सस्ती, टिकाऊ और इको फ्रेंडली है खेती की ‘नो टिल फार्मिंग’ पद्धति
यदि आप खेती-बाड़ी के बारे में थोड़ी भी जानकारी रखते हैं, तो आपको पता होगा कि खेती की पहली प्रक्रिया होती है फसल बोने के लिए खेत की जुताई (Tilling) करना। इसके बाद ही खेत में बीजों की बुवाई या पौधों की रोपाई की जाती है। बीते करीब सौ साल से खेती की यही पद्धति तकरीबन पूरी दुनिया में अपनाई जा रही है। पर, अब नए ध्ययनों से पता चला है कि खेती का यह तरीका महंगा और ज्यादा मेहनत वाला होने के साथ ही पर्यावरण के लिए भी नुकसानदेह है। रिसर्च यह भी बताता है कि जुताई की पद्धति ने ही बीते दशकों के दौरान हमारी मिट्टी की उर्वरता को घटा दिया है और यह मिट्टी के कटाव और बहाव का भी कारण बनती है, जिसके चलते हर साल बारिश में भारी मात्रा में खेतों की मिट्टी बहकर नदियों के जरिये सागरों में चली जा रही है। इसके अलावा जुताई से मिट्टी में दबे कार्बन के ऊपर आने से इनके हवा में मिलने से कार्बन डाई ऑक्साइड (CO₂), मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी कई ग्रीनहाउस गैसें भी बनती हैं, जो ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ाने में योगदान करती हैं।
नो टिल फार्मिंग ही था खेती का मूल तरीका
आज मिट्टी और पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं का समाधान पुराने ज़माने में अपनाई जाने वाली बिना जुताई वाली खेती यानी No Till Farming के रूप में देखा जा रहा है। अमेरिका और यूरोप के कई विकसित देशों में किसान अब जुताई वाली खेती को छोड़कर फिर से बिना जुताई वाल पुरानी पद्धति की ओर लौट रहे हैं। वैसे देखा जाए, तो बड़े पैमाने पर कृषि यंत्रों से खेती शुरू किए जाने से पहले बुवाई बिना जुताई किए ही की जाती थी। दरअलसल जीरो टिलेज का विचार आज के दौर में प्रचलित जुताई वाली खेती से बहुत पुराना है।यानी खेती की मूल तकनीक नो टिल फार्मिंग ही है, जिसे जुताई वाली खेती ने विस्थापित कर दिया। हालांकि, अब बिना जुताई वाली खेती को अपनाने के कारण पहले के कारणों से पूरी तरह अलग हैं। बीते समय में खेती के औजारों की कमी और संसाधनों के अभाव में या आदिम प्रकृति के कारण नो-टिल पद्धति का इस्तेमाल किया जाता था। इसके विपरीत आज इसकी ओर लौटने का कारण पर्यावरण और पारिस्थितिकी यानी इको सिस्टम संबंधी चिंताएं हैं। आज मिट्टी की खराब होती गुणवत्ता और कटाव जैसी समस्याओं से बचने और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिहाज़ से नो-टिल फार्मिंग को अपनाया जा रहा है। यह दुनिया भर में एक बार फिर से ऑर्गेनिक फॉर्मिंग और पर्मा फार्मिंग यानी स्थायी कृषि पद्धति को अपनाए जाने जैसा ही है। आज के दौर में यह यह हमें एक इनोवेटिव आइडिया लग रहा है, जबकि वास्तव में खेती का सदियों पुराना परंपरागत तरीका है, जो रासायनिक खादों और कीटनाशकों का आविष्कार होने से पहले कई शताब्दियों तक अपनाया जाता रहा।
क्या है नो-टिल फार्मिंग ?
नो-टिल खेती, जिसे कभी-कभी जीरो टिलेज या जीरो-टिल फार्मिंग भी कहा जाता है, खेती का एक ऐसा तरीका है, जिसमें बुवाई के लिए मिट्टी की मूल संरचना से छेडछाड़ नहीं की जाती। इस तरह यह कृषि एक ऐसा दृष्टिकोण है, जिसमें खेत की जुताई करने की आवश्यकता नहीं होती। हालांकि नो-टिल खेती के लिए विशेष उपकरणों (डिस्क सीडर या कृषि ड्रिल) की आवश्यकता होती है, ताकि खेत में फरो बनाया जा सके, बीज बोए जा सकें और उन्हें कवर किया जा सके। जुताई वाली खेती के विपरीत नो-टिल फार्मिंग में यह सब कुछ एक साथ ही हो जाता है। इस तरह, मिट्टी की संरचना को कम से कम प्रभावित किया जाता है, क्योंकि इसमें ज़मीन को ठीक उसी जगह खोदा जाता है जहां बीज या पौधे को बोना है। प्लांटर्स बुवाई के साथ ही बीज डालने के लिए बनाए गए फरो में ट्यूबों के माध्यम से खाद डाल सकते हैं, जिससे खाद की खपत काफी घट जाती है।
कैसे होती है बिना जुताई की खेती, क्या है प्रक्रिया
नो-टिल खेती में बुवाई या रोपण से पहले ऊपरी मिट्टी को पलटने के बजाय, किसान खेत में पहले की फसल के अवशेषों (पराली) और खरपतवार पर गोबर खाद या वर्मी कंपोस्ट जैसे ऑर्गेनिक उर्वरक छोड़ देते हैं। जिससे ये मिट्टी में ही डीकंपोज (Decompose) होकर खेत की उर्वरता को बढ़ाते हैं। यदि पिछली फसल के अवशेष बहुत अधिक मात्रा में होते हैं, तो नेचुरल खाद डालने के बाद खेत में डीकंपोजर घोल का छिड़काव करके कुछ दिनों के लिए छोड़ दिया जाता है, ताकि पराली और खरपतवार पूरी तरह से विघटित (Decompose) हो जाएं। ऐसा न करने पर ये अवशेष खराब तरीके से सड़ते हैं, जिससे रोग और फंगस उत्पन्न होते हैं, जो बुवाई या रोपण के काम में बाधा उत्पन्न करते हैं और इससे बीज या पौधों के सड़ने की भी आशंका रहती है। बिना जुताई वाली कृषि में डीकंपोजर के छिड़काव के विकल्प के तौर पर कहीं-कहीं बुवाई सीजन से पहले खेत में मामूली जुताई का तरीका भी अपनाया जाता है। शरद ऋतु की फसल से बचे अवशेषों को खेत में समान रूप से फैलाकर खेत को वसंत के लिए तैयार किया जा सकता है। ठंड के मौसम में मिट्टी को अपने स्थान पर बनाए रखने के लिए “कवर फसलें” लगाना भी बेहतर रहता है।
नो-टिल प्रक्रिया में आम तौर पर डिस्क सीडर जैसे विशेष उपकरणों का उपयोग करके मिट्टी में खांचे बनाए जाते हैं और एक ही बार में बीज बोए जाते हैं और ढक दिया जाता है। इस तरह बिना जुताई की प्रक्रिया वास्तव में खेती में लगने वाले परिश्रम, समय समय और खर्च को कम करती है।
जरूरी नहीं GMO बीजों और Weed Killers का इस्तेमाल
नो-टिल खेती में बीज बोने से पहले और बाद में कवर फसलों (cover crops) को नष्ट करने के लिए खरपतवार नाशकों (weed killers) के उपयोग की आवश्यकता पड़ सकती है। इन कुछ खरपतवार नाशकों का पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए, अगर आप पर्यावरण और सेहत को प्रभावित किए बिना और बिना किसी यांत्रिक सहायता के खरपतवारों की समस्या से निपटना चाहते हैं, तो अपने खेत में जैविक खरपतवार नाशकों का उपयोग कर सकते हैं।
इसके अलावा नो-टिल खेती को लेकर एक गलत धारणा प्रचलित है कि इसमें किसानों को आनुवंशिक रूप से इंजीनियर (GMO) फसलों का उपयोग करने की आवश्यकता होती है। हालांकि, ऐसा जरूरी नहीं होता। यदि आप साधारण बीजों की बुवाई करके अपनी फसलों को जैविक रखना चाहते हैं, तो फसल चक्रण (Crop rotation) और खरपतवारों को दबाना (Suppressing weeds) जैसे तरीकों को अपना सकते हैं। इसके अलावा बुवाई के पहले पशुओं को खेतों में चराने से भी मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
बिना जुताई वाली खेती के लाभ
कम लागत से बचता है खेती का खर्चा : नो-टिल खेती मिट्टी को मजबूत करने के अलावा खेत की जुताई व बुवाई में डीजल का खर्चा बचा सकती है। क्योंकि इसमें जुताई की जरूरत नहीं होती,सीधे बुवाई कर देने से ट्रैक्टर को एक बार ही खेत में चलाना पड़ता है। साथ ही मिट्टी के बारिश में न बहने से खेत में बार-बार भारी मात्रा में उर्वरक डालने की भी जरूरत नहीं रहती। मिट्टी के बेहतर जल अवशोषण क्षमता के चलते खेत में नमी भी ज्यादा समय तक बनी रहती है, जिससे सिंचाई का खर्च भी बचता है। भारत जैसे देश के लिए यह बात काफी महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि यहां ज्यादातर छोटी जोत वाले किसान हैं आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं।
कम करती है मिट्टी का कटाव : बिना जुताई वाली खेती मिट्टी की रक्षा करती है और कटाव को कम करती है। साल दर साल जुताई किए जाने से मिट्टी बंजर हो जाती है। साथ ही मिट्टी की ऊपरी परत उधड़ कर अलग हो जाने से बारिश में मिट्टी के कटाव और बहाव होने का खतरा रहता है। इसके विपरीत बिना जुताई वाली खेती में मिट्टी अपनी सुगठित संरचना को बनाए रखती है, जिससे बारिश का पानी मिट्टी को बहाकर नहीं ले जा पाता। बल्कि, इन खेतों की मिट्टी बारिश के पानी को बेहतर तरीके से अवशोषित करती है।
बेहतर गुणवत्ता वाली मिट्टी का संरक्षण : पारंपरिक जुताई से मिट्टी की संरचना खराब हो जाती है। खेत जोतने से मिट्टी में दबे पोषक तत्व और सूक्ष्म जीव ऊपर हवा के संपर्क में आकर नष्ट हो जाते हैं। इसके विपरीत बिना जुताई की खेती में ये पोषक तत्व मिट्टी बने रहते हैं और मिट्टी बेहतर फसल देती है।
लाभाकारी कीटों, जीवाणुओं और सूक्ष्म जीवों को बचाती है : दुनिया की जैव विविधता में योगदान देने के अलावा, मिट्टी के सूक्ष्म जीव (Microorganisms) और लाभकारी कीट व जीवाणु (Beneficial Insects and Bacteria) से फसलों को कई प्रकार के लाभ होते हैं। मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवन बेहतर उपज देने के साथ ही मिट्टी को मजबूत और उर्वरक बनाता है। इसके विपरीत जुताई से कवक और बैक्टीरिया आदि नष्ट हो जाते हैं।
जलवायु संकट से लड़ने में करती है मदद : खेतों की जुताई करने से मिट्टी में मौजूद कार्बन सतह पर आ जाता है। इससे कार्बन के समूह टूट जाते हैं और हवा में मिल जाते हैं। मिट्टी में दबे कार्बन के हवा के संपर्क में आने से कार्बन डाइऑक्साइड बनने की संभावना बढ़ जाती है। इससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि होती है, जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाकर जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है। बिना जुताई वाली खेती मिट्टी को उतना नुकसान नहीं पहुँचाती है, क्योंकि कार्बन ज़मीन में ही रहता है।
बिना जुताई वाली खेती के नुकसान
बिना जुताई वाली खेती के अनेक लाभों के बावजूद, इसमें कुछ कमियां भी हैं जिन पर विचार करना जरूरी है:
इस खेती में अकसर खरपतवार नाशियों के उपयोग ज्यादा करना पड़ता है, जिससे पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है।
बिना जुताई वाली खेती के लिए कई तरह के उपकरणों की आवश्यकता होती है, जैसेकि- जिरो टिल ड्रिल, नो-टिल प्लांटर, कवर क्रॉप रोलर, रिज रेजर या बेड प्लांटर, हैरो, स्प्रेयर और स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम। ये उपकरण महंगे हो सकते हैं।
यदि फसल के अवशेषों को अच्छी तरह से मिट्टी में मिलाया (डीकंपोज) नहीं जाता, तो बीजों के सड़ने या फसल में रोगों का खतरा बना रहता है ।
हालांकि, सही रणनीति और प्लानिंग के साथ इनमें से कुछ जोखिमों का मुकाबला किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, हर मौसम में अपनी फसलों को बदल कर यानी फसल चक्र को अपना कर बीमारियों को काफी हद तक फैलने से रोक सकते हैं।
धैर्य और दीर्घ कालिक नज़रिये की जरूरत
यदि आप अपनी मिट्टी की गुणवत्ता और फसल उत्पादन में वृद्धि देखना चाहते हैं या यदि आप अपने खेत को अधिक पर्यावरण अनुकूल बनाने में रुचि रखते हैं, तो आप नो-टिल खेती पर विचार कर सकते हैं। पर, याद रखें, अगर आप बिना जुताई वाली खेती का तरीका अपनाना शुरू करते हैं, तो आपको धैर्य रखना होगा। अगर आप कई सालों से जुताई वाली खेती का तरीका अपना रहे हैं, तो इसके दुष्प्रभावों को दूर होने में समय लगेगा। हालाँकि, बिना जुताई वाली खेती के दीर्घकालिक लाभ इसके लायक होंगे!