जल क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के निराकरण में वैश्विक संगठनों विशेष रूप से यूनेस्को का योगदान (भाग 1)
संयुक्त राष्ट्र संघ आधिकारिक रूप से 24 अक्टूबर, 1945 को अस्तित्व में आया था जब मूल 51 सदस्य देशों ने बहुमत से संयुक्त राष्ट्र चार्टर की पुष्टि की थी। यह दिन अब प्रत्येक वर्ष दुनिया भर में संयुक्त राष्ट्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ के 193 सदस्य देश हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना अंतर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा को कायम रखने के लिए की गई है। संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य उद्देश्य युद्ध की स्थिति को उत्पन्न न होने देना और शान्ति बनाए रखने के अतिरिक्त वैश्विक स्तर की कुछ समस्याओं का समाधान करना भी है। संयुक्त राष्ट्र संघ के कुछ मुख्य अंग हैं जो कि निम्नलिखित
हैं:
(i) महासभा (ii) सुरक्षा परिषद
(iii) सामाजिक एवं आर्थिक परिषद
(iv) न्यासिता परिषद
(v) अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय
(vi) सचिवालय
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने संकल्प पत्र सं. 64/292, दिनांक 28 जुलाई, 2010 (UN 2010) में माना कि सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता का अधिकार, जीवन का पूर्ण रूप से और सभी मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए एक अनिवार्य मानव अधिकार है, और यह राज्यों और अंतर्राष्ट्रीय निकायों से आग्रह करता है कि वे सकल आबादी को सुरक्षित पीने योग्य जल और स्वच्छता तक सस्ती पहुंच प्रदान करने के अपने प्रयासों में तेजी लाएं। उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखते हुए सतत विकास लक्ष्यों को 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा 2015 के बाद के विकास एजेंड़े के भाग के रूप में तैयार किया गया था, जो उस वर्ष समाप्त हुए मिलेनियम विकास लक्ष्यों को सफल करने के लिए भविष्य के वैश्विक विकास ढांचे को बनाने की मांग करता था। सतत विकास लक्ष्यों को हम एजेंडा 2030 के नाम से भी जानते हैं क्योंकि इन्हें वर्ष 2030 तक प्राप्त किया जाना अपेक्षित है। सतत विकास लक्ष्य 17 परस्पर सम्बद्ध वैश्विक लक्ष्यों का संग्रह है, जिनमें से SDG-6 सभी के लिए जल और स्वच्छता की पहुंच और स्थायी प्रबंधन सुनिश्चित करने के सम्बन्ध में बात करता है। हालांकि, SDG-6 की प्रगति बहस का विषय है।
यह स्पष्ट है कि SDG-6 को अलग-अलग हासिल करने से इसके निष्पादन और प्रगति में बाधा आएगी; इसलिए, अंतर्संबंधों की बेहतर जानकारी की आवश्यकता है। जल एक आम कड़ी के रूप में अन्य कई सतत विकास लक्ष्यों के साथ जुड़ा हुआ है और इनके सफल कार्यान्वयन के लिए कहीं न कहीं इसकी आवश्यकता अभीष्ठ है। उदाहरणस्वरूप, SDG-2 (खाद्य सुरक्षा), SDG-3 (मानव स्वास्थ्य), SDG-11 (प्रत्यास्थी शहर), SDG-12 (जिम्मेदार खपत और उत्पादन), SDG-14 (जल के नीचे जीवन), और SDG-15 (भूमि पर जीवन), ये सभी SDG-6 से आपस में जुड़े हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ एवं इसके अभिकरण
संयुक्त राष्ट्र के विशिष्ट अभिकरण विविध क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करते हैं। सामाजिक एवं आर्थिक परिषद उनके मध्य समन्वय स्थापित करने का महत्वपूर्ण कार्य करती है। चार्टर के अनुच्छेद 57 के अनुसार परिषद विशिष्ट अभिकरण से समझौते भी कर सकती है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), यूनेस्को (UNESCO), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO), विश्व डाक संघ (UPU), अंतरराष्ट्रीय पुनर्निर्माण व विकास बैंक (IBRD), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) आदि ऐसी संस्थाएं हैं जिनसे परिषद ने समझौते किये हैं। इन समझौतों का उद्देश्य इन विशिष्ट अभिकरणों को निश्चित दिशा में कार्य करने की प्रेरणा देना तथा इनके मध्य करने की प्रेरणा देना तथा इनके मध्य समन्वय स्थापित करना है जिनसे आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं का समन्वित समाधान और मानव मात्र का हित हो सके। परिषद इन अभिकरणों से प्रतिवेदन मांग सकती है तथा संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों को इन अभिकरणों की सेवाएं उपलब्ध करा सकती है। परिषद गैर-सरकारी संगठनों से भी सीधे विचार-विमर्श कर सकती है।
यूनेस्को का संक्षिप्त परिचय, उद्देश्य एवं सिद्धांत
संयुक्त राष्ट्र शिक्षा, विज्ञान एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को), 4 नवम्बर, 1946 को अस्तित्व में आया, जब 20 देशों ने लगभग एक वर्ष पहले तैयार किये गये इसके संविधान को स्वीकार करके इसका औपचारिक रूप से उद्घाटन किया था। संयुक्त राष्ट्र का कोई भी सदस्य यूनेस्को का सदस्य बन सकता है। जो देश संयुक्त राष्ट्र के सदस्य नहीं हैं ये भी यूनेस्को की सदस्यता प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु ऐसे राष्ट्रों की सदस्यता हेतु कार्यकारी मंडल की सिफारिश पर यूनेस्को की सामान्य सभा में उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से स्वीकृति मिलनी चाहिए।
यूनेस्को का उद्देश्य शांति एवं सुरक्षा के लिए योगदान करना है, जिसकी पूर्ति हेतु शिक्षा, विज्ञान एवं संस्कृति के द्वारा राष्ट्रों के मध्य निकटता - की भावना का निर्माण करना है।
यूनेस्को ने प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञान के विकास पर बहुत अधिक ध्यान दिया है। यूनेस्को के माध्यम से - वैज्ञानिक सहयोग की पृष्ठभूमि का उचित निर्माण हुआ है। जल संरक्षण के - साथ-साथ यह संगठन मरुप्रदेशों को - उर्वरक बनाने के सम्बन्ध में अनेक देशों में जो प्रयोग हो रहें हैं उसमे भी अपनी महती भूमिका निभा रहा है।
यूनेस्को का अन्तःशासकीय जलविज्ञानीय कार्यक्रम (IHP)
अन्तः शासकीय जलविज्ञानीय कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र प्रणाली का एकमात्र अन्तः शासकीय सहयोग कार्यक्रम है जो जल अनुसंधान, जल संसाधन प्रबंधन, और शिक्षा एवं क्षमता निर्माण को समर्पित है। अपनी स्थापना के बाद से ही IHP अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक समन्वित जलविज्ञानीय अनुसंधान कार्यक्रम से शिक्षा और क्षमता निर्माण की सुविधा के लिए एक व्यापक, समग्र कार्यक्रम के रूप में विकसित हुआ है।
यूनेस्को के IHP का कार्य मुख्यतः तीन मार्गों पर निर्मित हैः
(i) नीति-प्रासंगिक सलाह के लिए जलविज्ञान,
(ii) सतत विकास की बढ़ती आवश्यकता के प्रत्युत्तर में शिक्षा और क्षमता निर्माण, और
(iii) पर्यावरणीय स्थिरता प्राप्त करने के लिए जल संसाधनों का मूल्यांकन और प्रबंधन
IHP जलविज्ञान और जल प्रबंधन के लिए एक अंतःविषय और एकीकृत दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है, जिसमें जल के सामाजिक और सांस्कृतिक आयामों को शामिल करते हुए एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन का विकास भी किया जाता है। यूनेस्को की IHP, जिसकी शुरुआत वर्ष 1975 में की गयी थी और जिसे आठ प्रोग्रामेटिक समय अंतरालों या चरणों में लागू किया गया, वह 2022-2029 की अवधि के दौरान अपने नौवें चरण में प्रवेश कर चुका है। IHP- IX का थीम "बदलते पर्यावरण में जल सुरक्षित विश्व के लिए विज्ञान" है एवं इसके सफल कार्यान्वयन के लिए 5 प्राथमिकता क्षेत्र के साथ 34 अपेक्षित परिणाम और 150 प्रमुख गतिविधियों निर्धारित की गयी हैं (चित्र 1)।
अन्तःशासकीय जलविज्ञानीय कार्यक्रम के नौवें चरण (IHP-IX) की सामरिक योजना सदस्य देशों की सहायता के लिए प्रमुख जल प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान करती है जिससे कि एजेंडा 2030 या सतत विकास लक्ष्यों (SDGs), विशेष रूप से जल से संबंधित सत्तत विकास लक्ष्यों और अन्य जल संबंधी वैश्विक एजेंडा, जैसे जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौता, आपदा जोखिम कमी (DRR) और नवीन नगरीय एजेन्डा (NUA) पर सेंदाई फ्रेमवर्क को आसानी से प्राप्त किया जा सके।
IHP के नौवें चरण (IHP-IX) के कार्यान्वयन को तीन परस्पर संबंधित दस्तावेज़ों द्वारा निर्देशित किया जाएगाः (i) एक रणनीतिक योजना जो कि सदस्य देशों के लिए जल संबंधी प्राथमिकताओं की पहचान करती हो, (ii) एक परिचालन कार्यान्वयन योजना, और (iii) एक वित्तीय रणनीति
IHP-IX के प्रामिकता वाले क्षेत्र
IHP-IX के प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को निम्न पाँच परिवर्तनकारी उपकरणों के रूप में प्रस्तुत किया गया है जो 2022-2029 की अवधि के लिए परिवर्तनीय दुनिया में विकास को बनाये रखने के लिए जल सुरक्षा को सक्षम बनायेंगेः
1. वैज्ञानिक अनुसंधान और नवाचार,
2. संवहनीयता सहित चौथी औद्योगिक क्रांति में जल शिक्षा,
3. आँकड़ा-ज्ञान की खाई को पाटना,
4. वैश्विक परिवर्तन की परिस्थितियों में एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन, और
5. शमन, अनुकूलन और रेसिलियंस के लिए विज्ञान पर आधारित जल शासन ।
इन पाँचों प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में से प्रत्येक को उनके अपेक्षित परिणामों के साथ विकसित और कार्यान्वित करने से तात्पर्य न केवल इनमें से प्रत्येक विषयगत अक्षों बल्कि उनके अंतर्संबंधों और सहक्रियाओं के माध्यम से अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने के लिए सतत जल प्रबंधन को आगे बढ़ाना और मूल्यवर्धन करना है।
यह आलेख लीन भाग में है।
पहला भाग - जल क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के निराकरण में वैश्विक संगठनों विशेष रूप से यूनेस्को का योगदान (भाग 1)
दूसरा भाग - जल क्षेत्र में यूनेस्को : वैश्विक स्तर पर यूनेस्को के जलविज्ञानीय कार्यक्रम (भाग 2)
भाग तीन - जल क्षेत्र में यूनेस्को : वैश्विक स्तर पर यूनेस्को के जलविज्ञानीय कार्यक्रम (भाग 3)