वेटलैंड दिवस पर विशेष : उद्धारक का बाट जोहती मोतिहारी की धनौती नदी
जल को ‘प्रकृति की आत्मा’ माना गया है। जल, जीवन को पोषित करने वाला प्राकृतिक संसाधन है जो सभी जीवों के वितरण, संरचना, कार्य कलाप और अस्तित्व को निर्धारित करता है। जीवों के लिए जल की अनिवार्यता काफी स्पष्ट है क्योंकि जल के बिना इस पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। सभ्यता एवं संस्कृति का उद्गम भी नदियों के तट पर ही हुआ है, क्योंकि वहीं से खेती और अन्य जरूरतों के लिए पानी मिला। जल की महिमा का बखान हमारे आम बोलचाल में स्वतः शामिल होता रहा जैसे- जल हीं जीवन है, जल है तो कल है, बिन पानी सब सून, जल बचाओ जीवन बचाओ, जल जीवन हरियाली, बूंद-बूंद से सागर, यहाँ तक जीवन की सरलता का दर्शन भी पानी की उपमा रहिमान पानी राखिए बिन पानी सब सून जैसी रचनायें प्रचलित हुई। पर अब लगता है कि अब पानी के प्रति हमारी आम समझ बदल रही है, हम एक ऐसे विकास पथ पर निकल पड़े है जहाँ पानी की जरुरत पानी पानी खरीद कर कर सकते है।
पृथ्वी पर पानी का विस्तार अपार है जिसमें हमारे जरुरत का पानी बहुत थोडा़ है। वैश्विक परिदृश्य पर 97% पानी समुद्र में है, 2% आर्कटिक, अंटार्कटिक और अन्य हिमनदों में कैद है और मात्र एक प्रतिशत से भी कम हमारे काम का पानी है। उपलब्ध इस एक प्रतिशत ताजे पानी में से 22% भूमिगत जल के रूप में संरक्षित है और शेष 78% पानी नदियों, झीलों और तालाबों में भरा हुआ है। और सबसे बड़ी बात की इस पानी की उपलब्धतता समय और स्थान के मामले में काफी असमान है, जो जलवायु परिवर्तन के दौर में विकराल हो रहे बाढ़ और सूखे की विभीषिका के रूप में सामने आने लगा है, कभी कभी तो एक ही क्षेत्र एक ही साल के अलग अलग महीनो में क्रमशः बाढ़ और सुखाड़ को झेल रहे है।
बिहार राज्य अपने विशाल जल संसाधनों एवं प्रतिवर्ष आने वाले बाढ़ के कारण भारत के मानचित्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। बिहार के उत्तर-पश्चिम भाग मे चम्पारण का क्षेत्र अवस्थित है। नेपाल के हिमालय से करीब दो सौ से अधिक छोटी–बड़ी नदियां और धारायें गंडक और महानदी के बीच बिहार में प्रवेश करती है। उत्तर बिहार में कई बारहमासी एवं बरसाती नदियाँ अठखेलियाँ करती हैं, जिनका उद्गम पड़ोसी देश नेपाल से होता है और उनमें गंडक (नारायणी, सदानीरा), पंडई, द्वारदह, मनियारी, भवस, हरबोरा, कटहाँ, गांगुली, कोसी, घाघरा, कमला, महानंदा, बागमती, इत्यादि महत्वपूर्ण हैं। उत्तर बिहार में दो अलग-अलग नदी-घाटियाँ हैं: गंडक बेसिन और कोसी बेसिन और इन दोनों के बीच बागमती का उप बेसिन भी मौजूद है। गंडक बेसिन खास कर बूढी गंडक और गंडक के बीच प्राकृतिक रूप से बनी गोखुर झीलों (मन) की एक विशाल श्रृंखला है जो मत्स्य पालन के लिए ही नहीं बल्कि स्थानीय सभी जरुरत का उपयुक्त संसाधन भी हैं। ये ‘मन’ जैविक रूप से, नदियों के लगातार बदलते मार्ग के कारण अस्तित्व में आए, जो बाढ़ के मैदानों (फ्लड प्लेन्स) की एक विशिष्ट पहचान है, जिसे हवलदार त्रिपाठी सहृदय अपनी पुस्तक ‘बिहार की नदिया’ में इस भूमि का स्वर्ग का वह खण्ड बताते हैं जो हिमालय से पिघलकर पृथ्वी के रूप में परिणत हुई है और लगातार गंगा की गोद भरती है।”
उत्तर बिहार में चंपारण के उत्तरी भाग भू -भाग में जिसे बहास भी कहते है तियर, तिलावे, पसाह, मखुआ, दुधौरा, बंगरी आदि नदियाँ अठखेलियाँ कर बहती हुई बूढी गंडक में मिल जाती है जो इसे अन्न उत्पादन के लिए उर्वरा बनाती हैं। वही बूढी गंडक का दक्षिणी हिस्सा 43 मनो की श्रृंखला से आच्छादित है, जिसे धनौती नदी एक दूसरे को माला के जैसे पिरोती प्रतीत होती है और पूरब में बूढ़ी गंडक में मिल जाती है। धनौती एक बारहमासी, पतली और अत्यंत सर्पीली नदी है जो चम्पारण में पश्चिम से पूरब तक कम गति से बहती है। इस क्रम में धनौती नदी मोतिहारी(पूर्वी चम्पारण जिला मुख्यालय) के दक्षिणी सिरे से होकर गुजरती है। जैसा की नाम से ही प्रतीति है कि यह नदी सिंचाई, मछली-पालन और भू जल का प्रमुख स्रोत होने के साथ-साथ सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण हैं। इस नदी के तट पर प्रति वर्ष चैत्र एवं कार्तिक मास में हजारों उपासक आस्था का महापर्व अर्थात छठ व्रत करते हैं। यह नदी बाढ़ के दौरान मनो की श्रृंखला के साथ एक विशाल जल ग्रहण कर बाढ़ से बचाव के प्राकृतिक इलाज़ का काम करती है। साथ ही साथ जैव विविधता को समृद्ध बनाए रखने में मदद करती है।
चुकी धनौती नदी गंडक नदी के पुराने बहाव जो आज अनेकों अर्द्धचंद्राकर झीलों के रूप में मौजूद है, पर निरुपित अपेक्षाकृत नयी नदी है, अपने 80 किलोमीटर बहाव में नदी केवल सर्पीली मार्ग से ही बहती है। उदहारण के लिए धनौती नदी अपनी अत्यधिक सर्पीली प्रकृति के कारण गम्हरिया से जगदीशपुर (सीधी दूरी मात्र 2 किलोमीटर) तक पहुँचने में लगभग 5-6 किमी की दूरी तय कर चुकी होती है। बरसात के समय इसके बहाव के साथ लगभग सभी मन इसके बहाव से जुड़ जाते है। नदी नौतन प्रखंड के चौर से निकल कर गायघाट, हरसिद्धि और बंजरिया प्रखंड होते हुए मोथारी शहर की पश्चिमी सीमा बनाते हुए पिपरा से होकर दक्षिण में सीताकुंड से आगे मधुबनी घाट के पास सिकरहना (बूढ़ी गंडक) नदी में समाहित हो जाती है।
चम्पारण में अठखेलियाँ करने वाली सर्पीली धनौती नदी को मध्य चम्पारण की जीवन-रेखा एवं जीवन-दायिनी नदी का दर्जा प्राप्त था, क्योंकि यह नदी ना सिर्फ जल संसाधन मुहैया कराती थी बल्कि हजारों परिवारों के लिए मत्स्य-पालन के रूप में जीविकोपार्जन का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी थी। पिछले कुछ वर्षों में वैसे तो धनौती के पूरे बहाव क्षेत्र अतिक्रमण का शिकार हुआ है, खासकर मोतिहारी शहर के चैलाहा से बरियारपुर तक नदी के ऊपर ही शहर बस चुका है। शहर के चाटी माई मंदिर, रघुनाथपुर, बलुआ, पूर्वी गोपालपुर, मजूराहां एवं बरियारपुर इलाके का सारा अपशिष्ट पानी, मल-मूत्र और कचरा निस्तारण के लिए धनौती नदी दशको से इस्तेमाल में आ रही है। जैसे दिल्ली के मल-मूत्र निस्तारण के लिए यमुना है वैसे ही धनौती मोतिहारी की अपनी यमुना है। दो दशक पहले तक धनौती नदी मोतिहारी के मोतीझील के उतर पश्चिम सिरे से एक चैनल से जुड़ा हुआ था और बाढ़ के दौरान मोतिहारी शहर के लिए सुरक्षा कवच का काम करता था पर अब उस चैनल ही क्यों मोतीझील तक पर बस्ती बस चुकी है।
इधर धनौती नदी प्रदूषण और अतिक्रमण का शिकार हो रही थी उधर साल 2020 में धनौती नदी को राष्ट्रीय जल शक्ति मंत्रालय के द्वारा तृतीय राष्ट्रीय जल पुरस्कार 2020 के अंतर्गत सर्वश्रेष्ठ जिला (पूर्वी जोन) के सम्मान से पुरस्कृत भी हो गया। विडंबना ये कि धनौती नदी को यह सम्मान उसके काया-कल्प के लिए मिला था। जबकि वास्तविकता यह है कि चैलाहा में नदी के मात्र दो किलोमीटर लंबे हिस्से पर ही सफाई का कार्य हुआ था। वर्तमान मे मोतिहारी शहर के रघुनाथपुर से बरियारपुर और उसके आगे तक यह नदी एक बदबूदार एवं गंदगी से बजबजाती नाले के रूप में परिवर्तित हो चुकी है। वही अवैध अतिक्रमण से नदी का अस्तित्व ही मिटता जा रहा है।
यह नदी कभी सालों भर स्वादिष्ट ताजी मछलियों का स्रोत हुआ करती थी, लेकिन अब विडंबना यह है कि इस नदी पर आश्रित मछुआरे जीविकोपार्जन के लिए पलायन को विवश हो गए हैं। एक बड़ी आबादी, खासकर महिलायें एवं बच्चे, कुपोषण के शिकार हैं। धनधान्य का पर्याय धनौती नदी के उर्वरता और मातृतुल्य जीवनदायिनी स्वरूप को प्रदूषण एवं अतिक्रमण ने विकृत कर दिया है।
लगातार बढ़ती मानव आबादी और जलवायु परिवर्तन के दौर में पूरे विश्व में खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए मत्स्य पालन के महत्व को सुनिश्चित किया है। मत्स्य पालन के लिहाज से धनौती नदी और इलाके में मौजूद मनों की विस्तृत श्रृंखला इस समूचे क्षेत्र के समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मछली प्रोटीन का सस्ता और आसानी से उपलब्ध स्रोत होता है क्योंकि मछली में प्रोटीन संश्लेषण के लिए जिम्मेदार सभी आवश्यक अमीनो अम्ल के साथ विटामिन्स एवं खनिज लवण पाए जाते हैं। यह नदी इस क्षेत्र के वंचित समुदाय के लिए प्रोटीन जनित कुपोषण को भी दूर करने मे मदद कर सकता है। साथ ही साथ पानी के विकराल होते संकट के दौर में जल सुरक्षा की थाती की भूमिका निभा सकता है धनौती नदी बशर्ते इस नदी का अगर वैज्ञानिक तरीके से समुचित प्रबंधन किया जाए। साथ ही साथ नदी का पुनर्जीवन पलायन की समस्या को कम करने मे भी मदद कर सकता है और साथ ही साथ इस नदी पर आश्रित वंचित समुदाय के लिए जीविकोपार्जन एवं रोजगार सृजन को भी प्रेरित करेगा। धनौती नदी चम्पारण के वंचित समुदायों को बुनियादी पोषण (स्वास्थ्य), खाद्य-सुरक्षा, जल-सुरक्षा और आजीविका की पूर्ति का एक सस्ता और सुलभ संसाधन है।
विश्व आर्द्रभूमि दिवस (World Wetland Day) प्रति वर्ष 2 फरवरी को सम्पूर्ण विश्व में मनाया जाता है। विश्व आर्द्रभूमि दिवस का एस बार का विषय (थीम) "हमारे साझा भविष्य के लिए आर्द्रभूमि की रक्षा करना (Protecting wetlands for our common future) है। प्रति वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य विश्व के सभी देशों में स्वच्छ एवं सुरक्षित जल की उपलब्धता सुनिश्चित करवाना है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा भी विभिन्न सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने के लिए 17 वैश्विक उद्देश्यों का एक समूह बनाया गया है जिसे सस्टैनबल डेवलपमेंट गोल (सतत विकास लक्ष्य) कहा जाता है। सतत विकास लक्ष्य संख्या 2 में भुखमरी की समाप्ति, 3 में अच्छा स्वास्थ्य एवं जीवनस्तर, 6 मे स्वच्छ जल एवं स्वच्छता, 8 में अच्छा काम और आर्थिक विकास, 13 में जलवायु कारवाई तथा सतत विकास लक्ष्य संख्या 14 में पानी के नीचे जीवन इत्यादि को भी समावेश किया गया है।
जब तक पूर्वी चम्पारण के धनौती नदी समेत देश के अन्य जल स्रोतों का संरक्षण नहीं होगा तब तक हम विश्व आर्द्रभूमि दिवस, विश्व जल दिवस या यूनाइटेड नेशन द्वारा स्थापित सतत विकास के विभिन्न लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। ऐसे में जरुरत है कि हर नदी को कूड़ा और मल-मूत्र निस्तारण का साधन बनाने की प्रवृति पर लगाम लगे नहीं तो हर शहर अपने नदी को वैसे ही गंदे पानी का नाला बना डालेंगे जैसे दिल्ली वालो ने यमुना का हाल कर दिया है और उसी तर्ज पर मोतिहारी वालो ने अपनी धनौती नदी का कर रखा है।
दिसम्बर 2024 के अंतिम सप्ताह मे बिहार के माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी प्रगति यात्रा पर धनौती नदी आये जरुर पर नदी की सुध लेने की बजाय उनका ध्यान तथा कथित विकास को मूर्त रूप देने के लिए 14 करोड़ की लागत से नदी पर 72 मीटर लम्बे पुल का निर्माण की घोषणा पर ही रहा। यह जीवनदायिनी नदी आज भी मरणासन्न अवस्था में अपने उद्धार के लिए एक उद्धारक का राह ताक रही है।
लेखक परिचय - डॉ. नीरज कुमार (लक्ष्मी नारायण दूबे महाविद्यालय, मोतिहारी, बिहार)
डॉ. कुशाग्र राजेन्द्र (ऐमिटी विश्वविद्यालय हरियाणा)