अनूठी मिसाल है दो सौ साल पुराना यह समृद्ध तालाब

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जिले के कुम्हारी कस्बे के पास कंडरका गाँव में मौजूद इस विशाल तालाब से 250 हेक्टेयर खेतों की सिंचाई भी होती है। यह पूरे क्षेत्र में खासा प्रसिद्ध है। खास बात यह है कि आज तक इसे किसी ने सूखा नहीं देखा। दो सौ साल पहले जल संकट के चलते गाँव के मालगुजार ने इसे खोदवाया था।

एक पौराणिक कहावत है, ग्रीष्म में जो सरोवर सदानीरा रहते हैं, उन सरोवरों के निर्माता स्वर्ग का अक्षय सुख भोगते हैं। क्या आपके गाँव, आपके शहर में है ऐसा कोई तालाब, ऐसा सदानीरा सरोवर? छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में ऐसा एक तालाब है। पहुनाई में चरण पखारने वाले कंडरका गाँव के बाशिंदे पानी को भी पूजते हैं। यही कारण है कि वे अपने जलस्रोतों का संरक्षण पूरे मनोयोग और समर्पित भाव से करते आए हैं। 49 एकड़ में फैला कंडरका गाँव का तालाब जल संरक्षण का अनुकरणीय उदाहरण है। स्वस्थ, स्वच्छ सुन्दर और सदानीरा। प्राकृतिक सोतों से भरापूरा एक समृद्ध सरोवर। जो अब एक जन धरोहर बन चुका है।

कभी नहीं सूखता कंडरका :

लोगों ने दो सौ साल से इसे सहेजकर रखा है। यही वजह है कि इन दो सदियों में इस इलाके में भीषण सूखा पड़ा हो या घोर अकाल, लेकिन कंडरका ताालब सदानीरा बना रहा और अपने लोगों के काम आता रहा। यहाँ के लोगों ने इसमें कभी कोई रद्दोबदल नहीं किया। न ही कोई अतिक्रमण किया। तालाब की सेहत और स्वच्छता का हर सम्भव ध्यान रखा। जिससे यह कृत्रिम तालाब खुद-ब-खुद एक प्राकृतिक सरोवर में तब्दील हो गया। इसके पानी के सोते आज भी उतने ही स्वस्थ और सक्रिय हैं। इसमें इतना पानी रहता है कि ग्रामीणजन खेतों की सिंचाई भी आसानी से कर लेते हैं। वे इसके पानी का इस्तेमाल नहाने-धोने में भी करते हैं और मवेशियों की प्यास बुझाने में भी, लेकिन इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि तालाब की सेहत और स्वच्छता बरकरार रहे।

जिले के कुम्हारी कस्बे के पास कंडरका गाँव में मौजूद इस विशाल तालाब से 250 हेक्टेयर खेतों की सिंचाई भी होती है। यह पूरे क्षेत्र में खासा प्रसिद्ध है। खास बात यह है कि आज तक इसे किसी ने सूखा नहीं देखा। दो सौ साल पहले जल संकट के चलते गाँव के मालगुजार ने इसे खोदवाया था। तब पहली कुदाल पड़ते ही जल धारा फूट पड़ी थी। तभी से लोग इसे जल देवता की कृपा मानते आए हैं। प्राकृतिक सोते से इसमें अपने आप पानी आता रहता है। इसकी वजह से आस-पास के क्षेत्र में भी भूजल स्तर काफी ऊपर है। कंडरका के लोग तालाब का एक बूँद पानी बेकार नहीं जाने देते। इसके अलावा गाँव में जो भी प्राकृतिक जलस्रोत हैं, उन्हें सहेजने में भी हमेशा तत्पर रहते हैं। जल संरक्षण को लेकर यहाँ गोष्ठियाँ-सेमिनार भले न होते हों, पर कंडरका का संदेश सभी के लिये प्रेरणादायी है।

गाँव में रहते हैं जल बिरादरी वाले :

कंडरका गाँव की आबादी करीब दो हजार है। कच्चे-पक्के खपरैल मकान हैं। यहाँ अलग-अलग जातियों के लोग रहते हैं, लेकिन सबकी बिरादरी एक है। वे अपने को जल बिरादरी का बताते हैं। गाँव के सरपंच नकुलराम यादव, बुजुर्ग रघुनंदन सिंह राजपूत और कान्हा जैसे लोगों का कहना है कि पीढ़ियों से यहाँ पानी को पूजा जा रहा है। यह तालाब हमारे जीवन का आधार है। हमने राज्य में सूखे का संकट देखा है, लेकिन इस गाँव में पानी को लेकर लाले नहीं पड़े। यही वजह है कि हमलोग पानी की अहमियत भली-भाँति जानते हैं। इसीलिये इसे पूजते हैं। गाँव में चाहे जिस जाति-धर्म के मानने वाले हों, लेकिन सबसे पहले हम सभी लोग अपने को जल-बिरादरी का मानते हैं। गाँव का नारा है- जल से कल है, इससे छल नहीं करना चाहिए।

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