बारिश की कमी से बुंदेलखंड का जीवन अस्त-व्यस्त
इसे कुदरत की विडंबना ही कहिए कि जो देश जल का सबसे बड़ा भंडार है वही देश आज जल संकट से जूझ रहा है। इस समय भारत में बिहार, गुजरात, तमिलनाडु, महाराष्ट और चेन्नई जल संकट की कमी से जूझ रहा है। बुंदेलखंड जो हमेशा से सूखे के लिए जाना जाता था इस बार वहां के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। बच्चों को माता-पिता जबरदस्ती स्कूल जाने से रोक रहे हैं क्योंकि वे चाहते थे कि उनका बच्चा कुछ काम कराये और पैसा लाये। महिलाएं खेतों में काम कर रही हैं, पानी ढो रही हैं और आदमी नौकरी की खोज में अपने घर से दूर जा रहे हैं। ये सब हो रहा है सूखा और पानी की कमी वजह से।
यहां के लोग अब खेती के अलावा आमदनी के दूसरे स्रोत खोज रहे हैं। माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल से बाहर निकालकर काम करवा रहे हैं। कुछ पास के कस्बों, शहरों में मजदूरी कर रहे हैं तो कुछ ढाबे में काम करते है। पानी की कमी से लोगों की आमदनी पर असर पड़ रहा है और वे उस आमदनी के लिए बच्चों को पढ़ाई से दूर कर रहे हैं। जो बच्चे पढ़-लिखकर बहुत कुछ कर सकते हैं, पढ़ाई के अभाव में वे सिर्फ मजदूरी के लायक बचेंगे। बच्चों के भविष्य के साथ ये खिलवाड़ है लेकिन यहां के लोगों के पास अब और कोई चारा नहीं बचा है।
ऐसा नहीं है कि बुंदेलखंड में पहली बार पानी की कमी रही हो लेकिन ये कमी अप्रैल-मई में शुरू होती थी और जून तक रहती थी। बारिश के आते ही पानी का संकट दूर हो जाता था और लोग खेतों में काम करने के लिए निकल जाते थे। लेकिन इस बार तो बारिश भी आशंका से बहुत कम हो रही है और जल संकट भी गहराता जा रहा है। इसी सूखे की वजह बुंदेलखंड के किसान आत्महत्या कर रहे हैं। कुछ ही दिन पहले हमीरपुर के मौदहा निवासी राजकली जब रोज की तरह सुबह साढ़े चार बजे जगी तो उसने देखा कि उसका पति शीतल बाबू वहां नहीं है। जब वो उसे खोजने के लिए बाहर निकली तो देखा कि उसके पति ने पेड़ से लटकर जान दे दी। क्योंकि सूखे की वजह से उसकी फसलें अच्छे से नहीं हुईं और उस पर 3 लाख का कर्ज था। कर्ज से छुटकारा का उसे फांसी के फंदे में दिखा।
पानी के लिए हाहाकार
ये मरने की कोई पहली घटना नहीं है। बिहार में एक भाई ने अपने भाई की हत्या पानी की वजह से कर दी। पानी के लिए हर जगह हाहाकर मची है कहीं आत्महत्या की जा रही है तो कई एक-दूसरे का मारने पर तुले हैं। हाल ही में यूनेस्को की जल रिपोर्ट 2019 आई थी जिसके अनुसार दुनिया के दस लोगों में से तीन लोगों का पीने का स्वच्छ पानी नहीं मिल पाता। ऐसे हालात में बुंदेलखंड की स्थिति तो और खराब है। राजकली दस लोगों के परिवार को चलाने के लिए मजदूरी करती हैं और उसका बड़ा अपने दोस्तों के साथ घूमता रहता है। वो चाहती है कि वो हमीरपुर जाकर मजदूरी करे और घर में कुछ अतिरिक्त पैसे लाये। जिससे दस लोगों के परिवार को आसानी से चलाया जा सके। बुंदेलखंड के घर-घर की कहानी कुछ ऐसी ही है।
केन्द्र सरकार की महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना कोष्ठक मनरेगा के तहत परिवार के सदस्य को रोजगार दिया जायेगा। इसके बावजूद लोग मनरेगा के तहत काम नहीं करना चाहते हैं क्योंकि उनको मिलने वाले पैसे में से 15 फीसद मो ग्राम पंचायत ही काट लेता है और यहां मिलने वाला पैसा देरी से आता है। इसलिए लोग वहां काम करना पसंद करते हैं जहां पैसा समय पर भी मिले और कटौती भी न हो। काम के चक्कर में बुंदेलखंड के लोग बड़े-बड़े शहरों में काम करने जाते हैं लेकिन अब तो शहरों में पानी की समस्या शुरू हो गई है। इस समय चेन्नई जैसे बड़े शहर जल संकट की मार झेल रहे हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट की मानें तो 2030 तक देश के 21 बड़े शहर का भूजल पूरी तरह से खत्म हो जायेगा।
पानी के बिना खेती कैसे?
बुंदेलखंड ग्रामीण इलाका हैं और यहां के अधिकतर लोग खेती करते हैं। बुंदेलखंड के लोगों की सबसे बड़ी समस्या है सिंचाई के लिए पानी का न होना। इसलिए खेती के लिए किसान वर्षा के पानी पर निर्भर रहते हैं। बारिश देर से होने या कम होने की वजह से उनकी पैदावार वैसी नहीं हो पाती, जैसा वे चाहते हैं। बड़े किसानों पास बोरवेल और ट्यूबवेल जैसी व्यवस्था हैं। छोटे किसानों को बोरवेल से सिंचाई करने के लिए हर घंटे 400 रुपए देने पड़ते हैं। शायद यही वजह है कि देश के छोटे और बड़े किसानों के बीच बहुत ज्यादा असमानता है। हाल ही में नाबार्ड ने एक सर्वेक्षण किया है जिसके अनुसार, किसानों की कुल आय में देश के 85 प्रतिशत किसानों की आय सिर्फ 9 प्रतिशत है और 15 प्रतिशत किसानों की आय 91 प्रतिशत है। पानी की कमी की वजह से किसान खेती नहीं कर पा रहे हैं और खेत बंजर हो रहे हैं। फसलों की पैदावार न होने की वजह से ये जमीन जंगल बनने लगी हैं।
बुंदेलखंड का हमीरपुर बुरी तरह से जल के कमी से जूझ रहा है। जहां कभी भूजल स्तर 100-150 फीट पर हुआ करता था, आज वो नीचे गिरकर 250 फीट तक चला गया है और कुछ जगहों पर तो ये जल स्तर काफी नीचे चला गया है। इसलिए यहां के किसान साल भर में एक ही बार खेती कर पाते हैं। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में सात जिले हैं जो सालों से सूखे की मार झेल रहे हैं लेकिन बारिश के बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है। हर वर्ष यहां 800-850 मिलीमीटर बारिश होती थी, इस साल तो बारिश आधी भी नहीं हुई है। जिस जगह के लोगों की प्रमुख आमदनी का स्रोत खेती हो और जब पानी की कमी हो तो ये उनके लिए बहुत बड़ा संकट बन जाता है। यहां के लोग उस संकट का सामना करने के लिए तैयार हैं, वे इसके हल के लिए कुछ बदलाव चाहते हैं लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है।
नौकरी की खोज में पलायन को मजबूर।
यहां के लोग अब खेती के अलावा आमदनी के दूसरे स्रोत खोज रहे हैं। माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल से बाहर निकालकर काम करवा रहे हैं। कुछ पास के कस्बों, शहरों में मजदूरी कर रहे हैं तो कुछ ढाबे में काम करते है। पानी की कमी से लोगों की आमदनी पर असर पड़ रहा है और वे उस आमदनी के लिए बच्चों को पढ़ाई से दूर कर रहे हैं। जो बच्चे पढ़-लिखकर बहुत कुछ कर सकते हैं, पढ़ाई के अभाव में वे सिर्फ मजदूरी के लायक बचेंगे। बच्चों के भविष्य के साथ ये खिलवाड़ है लेकिन यहां के लोगों के पास अब और कोई चारा नहीं बचा है। बच्चों के मां-बाप चाहते हैं कि वो पढ़ें लेकिन जब घर में पैसा ही न हो तो वो कैसे पढ़ा पायेंगे। बच्चे जहां घर के आसपास नौकरी कर रहे हैं बल्कि आदमी खेती छोड़कर शहरों में जाकर काम कर रहा है। बुंदेलखंड के लोगों का कहना है कि जब यहां पानी ही नहीं है, तो खेती करने का क्या मतलब है? हर साल इस इलाके के 50-60 फीसदी लोग खेती छोड़कर शहरों की ओर जा रहे हैं।
हो रहा है पलायन
जो लोग शहरों में काम करने जाते हैं वो जुलाई में अपने-अपने गांव लौटते हैं और चार महीने रूककर खेती करते हैं। जब पानी की कमी होने लगती है तो फिर से शहर लौट जाते हैं। अब इस इलाके में खेती सिर्फ मानसून के समय ही होती है बाकी समय खेत बंजर पड़े रहते हैं। अब तक तो यही लग रहा है कि इस साल बारिश कम होने वाली है और पूरा बुंदेलखंड पानी संकट से जूझेगा। दो हजार आबादी का गांव बकचा गदर गांव पूरी तरह से केन नदी पर निर्भर है। गांव में 350 परिवार रहते हैं और उन तक टैंकरों से पानी पहुंचाया जाता है। प्रशासन एक दिन में एक या दो टैंकर भेजता है लेकिन ये पूरे गांव के लिए पर्याप्त नहीं है। गांव के हैंडपंप भी खराब हैं, जिनको दोबारा सही नहीं करवाया गया है। अब तो बारहमासी नदी ही उनका एकमात्र स्रोत है। जहां गांव के लोग और गाय-भैंस एक ही जगह से पानी का उपयोग कर रहे हैं।
ये सिर्फ एक गांव की नहीं, एक बहुत बड़े इलाके की कहानी है। जो हमेशा से सूखे के लिये जाना जाता रहा है लेकिन बाद में सब सही हो जाता था। इस बार हालात बदले नहीं है, बदतर हो गये हैं। ऐसे संकट के समय में जल संरक्षण बहुत जरूरी है और सरकार से मदद गुहार लगाने से पहले खुद भी इस ओर कदम बढ़ायें। बुंदेलखंड तो तालाबों के लिये जाना जाता है, आज उन्हीं तालाबों को पुनर्जीवित करने की जरूरत है। जितनी भी बारिश हो उस पानी को रोकने की कोशिश की जाए। अगर ऐसा नहीं किया गया तो कोई भी जगह इस संकट से बचा नहीं पायेगी।
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