पानी व पर्यावरण की फिक्रमंद फिल्मकारों की नयी फसल
मार्च में झारखंड का मौसम खुशगवार रहता है, लेकिन मार्च 2014 का मौसम झारखंड में कुछ अलग ही था। कैमरा व फिल्म की शूटिंग का अन्य साज-ओ-सामान लेकर भटक रहे क्रू के सदस्य दृश्य फिल्माने के लिये पलामू, हरिहरगंज, लातेहार, नेतारहाट व महुआडांड़ तक की खाक छान आये। इन जगहों पर शूटिंग करते हुए क्रू के सदस्यों व फिल्म निर्देशक श्रीराम डाल्टन व उनकी पत्नी मेघा श्रीराम डाल्टन ने महसूस किया कि इन क्षेत्रों में पानी की घोर किल्लत है। पानी के साथ ही इन इलाकों से जंगल भी गायब हो रहे थे और उनकी जगह कंक्रीट उग रहे थे।
मूलरूप से झारखंड के रहने वाले श्रीराम डाल्टन की पहचान फिल्म डायरेक्टर व प्रोड्यूसर के रूप में है। फिल्म ‘द लॉस्ट बहुरूपिया’ के लिये 61वें राष्ट्रीय फिल्म अवार्ड में उन्हें पुरस्कार भी मिल चुका है।
खैर, झारखंड में शूटिंग खत्म हुई। क्रू मेंबर मुंबई लौट गये। वे अपने काम में बिजी हो गये। सन 2015 में महाराष्ट्र के लातूर समेत कई इलाकों में पेयजल के लिये कोहराम मच गया। इस कोहराम ने श्रीराम डाल्टन को झारखंड के लातेहार, नेतारहाट व अन्य इलाकों की याद दिला दी।
ठीक यही वो वक्त था जिसने श्रीराम डाल्टन को पानी पर काम करने को मजबूर कर दिया। उन्होंने डाल्टनगंज के ही रहने वाले विशारद विसनत से यह आइडिया शेयर किया और इसी का परिणाम आज पानी पर बनी 10 लघु फिल्मों के रूप में हमारे सामने है। बमुश्किल 10-10 मिनटों की इन फिल्मों में पानी के महत्त्व व इसके संरक्षण की जरूरत को असरदार तरीके से सामने लाया गया है।
पानी की किल्लत को महसूस करने और इस पर फिल्में बनाने के बीच की कहानी भी कुछ कम दिलचस्प नहीं है। यह कहानी बेहद सामान्य तरीके से एक मुहिम शुरू करने की प्रक्रिया के मजबूती से एक बड़े मुकाम पर पहुँचने की है जिसमें कई स्पीड ब्रेकर, कई गड्ढे आये।
एक स्पीड ब्रेकर तब आया, जब उन्हें लगा कि कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो नहीं चाहते हैं इसमें ऐसा कुछ भी दिखाया जाये, जो सरकार के खिलाफ हो।
श्रीराम डाल्टन कहते हैं, “हमारा लक्ष्य सरकार से लड़ना नहीं था, बल्कि आमलोगों व सरकार का ध्यान इस समस्या की ओर दिलाना था। इसलिए हमने तय किया कि हम अपनी फिल्मों में नकारात्मक की जगह सकारात्मक पक्ष दिखायेंगे। वर्कशॉप के आखिर में हमने ‘गो ग्रीन का नारा’ बुलंद किया, जिसे तात्कालिक झारखंड सरकार ने मुहिम हरियाली का नाम दिया। लोगों ने भी अपने आस-पास ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने का संकल्प लिया।”
वर्कशॉप आयोजित करने में दूसरा बड़ा रोड़ा फंड का था। डाल्टन कहते हैं, “महीने भर की कैंपेनिंग के बाद जम हम वर्कशॉप करने के लिये झारखंड पहुँचे, तो हमारे पास कुल 60-70 हजार रुपये थे, जबकि वर्कशॉप पर अनुमानित 10 लाख रुपये खर्च होने वाला था। यहाँ पहुँचकर समझ में आया कि सहयोग का जो आश्वासन हमें मिला था, वो हवाई था। हम एक झटके में जमीन पर आ गये थे। लेकिन, वर्कशॉप करना था, सो हमने घर-घर जाकर लोगों से सहयोग माँगना शुरू किया। उम्मीद की एक बेहद चमकदार किरण हमें तब दिखी, जब एक किसान मित्र ने एक बोरी चावल हमें मुहैया करवा दिया। किसान मित्र से सहयोग मिलने से कई और लोग भी प्रेरित हुए व इस तरह मेरे शुभचिंतकों की संख्या बढ़ती गयी। फिर डिप्टी कमिश्नर से लेकर दूसरे ग्रामीण, झारखंड सरकार, आइपीआरडी, ग्रामीण विकास विभाग, नेतारहाट आवासीय विद्यालय, जंगल वारफेटर समेत तमाम संगठन व स्थानीय लोगों का साथ मिला।”
दरअसल, पानी पर जो 10 लघु फिल्में बनीं, उनकी नींव इसी वर्कशॉप में पड़ी। पानी की किल्लत को महसूस करते हुए श्रीराम डाल्टन ने सबसे पहले एक वर्कशॉप करने की योजना बनायी। इस वर्कशॉप में स्थानीय लोगों व अन्य साझेदारों को शामिल किया गया।
डाल्टन कहते हैं, “पानी की किल्लत ने जब मेरे दरवाजे पर दस्तक दिया तो मुझे महसूस हुआ कि कुछ किया जाना चाहिए। सामान्य-सी एक रात को मैंने वर्कशॉप करने का फैसला ले लिया। जगह के चुनाव की बारी आयी, तो मैंने मुंबई की जगह झारखंड को चुना क्योंकि वहाँ अपनी मिट्टी है।” वह आगे कहते हैं, जल सकंट ने समाज में भीतर तक अपना असर डाला था, लेकिन यह संकट बाहर नहीं आ रहा था। लोग निहत्थे किसी तरह इस संकट से मुठभेड़ कर रहे थे। मेरा वर्कशॉप करने का उद्देश्य भीतर के संकट को सतह पर लाना था, ताकि इसका समाधान किया जा सके।
जून 2016 में नेतारहाट फिल्म इंस्टीट्यूट के बैनर तले श्रीराम डाल्टन की पहल पर वर्कशॉप का आयोजन किया गया जो 5-6 दिनों तक चला। इस वर्कशॉप में 180 से 185 लोगों ने हिस्सा लिया। खास बात यह थी कि इसमें आमलोगों की भागीदारी सबसे अधिक थी।
इसी वर्कशॉप से कहानियाँ निकलीं जिन्हें सिल्वर स्क्रीन पर उतारा गया। डाल्टन ने बताया, नेतारहाट में रुककर ही 10 चयनित कहानियों पर फिल्में बनायी गयीं। फिल्में पूरी करने में झारखंड सरकार के वन विभाग ने आर्थिक सहयोग दिया जबकि पूरी टीम के लिये खाने का इंतजाम स्थानीय लोगों ने किया।
37 वर्षीय श्रीराम डाल्टन कहते हैं, नेताहराट में रहते मैंने मजबूती के साथ महसूस किया कि हम सार्थक काम कर रहे हैं।
फिल्में जब तैयार हुईं, तो उनका प्रदर्शन कई फिल्मोत्सव में हुआ। यही नहीं, नेतारहाट के सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल में भी ये फिल्में दिखायी गयीं, जिन्हें लोगों ने खूब सराहा। इन फिल्मों को यू ट्यूब पर रिलीज किया जा रहा है। प्रख्यात म्यूजिक कंपोजर लेविस लुईस ने सभी 10 फिल्मों में म्यूजिक दिया है। लिंक देखें-