जल प्रशासन में गुजरात की भूमिका प्रभावी
जल प्रशासन में गुजरात की भूमिका प्रभावी

जल प्रशासन में गुजरात और भारत की जलयात्रा

गुजरात और भारत की जल यात्रा बहुत दिलचस्प है, जिसने दुनिया को दिखाया है कि जल को संधारणीय बनाने और पर्यावरण संरक्षण को बहाल करने के लिए जल प्रबंधन में कैसे नयापन लाया जा सकता है। संधारणीयता के उद्देश्य से, लोगों की भागीदारी प्रौद्योगिकी पर केंद्रित ये पहल, पूरी दुनिया के लिए किफायती, प्रेरक और विश्वसनीय मॉडल का मार्ग प्रशस्त करती है। The water journey of Gujarat and India is very interesting, which has shown the world how to innovate in water management to make water sustainability and restore environmental protection. These initiatives, focused on people-participatory technology with the aim of sustainability, pave the way for affordable, inspiring and reliable models for the entire world.
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आज भारत के विकास का वाहक माना जाने वाला गुजरात राज्य, 21वीं सदी के पहले दशक में पानी की कमी वाले राज्यों में था लेकिन अब यह जल-सुरक्षा वाला राज्य बन गया है। पर्यावरण के अनुकूल नीतियों, जलवायु स्थिति स्थापक इंजीनियरिंग को अपनाने और ज़मीनी स्तर पर नेतृत्व को मजबूत करने से परिवर्तित हुआ यह राज्य, सतत विकास का अनुकरणीय उदाहरण है। इस लेख में राज्य में राष्ट्रीय स्तर पर उठाए गए कदमों और सतत विकास लक्ष्यों तथा समृद्धि को प्राप्त करने की इसकी क्षमता पर प्रकाश डाला गया है।

दो दशक पहले, इस क्षेत्र में बार-बार सूखे तथा पानी की कमी, 26 जनवरी 2001 को कच्छ में आए विनाशकारी भूकंप के कारण जीवन तथा आजीविका को नुकसान और सिकुड़ती अर्थव्यवस्था के परिणाम स्वरूप इसे आर्थिक संकट के खतरे का सामना करना पड़ रहा था। सामाजिक आर्थिक विकास और आर्थिक विकास में पानी की कमी के नकारात्मक प्रभावों के अहसास ने. तत्कालीन मुख्यमंत्री को दीर्घकालिक जल सुरक्षा प्राप्त करने के लिए अपनी नीतियों और तरीकों को बदलने के लिए प्रेरित किया। इसके अलावा, प्रकृति के स्वास्थ्य से समझौता किए बिना चुनौतियों का सामना करने के लिए जल, पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र के बीच महत्वपूर्ण संबंधों को स्वीकार किया गया और इस दिशा में विभिन्न सुधार किए गए। 

सुधार 

1990 के दशक के उत्तरार्ध में किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि गुजरात इस प्रकार दिखेगा जैसा वह अब है। पश्चिमी और उत्तरी भाग भीषण सूखे के कारण सूख गए थे और कच्छ के बढ़ते रेगिस्तान ने आजीविका को बुरी तरह प्रभावित किया था। मालधारी जैसे ग्राम्य समुदाय बड़े पैमाने पर पलायन कर रहे थे। उन्हें अपने पशुओं के लिए चारा और पानी की तलाश में कच्छ और सौराष्ट्र से पूर्व की ओर जाना पड़ा। इस अवधि के दौरान, गुजरात विषम वार्षिक वर्षा का सामना कर रहा था। मध्य और दक्षिण गुजरात में 80-200 से.मी., जबकि कच्छ जैसे क्षेत्रों में 40 से.मी. से कम बारिश होती थी। असमान वर्षा के कारण औसतन, हर तीसरे वर्ष सूखे का सामना करना पड़ता था। पीने के पानी की कमी को दूर करने और लोगों को पानी उपलब्ध कराने के लिए हर साल हज़ारों टैंकर लगाए जाते हैं। एक समय ऐसा भी आया जब विशेष जल रेलगाड़ियाँ पानी पहुँचाने का नया मानक बन गई थीं। राज्य और जिला प्रशासन ने इस तरह के अस्थायी इंतजामों के माध्यम से पानी की कमी का प्रबंधन करने में काफी संसाधन और समय लगाया था, लेकिन जलभृत और पर्यावरण को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए कुछ नहीं किया गया।
इन चुनौतियों से हमेशा के लिए निपटने के लिए पानी को राज्य की विकास नीति के केंद्र में रखा गया। हर घर में स्वच्छ पानी की पर्याप्त और सुनिश्चित उपलब्धता सुनिश्चित करने का संकल्प लेते हुए पानी के संरक्षण और पारिस्थितिक संतुलन हासिल करने के लिए व्यवहार्य समाधानों का पता लगाया गया। मांग और आपूर्ति के प्रबंधन के लिए समग्र जल क्षेत्र के एकीकरण सहित नीतिगत निर्णयों की एक श्रृंखला ने सभी स्तरों पर सुसंगत रूप से जवाबदेही सुनिश्चित की। दीर्घकालिक लक्ष्य, जलस्रोतों की संधारणीयता था, क्योंकि इसका सम्बन्ध सार्वजनिक स्वास्थ्य और लोगों की आजीविका से था।

पानी को एक 'सीमित संसाधन' के रूप में महत्व दिया गया था, जिसे हर साल भरने की जरूरत थी। चूंकि राज्य में सारा पानी सीमित बारिश के दिनों में वर्षा से प्राप्त होता है, राज्य को खुले में शौच से मुक्त बनाने, वर्षा जल संचयन और पानी के किफायती उपयोग पर ज़ोर दिया गया था। इससे वह जल्दी ही समझ में आ गया कि जल स्रोतों को प्रदूषित किए बिना बुद्धिमानी से उपयोग किया जाना चाहिए।

जलवायु स्थिति स्थापक जल बुनियादी ढांचे के निर्माण में सूखा-रोधक घटक अपनाया गया था। 'राज्यव्यापी पेयजल आपूर्ति ग्रिड' की योजना रासायनिक और बैक्टीरियोलॉजिकल संदूषण से मुक्त, नल का स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने के लिए बनाई गई थी। भूजल स्रोतों को, ऊपरी सतह के पानी को लगभग 2.000 कि.मी. की पानी की पाइपलाइनों और अनेक हाइड्रोलिक संरचनाएँ, भण्डारण संप. जल निस्पंदन, शोधन संयंत्र आदि के साथ 1.15 लाख कि.मी. से अधिक लम्बी आपूर्ति पाइपलाइनों के माध्यम से दूर से स्थानांतरित करके संरक्षित किया गया था। साथ ही, नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बाँध और वितरण नहर नेटवर्क को पूरा करने पर ध्यान दिया गया। मौजूदा नहर प्रणालियों को और मजबूत किया गया। यथोचित जल समृद्ध दक्षिण और मध्य गुजरात से उत्तरी गुजरात, सौराष्ट्र और कच्छ में पानी के अंतर-बेसिन स्थानांतरण की योजना बनाई गई थी और इसे 332 कि.मी. लम्बी सुजलाम्-सुफलाम् नहर के रूप में क्रियान्वित किया गया था। इससे लोगों को न केवल निर्धारित गुणवत्ता का पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराया गया, बल्कि नलकूपों से भूजल को बाहर निकालने में भी भारी कमी आई। यह ग्रिड 200 से अधिक शहरी स्थानीय निकायों और लगभग 14,000 गाँवों को पेयजल उपलब्ध करा रहा है।

सूखाग्रस्त उत्तरी गुजरात, सौराष्ट्र और कच्छ में सतत कृषि को बढ़ावा देने के लिए, नहर पाइपलाइन नेटवर्क की एक श्रृंखला के माध्यम से नर्मदा बाढ़ के पानी को इन क्षेत्रों में स्थानांतरित करने के लिए एक अनूठा दृष्टिकोण अपनाया गया था। इसके अलावा, पानी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, विशेष रूप से भूजल लवणता वाले क्षेत्रों में, विलवणीकरण संयंत्र स्थापित किए गए थे। अब तक, राज्य के तटीय क्षेत्रों में 270 मिनिमल लिक्विड डिस्चार्ज (एमएलडी) पानी के ऐसे चार संयंत्र लगाए गए हैं।

कृषि में जल-उपयोग दक्षता को सक्षम करना

समूचे मीठे पानी का लगभग 85 प्रतिशत कृषि उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, खेतों में पानी के उपयोग को अधिकतम करने के लिए सूक्ष्म सिंचाई और सहभागी सिंचाई प्रबंधन (पीआईएम) को व्यापक रूप से बढ़ावा दिया गया था। किसानों को 'प्रति बूंद, अधिक फसल' की अवधारणा के बारे में शिक्षित करने के लिए कृषि विस्तार गतिविधियों को एक अभियान के रूप में शुरू किया गया था। ‘कैच द रेन’ यानी वर्षा जल संचयन के लिए किसानों को उनके खेत में और उसके आस पास चेक डैम, खेत के तालाब, बोरी बंध आदि बनाने के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान की गई। जल संरक्षण अभियान के तहत खेतों में पानी के लिए लगभग 1.85 लाख चेकडैम, 3.22 लाख खेत-तालाब और बड़ी संख्या में बोरी-बंध का निर्माण किया गया। लगभग 31,500 तालाबों से गाद हटा दिया गया और उन्हें गहरा कर दिया गया। राज्य में 1,000 से अधिक बावड़ियों को साफ किया गया, पुनर्जीवित किया गया और उपयोग में लाया गया। लम्बे समय तक, इनमें से कई बावड़ियों को खाली छोड़ दिया गया था, लेकिन वर्षा जल संचयन और जलभृत पुनर्भरण की मदद से इन पारंपरिक प्रणालियों को बहाल किया गया और उनका कायाकल्प किया गया।

राज्य को जल सुरक्षित बनाने में मिशन मोड अभियानों की क्षमता को महसूस करते हुए, मानसून से पहले जल निकायों को गहरा करने और वर्षा जल-संचय के लिए जल भंडारण बढ़ाने के दोहरे उद्देश्यों के लिए 'सुजलाम् सुफलाम् जल अभियान' शुरू किया गया था। इसमें भागीदारी दृष्टिकोण के माध्यम से तालाबों, नहरों, टैंकों. चेकडैम तथा जलाशयों को साफ तथा गहरा करने, जल भंडारण संरचनाओं की मरम्मत, वर्षा जल संचयन संरचनाओं के निर्माण आदि सहित कई जल संरक्षण गतिविधियां शामिल हैं।

गुजरात में, हर वर्ष बरसात के मौसम में उत्तरी गुजरात, सौराष्ट्र और कच्छ में जलाशयों और बाँधों की भंडारण क्षमता का औसतन केवल 24 प्रतिशत ही भर पाता था। जल संचयन की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस दिन भुज शहर में हमीरसर झील के नाम से जाना जाने वाला स्थानीय जलाशय लबालब भर गया था. उस दिन जिला प्रशासन ने अवकाश घोषित किया था। इस दिन को उत्सव के रूप में मनाया जाता था। सौराष्ट्र नर्मदा अवतरण सिंचाई (सौनी) योजना भी शुरू की गई थी, जिसके तहत, मानसून के दौरान, नर्मदा के अधिशेष पानी को सौराष्ट्र के लगभग 115 जलाशयों में अंतरित और संग्रहीत किया जाता है। इस योजना से सौराष्ट्र में 8.25 लाख एकड़ कृषि भूमि को लाभ होने की उम्मीद है। बिजली के मुद्दों को दूर करने के लिए राज्य में बढ़ती सौर ऊर्जा उपलब्धता का पूरा फायदा उठाते हुए, सौर पंपों को प्रमुखता से चालू किया गया। इसके बाद से विभिन्न समूह जल आपूर्ति योजनाओं के लिए व्यापक ऊर्जा ऑडिट के अनुसार, ऊर्जा की बचत हुई है और जल आपूर्ति क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन में कमी आई है।

एकीकृत जल प्रबंधन दृष्टिकोण और भूजल में लगातार सुधार के साथ, राज्य में कुल सिंचित क्षेत्र में 77 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई, और राज्य में कृषि उत्पादन में भी 255 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिससे हरित अर्थव्यवस्था बनी। इसने एक सतत और पर्यावरण के अनुकूल मॉडल का मार्ग प्रशस्त किया है।

गुजरात के नक्शेकदम पर चलते हुए. जल सुरक्षा हासिल करने के लिए समुदाय द्वारा संचालित प्रयासों को अंजाम देने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर भूजल संरक्षण योजना तैयार की गई थी। अटल भूजल योजना के तहत, स्थानीय समुदायों को उनकी भागीदारी सुनिश्चित करके और अन्य सभी हितधारकों के बीच स्वामित्व की भावना में सुधार करके उन्हें सशक्त बनाने के लिए एक अनूठी नीतिगत पहल की गई थी। भारत में सबसे अधिक पानी की आवश्यकता वाले कृषि क्षेत्र के लिए सूक्ष्म सिंचाई जैसे तरीके अपनाने की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत, किसानों को कम पानी की बर्बादी के साथ उत्पादकता में सुधार के लिए ‘जल स्मार्ट सिंचाई प्रौद्योगिकियों’ को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। 

'कैच द रेन' अभियान वर्षा जल संचयन में सुधार के लिए किए गए महत्वपूर्ण उपायों में से एक है।

परिवर्तनकारी 'स्वच्छ भारत अभियान' की सफलता और गुजरात में जल प्रबंधन के लिए एकीकृत दृष्टिकोण की सफलता से प्रेरित होकर, 2019 में दो जल क्षेत्रों पेयजल आपूर्ति और जल संसाधनों को मिलाकर जल शक्ति मंत्रालय बनाया गया। इसके तुरंत बाद, 'जल शक्ति अभियान' को अभियान और मिशन मोड पहल के रूप में शुरू किया गया था ताकि मानसून को सर्वश्रेष्ठ बनाया जा सके और विशेष रूप से जल की कमी वाले 256 चिन्हित जिलों में जल संरक्षण किया जा सके। इसे जन आंदोलन बनाने का प्रयास किया गया। ये उपाय सही मायने में पानी को 'सबका सरोकार' बनाने और सभी के लिए जल सुरक्षा हासिल करने की दिशा में सही कदम साबित हुए।

नदी को जीवित संस्था के रूप में मानने और यह सुनिश्चित करने के लिए ऐसे सभी उपाय करना कि जिससे वे सांस लेते रहें और स्वस्थ रहें, इस दिशा में एक और परिवर्तनकारी कदम था। गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों के कायाकल्प के लिए 'नमामि गंगे' की शुरुआत, चार श्रेणियों प्रदूषण, उपशमनः, प्रवाह तथा पारिस्थितिकी में सुधार; मानव-नदी सम्बन्ध को मजबूत करने और अनुसंधान, ज्ञान तथा प्रबंधन में बहु-स्तरीय और बहु एजेंसी दृष्टिकोण को अपनाने के लिए की गई थी। नमामि गंगे की सफलता के साथ, 13 और नदियों के कायाकल्प तथा इनमें प्रदूषण कम करने का काम शुरू किया गया है। 

जल जीवन मिशन-हर घर जल

15 अगस्त 2019 की, लालकिले से राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में, प्रधानमंत्री ने 2024 तक देश के हर ग्रामीण घर में नल के पानी की आपूर्ति के वादे के साथ जल जीवन मिशन की घोषणा की। इस मिशन को राज्यों की भागीदारी के साथ तैयार किया गया था। इसका उद्देश्य केवल बुनियादी ढांचे के निर्माण के बजाय दीर्घकालिक रूप से जल सेवा आपूर्ति सुनिश्चित करना है।

जल जीवन मिशन के तहत, देश के 6 लाख गाँवों में पानी समितियां/वीडब्ल्यूएससी स्थापित की जा रही हैं, जहाँ उन्हें शुरू से अंत तक का दृष्टिकोण अपनाते हुए अपने गाँव में जलापूर्ति प्रणाली की योजना बनाने, लागू करने और प्रबंधन का अधिकार दिया जा रहा है। इसमें चार प्रमुख घटक स्रोत स्थिरता, जल आपूर्ति, ग्रेवाटर उपचार तथा पुनरुपयोग और संचालन तथा रखरखाव शामिल हैं।

स्वच्छ भारत मिशन 2.0, अपशिष्ट उत्पादन को कम करने और इसके उपयुक्त उपचार, पुनरुपयोग या निपटान पर केंद्रित है। इस मिशन के प्रमुख प्रभाव क्षेत्र जैव अवक्रमणीय ठोस अपशिष्ट, ग्रेवाटर, प्लास्टिक अपशिष्ट और मल जल प्रबंधन हैं।

भारत, भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता होने के नाते, विकेन्द्रीकृत, मांग-संचालित और समुदाय प्रबंधित कार्यक्रमों को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। स्थानीय समुदाय में विशेष रूप से महिलाएं शामिल हैं, जो गाँवों में दीर्घकालिक जल सुरक्षा के लिए वैज्ञानिक जल प्रबंधन में जुटी हैं। आज की जलवायु जोखिम वाली दुनिया में, विशेष रूप से इस दशक में जहाँ कम दिनों में अधिक बारिश की भविष्यवाणी की गई है, बारिश के पानी को संग्रहित करना, विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग करना और उपचार तथा पुनरुपयोग के माध्यम से काम में तेजी लाना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। भारत सरकार ने पिछले आठ वर्षों में लोगों द्वारा संचालित कार्यक्रम की भावना से पानी की चक्रीय अर्थव्यवस्था की दिशा में कई पहल की हैं।

दुनिया के अपनी तरह के सबसे बड़े कार्यक्रमों में से एक जलभृत प्रबंधन पर राष्ट्रीय परियोजना, भूजल के स्थायी प्रबंधन की सुविधा के लिए जलभृत प्रबंधन योजनाओं के निर्माण की परिकल्पना करती है। अब तक देश के कुल क्षेत्रफल के आधे से ज्यादा हिस्से की मैपिंग की जा चुकी है।

आगे बढ़ने का रास्ता

सामाजिक-आर्थिक विकास और आर्थिक विकास, विशेष रूप से सूखा प्रवण और रेगिस्तानी क्षेत्रों में, इस बात पर निर्भर करता है कि जल संसाधनों का कितनी समझदारी से उपयोग किया जाता है। जल, एक सीमित संसाधन होने के कारण, विशेष रूप से शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में वनस्पतियों तथा जीवों सहित पर्यावरण संरक्षण को बहाल करने और बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। रोगों को कम करने. मानव आबादी के स्वास्थ्य, कल्याण और पृथ्वी पर अन्य जीवन रूपों को संभव बनाने के लिए इसकी जीवन शक्ति को कम करके नहीं आंका जा सकता या इसकी अनदेखा नहीं की जा सकती।

(व्यक्त विचार निजी हैं)

लेखक भारत के लोकपाल सचिव हैं। वह गुजरात के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न जल परियोजनाओं और कार्यक्रमों के नीति-निर्माण, नियोजन और कार्यान्वयन में शामिल रहे हैं। वह जल जीवन मिशन के संस्थापक मिशन निदेशक भी है। ईमेल: bharat.lal@gmail.com

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