खमढ़ोडगी में सिंचाई क्रांति
खमढ़ोडगी में सिंचाई क्रांति स्रोत: समर्थन

जब छत्तीसगढ़ के खमढ़ोडगी में किसानों ने संभाली सिंचाई प्रबंधन की कमान

कभी खेती के लिए बारिश का इंतज़ार करने वाला छत्तीसगढ़ का खमढ़ोडगी गांव अब सिंचाई प्रबंधन में समुदाय की भागीदारी के चलते अपनी उपज, आय और खाद्य सुरक्षा मज़बूत कर रहा है।
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छत्तीसगढ़ की पथरीली ज़मीन पर बसे जिस खमढ़ोडगी गांव में खेती करना बहुत धैर्य और उम्मीद का काम होता था अब वहां समृद्धि का नया अध्याय लिखा जा रहा है। कुछ साल पहले तक इस छोटे से गांव के किसानों के खेत सूखे और खलिहान खाली थे। 

यहां ज़्यादातर परिवारों के पास दो एकड़ से कम ज़मीन है। इनकी रोज़ी-रोटी जंगल से मिलने वाली उपज और बारिश के भरोसे होने वाली खेती से चल रही थी। आस-पास के गांवों में सिंचाई के लिए एक छोटे जलाशय से पानी आता था, पर ऊपर बसे खमढ़ोडगी को इसका कम ही फायदा मिल रहा था। यहां ज़्यादातर खेती अनिश्चित बारिश के ही भरोसे थी।

आज यहां बदलाव साफ दिखाई देता है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में काम करने वाली गैर लाभकारी संस्था समर्थन-सेन्टर फॉर डेवलपमेंट सपोर्ट ने जब से यहां के सामुदायिक सिंचाई तंत्र को दोबारा खड़ा किया है, खेतों में जीवन और गांव में समृद्धि लौट आई है।

संकट से शुरू हुई बदलाव की कहानी

साल 2015 में खमढ़ोडगी में एकीकृत सिंचाई प्रणाली की शुरुआत हुई। लेकिन खराब प्रबंधन, बकाया बिजली बिल और देखरेख की कमी के चलते महज़ दो साल में यह पूरी तरह ठप हो गई। जगह-जगह से फटते पाइप, खराब होती मोटरें और किसानों के बीच तालमेल की कमी इसके मुख्य कारण थे।

न तो कोई जल प्रबंधन व्यवस्था थी और न ही रखरखाव के लिए कोई फंड। नतीजतन, किसानों में विवाद बढ़ने लगे और अव्यवस्था के कारण प्रणाली ने काम करना बंद कर दिया।"हमारे पास एक सिस्टम था, लेकिन उसकी देखभाल की ज़िम्मेदारी किसी की नहीं थी" गांव के किसान पुनीत हिचानी याद करते हैं। "जब वो बिगड़ गया, तो हम फिर से बारिश के भरोसे रह गए।"

इस इलाके में हर साल औसतन 1400 मिमी बारिश होती है, पर अनियमित मानसून और लंबे चलते सूखे ने खेती को नामुमकिन बना दिया। गांव को तुरंत एक समाधान की ज़रूरत थी।

जब समुदाय ने उठाई ज़िम्मेदारी

साल 2023 में समर्थन संस्था ने एसबीआई फाउंडेशन के ग्राम सेवा कार्यक्रम की मदद से कांकेर ज़िले के खमढ़ोडगी, कोककपुर, माकड़सिंगरी, माकड़ीखुना, और गोटापुर जैसे गांवों में एक बदलाव की शुरुआत की। ये गांव खेती और वन उपज पर निर्भर थे। ग्राम सेवा कार्यक्रम डिजिटलाइज़ेशन, शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका, महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, आधारभूत ढांचे और पानी, सफाई और स्वास्थ्य (WASH) जैसे विषयों पर एकीकृत तरीके से काम करता है।

किसानों के साथ काम करते हुए, शुरुआत में 15 किसानों की 40 एकड़ ज़मीन को पानी उपलब्ध कराने के लिए योजना बनाई गई। ज़रूरत के हिसाब से तय किया गया कि कहां-कहां पाइपलाइन की मरम्मत की जानी है। दिसंबर 2023 में 1.2 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन और 5 हॉर्सपावर की मोटर लगाई गई।

पानी को 20 फुट ऊपर उठाकर खेतों तक पहुंचाया गया और धान, चना, मोटे अनाज और सरसों जैसी फसलें ली जानें लगी। किसान सिंचाई के लिए प्रति एकड़ प्रति फसल 1500 रुपए का शुल्क देने के लिए तैयार हो गए। एक समिति बनाकर उसे पानी के बंटवारे और वित्त प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया गया।

“जब समुदाय ज़िम्मेदारी लेता है, तो टिकाऊ समाधान निकलते हैं,” समर्थन संस्था के कार्यकारी निदेशक डॉ. योगेश कुमार कहते हैं। “इस प्रोजेक्ट ने साबित किया है कि सहाभागितात्मक जल प्रबंधन बस एक किताबी थ्योरी नहीं है, यह ज़मीन पर भी काम करता है,” वे आगे कहते हैं।

ग्राम सेवा कार्यक्रम ने पांच गांवों में 1,157 विभिन्न गतिविधियों की मदद से जल संरक्षण और प्रबंधन में काफी सफलता हासिल की। इन प्रयासों के चलते इन गांवों की सिंचित भूमि में 113 एकड़ का इज़ाफ़ा हुआ और जल संचयन की क्षमता बढ़कर 1,826,800 घन मीटर हो गई। जो पानी पहले जनवरी तक खत्म हो जाता था, वह अब अप्रेल तक मिलने लगा। नतीजतन, इन गांवों में पहली बार ज़ायद (गर्मियों) की फसल ली गई।

"इस कार्यक्रम से पहले गर्मियों में पानी की कमी के कारण खेती का काम रुक जाता था। पर अब यहां कुए हैं, ट्यूबवेल हैं, चेक डैम हैं, तालाब और हैंडपंप हैं। पानी है तो अब गर्मियों में सब्ज़ियां उगाई जा रही हैं। पिछले तीन सालों में इन पांच गांवों के किचेन गार्डन 1.2 करोड़ से ज़्यादा की कमाई कर चुके हैं। पानी के ये स्रोत न होते तो ये सब कभी नहीं हो पाता।"

प्यारे सिंह मंडावी, ग्राम खमढ़ोडगी

जब यह समझ आया कि खेती न कर पाने के पीछे सबसे बड़ी समस्या पानी की कमी है, तो ग्राम सेवा कार्यक्रम के तहत समुदाय को सिखाया गया कि वे पानी, ज़मीन और जंगल को एक साथ ध्यान में रखते हुए आगे की योजना बनाएं। किसानों को प्रशिक्षण दिया गया कि वे साथ मिलकर इन तीनों संसाधनों से जुड़ी समस्याओं पर चर्चा करें। इस मेल-जोल के कारण लोग समाधान की दिशा में आगे बढ़ने लगे। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य यही था कि लोग खुद योजना बनाने की ज़िम्मेदारी लें और यह सुनिश्चित करें कि उनकी योजना वाकई उनकी स्थानीय ज़रूरतों और समस्याओं को हल करे।

खमढ़ोडगी में जल सुरक्षा की बानगी
खमढ़ोडगी में जल सुरक्षा की बानगीस्रोत: समर्थन
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ग्राम सेवा कार्यक्रम ने भूजल के उपयोग को प्राथमिकता दी। साथ ही, जल प्रबंधन के लिए जलग्रहण विभाग, पंचायतों, समुदायों और किसानों की भागीदारी तय की गई। यह कार्यक्रम इसलिए सकारात्मक नतीजे दे सका क्योंकि इसमें महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) की कार्य क्षमता, जलग्रहण विभाग के संसाधन, समुदाय का सहयोग और कार्यक्रम फंड का पैसा, सब का उपयोग एक ही योजना के अनुसार किया जा रहा था।

हिचानी बताते हैं, “हमारे गांव में लिफ़्ट सिंचाई की सुविधा थी लेकिन बाद में इसे ग्राम सेवा कार्यक्रम की मदद से दोबारा शुरू किया गया। आज हमारे किसानों के समूह बड़ी कुशलता से इसका प्रबंधन कर रहे हैं। प्रबंधन और देखरेख के लिए हमने सिंचाई शुल्क शुरू किया, जिससे हमें फंड मिल जाता है। हमने इससे 1.95 लाख रुपए जुटाए, जिसमें से 77 हज़ार पाइपों की मरम्मत, बिजली का बिल चुकाने और मोटर ठीक कराने पर खर्च किए गए। अब समीति के पास ठीक-ठाक पैसा है और अब हम अपने बलबूते सिंचाई व्यवस्था संभाल रहे हैं।”

सहभागिता से संभव हुई समृद्धि

इस कार्यक्रम से पहले गांव में खेती बारिश पर निर्भर थी। पर अब बेहतर हुई सिंचाई व्यवस्था की मदद से किसान साल में दो मौसमों में फसलें ले पाते हैं। साल 2023 और 2024 में उन्होंने खरीफ़ के मौसम में धान उगाया और रबी के मौसम में दालें, तिलहन, काबुली चना और सरसों।

फसलों का उत्पादन भी काफी बेहतर हुआ है। साल 2022 में खरीफ़ के मौसम में 40 एकड़ ज़मीन में 200 क्विंटल उत्पादन हुआ। साल 2024 तक इसमें 160 क्विंटल का इज़ाफ़ा और देखने को मिला। पहले किसान रबी के मौसम (सर्दियां) में फसलें नहीं ले पाते थे, लेकिन साल 2023 और 2024 में उन्होंने रबी की फसलें उगाईं, जिससे उन्हें 23.05 लाख रुपए की अतिरिक्त आय हुई। 

सामूहिक प्रयास से आया खमढ़ोडगी में बदलाव
सामूहिक प्रयास से आया खमढ़ोडगी में बदलाव स्रोत: समर्थन

पानी की उपलब्धता बढ़ने से गावों में मछली पालन भी संभव हो सका है। अब कुल 39 तालाबों में पानी है। इनमें से कुछ को कार्यक्रम के तहत बनाया गया और कुछ की मरम्मत की गई। इनसे खेती और घरों के लिए तो पानी मिलता ही है, अब इनमें मछली पालन भी हो रहा है। इस नई शुरुआत ने लगभग तीन सालों में 45 किसानों को 33.06 लाख रुपए की आय हुई है।

एसबीआई फ़ाउंडेशन के प्रबंध निदेशक संजय प्रकाश कहते हैं, “पानी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। अगर समुदायों को समाधान का हिस्सा बनाया जाए, तो भविष्य की पीढ़ियों के लिए आजीविका और खाद्य सुरक्षा, दोनों को सुनिश्चित किया जा सकता है।”

खमढ़ोडगी के किसानों में यह बदलाव निजी स्तर पर दिखाई देता है। “अब हम पहले जैसी बेचारगी महसूस नहीं करते,” हिचानी अपने हरे खेतों की ओर देखते हुए कहते हैं। “अब हमें पता है कि हमारा भविष्य कैसा हो सकता है।”

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