विकसित भारत के लिए भंडारण अवसंरचना के साथ सतत खाद्य प्रणालियों को आकार देना जरूरी
विकसित भारत के लिए भंडारण अवसंरचना के साथ सतत खाद्य प्रणालियों को आकार देना जरूरी

विकसित भारत के लिए भंडारण अवसंरचना के साथ सतत खाद्य प्रणालियों को आकार देना जरूरी

जाने विकसित भारत के लिए एक अनुकूल भंडारण अवसंरचना खाद्य प्रणालियों को आकार देना क्यों जरूरी हो गया है
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एक अनुकूल भंडारण अवसंरचना कृषि खाद्य प्रणालियों की निरंतरता की कुंजी है जिससे आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय विकास लक्ष्यों के साथ-साथ भविष्य की पीढ़ियों के लिए खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित होगी। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में, भारत 2047 तक एक विकसित राष्ट्र-विकसित भारत बनने की राह पर है। अनुमान है कि 2047 तक भारत की जनसंख्या 1.64 बिलियन होगी, जिसमें से लगभग 0.82 बिलियन शहरी क्षेत्रों में रहने वाले होंगे। जनसंख्या की खाद्य मांग को पूरा करने और सतत खाद्य प्रणाली के निर्माण के लिए भंडारण अवसंरचना को मजबूत करने की आवश्यकता है। भारत सरकार द्वारा देश में भंडारण के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए कई पहल की गई हैं। सबसे बड़े अनाज भंडारण ढांचे को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी है जिसे सहकारी समितियों के माध्यम से प्रचारित- प्रसारित किया जाएगा। उन्नत भंडारण अवसंरचना खाद्य मूल्य-श्रृंखला को मजबूती प्रदान करेगी। इसके अलावा, यह फसल के बाद होने वाले नुकसान को कम करने, उपज की गुणवत्ता बनाए रखने, खाद्य बफर स्टॉक के भंडारण, उपज की मजबूरन बिक्री से बचने और किसानों की आय बढ़ाने में मदद करती है।

भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है, जिसने कृषि खाद्य घाटे से खाद्य अधिशेष तक और अब दुनिया में कृषि उपज निर्यातक बनने तक का एक शानदार सफर तय किया है। कृषि भूमि के आधार पर भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है और 200 से अधिक देशों को निर्यात करता है (वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, 2023)। भारत में खाद्य उत्पादन पिछले दशक से उल्लेखनीय रूप से बढ़ गया है, जो 2010-11 के दौरान 244 मिलियन टन से बढ़कर 2021-22 के दौरान 310 मिलियन टन हो गया है 
(चित्र-1)।

1951 के बाद से, भारत की जनसंख्या 35.9 करोड़ से बढ़कर 140 करोड़ हो गई है, और 2047 तक 164 करोड़ होने का अनुमान है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में, भारत एक 'विकसित राष्ट्र' बनने की राह पर है-2047 तक विकसित भारत जोकि भारत की स्वतंत्रता का शताब्दी वर्ष भी होगा। 2047 तक एक विकसित राष्ट्र के दृष्टिकोण में आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, पर्यावरणीय स्थिरता और सुशासन (पीएमओ, 2023) शामिल हैं। वर्तमान में, कृषि खाद्य प्रणाली हमारे समक्ष खड़ी सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियों के कारण बदल रही है जैसे जलवायु परिवर्तन, बढ़ती जनसंख्या, भूमि क्षरण, घटते प्राकृतिक संसाधन, स्थिर फसल उत्पादकता, खाद्य पदार्थों की हानि और बर्बादी आदि।

भंडारण अवसंरचना के निर्माण की दिशा में प्रगति के महत्वपूर्ण लाभ है। भोजन की हानि और बर्बादी खाद्य प्रणालियों की निरंतरता की राह में चिंता का प्रमुख विषय है। एफएओ की खाद्य और कृषि स्थिति (2019) रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के लगभग 14 प्रतिशत खाद्य पदार्थ (प्रति वर्ष 400 बिलियन डॉलर मूल्य का) कटाई के बाद और दुकानों तक पहुँचने से पहले ही नष्ट हो जाता है और यूएनईपी की खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट (2021) से पता चलता है कि 17 प्रतिशत खाद्य पदार्थ खुदरा और उपभोक्ताओं द्वारा, विशेषकर घरों में बर्बाद हो जाता है (संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, 2021)। भोजन की हानि और बर्बादी वैश्विक खाद्य प्रणाली में कुल ऊर्जा उपयोग का 38 प्रतिशत है।

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए और सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (सीआईपीएचईटी), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, 45 प्रमुख फसलों के मात्रात्मक नुकसान का आर्थिक मूल्य वस्तुओं की कीमत 92,651 करोड़ रुपये पाई गई (15 अनाज, दलहन और तिलहन के मामले में 32,853 करोड़ रुपये, 7 फलों से 16,644 करोड़ रुपये, 8 सब्जियों से 14,842 करोड़ रुपये, 9 मसालों और बागान फसलों के मामले में 9,325 करोड़ रुपये और 6 पशुधन उपज के मामले में 18,987 करोड़ रुपये) (कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, 2023ए)। इसलिए कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देने और संयुक्त राष्ट्र-सतत विकास लक्ष्य (यूएन-एसडीजी) के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए टिकाऊ और विश्व-स्तरीय भंडारण अवसंरचना को बढ़ाना अपरिहार्य है।

वर्ष 2022-23 के दौरान, देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन का अनुमान रिकॉर्ड 329.68 मिलियन टन है, जो 2021-22 के दौरान प्राप्त 315.62 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में लगभग 14.1 मिलियन टन अधिक है (कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, 2023)। भारत अत्यावश्यक समय के दौरान गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता के विशिष्ट उद्देश्य के लिए मुख्य भोजन का एक बड़ा भंडार जमा करता है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) दुनिया की सबसे बड़ी सामाजिक कल्याण योजना है जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना और समाज के कमजोर वर्गों का सशक्तीकरण करना है। पीएमजीकेएवाई में 1 जनवरी, 2024 (उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय, 2023) से पांच साल की अवधि के लिए लगभग 81.35 करोड़ लाभार्थियों को मुफ्त खाद्यान्न देने की परिकल्पना की गई है।

उन्नत भंडारण अवसंरचना देश भर में नागरिकों तक भोजन की मांग, आपूर्ति और पहुँच को सुनिश्चित करने में सहायता करेगी। भडारण अवसंरचना को प्रोत्साहित करने और खाद्य प्रणालियों को मजबूत करने के लिए सरकार द्वारा (कृषि अवसंरचना निधि (एआईएफ), कृषि विपणन अवसंरचना योजना (एएमआई), कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन (एसएमएएम), प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम योजना (पीएमएफएमई), प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (पीएमकेएसवाई) और एकीकृत बागवानी विकास मिशन (एमआईडीएच) जैसी कई पहल की गई है।

 सतत खाद्य प्रणाली (एसएफएस) को "एक ऐसी खाद्य प्रणाली के रूप में परिभाषित किया है जो सभी के लिए खाथ सुरक्षा और पोषण इस तरह से प्रदान करती है कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए खाद्य सुरक्षा और पोषण उत्पन्न करने के लिए आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय आधारों से समझौता नहीं किया जाता है।" (एफएओ, 2018)। खाद्य प्रणाली (एफएस) एप्रोच में वे सभी मूल्यवर्धित गतिविधियां शामिल हैं जो कृषि, वानिकी या मत्स्य पालन से उत्पन्न खाद्य उत्पादों के उत्पादन, एकत्रीकरण, प्रसंस्करण, वितरण, उपभोग और निपटान से सम्बद्ध है और व्यापक आर्थिक, सामाजिक और प्राकृतिक वातावरण का हिस्सा  है जिनमें ये अंतर्निहित हैं। यहां भंडारण अवसंरचना खाद्य प्रणाली में लचीलापन जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और खाद्य सुरक्षा और खाद्य उपलब्धता पर सकारात्मक प्रभाव डालेगी। खाद्यान्नों की खरीद से लेकर उपभोग के लिए वितरण तक की पूरी व्यवस्था में भंडारण प्रबंधन एक महत्वपूर्ण कड़ी है।

वैज्ञानिक भंडारण में विधियों के उपयोग से इन हानियों को 1%-2% तक कम किया जा सकता है। भारत में पारंपरिक भंडारण प्रथाओं में विविध कृषि जलवायु परिस्थितियों के अनुसार सुधार हुआ है. जिससे किसी भी प्राकृतिक आपदा या कोविड-19 जैसे प्रकोप के आगमन पर खाद्य आपूर्ति प्रणाली को ध्वस्त होने से रोका जा सका है। वर्तमान में, कई संरचनाएं अनाज के सुरक्षित भंडारण को सुनिश्चित करती है, जिनमें छोटे धातु के डिब्बे से लेकर लंबे अनाज मचान/साइलो तक शामिल हैं। इन भंडारण संरचनाओं को पारंपरिक भंडारण संरचनाओं, बेहतर भंडारण संरचनाओं, आधुनिक भंडारण संरचनाओं और फार्म साइलो जैसी विभिन्न श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है। किसी भी समय 60-70% अनाज खेत में पारंपरिक संरचनाओं जैसे कनाजा, कोठी, संदुका, आर्थन पॉट, गुम्मी और कचेरी में संग्रहित किया जाता है। हालांकि स्वदेशी भंडारण संरचनाएं बहुत लंबी अवधि के लिए अनाज भंडारण के लिए उपयुक्त नहीं हैं (अशोक गौड़ा et al., 2018)। गोदामों या साइलो का उपयोग अनाज के थोक भंडारण के लिए किया जाता है। गोदाम वैज्ञानिक भंडारण संरचनाएं हैं जो विशेष रूप से संग्रहित उत्पादों की मात्रा और गुणवत्ता की सुरक्षा के लिए बनाई जाती हैं।

भारत में, गोदामों का स्वामित्व भारतीय खाद्य निगम (FCI), केंद्रीय भंडारण निगम (CWC) या राज्य भंडारण निगम (SWCs) के पास है। साथ ही, खराब होने वाली खाद्य वस्तुओं के लिए उन्नत कोल्ड चेन भंडारण अवसंरचना क्षमता को मजबूत किया गया है। एकीकृत कोल्ड चेन और मूल्य संवर्धन अवसंरचना योजना के तहत 8.38 लाख मीट्रिक टन की कोल्ड स्टोरेज क्षमता बनाई गई है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग (ICAR-CIPHET) द्वारा विभिन्न कृषि वस्तुओं का फसल के बाद के नुकसान का अनुमान लेन लिए प्राथमिक सर्वेक्षण किए गए। पहले ऐसे अध्ययन का शीर्षक था- 'भारत में मात्रात्मक फसल और प्रमुख फसलों एवं वस्तुओं का कटाई के बाद के नुकसान का आकलन' (2015), और बाद में नाबार्ड कंसल्टेंसी सर्विस प्राइवेट लिमिटेड (NABCONS) द्वारा किए गए अध्ययन का शीर्षक 'भारत में कृषि उपज की कटाई के बाद के नुकसान का पता लगाने के लिए अध्ययन' (2022) था। दोनों अध्ययनों से संकेत मिलता है कि फसल कटाई के बाद सबसे अधिक नुकसान संबद्ध क्षेत्र यानी मछली पालन और अंडो ने हुआ है। बागवानी फसलों में, फलों में सबसे अधिक (6-16% के बीच), उसके बाद सब्जियों में (4-12%) हानि की प्रवृत्ति क्रमशः वृक्षारोपण और मसालों (1-8% के बीच) की तुलना में अधिक है (खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय, 2022)। दोनो अध्ययनों का मूल्यांकन पृष्ठ 7 पर तालिका में दिया गया है।

आजादी के बाद से, भारत में कृषि भंडारण अवसंरचना या भंडारण नीतियां विकसित की गई हैं। 2000 में खाद्यान्नों की हैडलिंग, भंडारण और परिवहन पर राष्ट्रीय नीति की शुरुआत में भंडारण पर एक बड़ा नीतिगत बदलाव देखा गया क्योंकि इसमें गोदामों और भंडारण अवसंरचना के निर्माण में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा दिया गया (गोपाल नाइक at el., 2022)। भारत में आपूर्ति श्रृंखला के बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय योजनाओं को लागू करने वाली प्रमुख एजेसिया खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग (डीएफपीडी), कृषि मंत्रालय, खाद्य प्रकरण उद्योग मंत्रालय, कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद नियो विकास प्राधिकरण 'एपीडा' (एपीईडीए) और पशुपालन, डेयर और मत्स्य पालन विभाग है।

भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की स्थापना खाद्य निगम अधिनियम 1964 के तहत की गई है और यह एकमात्र सरकारी एजेंसी है जिसे सम्पूर्ण भारत में एफसीआई के स्वामित्व वाले या किराए पर ली गई भंडारण अवसंरचना के नेटवर्क के माध्यम से, खरीद करने वाले राज्यों से उपभोग करने वाले राज्यों तक, खाद्यान्न पहुँचाने का काम सौपा गया है। एफसीआई भंडारण क्षमता की निगरानी करता है और भंडारण अंतर मूल्यांकन के आधार पर, भंडारण क्षमताएं बनाई किराए पर ली जाती है। एफसीआई निम्नलिखित योजनाओं के माध्यम से अपनी भंडारण क्षमता बढ़ाता है:- निजी उद्यमी गारंटी (पीईजी) योजना, केंद्रीय क्षेत्र योजना (सीएसएस), सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) मोड के तहत साइलो का निर्माण, केंद्रीय भंडारण निगम (सीडब्ल्यूसी) राज्य भंडारण निगम (एसडब्ल्यूसी) राज्य एजेंसियों से गोदाम किराए पर लेना, निजी भंडारण योजना (पीडब्ल्यूएस) के माध्यम से गोदाम किराए पर लेना। एक जुलाई 2023 तक, भारतीय खाद्य निगम के पास केंद्रीय पूल खाद्यान्न (उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मन्त्रालय, 2023ए) के भडारण के लिए 371.93 एलएमटी की क्षमता वाले 1923 गोदामों (स्वामित्व/किराए पर) का एक नेटवर्क है।

भारत में कुल खाद्यान्न उत्पादन लगभग 311 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) है और भारत में कुल भंडारण क्षमता केवल 145 एमएमटी है, यानी 166 एमएमटी भंडारण क्षमता की कमी है। देश में खाद्यान्न भंडारण क्षमता की कमी को दूर करने के लिए, सरकार ने 31 मई, 2023 को 'सहकारी क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना' को मंजूरी दी, जिसे देश के विभिन्न राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में एक पायलट परियोजना के रूप में शुरू किया गया है। इस योजना में प्राथमिक कृषि ऋण सोसायटी 'पैक्स' (पीएसीएस) स्तर पर विभिन्न कृषि बुनियादी ढांचों का निर्माण शामिल है, जिसमें भारत सरकार की विभिन्न मौजूदा योजनाओं के अभिसरण के माध्यम से विकेंद्रीकृत गोदाम, कस्टम हायरिंग केंद्र, प्रसंस्करण इकाइया, उचित मूल्य की दुकानें आदि स्थापित करना शामिल है। भारत सरकार विभिन्न मंत्रालयों के अंतर्गत, जैसे कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, कृषि अवसंरचना निधि (एआईएफ), कृषि विपणन अवसंरचना योजना (एएमआई), कृषि मशीनीकरण पर उप मिशन (एसएमएएम), बागवानी के एकीकृत विकास के लिए मिशन (एमआईडीएच), खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय, प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम योजना (पीएमएफएमई), प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना (पीएमकेएसवाई), उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय (राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत खाद्यान्न का आवंटन, खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर) (कैबिनेट, 2023)।

ये पायलट परियोजनाएं विभिन्न राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी) द्वारा नाबार्ड, भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई), केंद्रीय भंडारण निगम (सीडब्ल्यूसी), नाबार्ड कसल्टेंसी सर्विसेज (एनएबीसीओएनएस), राष्ट्रीय भवन निर्माण निगन (एनबीसीसी) आदि के सहयोग से कार्यान्वित की जाती हैं। योजनाओं के माध्यम से, पैक्स गोदामों/भंडारण सुविधाओं के निर्माण और अन्य कृषि बुनियादी ढांचे की स्थापना के लिए सब्सिडी और ब्याज छूट का लाभ उठा सकते हैं। देश में 13 करोड़ से अधिक किसानों के विशाल सदस्य आधार के साथ 1,00,000 से अधिक प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) है। इसके अलावा, नाबार्ड 2 करोड़ रुपये तक की परियोजनाओं के लिए एआईएफ योजना के तहत 3% ब्याज छूट के लाभों को शामिल करने के बाद, लगभग 1 प्रतिशत की अत्यधिक रियायती दरों पर पुनर्वित्त करके पैक्स को वित्तीय सहायता भी प्रदान कर रहा है। पायलट परियोजना के तहत भंडारण क्षमता के निर्माण के लिए राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों और राष्ट्रीय स्तर के सहकारी संघों, जैसे राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता महासंघ (एनसीसीएफ) और भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ लिमिटेड (नेफेड) और 1,711 पैक्स की पहचान की गई है। वर्तमान में, पायलट परियोजना (सहकारिता मंत्रालय, 2023) के तहत 13 राज्यों। केंद्रशासित प्रदेशों के 13 पैक्स में गोदामों का निर्माण चल रहा है। पैक्स स्तर पर विकेंद्रीकृत भंडारण क्षमता का निर्माण 500 मीट्रिक टन से 2000 मीट्रिक टन तक होगा।

भारत में उपलब्ध कोल्ड स्टोरेज क्षमता को बढ़ाने हेतु हाल ही में काफी जोर दिया गया है और निवेशकों को प्रोत्साहित करने हेतु व्यापक कर छूट का भी प्रावधान किया गया है। आयकर अधिनियम, 1961 के तहत कोल्ड स्टोरेज स्थापित करने पर होने वाले खर्च पर 150% तक की कर कटौती की अनुमति है। इसमें पहले पांच वर्षों के लिए अर्जित लाभ पर छूट और अगले पांच वर्षों के लिए 25-30% की छूट भी दी गई है। कोल्ड स्टोरेज की स्थापना को सेवा कर और उत्पाद शुल्क से भी छूट दी गई है। कोल्ड स्टोरेज अवसंरचना की उपलब्धता से खराब होने वाली वस्तुओं का जीवन चक्र बढ़ेगा।

खाद्यान्न भंडारण 'जीरो हंगर' के सतत विकास लक्ष्य के उद्देश्य को प्राप्त करने में सीधे सहायता करेगा, जिसका उद्देश्य भूख और कुपोषण के सभी रूपों को समाप्त करना और छोटे पैमाने के खाद्य उत्पादकों की कृषि उत्पादकता और आय को दुगुना करना है। इसके अलावा, लक्ष्य 12 के तहत संकेतक यानी जिम्मेदार खपत और उत्पादन भारत में भंडारण बुनियादी ढांचे में प्रगति के माध्यम से हासिल किया जाएगा।

फसल कटाई के बाद भंडारण हेतु बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण, बेहतर भंडारण क्षमता, निजी क्षेत्र की भागीदारी और वैज्ञानिक भंडारण पद्धति पर व्यावहारिक प्रशिक्षण किसानों/ हितधारकों को कृषि वस्तुओं के प्रबंधन और भंडारण में सशक्त बना सकता है। विकेन्द्रीकृत स्थानीय भंडारण प्रणाली को बढ़ावा देने से खाद्यान्न की बर्बादी कम होगी, खाद्य सुरक्षा मजबूत होगी और किसानों द्वारा मजबूरन बिक्री को रोका जा सकेगा। वेयरहाउसिंग, लॉजिस्टिक्स, कोल्ड चेन, खाद्य प्रसंस्करण और एकीकृत मूल्य श्रृंखला विकास के आधुनिकीकरण में बढ़े हुए निवेश से एक विकसित राष्ट्र बनने और सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।

लेखिका सीनियर एडवाइजर (कृषि और सम्बद्ध क्षेत्र), नीति आयोग हैं। ई-मेल: neelam.patel@gov.in "लेखिका सीनियर एसोसिएट (कृषि वर्टीकल), नीति आयोग हैं। ई-मेल tanu.sethi@gov.in

स्रोत-

India Water Portal Hindi
hindi.indiawaterportal.org