को लिखे अपने पत्र में कहा है कि उनकी सरकार ने जन भावना और पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए दो जलविद्युत परियोजनाएं पाला मनेरी व भैरो घाटी को डेढ़ साल पहले स्थगित कर दिया था। लेकिन लोहारी नागपाला योजना पर अमल गंगा की पावनता, अविरलता और देश की जनभावनाओं के अनुरूप नहीं है। इसे निरस्त करना ही बेहतर है। इसके पहले केंद्रीय पर्यावरण और वनमंत्री जयराम रमेश ने कहा था कि इस परियोजना से सिर्फ छह महीने ही बिजली उत्पादन होगा।
राजनीतिक तौर पर यह माना जा रहा है कि गंगा के मुद्दे को जिस तरह कांग्रेस ने अपना लिया था। उसके ही जवाब में भाजपा के कद्दावर नेता ने तुरुप की चाल चली है। गंगा के अविरल, निर्मल बहाव की खातिर कुंभ में गंगा पर परियोजनाओं को रोकने की मांग पर पहले भी सड़क पर आंदोलन चला। गंगा के अविरल बहाव और निर्मल धारा के बनाए रखने के लिए ‘स्पर्श गंगा’ अभियान छेड़ा गया। गंगा की सफाई में विश्व बैंक और जापान वगैरह से बड़ी इमदाद इस योजना में लगनी है। इसमें केंद्र सरकार की बड़ी भूमिका है। जाहिर है कांग्रेस के हाथ से गंगा का मुद्दा फिसल गया है। जानकारों को लगता है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की यह रणनीति राज्य में डेढ़ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रख कर बनी है। जिस पर बड़ी ही सावधानी से अमल करने के तौर-तरीकों पर सोचा जा रहा है।
उधर उत्तराखंड में बड़ी बांधों का विरोध करने वाले पर्यावरण विशेषज्ञ और कार्यकर्ता भी अचंभे में है। उनकी मांग है कि राज्य के टिहरी समेत अन्य बांधों पर बात होनी है तो उनके असर और नुकसान और लाभ व हानि का जायजा एक निष्पक्ष जांच समिति ले और रपट जारी की जाए। राज्य में लगभग दो सौ बड़ी और साढ़े पांच सौ छोटी जलबिजली परियोजनाएं हैं। राज्य में माटू जन संगठन के विमल भाई ने कहा कि मुद्दा सिर्फ गंगा के प्रति आस्था का नहीं है बल्कि यह पर्यावरण के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक पारिस्थितिकी का भी है। उन्होंने कहा कि केंद्र के पर्यावरण व वन मंत्रालय ने गंगा पर ही कोटरी वेल-वन ए, वन बी, कोटरी वेल-2 परियोजना भी मंजूर की है। ये तो ऋषिकेश के करीब है। गंगा का निर्मल धारा के लिहाज से इन पर रोक लगनी चाहिए।
मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में यह मांग भी की है कि उत्तराखंड को कम से कम दो हजार मेगावाट बिजली निःशुल्क उपलब्ध कराई जाए। प्रदेश की आर्थिक स्थिति और बिजली की जरूरतों के लिहाज से इस मांग को भी खासा अहम माना जा रहा है। क्योंकि प्रदेश ने जल, जंगल और जवान के जरिए देश के विकास में बड़ी भूमिका निभाई है।