सिंचाई व जल-संरक्षण की अनोखी पद्धति को बचाना होगा
गौरतलब है कि बिहार में भूमिगत जल तेजी से नीचे खिसकता चला जा रहा है। ऐसे में आने वाले दिनों में यह समाज की सबसे बड़ी समस्या बनने वाली है। सूखे से निपटने के लिए आहर, पईन जैसे प्राचीन पद्धतियों के संरक्षण व संवर्द्धन के लिए ठोस नीति बनानी होगी ताकि सिंचाई के साथ ही पेयजल की किल्लत झेल रहे दक्षिणी इलाकों के लोगों को जल मिल सके।सदियों पहले वर्तमान बिहार के दक्षिणी व केन्द्रीय हिस्से में स्व-विकसित सिंचाई की व्यवस्था अस्तित्व में आई थी। पूर्वजों ने वहाँ वर्षा जल को संग्रहित करने की व्यवस्था की थी। इस तकनीक में पीढ़ियों के अनुभव एवं स्थानीय परिस्थितियों की समझ सन्निहित थी।
दुनिया की शायद यह अनोखी तकनीक है जिसमें खेती के लिए सिंचाई के साथ ही भू-जल भी स्थिर रहा करता है। भारत में परम्परागत सिंचाई के स्रोतों में कृषि प्रधान बिहार के आहर, पईन जैसे वैज्ञानिक तकनीक जल-संरक्षण के अद्भुत उदाहरण कहे जा सकते हैं। बरसाती नदियों के जल का पईन (टेढ़े-मेढ़े नालों) के माध्यम से आहर (तालाबनुमा स्थान जिसमें पानी संग्रह किया जाता है) में पहुँचाया जाता है और आवश्यकतानुसार किसान उस जल का उपयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त वर्षा जल का संचय भी होता रहता है। इस काम में समाज की भागीदारी भी सुनिश्चित थी। समाज श्रमदान के जरिये परम्परागत सिंचाई (आहर-पईन) के स्रोतों की सफाई किया करते थे। बरसाती नदियों में जब अमूमन बरसात के मौसम में पानी पर्याप्त होता है तो स्थानीय किसान एवं मजदूर श्रमदान के जरिये पानी अपने खेतों तक ले जाते हैं और संग्रह करते हैं। आहर-पईन की वैज्ञानिक तकनीक की वजह से खेतों में उर्वरा मिट्टी जाती है और नदी का बालू नदी में ही रहता है। ऐसा इस व्यवस्था के उच्च कोटि की तकनीकी संरचना के कारण होता है।
दूसरी ओर, पईन के दोनों तटों पर वृक्षों की कतारें हरियाली बनाए रखती थीं जो पर्यावरणीय दृष्टिकोण से बेहतर था। साथ ही पईन एवं आहर के किनारे खाली पड़े भू-भाग मवेशियों के लिए चरागाह के काम आता था। ये सारे कार्य ग्रामीणों के आपसी सूझ-बूझ एवं तालमेल से सम्पादित होता था। नदी में अमूमन अगस्त-सितम्बर में जब पानी पर्याप्त हुआ करता है तो स्थानीय किसान आवश्यकतानुसार श्रमदान द्वारा नदी से पानी पईन द्वारा आहर में संग्रह किया करते हैं। इस दौरान कई-कई दिनों तक किसानों को श्रमदान करना होता है।
समस्या
समस्या का समाधान
राज्य के आहर-पईनों की परम्परागत सिंचाई प्रणालियों की जिलावार आँकड़े ( संख्या में)
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क्रम सं. | जिला | कार्यरत योजना | अकार्यरत योजना | कुल |
1 | पटना | 212 | 86 | 298 |
2 | नालन्दा | 238 | 82 | 320 |
3 | भोजपुर | 93 | 31 | 124 |
4 | बक्सर | 69 | 0 | 69 |
5 | कैमूर | 1,330 | 71 | 1,401 |
6 | रोहतास | 338 | 19 | 417 |
7 | औरंगाबाद | 1,251 | 442 | 1,693 |
8 | गया | 6,502 | 762 | 7,264 |
9 | नवादा | 1,488 | 1,371 | 2,859 |
10 | जहानाबाद | 406 | 95 | 501 |
11 | अरवल | 91 | 11 | 102 |
12 | भागलपुर | 472 | 50 | 522 |
13 | बांका | 2,146 | 117 | 2,263 |
14 | मुँगेर | 162 | 4 | 166 |
15 | जमुई | 2,449 | 73 | 2,522 |
16 | लखीसराय | 251 | 15 | 266 |
17 | शेखपुरा | 125 | 26 | 151 |
कुल | 17,683 | 3,255 | 20,938 |
निष्कर्ष
(लेखक स्वतन्त्र पत्रकार हैं)