अररिया में वक्त की जरूरत बन रहा जल संरक्षण

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अररिया, जागरण प्रतिनिधि: खेतों में सिंचाई व पीने के पानी की कमी का सामना कर रहे अररिया जिले में जल संरक्षण वक्त की जरूरत बनता जा रहा है। जिले में बड़ी संख्या में बन रही सड़कों के लिये मिट्टी भराई के क्रम में निर्माण कंपनियों ने नदी की मृत धाराओं में छोटे छोटे तालाब बना कर एक नई राह दिखाई है।

अब भूल जाइये इस बात को कि अररिया में जल संकट नहीं होता है। इसी साल गर्मियों में नरपतगंज, भरगामा व रानीगंज प्रखंड में एक दर्जन से अधिक नदियां सूख गयी थी तथा हजारों चापा कलों में पानी का लेयर कई फीट नीचे चला गया था। पानी को ले कर जिले के पश्चिमी हिस्से में हाहाकार जैसी स्थिति थी। जब बरसा आयी तो कहीं जाकर स्थिति में सुधार हो पाया।

पानी का यह संकट केवल पश्चिम क्षेत्र में ही नहीं है। अगर आप ध्यान से देखें तो संपूर्ण जिले में संकट दिखाई पड़ेगा। जोकीहाट व अररिया प्रखंड के गांवों में पहले ढेर सारे जलकर थे। कुर्साकाटा व फारबिसगंज के गांवों में भी की बड़ी संख्या में कुदरती जलाशय थे। इन जलाशयों के जल का उपयोग जूट सड़ाने, गेहूं व मक्का की फसल की सिंचाई व मछली उत्पादन के लिये होता था।

लेकिन बाढ़ के पानी के साथ आने वाली गाद व सिल्ट के कारण तकरीबन सारे कुदरती जलाशय भथ गये। इसका परिणाम सिंचाई के लिये पानी के अभाव तथा मछली उत्पादन में कमी के रूप में सामने आया।

प्राकृतिक जलाशयों के समाप्त हो जाने व हरित क्रांति के आगमन के बाद किसान अपने क्राप की सिंचाई के लिये भूगर्भीय जल पर अधिक निर्भर हो गये। इसका परिणाम जिले में लगभग पचास हजार बांस बोरिंग के रूप में सामने आया। लेकिन अंडरग्राउंड जल के अत्यधिक दोहन के कारण अब हर साल गर्मी के सीजन में जल संकट सामने आ जाता है।

ऐसे में जिले में कार्यरत सड़क निर्माण कंपनियों ने जल संरक्षण के मामले में एक नई राह दिखाई है। अररिया कालेज के निकट बूढ़ी कोसी की मृत धारा में सड़क निर्माण कंपनी चढ्डा एंड चढ्डा ने मिट्टी निकाली। इसी मिट्टी को व्यवस्थित तरीके से निकाला गया तो धारा में दो तीन जलाशय बन गये। उसके बाद जब बारिश आयी तो जलाशय में भरपूर पानी और उसमें भरपूर मछली। किसानों ने इस पानी का उपयोग गेहूं पटवन के लिये किया। इस प्रकार के कई जलाशय फोरलेन बना रही पीसीएल तथा गैमन इंडिया द्वारा भी बनाये गये है।

किसानों की मानें तो ऐसे जलाशय बनाने के लिये सरकार व प्रशासन की ओर से पहल व वित्तीय मदद की जाये तो किसानों की माली हालत में बेहद सुधार हो सकता है।
 

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