6.1 प्रस्तावना
- राजस्थान में बरसात और बारहमासी नदियों की कमी को देखते हुए, जलग्रहण विकास पानी की समस्या को हल करने का एक अच्छा साधन माना गया। जलग्रहण विकास का एक प्रमुख नारा ‘खेत का पानी खेत में’ गाँव का पानी गाँव में इस कार्यक्रम का मूल सिद्धांत है।
- जलग्रहण विकास में हालाँकि पानी मुख्य बिंदु है, परन्तु यहाँ से एक पूरी विकास की प्रक्रिया शुरू होती है। इसमें पशु-पालन और कृषि भी शामिल है। एक तरीके से देखें तो जलग्रहण विकास के अंतर्गत पूरे गाँव का एकीकृत विकास हो सकता है। आप किसी नदी नाले पर खड़े हो तो वह पूरा क्षेत्र जिसका पानी बहकर वहाँ से निकलता हो, वह क्षेत्र जलग्रहण क्षेत्र कहलाएगा। जलग्रहण में पहाड़, खेत, चारागाह, रास्ते, छोटे-छोटे नाले आदि सभी आते हैं। अतः जलग्रहण विकास कार्यक्रम पूरे क्षेत्र के विकास का कार्यक्रम है। जो कोई गतिविधि जलग्रहण क्षेत्र के जल, जंगल, जमीन, जानवर और जनमानस के विकास के लिये हो, वह जलग्रहण विकास कार्यक्रम का हिस्सा हो सकती है।
- सामान्यतः भौगोलिक स्थिति के अनुसार जलग्रहण गतिविधियाँ स्पष्ट हो जाती है लेकिन मरुस्थल में यह सम्भव नहीं है। मरुस्थलीय क्षेत्रों में जलग्रहण कार्यक्रम का स्वरूप बदल जाता है। यहाँ पर अक्सर ऐसी गतिविधियाँ ली जाती है जिसमें सूखे का प्रभाव कम किया जा सके।
6.2 जलग्रहण विकास में जनभागीदारी की आवश्यकता
जैसा कि स्पष्ट है जलग्रहण विकास कार्यक्रम स्थानीय जनता के लिये, स्थानीय जनता द्वारा क्रियान्वित एवं प्रबंधित किये जाने वाला कार्यक्रम है, जिसे क्षेत्र के आवश्यकता आधारित समन्वित/सतत विकास का सपना पूर्ण किया जा सकता है। जब तक जलग्रहण क्षेत्र के प्रत्येक परिवार के प्रत्येक सदस्य को क्षेत्र की पारिस्थितिकीय स्थिति, पर्यावरण का ज्ञान, प्राकृतिक संसाधनों की स्थिति एवं मांग इत्यादि की जानकारी नहीं होगी एवं कार्यक्रम के प्रारम्भिक चरण से लेकर अंतिम चरण एवं परियोजना समाप्ति उपरान्त रख-रखाव हेतु प्रबंधकीय व्यवस्थाओं में स्थानीय परिवारों की सक्रिय भागीदारी नहीं होगी, जब तक जलग्रहण विकास के उद्देश्यों की प्राप्ति किया जाना असम्भव है। लाभार्थियों की जनभागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लाभार्थी अंशदान की व्यवस्था की गई है, जिससे कि प्रत्येक गतिविधि में उनका जुड़ाव हासिल हो एवं अपनापन विकसित हो।
6.3 समूहगत विकास क्यों?
समय के बदलते स्वरूप के साथ साथ-साथ विकासोन्मुख योजनाओं के मापदंड भी बदलते चले गये हैं। पहले ग्रामों अथवा परिवारों को इकाई मानकर विकास कार्य कराए जाते थे। इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत कृषक को ध्येय में रखते हुए अनुदान की अनेकों योजनाएँ क्रियान्वित की जा रही थी। कालांतर में यह महसूस किया जाने लगा कि ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के उद्देश्य से सर्वश्रेष्ठ रणनीति यह है कि समान सामाजिक परिवेश एवं आर्थिक पृष्ठभूमि के परिवारों को समूह के रूप में विकास की मुख्य धारा में लाने के उद्देश्य से जोड़ा जाए। समूह की आवाज अधिक दूर तक जाती है एवं परस्पर ज्ञान के आदान प्रदान से निरंतर दक्षता में वृद्धि होती रहती है। आज अनेकानेक राजकीय योजनाओं अथवा अनुदान के कार्यक्रमों में समूह को दृष्टिगत रखा जाता है एवं यह अपेक्षा की जाती है कि समूह आपसी बचत कर लेनदेन करे एवं मितव्ययी गतिविधियाँ अपनाएँ। विकसित समूहों को रोजगारोन्मुखी लघु उद्योग इकाइयों हेतु प्रेरित किया जा सकता है जिससे कि उनकी आय में एक समान रूप से वृद्धि हो। अतः समूहगत विकास आज के युग की महत्ती आवश्यकता है।
6.4 जलग्रहण विकास कार्यक्रम के बारे में कुछ धारणाएँ
1. क्या जलग्रहण केवल पानी रोकने और भूमि सुधार का ही कार्यक्रम है?
यह सच है कि जलग्रहण में अधिक पानी रोकने और भूमि सुधार का ही है परन्तु इसमें कई अन्य गतिविधियाँ भी सम्मिलित हैं जैसे-
- पशु-पालन की गतिविधियाँ
- कृषि क्षेत्र में सुधार
- चारागाह विकास
- महिला समूह बनाना और प्रत्येक समूह के लिये 25000 रूपये का चक्रीय कोष (रिवाल्विंग फण्ड) का प्रावधान
- भूमिहीन और गरीब लोगों को प्राथमिकता से मजदूरी देना
2. परियोजना की गतिविधि कौन तय करता है?
परियोजना की गतिविधियाँ गाँव के लोग, जलग्रहण संस्थान और समिति के साथ मिलकर करते हैं। इस काम में जलग्रहण विकास दल उनकी मदद करता है।
3. गतिविधियों का चुनाव कैसे किया जाता है?
ऐसी गतिविधियाँ चुननी चाहिए जिनसे ज्यादा से ज्यादा लोगों की समस्याओं का हल हो सके। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि चुनी गई तकनीक सस्ती, सरल, स्थानीय और टिकाऊ हो। उदाहरण के लिये अगर किसी पुराने एनिकट की मरम्मत से सिंचाई का क्षेत्र बढ़ता है और गाँव के बहुत सारे किसानों को फायदा होता है तो उसे चुनने में समझदारी है। ऐसे कार्यों की मनाही नहीं है। ऐसे कार्यक्रम भी चुनने चाहिए जिनसे भूमिहीन लोगों को रोजगार मिले।
4. प्रवेश बिंदु गति-विधि
प्रवेश बिंदु गतिविधि, परियोजना के पहले 8 महीनों में करवाई जाने वाली वह गतिविधि है जिसमें जलग्रहण समुदाय जलग्रहण कार्यक्रम तथा उसकी क्रियान्वयन संस्था की पहचान एवं साख हो सके।
5. क्या सभी कार्य जलग्रहण समिति द्वारा करवाए जाते हैं?
सभी भौतिक निर्माण कार्यों के लिये जैसे जलस्रोत, वृक्षारोपण, चारागाह विकास, सामूहिक मेड़बन्दी आदि के लिये अलग-अलग उपभोक्ता समूह बनाए जा सकते हैं।
ये कार्य किसी व्यक्ति को मेट की तरह चुनकर नहीं करवाने चाहिए। यह दिशा निर्देशों के विपरीत तो है ही साथ ही ऐसा करने से तैयार ढाँचे/संसाधन की व्यवस्था की जिम्मेदारी भी तय नहीं हो पाती। इसके चलते, उपयोग भी ढंग से नहीं हो पाता। अक्सर यह भी देखा गया है कि ऐसे कार्यों का फायदा अमीर लोगों को मिलता है और गरीब वंचित रह जाता है।
6. क्या महिलाएँ केवल स्वयं उपभोक्ता बचत समूह बना सकती है?
हरगिज नहीं - महिलाएँ चाहे तो अपना अलग उपभोक्ता समूह बना कर अपनी जरूरत के हिसाब से काम ले सकती है, चाहे वह खेतों की मेड़बन्दी हो या चारागाह विकास या तलाई या बांध बनाना।
7. योगदान क्यों लिया जाता है?
यह स्पष्ट हो चुका है कि सामुदायिक या निजी संपत्तियों का रख-रखाव वहाँ बेहतर होता है जहाँ लोगों ने अपना पैसा लगाया हो अथवा मेहनत की हो। यही कारण है कि लोगों से योगदान लिया जाता है। योगदान का मतलब हरगिज यह नहीं है कि मजदूरों का पैसा काटा जाए, योगदान उनसे लिया जाता है जिनको उस गतिविधि से लाभ हो 1 जैसे चारागाह विकास में सभी से योगदान लिया जाना चाहिए पर छोटे एनीकट में उन्हीं से जिनको एनीकट से लाभ हो।
यहाँ यह जान लेना जरूरी है कि संस्था/कमेटी का चयन जन प्रतिनिधि के रूप में किया जा रहा है। इसलिये यह कोशिश रहती है कि सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व हो। यह संस्था परियोजना को प्रजातांत्रिक रूप से चलाने के लिये बनाई गई है। जैसा कि प्रजातंत्र में होता है सबसे ताकतवर जनता होती है- यहाँ भी अगर संस्था/कमेटी ने कोई निर्णय लोगों के भले में नहीं लिया है तो जनता उस पर सवाल कर सकती है और जरूरत या संभव हो तो निर्णय को निरस्त भी कर सकती है। एक अच्छी परियोजना को चलाने के लिये जनता और जन प्रतिनिधियों को काम में रुचि लेनी होगी।
6.5 गरीबों के लिये समूहगत विकास एवं आत्मनिर्भरता
ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी के मूल कारण
- व्यक्तिगत आधारित (अशिक्षा, अंधविश्वास, विश्वास की कमी, भागीदारी न होना)
- क्षेत्र आधारित (घनी आबादी, खेती पर निर्भरता, आय के अवसर न होना)
- संसाधन आधारित (प्राकृतिक एवं भौतिक संसाधनों की कमी, विकास का अभाव) गरीब की जरूरत
- उपभोग, आकस्मिक जरूरत तथा उत्पादक कार्यों हेतु
- कम ऋण की बार-बार मांग व किसी भी ब्याज दर पर ऋण लेने को तैयार
- सम्पत्ति गहने आदि गिरवी रखकर ऊँची ब्याज दर पर ऋण प्राप्ति गैर संस्थागत ऋण संसाधन
- साहूकार, दुकानदार, रिश्तेदार अन्य साधन गरीब की बैंक के प्रति सोच
- छोटे-छोटे ऋण का प्रावधान नहीं व उपभोग के लिये ऋण उपलब्ध नहीं
- बैंक में जरूरत अनुरूप ऋण नहीं मिल सकता व अधिक कागजी कार्यवाही
- बैंक में बार-बार चक्कर लगाना व ऋण मिलने में देरी
- बिना गारंटी या प्रतिभूति के ऋण नहीं मिल सकता बैंक की सोच
- गरीब बचत नहीं कर पाता व गरीब से ऋण वसूली मुश्किल
- गरीब गारंटी या प्रतिभूति नहीं दे सकता
- उत्पादन के लिये दिए ऋण का उपभोग कार्य में लगाना
- गरीब में ऋण वापसी की न क्षमता है और न इच्छा शक्ति
- ऋण का एनपीए होने की अधिक सम्भावना
निष्कर्ष
1. गरीब की जरूरत छोटी राशि की और बार-बार होती है।
2. गरीब को उपभोग तथा उत्पादन दोनों ऋणों की आवश्यकता
3. बैंक ऋण प्रसार/नेटवर्क प्रसार के बावजूद गरीब अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिये अन्य गैर संस्थागत संसाधनों से ऊँचे ब्याज दर पर ऋण लेता है।
4. गरीबों के लिये लागू की गई अनेक योजनाओं के बावजूद उसकी स्थिति में सुधार संभव नहीं हो पाया
5. गरीब सिर्फ छोटी बचत (किफायत) कर सकता है
6. पूर्व अनुभवों के आधार पर बैंच और गरीब के बीच विश्वास की कमी
7. समूह के माध्यम से बचत एवं ऋण प्रक्रिया अपनाकर गरीब अपनी जरूरत पूरी कर सकता है।
8. गरीब को बैंक ऋण स्वयं सहायता समूह के माध्यम से उपलब्ध हो सकता है।
6.5.1 स्वयं सहायता समूह क्या है?
स्वयं सहायता समूह 10 से 20 ग्रामीण गरीबों का समूह है जिनकी सामाजिक व आर्थिक स्थिति लगभग एक जैसी है जो अपनी इच्छा व सहमति से तय की गई छोटी राशियों की बचत के लिये स्वैच्छिक रूप से बनाया जाता है तथा इससे समूह की सामान्य निधि निर्मित होती है। जिसमें से सदस्यों को उनकी उत्पादन व आकस्मिक ऋण जरूरतों की पूर्ति के लिये ऋण दिया जाता है। हर सप्ताह या 15 दिन या हर माह समूह की नियमित बैठक होती है जिसमें बचत की राशि सदस्यों द्वारा जमा की जाती है तथा ऋण का लेन-देन किया जाता है। समूह में 20 से अधिक सदस्य नहीं होने चाहिए। समूह स्त्रियों के या पुरूष के या मिश्रित भी हो सकते हैं। समूह के पंजीकरण की आवश्यकता नहीं।
समूह प्लेटफॉर्म का गैर सरकारी संगठनों द्वारा प्रयोग
- शिक्षा, सामाजिक चेतना, स्वास्थ्य, साक्षरता, पोषाहार, पर्यावरण, आयजनक गतिविधियों के क्षेत्र में
6.5.2 समूह अवधारणा
- बचत ही विकास का पहला कदम है तथा सामूहिक बचत राशि से गरीबों की आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति
- समान सामाजिक आर्थिक स्तर एवं पृष्ठभूमि
- ऐच्छिक जुड़ाव एवं प्रजातांत्रिक कार्य पद्धति
- अपने बनाए हुए नियम एवं पालन तथा सभी को समान अवसर
- नियमित बैठक करना तथा आंतरिक ऋण की आदत विकसित करना
- न्यूनतम मानक रिकॉर्ड एवं लेखा बही का रख-रखाव
- धर्म, जाति एवं राजनीति से परे
- खुली चर्चा एवं निर्णयों में पारदर्शिता
- शत प्रतिशत चुकौती करना तथा बैंक ऋण का उपयोग सीखना
- जीवन स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि
- माइक्रो क्रेडिट से माईक्रो एन्टरप्राइजेज बनने में अग्रसर
- स्वयं विकास/समूह विकास/परिवार विकास/ग्राम विकास/समाज विकास के क्रमिक सिद्धांत पर चलना
6.5.3 स्वयं सहायता समूह बैंक लिंकेज कार्यक्रम परिचय
- 1992 में देश में पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में शुरुआत
- अप्रैल 1996 से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा इसे बैंकों की सामान्य ऋण वितरण योजना तथा प्राथमिक क्षेत्रों के ऋणों में रखने के निर्देश
- गतिविधि जिला ऋण योजना के अंतर्गत शामिल तथा स्वयं सहायता समूह कार्यक्रम को रिजर्व बैंक 7 नाबार्ड भारत सरकार 7 राज्य सरकार द्वारा मान्यता
6.5.4 गरीब एवं बैंको के बीच अभिनव प्रयोग - स्वयं सहायता समूह
- स्वयं सहायता समूह कार्यक्रम में उल्लेखनीय सफलता व विस्तार
- गरीब समूह के माध्यम से अपनी ऋण आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं
- सामाजिक आर्थिक विकास एवं सशक्तिकरण
- समूह के कार्य (बचत, ऋण) में कई गुना वृद्धि
- समूह के आय स्तर में वृद्धि, पहले उपभोग व फिर उत्पादन की ओर अग्रसर
- परिवार एवं गाँव में समरसता का माहौल
- बैंकों की परिचालन लागत (प्रति ग्राहक खर्च) में कमी
- बैंकों की ऋण की वसूली करीब-करीब शत प्रतिशत जिससे एनपीए में कमी
- अनेक पुराने एवं संदिग्ध ऋणों की वसूली समूह के सहयोग से
- गरीबों के समूहों के प्रति बैंकों की सोच में आश्चर्यजनक परिवर्तन
- महिलाओं की भागीदारी से उनका सशक्तिकरण
- करीब 65 प्रतिशत समूह महिलाओं के, लेकिन लाभ पूरे परिवार को
- शिक्षा स्वास्थ्य, सामाजिक चेतना, पोषाहार, पर्यावरण, सरकारी कार्यक्रमों, राष्ट्र विकास कार्यक्रमों में अभूतपूर्व सहयोग
- स्थानीय प्रशासन, पंचायती कार्यों, विकास कार्यों में सहभागिता एवं सहयोग
6.5.5 स्वयं सहायता समूह की आंतरिक/ऋण प्रक्रिया में गैर संस्थागत, संस्थागत व प्रणालियों की उत्तम विशेषताओं का समावेश
- उपभोग, आकस्मिक जरूरत तथा उत्पादन कार्य हेतु
- कम राशि का ऋण व बार-बार ऋण प्राप्ति
- स्वयं सदस्यों द्वारा निर्धारित ब्याज दर व वापसी की किस्तें
- बिना किसी जमानत व गारंटी के ऋण
- गाँव से बाहर जाने की आवश्यकता नहीं
- ऋण मिलने में देरी नहीं तथा किसी भी समय ऋण उपलब्ध
- समय और जरूरत के अनुरूप ऋण उपलब्ध
- बैंक अथवा साहूकार के चक्कर लगाने की आवश्यकता नहीं
- कागजी कार्रवाई नहीं। सरल प्रक्रिया पारदर्शिता व सही रिकॉर्ड इसके साथ-साथ ऋण से प्राप्त ब्याज का लाभ सभी सदस्यों को समान रूप से मिलता है।
- अतः स्वयं सहायता समूह गरीब लोगों का अपना छोटा बैंक है जिसका संचालन वे मिल-जुलकर करते हैं।
6.5.6 समूह अवधारणा के लाभ
- सदस्य को नियमित बचत की आदत का विकास। बचत ही विकास का पहला कदम है।
- उपभोग तथा उत्पादन दोनों कार्यों हेतु आवश्यक पूँजी की भूमि
- समय पर धन उपलब्धता। बिना प्रतिभूति ऋण उपलब्धता
- अपने निर्णय अपने आप लेने की क्षमता का विकास
- आय एवं रोजगार के अवसर। संस्थाओं व बैंक से जुड़ाव
- शोषण से बचाव व साहूकारों पर निर्भरता समाप्त
- सर्वांगीण विकास में सहायक
- बैंकिंग सुविधाओं से परिचय
- आर्थिक स्तर में सुधार तथा स्वावलम्बी बनना
- नेतृत्व विकास, महिला उत्थान व सशक्तिकरण
- विशेषज्ञों/सरकारी विभागों/गैर सरकारी संगठनों से प्रशिक्षण व जानकारी प्राप्त करना
- उद्यमिता विकास व सहयोग की भावना परिवार को
- परिवार की आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा
- परिवार के सदस्य खास तौर से महिला के सम्मान में वृद्धि
- परिवार के सदस्यों की आवश्यकताओं की प्रति-पूर्ति
- बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य तथा बेहतर जीवन स्तर गाँव को
- सामुदायिक ढाँचागत कार्य व ग्राम विकास में सहभागिता
- समरसता का माहौल, ग्राम आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर
- गाँव में महिलाओं, अनुसूचित जाति, जनजाति तथा पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व
- सामाजिक व आधारभूत क्षेत्र (शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, स्वच्छता, महिला एवं बाल विकास) की जानकारी एवं उपलब्धता समाज को
- समूह में संगठित होकर एक अच्छे समाज का निर्माण जिससे निर्धनों को क्षमता, पूँजी व आवश्यक जानकारी प्राप्ति
- सामाजिक शोषण से मुक्ति व सामाजिक सुरक्षा का विकास
- सामाजिक कुरीतियों में कमी तथा महिलाओं की विकास में भागीदारी
- पिछले 13 वर्षों का अनुभव बताता है कि ‘स्वयं सहायता समूह’ कार्यक्रम गरीबों के सामाजिक आर्थिक उत्थान, आय बढ़ाने तथा जीवन स्तर को सुधारने का सशक्त माध्यम है।
गरीबों की आशा व विश्वास का प्रतीत : स्वयं सहायता समूह
गरीबों का अपना बनाया हुआ छोटा बैंक : स्वयं सहायता समूह
गरीबों के सर्वांगीण विकास का मार्ग : स्वयं सहायता समूह
6.5.7 स्वयं सहायता समूह कैसे बनाएँ?
जब हम किसी एक इलाके में रहने वाले गरीब परिवारों से बातें करते हैं तो पाते हैं कि इन लोगों में आपस में कुछ समानता है जो उन्हें एक दूसरे से जोड़े रखती है, इसी आपसी समानता और जुड़े रहने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि ?
- सभी लोग गरीबी की एक जैसी समस्या का सामना कर रहे हैं
- सब के हालात एक ही प्रकार के होते हैं
- सब को एक ही तरह की रोजी-रोटी मिलती है
- इलाके के सभी परिवार किसी एक ही जाति या जनजाति के हो सकते हैं
- उनका मूल स्थान भी एक हो सकता है
- इन सब बातों का पता होने पर आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि इसमें से कौन से ऐसे परिवार हैं जो एक समूह के रूप में अच्छे से संगठित हो सकते हैं।
6.5.8 हम स्वयं सहायता समूह बनाने के लिये किस प्रकार के परिवारों से मिलें?
1. क्या परिवार में केवल एक ही कमाऊ सदस्य है?
2. क्या आस-पास पीने लायक साफ पानी भी नहीं है और परिवार को लम्बी दूरी से पीने का पानी लाना पड़ता है?
3. क्या शौचालयों के अभाव के कारण परिवार की महिलाओं को बड़ी असुविधा हो रही है और उन्हें बहुत दूर जाना पड़ता है?
4. क्या परिवार में वयस्क अशिक्षित सदस्य है?
5. क्या परिवार में कोई लम्बी बीमारी से पीड़ित सदस्य है?
6. क्या परिवार में ऐसे बच्चे हैं जो स्कूल नहीं जाते हैं?
7. क्या परिवार में कोई ऐसा सदस्य है जो शराब पीने या नशे का आदी है?
8. क्या परिवार कच्चे घर में रहता है?
9. क्या परिवार के लोग बार-बार साहूकार से कर्ज लेते हैं?
10. क्या आमतौर पर उन्हें रोज दो वक्त का खाना भी नहीं मिल पाता है?
11. क्या परिवार के सदस्य अनुसूचित जाति या जनजाति के हैं?
6.5.9 स्वयं सहायता समूह बनाने के लिये बैठकों का आयोजन कैसे किया जाता है?
स्वयं सहायता समूह संगठित करने से पहले गाँव के मुखिया और अनुभवी बुजुर्गों की एक सभा बुलाएँ, इस सभा में स्वयं सहायता समूहों के बारे में उन्हें समझाएँ और उनका समर्थन प्राप्त करें, गाँव वालों का यह समर्थन महत्त्वपूर्ण है।
- इसे कहते हैं सामुदायिक सहभागिता
- इससे आपके कार्य को गाँव वालों की सहमति मिलेगी और गाँव वाले उसे अपनाएँगे, आपका विरोध नहीं करेंगे।
यही समय है उन्हें यह बताने का समूह की बैठकें उन्हें कुछ देने के लिये नहीं बल्कि गरीब परिवारों को एक साथ मिलकर एक दूसरे की सहायता करने के लिये आयोजित की जाती हैं। बेहतर होगा कि यदि आप इसी बैठक में उन सबको स्वयं सहायता समूहों की मूल संकल्पना के बारे में अवगत करा दें।
6.5.10 स्वयं सहायता समूह कैसे बनते हैं?
गाँव के मुखिया तथा अनुभवी बुजुर्गों से भेंट-वार्ता होने के बाद जब आप स्वयं सहायता समूह के सदस्यों की बैठक बुलाने के लिये तैयार हैं, कौन से परिवार समान से हैं और एकजुट हो सकते हैं, आप पहले ही जान चुके हैं। ऐसे प्रत्येक परिवार से एक-एक सदस्य को बैठक में बुलाएँ। अच्छा होगा यदि इन परिवारों से सिर्फ महिला सदस्यों को ही बुलाएँ। सबकी सुविधानुसार किसी एक दिन यह प्रारम्भिक बैठक बुलायी जा सकती है।
इस बैठक के दौरान आपसे बहुत सारे प्रश्न पूछे जाएँगे। आपको उत्तरों से उनकी सारी शंकाओं का समाधान होगा और धीरे-धीरे स्वयं सहायता समूह की संकल्पना से परिचित होंगे।
आप सदस्यों को पर्याप्त समय जरूर दें ताकि वह स्वयं सहायता समूह बनाने की प्रक्रिया से सम्बन्धित सारे पहलुओं को अच्छी तरह से समझ जाएँ। जल्दबाजी कतई न करें।
- स्वयं सहायता समूहों को गठित करने की इस प्रक्रिया को आम तौर पर 5 से 6 महीने का समय लगता है
- इस बीच उन्हें नियमित रूप से मिटिंग में मिल बैठकर अपनी शंकाएँ दूर करते रहना होगा
- एक बार स्वयं सहायता समूह तैयार होने के बाद उसे सुचारु रूप से चलने में 12 से 18 महीने का समय लग सकता है।
6.5.11 स्वयं सहायता समूह की सदस्यता
शुरू-शुरू में स्वयं सहायता समूह की मीटिंगों में ऐसा भी हो सकता है-
- कुछ सदस्य समूह छोड़ जाते हैं।
- कुछ नये सदस्य आते हैं।
- धीरे-धीरे सदस्य खुद ही यह तय करने लगते हैं कि मीटिंग में किन बातों पर चर्चा की जाए
- वे मीटिंग करना सीख जाते हैं।
- रजिस्टरों का रख-रखाव एवं दस्तावेजों का महत्त्व भी अब उनकी समझ में आने लगता है।
- वे एक साथ मिलकर एक-दूसरे की सहायता करना चाहते हैं।
- आमतौर पर एक उभरता हुआ स्वयं सहायता समूह इन अवस्थाओं में से गुजरता है जिसे देखकर आपको भी विश्वास होने लगता है कि आप सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं
समूह के किसी एक सदस्य को नेतृत्व की बागडोर संभालनी होगी।
इस व्यक्ति का चयन कैसे किया जाए?
सही-सही तरीका यह है कि आप नीचे दिये कुछ सवालों पर समूह में चर्चा करें।
प्रश्न- समूह के सम्बन्ध में सारे निर्णय किसे करने चाहिए?
उत्तर- समूह के सभी सदस्य एक साथ मिलकर सारे निर्णय करेंगे, कोई एक या दो सदस्य नहीं।
प्रश्न- स्वयं सहायता समूह में किसे लाभ मिलता है?
उत्तर- सभी सदस्यों को लाभ मिलता है।
प्रश्न- समूह का काम किसे करना चाहिए?
उत्तर- काम सभी सदस्यों में बांट लेना चाहिए।
प्रश्न- काम/जिम्मेदारी कैसे बाँटेंगे?
उत्तर- सभी सदस्यों की सहमति से किसी एक सदस्य को नेतृत्व की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। कुछ महीने बाद यह जिम्मेदारी किसी दूसरे सदस्य को दी जाएगी। यह सभी निर्णय सर्वसम्मति से होंगे।
ऐसी चर्चा से समूह की जिम्मेदारियाँ एक-एक कर सभी को देने का महत्त्व समझ जाएँगे। नीचे दी गई कुछ महत्त्वपूर्ण गतिविधियों की जिम्मेदारी भी अब सर्वसम्मति से किन्हीं दो सदस्यों को आसानी से सौंपी जा सकती हैं।
लेखा-जोखा, किताबों का रख-रखाव
नियमित बैठकों का आयोजन और मीटिंग का रिकॉर्ड
6.6.12 समूह की नियमावली
समूह को अपने परिचालन के लिये एक नियमावली बनाना आवश्यक है। समूह के गठन के तुरंत पश्चात नियमावली बना लेनी चाहिए। निम्नलिखित बिंदु केवल उदाहरणार्थ हैं तथा इस बारे में अंतिम निर्णय समूह द्वारा ही लिया जाना है।
(क) समूह की संरचना
- समूह का नाम
- समूह के सदस्यों की संख्या। सदस्यता शुल्क।
- समूह के कौन-कौन सदस्य समूह सकते है?
- 18 वर्ष से कम आयु का सदस्य नहीं होना चाहिए।
- डिफॉल्टर को बैंक ऋण में से ऋण नहीं देना चाहिए।
- सदस्यता प्राप्त करने तथा सदस्य समाप्त करने के नियम।
(ख) बैठक
- समूह की नियमित बैठकें-साप्ताहिक/पाक्षिक/मासिक
- आकस्मिक बैठक किन स्थितियों में बुलाई जाए?
- बैठक का कोरम
- बैठक का दिन, समय व स्थान
- समूह की बैठकों में सभी सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य होनी चाहिए
- बैठक में अनुपस्थित सदस्यों को दण्ड राशि
(ग) बचत
- बचत की राशि व उसकी समयबद्धता
- समूह की नकद बचत राशि का संदूक किसके पास रहेगा व संदूक की चाबी किसके पास रहेगी?
- बचत समय पर जमा न करने पर दंड की राशि
(घ) ऋण का लेन-देन
- ऋण राशि कितनी व किस उद्देश्य के लिये दी जाए? सदस्य को उसकी आवश्यकता की प्राथमिकता के अनुसार तथा ऋण वापसी की क्षमता के आधार पर ऋण वापसी दे
- वापसी का समय व वापसी किश्तों की संख्या तथा राशि
- किश्त न आने पर जुर्माना
(ङ) पदाधिकारी व बैंक में खाता
- प्रबन्धकीय समिति (अध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष) का चयन आम सहमति द्वारा तथा उनका कार्यकाल
- पदाधिकारी डिफॉल्ट नहीं होना चाहिए
- पदाधिकारी बदलाव की प्रक्रिया
- बैंक के खाते के संचालन के लिये दो पदाधिकारियों (अध्यक्ष/सचिव/कोषाध्यक्ष) को अधिकार देना
- बैंक खाता समूह के नाम से खुलना चाहिए न कि सदस्यों के व्यक्तिगत नाम से
- बचत खाते के संचालन में स्वैच्छिक संगठन के प्रतिनिधि का नाम सम्मिलित नहीं होना चाहिए
(च) समूह पदाधिकारियों के दायित्व
- समूह को आगे बढ़ाने के लिये सभी सदस्यों की बराबर जिम्मेदारी होती है, लेकिन फिर भी सर्वसम्मति से चुने गये पदाधिकारियों को निम्नलिखित बिंदुओं के प्रति गंभीर रहना चाहिए। इन बिंदुओं पर अंतिम निर्णय समूह द्वारा ही लिया जाना चाहिए।
अध्यक्ष के कर्तव्य
- बैठकों की अध्यक्षता करना
- समूह को प्रभावी निर्णय लेने में मदद करना
- सदस्यों को कर्ज देने में पारदर्शिता का माहौल बनाना
सचिव के कर्तव्य
- बैठक आयोजित करना
- बैठक की कार्यवाही लिखना
- बैंक से सम्बन्धित कार्य व बचत एवं ऋण सम्बन्धित रिकॉर्ड रखने में कोषाध्यक्ष की मदद करना
कोषाध्यक्ष के कर्तव्य
- पैसे की सुरक्षा करना
- बचत, ऋण सम्बन्धित लेन-देन का हिसाब-किताब देखना
- सदस्यों की पासबुक में प्राप्ति राशि की रसीद लिखना
(छ) रिकॉर्ड लिखना व देखरेख
- रजिस्टर का रख-रखाव व उसके लिखने की प्रक्रिया
(ज) विविध
- समूह नशाबंदी, दहेज-प्रथा और अन्य बुराइयों के
- इसी प्रकार अन्य बातें भी समूह द्वारा निर्धारित की जा सकती है-
गरीबों की आशा की किरण - स्वयं सहायता समूह
गरीबों के जीवन स्तर में सुधार का मार्ग स्वयं - स्वयं सहायता समूह
गरीबों में नेतृत्व विकास का मार्ग - स्वयं सहायता समूह
गरीबों में ऋण प्रबंधन का मार्ग - स्वयं सहायता समूह
6.5.13 समूह के मुख्य कार्यकलाप
1. बचत प्रबंधन (सामूहिक निधि)
बचत का महत्त्व
- बचत विकास का पहला कदम है। जैसे बूँद-बूँद पानी से घड़ा भरता है वैसे ही छोटी-छोटी बचत बड़ी राशि हो जाती है जिससे कि वह समूह के सदस्यों की आकस्मिक आवश्यकताओं के लिये ऋण दिया जाता है।
- समूह को स्थायित्व के लिये बचत आवश्यक है।
- छोटी-छोटी बचत करने से सदस्यों का आत्मबल बढ़ता है एवं साथ ही उनके परिवार की आवश्यकताएँ भी पूरी हो जाती है।
- न्यूनतम बचत का निर्धारण समूह में सबसे गरीब सदस्य की किफायत क्षमता को आधार मानकर किया जाए।
- सभी सदस्यों की बचत समान हो तथा बचत सभी के सामने मीटिंग में एकत्र की जाए।
- आकस्मिक जरूरत छोटे-मोटे खर्च हेतु कुछ राशि गुल्लक या संदूक में रखी जा सकती है।
- सदस्य समूह से ऋण लेकर अपनी आर्थिक उन्नति हेतु कोई लघु/ग्रामीण उद्योग चला सकते हैं।
- खेती के लिये खाद, बीज, कीटनाशक दवा का प्रबंध समूह से ऋण लेकर कर सकते हैं।
- साहूकार पर निर्भरता समाप्त। आत्मनिर्भर व स्वावलम्बन।
- अपनी और परिवार की खुशहाली के लिये।
2. ऋण प्रबंधन (आंतरिक ऋण का लेन-देन)
- समूह के सुदृढ़ीकरण व परिपक्वता के लिये ऋण का लेन-देन अति आवश्यक है। वास्तव में आंतरिक ऋण समूह संचालन की रीढ़ की हड्डी है। समूह के 2-3 महीने की बचत के पश्चात समूह द्वारा जरूरतमंद सदस्यों को ऋण देना आरम्भ कर देना चाहिए। सदस्य की ऋण वापसी की क्षमता देखते हुए ऋण देने का निर्णय बैठक में सर्वसम्मति से लिया जाना चाहिए। ऋण वापसी की किश्तें तथा ब्याज सदस्य को बता देना चाहिए। ऋण के मूलधन व ब्याज की वापसी मासिक तौर पर बैठक में ही करनी चाहिए।
3. ब्याज दर व प्राथमिकता निर्धारण
- आंतरिक ऋण पर ब्याज दर निर्धारण समूह की बैठक में किया जाए तथा रिकॉर्ड किया जाए। आम सहमति प्रायः ऋण पर मासिक ब्याज 2 या 3 रूपये प्रति सैकड़ा रखा जाता है। ध्यान रहे कि गाँवों में लोग मासिक ब्याज आसानी से समझते हैं, वार्षिक ब्याज नहीं। निर्णय समूह करेगा क्योंकि ब्याज आय समूह को प्राप्त होती है जिसका समान लाभ ऋण लेने अथवा न लेने वाले सदस्यों को बराबर होता है।
- ऋण माँगे समूह के सामने की जाएँ, चर्चा हो तथा आम चर्चा के बाद प्राथमिकता तय हो। ऋण किसी भी प्रयोजन के लिये जैसे कि उपभोग, आकस्मिक जरुरत, पुराना ऋण अदा करने, आयजनक गतिविधि, मार्जिन मनी की जरूरत, कार्यशील पूँजी की जरूरत
- समूह में पदाधिकारी को ऋण लेने में सामान्य सदस्य के ऊपर प्राथमिकता न हो।
- प्रति सदस्य अधिकतम ऋण राशि तय की जा सकती है।
- प्रारम्भ में कम राशि/कम अवधि का ऋण दिया जाए।
- ऋण स्वीकृत करते समय सदस्य की पूर्व आदत/पूर्व में लिये गये ऋण के विषय में जानकारी।
- डिफॉल्टर सदस्य को समूह अपने निजी फंड से ऋण दे सकता है, बैंक ऋण से नहीं।
6.5.14 बैठक कैसे करें?
- समूह के सफल संचालन के लिये नियमित बैठक निश्चित तिथि/दिन के अनुसार करें।
- बैठक का प्रारम्भ सामूहिक प्रार्थना से करें।
- पिछली बैठक की कार्यवाही पढ़ कर सुनाएँ।
- बैठक में सभी सदस्य बचत राशि को जमा करें।
- जिन सदस्यों ने उधार लिया है उनसे ऋण किश्त की वसूली (ब्याज सहित) करें।
- जिन सदस्यों को ऋण की आवश्यकता है, उन्हें सबकी सहमति से ऋण प्रदान करें।
- बैठक की कार्यवाही मीटिंगों में लिखें तथा पढ़कर सुनाएँ।
- सदस्य अपनी आकस्मिक आवश्यकताओं आय बढ़ाने के कार्यक्रमों, साक्षरता, स्वास्थ्य, स्वच्छता, कृषि सम्बन्धी व आपसी समस्याओं पर विचार करें जिससे समूह सुदृढ़, सशक्त और दीर्घायु होगा।
- ग्राम पंचायत में आई नई विकास योजनाओं तथा गाँव की समस्याओं पर विचार-विमर्श करें।
- बैठक में सभी सदस्यों को बोलने का समान अवसर व स्वतंत्रता होनी चाहिए तथा एक या दो व्यक्तियों द्वारा लिये गये निर्णय को अन्य सदस्यों पर नहीं थोपना चाहिए।
- छोटे-मोटे वाक्य युद्ध, झगड़े, विचार टकराव यदि होता है समूह विकास में सहायक हैं, खुली चर्चा, विचार के बाद आपस में बैठकर निपटारा करना चाहिए। यदि आवश्यक हो तो एन.जी.ओ. समूह प्रोत्साहक संस्था का मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सकता है।
6.5.15 उत्प्रेरक/ NGO का रोल
- बैठक की कार्यवाही में हस्तक्षेप न करें।
- न तो बचत धनराशि और न ही ऋण धनराशि को हाथ लगाएँ।
- प्रेरक का काम प्रक्रिया देखना, तथा सलाह मार्गदर्शन करना है।
6.5.16 समूह को प्रोत्साहक संस्था, NGO और बैंक से सम्पर्क
- समूह का प्रोत्साहक संस्था, गैर सरकारी संगठन व बैंकों से निरंतर सम्पर्क आवश्यक
- गैर सरकारी संगठन द्वारा समूह पदाधिकारियों को समूह संचालन का प्रशिक्षण
- बैंक में बचत खाता खोलना
- समूह के कार्य परिपक्वता बिंदु व समस्याओं पर गैर सरकारी संगठन व प्रोत्साहक संस्था द्वारा मासिक चर्चा हो
- कार्यशील पूँजी तथा मार्जिन मनी की आवश्यकताओं की प्रतिपूर्ति हेतु परिपक्व समूह का बैंक क्रेडिट लिंकेज उचित माध्यम है।
6.5.17 समूहों के आयजनक गतिविधियों के अवसर
- गतिविधि कृषि एवं गैर कृषि क्षेत्र, सेवा क्षेत्र, छोटा व्यवसाय कुछ भी स्थानीय मांग एवं संभावना पर आधारित हो
- मूल उद्देश्य ऋण/अनुदान की उपलब्धता के साथ आय संसाधन बढ़ाने के अवसर प्रदान कर जीवन स्तर में सुधार
- समूह के रूचि वाले क्षेत्र में प्रशिक्षण/क्षमता विकास का प्रावधान
- गतिविधि एक हो या अनेक, उसका चयन खूब चर्चा के उपरांत समूह को करना है तथा प्रस्ताव सभी के सामने पारित हो।
- परिसम्पत्ति/सामान क्रय में गुणवत्ता सर्वोपरि तथा क्रय में पारदर्शिता
- जोखिम हेतु बीमा, स्टॉक, आय व्यय रजिस्टर तथा हिसाब किताब का रख-रखाव
- कलस्टर विकास को प्रोत्साहन
- उत्पादन गुणवत्ता पैकिंग, वैल्यू एडिशन मार्केटिंग स्तर हेतु समय-समय पर उद्यमिता विकास कार्यक्रमों को प्रोत्साहन
6.5.18 समूह का रजिस्टर व खातों का रख-रखाव
समूह का लेन-देन व्यवहार आईने की तरफ साफ-साफ हो। रिकॉर्ड सही लिखने से सभी सदस्यों का विश्वास बना रहता है कि उसका पैसा सुरक्षित है तथा बैंक ऋण प्राप्ति में भी सुविधा रहती है।
भारतीय रिजर्व बैंक/नाबार्ड ने समूहों के लिये कोई विशेष लिखा पुस्तकें अथवा रिकॉर्ड निर्धारित नहीं किये हैं। सामान्यतः समूह निम्नलिखित साधारण रिकॉर्ड रखते हैं-
(i) सदस्यता व कार्यवाही रजिस्टर
(ii) सदस्यों की पासबुक
(iii) लेखा रजिस्टर (बचत, ऋण, बैंक से ऋण प्राप्ति का विवरण, वार्षिक आय, व्यय का खाता)
(iv) कैश बुक (प्राप्ति और भुगतान)
उप परियोजना संचालन में अन्य रजिस्टर
(क) प्रस्ताव रजिस्टर
(ख) लाभार्थी अंशदान
(ग) कैश बुक
(घ) स्टॉक रजिस्टर
समान रूचि समूहों के रिकॉर्ड रख-रखाव ऑडिट/वित्तीय/कार्यशैली में एकरूपता की जरूरत
- न्यूनतम रजिस्टर, फ़ॉर्मेट तथा वित्तीय अनुशासन हेतु कार्यशैली में एकरूपता की जरूरत
- हर बैठक में समूह के सदस्यों को समूह की सामूहिक बचत निधि, ऋण, ब्याज प्राप्ति, बैंक में जमा राशि इत्यादि की जानकारी अध्यक्ष/कोषाध्यक्ष द्वारा देना
- आन्ध्र प्रदेश राज्य के तर्ज पर Standard Accounting Procedure का अध्ययन किया जा सकता है।
- समान रूचि समूह में वर्ष का आय/व्यय व आॅडिट की आवश्यकता
- समान रूचि समूह के परिपक्व होने पर उनकी वित्तीय आवश्यकताओं (मार्जिन मनी, कार्यशील पूँजी इत्यादि) के लिये आवश्यक विवरण तैयार करना
- यदि समूह का एक भी सदस्य लेखा-बहियों के रख-रखाव में समर्थ नहीं है तो इस कार्य के लिये किसी अन्य की सहायता ली जा सकती है। गाँव के थोड़े-बहुत पढ़े-लिखे बड़े बच्चे भी यह काम उत्साह से करते देखे गये हैं। इसके लिये समूह द्वारा थोड़ा-बहुत पारितोषिक भी दिया जा सकता है।
- उत्प्रेरक भी सहायता कर सकते हैं। कई जगह NGO के मुंशी या प्रोत्साहक संस्था द्वारा प्रशिक्षित व्यक्ति भी हिसाब-किताब में मदद करते हैं।
- सभी रजिस्टरों और बही खातों को समूह की बैठक के दौरान ही लिखा जाना चाहिए। इससे यदि किसी सदस्य को लिखना-पढ़ना न भी आता हो तो उसे विश्वास हो जाता है कि समूह का हिसाब-किताब ठीक-ठाक तरह से रखा गया है, और उसका अपना जैसा भी सुरक्षित है।
6.5.19 समूह के रिकॉर्ड के रख-रखाव के लिये प्रशिक्षण के बिच्छू
समूह के रजिस्टर व खातों के सही रख-रखाव के लिये सदस्यों का प्रशिक्षण अत्यावश्यक है। निम्नांकित बिंदुओं पर सदस्यों को शिक्षा और मार्गदर्शन की आवश्यकता होगी-
1. प्राथमिक अंकगणित व ब्याज की गणना करना
2. बचत राशि को समूह के व सदस्य की पासबुक में लिखना
3. डीपीआईपी से प्राप्त राशि व अपने अंशदान को लिखना
4. बैठकों की कार्यवाही लिखना
5. बैंक में पैसा जमा करवाना व निकालना
6. आंतरिक ऋण, कर्ज की वापसी, बैंक से उधार लेना और हुई उधार रकम की चुकौती आदि
7. स्टॉक रजिस्टर व कैश बुक लिखना
8. उप-परियोजना में व्यय और आय का लेखा-जोखा
9. वार्षिक लाभ का लेखा-जोखा
समूह के सदस्यों के प्रशिक्षण का सबसे आसान और प्रभावी तरीका है कि उन्हें किसी अच्छे और सुचारु रूप से चलाए जा रहे समूह के पास ले चलें और इस समूह के सदस्यों के साथ उनका वार्तालाप होने दें। समय-समय पर गैर सरकारी संगठन के कार्यकर्ता व प्रोत्साहक संस्था द्वारा उनका मार्गदर्शन करने की आवश्यकता है।
6.5.20 स्वयं सहायता समूह का बैंक में खाता कैसे खोलें?
स्वयं सहायता समूह के गठन के बाद और एक-दो बैठकों के आयोजन के उपरान्त समूह के नाम पर (किसी सदस्य के नाम पर नहीं) बैंक में एक बचत खाता खोला जा सकता है।
भारतीय रिजर्व बैंक के निर्देशानुसार बैंक स्वयं सहायता समूह का बचत खाता खोल सकते हैं (परिपत्र संख्या डीवीबीओडी.सं.बीसी 63/13:01:08/92-93 दिनांक 4 फरवरी व 1993
(क) बचत खाता कब और कहाँ खुलवाए?
समूह के गठन के बाद जब समूह की बचत शुरू हो जाती है तो अपने नजदीक के वाणिज्यिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अथवा केन्द्रीय सहकारी बैंक में समूह का बचत खाता खुलवा लें। भारतीय रिजर्व बैंक के निर्देशों के अनुसार स्वयं सहायता समूहों के लिये सेवा क्षेत्र अवधारणा लागू नहीं है।
समूह का बचत खाता बैंक शाखा में खुलने से बैंक से सम्पर्क बनेगा तथा समूह गठन के छः महीने पश्चात बैंक ऋण की प्राप्ति में भी सुविधा रहेगी।
(ख) बचत खाता कैसे खुलवाएँ?
बैंक में खाता खुलवाने के लिये निम्नलिखित कागजात के साथ में ले जाना जरूरी है-
- समूह की नियमावली
समूह का प्रस्ताव जिसमें प्रबन्धकीय समिति के सदस्यों को बचत खाता खोलने व खाता संचालन का अधिकार हो (प्रस्ताव का एक नमूना नीचे दिया गया है जिसे बैंक से विचार करके घटाया या बढ़ाया जा सकता है)
- समूह द्वारा खाता खोलने के प्राधिकृत सदस्यों के पदाधिकारियों नामांकित सदस्यों का फोटो
- जिस बैंक खाते में समूह का खाता खुलवाना है, उस शाखा में जिस व्यक्ति का बचत खाता हो, उससे समूह के पदाधिकारियों का परिचय खाता खोलने के फॉर्म पर करवा लें
- बैंक में बचत खाता गैर सरकारी संगठन के पदाधिकारी अथवा गाँव के सरपंच आदि से भी परिचय करवाकर खुलवाया जा सकता है
- समूह की मोहर (यदि हो तो बैंक के साथ खाता संचालन में सुविधा रहती है)
6.5.21 बैठक में बैंक बचत खाता खुलवाने के लिये प्रस्ताव पारित करने का नमूना
समूह का नाम व पता :
समूह के सदस्यों की संख्या :
बैठक दिनांक :
1. हम निम्नलिखित सदस्य उपर्युक्त स्वयं सहायता समूह चल रहे हैं जिसका गठन.................(तिथि) को किया गया है।
2. हम स्वयं सहायता समूह के सदस्य सर्वसम्मति से निम्न प्रतिनिधियों को विशेष रूप से प्राधिकृत करते हैं-
क.