जूनागढ़ शिलालेख

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अर्थशास्त्र में लिखी कई बातें कई प्राचीन ग्रंथों में भी पाई जाती हैं। देश के प्रायः हरेक भाग में कई कालखंडों के कई शिलालेख पाए गए हैं जिनमें बांधों, तालाबों, तटबंधों के रखरखाव और प्रबंधन की सूचनाएं खुदी हुई हैं। जूनागढ़ (गुजरात) में दो शिलालेखों में बाढ़ से नष्ट तटबंध की मरम्मत के बारे में दिलचस्प सूचनाएं हैं।

पहला शिलालेख शक् संवत् 72 (150-151 ई.) का है, शक शासक रुद्रदमन का इस शिलालेख में महाक्षत्रप रुद्रदमन द्वारा सुदर्शन झील की मरम्मत आदि के दिलचस्प विवरण हैं। शुरू में इस झील का निर्माण चंद्रगुप्त मौर्य के अधिकारी पुष्यगुप्त ने करवाया था। बाद में अशोक के शासन में इसमें और सुधार किया गया। यवन राजा तुशाष्य ने इस झील से नहर निकलवाया। यह झील उर्जयत (गिरनार) में उर्जयत पहाड़ी से निकले सुवर्णसिकता और पालसिनी झरनों के पानी को जमा करके बनाई गई थी। 150-151 ई. से थोड़ा पहले उर्जयत पहाड़ी के सुवर्णसिकता, पालसिनी और दूसरे झरनों में बाढ़ के कारण तटबंधों में दरार पड़ गई और सुदर्शन झील समाप्त हो गई। बांध को फिर से बनाने का काम राजा रुद्रदमन के पल्लव मंत्री सुविसाख ने किया। सुविसाख की नियुक्ति सुवर्ण और सौराष्ट्र प्रांतों का शासन चलाने के लिए की गई थी।

शिलालेख से कई बातें सामने आती हैं। झील के पानी का उपयोग राजा तुशाष्य द्वारा खुदवाई गई नहरों से सिंचाई के लिए होता था। चार शताब्दी बाद उसकी मरम्मत एक पहलव या पल्लव सामंत ने करवाई। दोनों ही काम विदेशियों ने किए। इस तरह यह शिलालेख केवल बांध ही नहीं, झील का भी एक रिकॉर्ड है। इससे पता चलता है कि ई.पू. चौथी शताब्दी में भी लोग बांध, झील और सिंचाई प्रणाली का निर्माण जानते थे।

तीन सौ साल बाद मरम्मत आदि का काम पूरा होने पर 455-456 ई. में सुदर्शन झील भारी बरसात के कारण फिर टूट गई। 456 ई. में चक्रपालित के आदेश पर इस विशाल दरार की मरम्मत करके तटबंधों को दो महीने में दुरुस्त किया गया। सम्राट स्कंदगुप्त (455-467 ई.) के काल के जूनागढ़ के एक शिलालेख से पता चलता है कि चक्रपालित ने सुदर्शन झील के तटबंध की मरम्मत करवाई।

दोनों शिलालेखों में कई समान बातें दर्ज हैं। दोनों में झील का नाम सुदर्शन तातक या ताड़क बताया गया है। यह भी बताया गया है कि झील पालसिनी नदी (रुद्रदमन के शिलालेख में सुवर्णसिकता नाम भी दिया गया है) और दूसरे झरनों पर सेतुबंधन या तटबंध बनाकर तैयार की गई। कौटिल्य ने भी तटबंध के लिए सेतु शब्द का प्रयोग किया है। सेतु और सेतुबंधन शब्द कई संस्कृत ग्रंथों में भी मिलते हैं। रुद्रदमन के शिलालेख में दूसरे शब्द जो प्रयोग किए गए हैं वे हैं- नहर के लिए प्रणाली, कचरा बंधारा के लिए परिवह, झील से गाद की सफाई के लिए मिधविधान। प्रत्येक शिलालेख ने दरार का पूरा नाप-जोख बताया है और तटबंध के पुनर्निर्माण में लगे समय का पूरा ब्यौरा दिया है। इन तटबंधों को शुरू में मिट्टी से बनाया गया था जिनके दोनों तरफ पत्थर लगाए गए थे। देश भर में निर्माण का यह ठोका-बजाया तरीका तब तक अपनाया जाता रहा जब तक सीमेंट और कंक्रीट नहीं आ गए। सुदर्शन झील पर अपने अनुसंधान के दौरान प्रख्यात इतिहासज्ञ आर.एन. मेहता ने कचरा बंधारा का पता लगाया जिसे जोगनियो पहाड़ी को काटकर बनाया गया था। इसे स्थानीय भाषा में डुंगर कहा जाता है। ऐसे कचरा बंधारे पहाड़ों में कई जगह पाए जा सकते हैं। तटबंध के नष्ट हो जाने के कारण सुदर्शन झील शायद आठवीं या नौंवी ई. में बेकार हो गई और फिर से प्रयोग में नहीं लाई जा सकी। इस तरह इसका जीवन काफी लंबा करीब एक हजार वर्षों का रहा।
 

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