जल संसाधन का अर्थ और प्रकार |
जल संसाधन का अर्थ और प्रकार |

जल संसाधन का अर्थ और प्रकार

जानें नदियां, पोखर, तालाब. चश्मे, धरातलीय जल, नदी तली के नीचे का प्रवाह, भूजल आदि सब जल संसाधन के प्रकार हैं।  इसके कितने प्रकार हैं | Know about rivers, ponds, ponds. Springs, surface water, bottom flow of river bed, groundwater etc. are all types of water resources. How many types are there?
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सभी प्रकार के जल संसाधनों का उद्गम वर्षा अथवा हिमपात है। सतही जल के चार मुख्य स्रोत हैंः नदियाँ, झीलें, ताल तलैया और तालाब। इनमें से नदी सतही जल का मुख्य स्रोत है। नदी में जल प्रवाह इसके जल ग्रहण क्षेत्र के आकृति और आकार अथवा नदी बेसिन और इस जल ग्रहण क्षेत्र में हुई वर्षा पर निर्भर करता है। भारत के पर्वतों पर जमा हिम पिघलकर गर्मियों के दिनों में नदियों में प्रवाहित होता है। भारत में मुख्यतः 6 नदी बेसिनों में जल वितरित है सिन्धु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, पूर्वी तट की नदियाँ, पश्चिम तट की नदियों, अंतः प्रवाही बेसिन तथा भूजल संसाधन। सतही जल पूर्णतया वर्षा पर निर्भर होता है। भारत में यद्यपि सभी नदी बेसिनों में औसत वार्षिक प्रवाह 1,869 बीसीएम होने का अनुमान किया गया है, फिर भी स्थलाकृतिक, जलीय और अन्य दबावों के कारण प्राप्त सतही जल का मात्र लगभग 690 बीसीएम (37%) ही उपयोग किया जा सकता है।

भूजल वह जल होता है जो चट्टानों और मिट्टियों से रिसता है और भूमि के नीचे जमा होता है। चट्टानें जिनमें भूजल को संग्रहित किया जाता है, उसे जलभृत कहा जाता है। इसे कुओं, ट्यूबवैल अथवा हैंडपम्पों द्वारा प्राप्त किया जाता है। भारत विश्व का सबसे बड़ा भूजल का उपयोग करने वाला देश है, हालांकि भारत में भी भूजल का वितरण सर्वत्र समान नहीं है। चट्टानों की संरचना, धरातलीय दशा, जलापूर्ति दशा आदि कारक भूमिगत जल की मात्रा को प्रभावित करते हैं। भूमिगत जल की उपलब्धि के आधार पर भारत के तीन प्रदेश चिन्हित किये गये हैं-1) उत्तरी मैदान (कोमल मिट्टी, प्रवेश्य चट्टानें) - पर्याप्त जल, 2) प्रायद्वीपीय पठार (कठोर अप्रवेश्य चट्टानें) कम जल; 3) तटीय मैदान पर्याप्त जल। केन्द्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार भूमिगत जल का 3/4 भाग सिंचाई में प्रयोग होता है; और 1/4 भाग औद्योगिक और अन्य कार्यों में प्रयुक्त होता है। उत्तर-पश्चिमी प्रदेश जैसेः पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और दक्षिणी भारत के कुछ भागों के नदी बेसिनों में भूजल उपयोग अपेक्षाकृत अधिक है। वर्तमान में देश में कुल वार्षिक भूजल पुनर्भरण 436.15 बीसीएम तथा वार्षिक निकालने योग्य भूजल संसाधन 397.62 बीसीएम है। इसके अलावा वार्षिक भूजल दोहन (वर्ष 2020 तक) 244.92 बीसीएम है।

जल एक अमूल्य प्राकृतिक संसाधन है। स्वच्छ तथा शुद्ध जल मानव सहित सभी जीवित प्राणियों एवं संपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र के जीवन के लिए अति महत्वपूर्ण है। विश्वभर में स्वच्छ जल की कमी मानवता मात्र के लिए एक गंभीर संकट बनती जा रही है, जिसका एक प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन आधारित जल दृष्टि असमानता है। जल संकट से बचने हेतु जल ग्रहण क्षेत्रों पर वर्षा जल संचयन इस समस्या का एक स्थायी और टिकाऊ समाधान है, जो कि घरों की छतों से अथवा खेलों में विभिन्न प्रकार की विधियाँ अपना कर किया जा सकता है। देश में कुल कृषि भूमि का 50% हिस्सा ही समुचित सिंचाई सुविधा से सम्पन्न है, बाकी 50% खेती योग्य भूमि अभी भी वर्षा जल पर निर्भर है। यदि कृषि समुदाय को आत्मनिर्भर बनाना है तो वर्षा पर से उसकी निर्भरता कम करनी होगी। वर्षाजल के संचयन से भारत में कृषि में काफी सहायता मिल सकती है, चूँकि कृषि भारत का एक बहुत महत्वपूर्ण अंग है, जिसमें कि पूरे देश में उपयोग किये जाने वाले जल का लगभग 80% अंश इस्तेमाल होता है। कृषि में अच्छा जल प्रबंधन करना भविष्य की दृष्टि से अति आवश्यक है, क्योंकि इससे हमें अच्छी फसल तो मिलेगी साथ ही साथ कुल उपज में भी बढ़ोतरी होगी।

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