कोशिश रंग लाई, मिला पानी

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आईबीएन-7/सिटिज़न जर्नलिस्ट सेक्शन

नरेन्द्र नीरव, सोनभद्र जिले के ओबरा का रहने वाला हैं। सूखा ग्रस्त टोले का परासपानी गांव आज 5 सालों के मेहनत, परिश्रम और लोगों के लगन का नतीजा है यह कि जहां सूखा था वहां पानी दिख रहा है।

इस इलाके में नरेन्द्र नीरव ने अध्ययन और गांव में जन स्वास्थ के कुछ कार्यक्रम शुरू किए। तो इन लोगों ने ये निष्कर्ष निकाला कि ज्यादातर बीमारियां पानी की कमी के कारण, इस इलाके के लोगों को हैं।

जिसके बाद इन लोगों ने ये निष्कर्ष निकाला कि ज्यादातर बीमारियां पानी की कमी के कारण, इस इलाके के लोगों को हैं। और उनमें गंदा पानी जो जोहड़ का पानी या नाले का पानी पीने से हर साल बड़ी संख्या में लोग बीमार होते हैं और डायरिया, अतिसार पीलिया जैसे रोगों से मरते हैं।

लोगों को विशवास नहीं था कि उस गांव में पानी को रोका जा सकता है। औऱ इन सभी लोगों ने इसी विश्वास को पैदा किया और पानी बनाना शुरू किया।

नरेंद्र का कहना है कि इन लोगों ने गहराई से महसूस किया कि पानी का इंतजाम उन्हें खुद करना होगा और आपस में व्यवस्था करके इन लोगों ने गांववासियों के साथ मिलकर श्रमदान शुरू किया।

अंशदान और श्रमदान से मिलकर के नतीजा ये हुआ कि गांव में बंधी बन गई और पानी उसमें रुक गया। सबने श्रमदान किया, फावड़ा चलाया, नरेंद्र के साथियों ने चलाया और पानी को बचा लिय़ा वो भी बिना किसी सरकारी मदद के।

कुछ बधींयां ऐसी थी जो बरसात में टूटने लगी। यह एक बहुत बड़ी चुनौती थी कि ये लोग टूटी हुई बधिंयों को कैसे बचाए।

नरेंद्र के साथियों ने जूझ करके और घनघोर बरसात में बधिंयों को बचाया और कई बधिंयो को टूटने नहीं दिया।

जब पानी इकट्ठा हुआ ते उस गांव की परिस्थितियों में बहुत परिवर्तन आया। उससे परिवर्तन ये हुआ कि जो नाला साल भर सूख जाता था वो पानी के पझान से, डिस्चार्जड वॉटर से भरा रहने लगा और वन जीवों की वन प्री को, चिड़ियों को, जीवों को, पानी का साधन मिल गया। खास तौर से जो मवेशी थे दुबले-पतले उनको पानी मिल जाने से पशु पालन एक लाभप्रद काम बन गया जिसको वो करने लगे।

पानी हो जाने से उनको गांव में जो हर साल चापाकल सूख जाते थे। कुए का स्तर काफी हद तक करीब 15 से 20 फीट तक कुछ इलाकों में ऊपर आ गया। और पानी सूखना बंद हो गया। बच्चे स्वस्थ रहने लगे, स्वच्छ रहने लगे, सब बीमारियां भी कम हुई। हर साल बूंद बूंद पानी के लिए तरसने वाले इस वनवासी अंचल में नरेंद्र ने ग्रामवासियों के सहयोग से 40 बंधिया बनाई और वर्षा के जल को रोका लिया।

साभार – जोश 18

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