राजस्थान में जल आंदोलन एक आंकलन

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कम पानी में कैसे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है, यह जानने एवं समझने के लिए राजस्थान के विभिन्न जिलों का भ्रमण किया जा सकता है। यहां ग्रामीण इतने सजग हो चुके हैं कि वे पानी की एक-एक बूंद का सदुपयोग करते हैं। “जल है तो कल है” का नारा यहां हर गली और हर घर में गूंजता है। सरकार की ओर से जल पर न सिर्फ पर्याप्त बजट का प्रावधान किया जाता है बल्कि जल यात्रा के जरिए लोगों को पानी का महत्व भी समझाया जाता है।राजस्थान को भारत के सबसे बड़े राज्य होने का गौरव प्राप्त है तो रेगिस्तानी इलाके के रूप में भी इसे जाना जाता है। इस राज्य का क्षेत्रफल 3.42 लाख वर्ग किलोमीटर के साथ पूरे राज्य का 10 फीसदी है लेकिन जलस्रोत के मामले में यहां की तस्वीर काफी धुंधली है। यहां देश में उपलब्ध कुल जलस्रोत का एक फीसदी से भी कम उपलब्ध है। राजस्थान की ज्यादातर नदियां सिर्फ बारिश के दिन में ही दिखती हैं। एक चंबल नदी ही है जो पूरे साल पानी से भरी रहती है, लेकिन यह राजस्थान के बहुत ही कम हिस्से को पानी देती है। इन विषम परिस्थितियों के बाद भी राजस्थान पानी बचाने के मामले में तत्पर है। राज्य सरकारों की ओर से एक तरफ कुछ इलाकों में ट्रेन से पानी पहुंचाया जा रहा है तो दूसरी तरफ पानी बचाने के तरीके भी समझाए जा रहे हैं। निश्चित रूप से यहां पानी को लेकर जागरुकता भी दिखती है। पेयजल क्षेत्र को प्रान्त में सदा से प्राथमिकता दी जाती रही है। पूर्व काल में निर्मित तथा वर्तमान में विद्यमान कुएं तथा बावड़ियां इस बात का प्रमाण हैं कि यहां कभी पानी को लेकर उदासीनता नहीं बरती गई। एक तरफ यहां के लोग पानी को लेकर काफी संवेदनशील हैं वहीं सरकार की ओर से भी पानी की व्यवस्था एवं पानी के परंपरागत स्रोतों को बनाए रखने में पर्याप्त पैसा खर्च किया जा रहा है। यहां हैंडपंप और ट्यूबवेल के अलावा जलस्रोत को स्थाई रूप देने के विशेष प्रयास किए जा रहे हैं।

केंद्र की ओर से इस मद में पर्याप्त बजट की व्यवस्था की गई है वहीं राज्य सरकार की ओर से भी इस बार के बजट में जल संसाधन के लिए 777.58 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है। इसके अलावा पेयजल के लिए योजना मद में 1231 करोड़ और सीएसएस में 284 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। साथ ही राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत 1100 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इसके अलावा 10 अन्य बड़ी परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। इसमें झालावाड़, झालरापाटन, उदयपुर शहर पेयजल वितरण, उम्मेद सागर धवा समदली, सूरतगढ़ टीबा क्षेत्र, डांग क्षेत्र के 82 गांवों, पीपाड़ को आईजीएनपी से एवं टोंक को बीसलपुर से पेयजल देने की भी तैयारी की गई है। इसके अलावा अलवर, भरतपुर, सीकर सहित 15 जिलों के लिए पेयजल संवर्धन योजनाएं चलाई जाएंगी। उदयपुर की देवास परियोजना के प्रथम एवं द्वितीय चरण के लिए 50 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।

एमएनआरईजीए की रिपोर्ट के मुताबिक चालू वित्तीय वर्ष में राजस्थान में 54 फीसदी कार्य जल संरक्षण के लिए किया जा रहा है। इसके अलावा परंपरागत जल राशियों का नवीकरण 11.3 फीसदी रहा। इसी तरह सूखे से बचाव के लिए 14.6 फीसदी, लघु सिंचाई कार्य 5.2 फीसदी, अनुसूचित जाति, जनजाति परिवारों की जमीन पर सिंचाई सुविधाओं की व्यवस्था का 15.3 फीसदी कार्य हुआ। इसके अलावा 50.3 फीसदी कार्य जल संचय के तहत किया गया है।राज्य सरकार की ओर से एक तरफ पेयजल की व्यवस्था मुकम्मल की जा रही है तो दूसरी तरफ जल संसाधन को बढ़ावा देने के लिए लगातार कोशिशें जारी हैं। एक तरफ प्रदेश की जनता अपने स्तर पर खुद जल संरक्षण की कोशिश कर रही है तो दूसरी तरफ सरकार की ओर से भी इसमें भरपूर सहयोग किया जा रहा है। राज्य सरकार की ओर से बजट में जल संसाधन के क्षेत्र में भी काफी कार्य करने का लक्ष्य रखा गया है। इसमें चंबल नदी से कोटा को पेयजल के लिए 150 करोड़ की योजना में से राज्य मद से 44.88 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए हैं। इसी तरह फीडर व नहर की मरम्मत के लिए 478 करोड़ रुपये तक की योजना का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया है। वहीं सिद्धमुख नहर से सिंचाई से वंचित गांवों को साहवा लिफ्ट से जोड़ने के लिए सर्वे कराया जा रहा है। साथ ही आबू रोड की पेयजल समस्या के समाधान के लिए 18 करोड़ रुपये की भैंसासिंह लघु सिंचाई परियोजना पूरी हो रही है। इससे निश्चित रूप से राजस्थान के विभिन्न शहरों में पानी की समस्या का समाधान होगा। इससे पहले राज्य के सूखा संभावित इलाके में 264.71 करोड़ रुपये की लागत से 21 परियोजनाओं का संचालन किया जा चुका है। वहीं गत वर्ष 907 करोड़ रुपये के जरिए 10 कस्बों, 665 ग्राम एवं 227 ढाढियों में पेयजल की व्यवस्था की गई और लोगों को पानी बचाने के लिए जागरूक किया गया। रोहट से पानी की 35 किलोमीटर की 350 एमएमजीआरपी पाइप लाइन की व्यवस्था की गई, जिस पर करीब 17.50 करोड़ रुपये खर्च किए गए। विभिन्न स्थानों पर बने बांधों की मरम्मत को लेकर भी सरकार ने गंभीरता दिखाई है।

जल रेल सेवा

राजस्थान में बनी जल नीति

जल नीति से यह होगा—
ग्रामीण जल प्रबंधन को तवज्जो—

पनघट से उम्मीद

यह है स्थिति

मनरेगा के तहत ग्रामीण जलस्रोतों को मिला जीवनदान

कितने पानी की आवश्यकता

क्यों होता है पानी का संकट

पानी बचाने के लिए निम्नलिखित तरीके भी अपनाने की जरूरत

घरेलू स्तर पर उपाय

सामूहिक जिम्मेदारी

हैंडपंप/कुएं का संरक्षण

तालाब व जोहड़ के जल का संरक्षण

राजस्थानी आबोहवा ने बनाया पानी का रखवाला

दिखी नई राह

परिवार में सदस्यों की संख्या
पीने का पानी/ खाना पकाने का पानी (लीटर में)
अन्य कार्यों के लिए पानी (लीटर में)
कुल योग पानी (लीटर में)
6
30
60
90
7
35
70
105
8
40
80
120
9
45
90
135
10
50
100
150
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है)
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