बढ़ती आबादी, घटता पानी

 बता दे  पहले विश्व की जनसंख्या कम थी और सभी लोगों की आवश्यकता पूरी करने के लिए पर्याप्त मात्रा में शुद्ध जल उपलब्ध था। लेकिन अब विश्व की निरंतर बढ़ती जनसंख्या तथा बढ़ते हुए औद्योगिकीकरण की वजह से पानी की कमी महसूस की जा रही है। आज विज्ञान की बात में यूसर्क वैज्ञानिक डॉ भवतोष शर्मा बतायेगें बढ़ती जनसंख्या  से कैसे पानी की मांग बढ़ेगी और हम कैसे आने वाली चुनौती के  लिए तैयार रहे। 

तेजी से बढ़ती जनसंख्या पूरी दुनिया के लिये परेशानी का सबब बनती जा रही है। दुनिया की आबादी जिस तेज रफ्तार से बढ़ रही है, उससे कई पर्यावरणीय समस्याओं के खतरे अब साफ़ तौर पर सामने नजर आने लगे हैं। जनसंख्या विस्फोट का सबसे बुरा असर हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर पड़ता है। जनसंख्या बढ़ने के साथ ही प्राकृतिक संसाधनों पर भी दबाव बढ़ने लगता है। जल, जंगल और ज़मीन लगातार कम होते जा रहे हैं। दरअसल प्राकृतिक संसाधन तो हमारे पास उतने ही हैं सदियों से, अब उनमें तो कोई बढ़ोत्तरी सम्भव है नहीं।

दुनिया की आबादी 7 अरब तक पहुँच गई है और यह इतनी तेजी से लगातार बढ़ रही है कि वर्ष 2100 तक लगभग 11 अरब तक पहुँचने की विशेषज्ञों ने सम्भावना जताई है। अकेले भारत की जनसंख्या चीन से आगे बढ़ने की होड़ में है। स्वाभाविक ही है कि जैसे–जैसे जनसंख्या बढ़ती है, वैसे-वैसे प्राकृतिक संसाधन कम होने लगते हैं। नदियाँ हों या ज़मीन के अन्दर का पानी, ज़मीन हो या जंगल, पहाड़ हो या खेत–खलिहान, पेड़–पौधे हो या वन्यजीव, खाद्य सामग्री हो या कपड़े इन सबकी अपनी एक सीमा है और उसी के अनुपात में ये हमें पिछली कई पीढ़ियों से जीवन के लिये जरूरी सामग्री उपलब्ध कराते रहे हैं।

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