उपेक्षित तालाब
उपेक्षित तालाब

विपत्ति में एक शहर

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जिन जलस्रोतों ने जोधपुर को अकाल से बचाया, आज उनकी अनदेखी की जा रही है। अत्यधिक दोहन से भूजल भी काफी गिर चुका है।

पानी की आपूर्ति के लिये सन 1917-18 में चोपसानी पम्पिंग योजना शुरू की गई थी। शहर की जनसंख्या, जो 1901 में 60,500 से बढ़कर 1931 में 90,000 के आस-पास पहुँच गई थी, की जरूरतों को पूरा करने में पुरानी व्यवस्था काफी नहीं थी। इस स्थिति से निबटने के लिये सन 1931-32 में जोधपुर फिल्टर वाटर स्कीम और बाद में सन 1938 में सुमेरसमंद जल योजना शुरू की गई। सुमेरसमंद जल योजना के तहत जोधपुर से 85 किमी दूर स्थित सुमेरसमंद से खुली नहरों की सहायता से पानी शहर में पहुँचाया जाता था। इस पानी को तखत सागर में जमा किया जाता था। जोधपुर राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। यह मारवाड़ राजपूतों की प्राचीन राजधानी हुआ करता था। मारवाड़ की पुरानी राजधानी मंडौर को बदलकर जोधपुर करने के पीछे पानी की कमी एक महत्त्वपूर्ण कारण था। एक पथरीली पहाड़ी की ढलान पर स्थित जोधपुर शहर पानी की आपूर्ति के लिये वर्षा और भूजल पर निर्भर है।

सन 1459 में अपनी राजधानी मंडौर से जोधपुर स्थानान्तरित करने के बाद राव जोधाजी ने जोधपुर किले का निर्माण करवाया था। सन 1460 में रानी जस्मेदा ने रानीसर झील बनवाई थी। सन 1515 में राव गंगोजी ने किले के समीप में रहने वाले लोगों के लिये गंगेलाओं का निर्माण करवाया। इसके कुछ दशक बाद ही रावती के पास सूरसागर जलाशय की नींव सन 1608 में राजा सूर सिंह द्वारा रखी गई थी। बालसमंद झील का निर्माण सन 1159 में बंजारा सरदार राजा बालकरण परिहार ने करवाया था। इसको पहले महाराजा सूर सिंह ने सन 1611 में बनवाया। बाद में महाराजा जसवंत सिंह के शासनकाल (1638-1678) में पानी के अन्य स्रोतों का निर्माण भी करवाया था। उन्होंने इसे कुछ ही दशकों बाद फिर से चौड़ा करवाया। गुलाब सागर का निर्माण पासवान गुलाब राय ने सन 1788 में किया था। फतेहसागर को महाराजा भीम सिंह ने तैयार करवाया था। मानसागर और महामन्दिर झालरा को सन 1804 में निर्मित करने का श्रेय महाराजा मान सिंह को जाता है। इसके अतिरिक्त बाई-का-तालाब महाराजा मान सिंह की पुत्री ने ही तैयार करवाया था।

जलापूर्ति योजनाएँ

बिकने लगा पानी

जरूरत भर की यारी

(‘बूँदों की संस्कृति’ पुस्तक से साभार)
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