जगदीश ने नाला बन चुकी शिप्रा नदी को किया साफ, ढूंढ़ा उद्गम स्थल
जगदीश ने नाला बन चुकी शिप्रा नदी को किया साफ, ढूंढ़ा उद्गम स्थल

नैनीतालः जगदीश ने नाला बन चुकी शिप्रा नदी को किया साफ, ढूंढ़ा उद्गम स्थल

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अधिकतर लोगों को बिहार में बहने वाली कोसी नदी के बारे में पता होगा, जो गंगा की सहायक नदी है और नेपाल में हिमालय से निकलती है। इसी कोसी का रौद्र रूप बिहार में बाढ़ का कारण बनता है, लेकिन एक कोसी नदी उत्तराखंड़ में भी बहती है, जिसका उद्गम बागेश्वर जिले में कौसानी के पास धारापानी धार से होता है। कोसी नदी रामनगर से होते हुए उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में प्रवेश करती है। यहां चमरौल के पास रामगंगा में मिल जाती है। यही रामगंगा ‘गंगा नदी’ की सहायक नदी भी है। इसी प्रकार शिप्रा नदी मध्य प्रदेश में बहती है। उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर ही कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है, लेकिन उत्तराखंड़ में भी एक क्षिप्रा नदी बहती है। 

उत्तराखंड़ शिप्रा का उद्गम नैनीताल के श्यामखेत से होता है। शिप्रा 25 किलोमीटर की अपनी यात्रा में भवाली, कैंची धाम, रातीघाट, रामगाढ़ आदि क्षेत्रों को अपने जल से तृप्त करती है और खैरना में कोसी नदी में मिल जाती है, लेकिन हमेशा कल-कल निनाद करके बहते हुए सभी की प्यास बुझाने और सिंचाई में सहयोग करने वाली शिप्रा नदी पिछले दो दशकों में नाला बन गई है। घरों का कूड़ा और सीवर नदी में ही बहाया जाता है, जिस कारण नदी का अस्तित्व खतरे में है, लेकिन नैनीताल के ही जगदीश नेगी पिछले पांच सालों से नदी को पुनर्जीवित करने में जुटे है। उन्होंने शिप्रा का उद्गम स्थल भी ढूंढ निकाला। 

जगदीश नेगी ने 1999 में कुमांऊ विश्वविद्यालय से स्नातक किया और वर्ष 2007 से कंस्ट्रक्शन का कार्य कर रहे हैं। वर्ष 2015 में जब वें सुबह की सैर पर गए तो शिप्रा नदी का हाल देखकर अचंभित हो गए। बचपन में जिस नदी के जल में वें अठखेलियां करते थे, वो नाला बन गई थी। आस्था का केंद्र रही इस नदी को लोगों ने कूड़ादान बना दिया था। उस दौरान उन्होंने नदी का उद्धार करने का निर्णय लिया। काम जितना छोटा दिख रहा था, उतना था नहीं। उन्होंने अपनी फेसबुक पर पोस्ट डाली कि मैं अगले रविवार क्षिप्रा नदी के सफाई अभियान का काम शुरू करूँगा। अगर कोई साथी, हाथ बंटाना चाहे तो पहुँच जाए। इस काम में रविवार को उनके साथ दो दर्जन लोग आ गए। यहीं से नदी को पुनर्जीवित करने के कार्य का श्रीगणेश हुआ।

जगदीश नेगी ने बताया कि 2 महीने तक हर रविवार को सफाई अभियान नियमित रूप से चलता रहा, लेकिन फिर लोगों ने सफाई के लिए आना बंद कर दिया। जिस कारण फिर मैं अपने साथ हर रविवार एक-दो मजदूरों को ले जाने लगा।

दो महीने बाद किसी का साथ न मिलने के बाद भी जगदीश ‘एकला चलो रे’ की नीति पर चलते रहे। जैसे जैसे नदी का सफाई अभियान आगे की तरफ बढ़ता रहा, तो उन्हें नदी में सीवर गिरता भी दिखा। इसका कारण घरों में सीवर पिट का न होना था। उन्होंने सीवर पिट बनवाने का निर्णय लिया, लेकिन पर्यावरण और नदियों के संरक्षण के लिए भारत में जिस तरह की व्यवस्था है, उसमें उन्हें करीब दो साल तक सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने पड़े। नदी प्रदूषण की शिकायत उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों से की, लेकिन केवल आश्वासन ही मिला। हालांकि तमाम मशक्कत के बाद जब आईएएस अधिकारी वंदना सिंह ने हस्तक्षेप किया तो फिर वहां सीवर पिट बने और नदी में सीवर का गिरना बंद हुआ। 

जगदीश को शुरूआत में बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि जिस काम को उन्होंने शुरू किया है, वो आगे इतना बड़ा रूप ले लेगा।

शुरु में लोग उन्हें पागल कहते थे। उन पर तंज कसते थे, लेकिन नदी के प्रति उनके प्रयासों को देखकर लोग भी फिर उनके साथ जुड़ने लगे। उन्होंने शिप्रा नदी को बचाने के लिए 2017 में शिप्रा कल्याण समिति का गठन किया।

नदी बचाने और स्वच्छता के इस अभियान में समिति के माध्यम से लोगों से चंदा एकत्र किया गया। 

समिति द्वारा एकत्र किए गए चंदे से 75 हजार रुपये की लागत से 15 कूड़ेदान भवाली नगर पालिका को दिए। तो वहीं 20 किलोग्राम की क्षमता वाले 200 कूड़ेदान अब तक दुकानदारों को भी वितरित किए जा चुके हैं। नदी को पुनर्जीवित करने के लिए वे अपने खर्च पर 3 हजार से ज्यादा चौड़ी पत्ती वाले पौधों का रोपण कर चुके हैं। 70 हजार से ज्यादा पौधे वितरित किए हैं। अभी तक शिप्रा नदी को पुनर्जीवित करने के इस कार्य में 15 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। 

नदी को पुनर्जीवित करने के लिए अपने निर्णय का ज़िक्र जगदीश सिंह ने मिट्टी और जल संरक्षण के लिए कार्य करने वाले लाल सिंह से किया। उन्होंने जगदीश को बताया कि कैसे शिप्रा नदी को उद्गम से पुनजीर्वित किया जा सकता है। यहीं से पौधारोपण और खंतियां बनाने का काम शुरु हुआ।

खंतियां 3 मीटर गहरी, 1 मीटर चौड़ी और आधा मीटर गहरी बनाई गई। शिप्रा कल्याण समिति द्वारा 150 से ज्यादा खंतियां बनाई जा चुकी हैं। उनका लक्ष्य 10 हजार खंतियां बनाने का है।

जगदीश ने बताया कि नदी से अब तक 100 ट्रक से भी ज्यादा कचरा निकाला जा चुका है। शिप्रा नदी पहले की अपेक्षा 70 प्रतिशत साफ हो गई है, लेकिन अभी भी इसमें कई सीवर गिर रहे हैं, जिनको हटाने का प्लान पालिका ने बनाया है। नगर पालिका अब कूड़े को अल्मोड़ा हाईवे के किनारे डाकारोली नामक जगह पर नहीं फेंकता, बल्कि भवाली का कूड़ा-कचरा अब हल्द्वानी भेजा जाता है। मैंने अपने कार्य के बारे में जियोग्राफिक इनफार्मेशन सिस्टम के प्रोफेसर जीवन रावत को बताया तो उन्होंने इसकी डिजिटल मैपिंग की। इसके बाद सरकार ने शिप्रा नदी को पुनर्जीवित करने के लिए चुना। इससे उन्हें नदी का उद्गम स्थल ढूंढ़ने में आसानी हुई। अब नदी में पहले की तरह पानी वापिस लाने के लिए खंतियों का निर्माण किया जा रहा है।

इस कार्य को करते हुए उनके कई दुश्मन भी बने हैं। कई बार उन्हें जान से मारने की धमकी भी मिली है, लेकिन वें अपने कार्य में दृढ़ संकल्पित होकर लगे रहे।

घोड़ाखाल में गोलज्यू मन्दिर के मुख्य गेट पर उन्होंने शौचालय की व्यवस्था भी कराई है। साथ ही अपने खर्च पर कम्पोस्ट यूरिनल लगवाया है। उनके इन कार्यों की सराहना अब लोग देशभर में करने लगे हैं। जगदीश के प्रयासों का ही नतीजा है कि नदियों को पुनर्जीवित करने की भारत सरकार की योजना में उत्तराखंड की शिप्रा नदी को भी शामिल किया गया है। नर्मदा बचाओ अभियान की पुरोधा मेधा पाटकर ने भी उनके कार्य की सराहना की और उनके कार्य को महत्वपूर्ण बताया है।  

88 साल पुराने जलस्रोत को दी नई जिंदगी

नौले-धारे सहित विभिन्न जलस्रोत पहाड़ की संस्कृति का अंग हैं। पहाड़ में नौलों को विष्णु स्वरूप माना जाता है, लेकिन ये जलस्रोत मानवीय गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन की भेंट चढ़ते जा रहे हैं। ऐसा ही जमुनाधारा स्रोत भवाली में शिप्रा नदी के तट पर है। स्रोत में गंधकयुक्त पानी आता था, जो चर्म रोग के इलाज के लिए भी उपयोग होता था। इस स्रोत को वर्ष 1932 में बनाया गया था। 1963 में स्रोत का जीर्णोद्धार करवाया गया था। इस स्रोत से भवाली के लोगों को पेयजल आपूर्ति भी की जाती थी, लेकिन शासन और प्रशासन ने इसके संरक्षण की ओर ध्यान नहीं दिया। साथ ही बढ़ती आबादी का दबाव भी इस स्रोत पर पड़ा। परिणामतः स्रोत में पानी समाप्त हो गया। जगदीश नेगी ने बताया कि उन्होंने स्रोत के ऊपर जमे मलबे को हटाकर इसकी टंकी का साफ किया। स्रोत का फर्श फिर से बनवाया। इसी तरह लाॅकडाउन के दौरान दो महीने तक कई प्रयास करके स्रोत में फिर से पानी लौट आया।  

जगदीश नेगी कहते हैं कि वें शिप्रा नदी को पुनर्जीवित कर के ही रहेंगे। यदि हम प्राकृतिक जलस्रोतों की सुध नहीं लेंगे तो वो दिन दूर नहीं जब तीसरा विश्वयुद्ध जल के लिए होगा। 

प्रशासन का भी मिला साथ

सरकार द्वारा नदियों को पुनर्जीवित करने की योजना में शिप्रा नदी भी शामिल है। शिप्रा नदी को पुनर्जीवित करने के लिए 13 करोड़ 45 लाख रुपये खर्च किए जाएंगे। इसके लिए कई स्तरों पर काम होगा। नदी के विभिन्न जलस्रोतों को पुनर्जीवित किया जाएगा। बारिश के पानी को रोकने और भूमि के अंदर पहुंचाने के लिए इनफिल्ट्रेशन छिद्र बनाए जाएंगे। एक हेक्टेयर में 600 इनफिल्ट्रेशन ट्रेंच बनाए जाएंगे, जिनकी दूरी 10 सेंटीमीटर होगी। शिप्रा नदी की जलधारा को रिचार्ज करने वाले महत्वपूर्ण जलस्रोतों पर चेकडैम, ड्राई स्टोन चेकडैम, चाल-खाल, जलकुंड बनाए जाएंगे।

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