सपने में टिहरी
बरगी बांध
‘‘गंगा माता किसी किशोरी बालिका की भान्ति दौड़ती हुई कल-कल, छल-छल का निनाद करती थी किन्तु अब ऐसे लगता है मानों उसका गला दबा दिया गया हो और उसके दम घुटने की आवाज आ रही है। जिस प्रकार गंगा मैया का दम घोंटा है उसी प्रकार इन दुष्टों के दम भी घुट जाएँ।’’
टिहरी बाँध निर्माण का विरोध करने वाले जुलूस-प्रदर्शन व सभायें आयोजित कर रहे हैं तो कवि जीवानन्द श्रीयाल टिप्पणी कर रहे हैं- विरोध करके अब क्या हो सकता है? अब तो गंगा जी ‘दुली घुसी गे’ अर्थात सुरंग में प्रवाहित कर दी गयी हैं। मुझे एक बार फिर झील के दोनों तरफ के गाँव और उनके सीढ़ीनुमा खेत दिखाई पड़ रहे हैं जो मुक्त हवा में साँस ले रहे हैं। कौशल दरबार और घंटाघर का कुछ हिस्सा भी मुझे दिखाई दे रहा है। पुराना दरबार के टीले पर एक विशालकाय सांड भी प्रकट हो गया है। यह सांड टिहरी डूबने के समय सचमुच में वहाँ पर प्रकट हुआ था और किसी को भी अपने निकट नहीं आने दे रहा था। तब प्रशासन द्वारा उसे ट्रिंकुलाइजर गन से बेहोश करके नाव पर रखकर झील से बाहर लाया गया था। वह सांड टिहरी छोड़ने वाला अंतिम प्राणी था।
सचमुच वह भोले शंकर का गण भैरव है जो अपने नियत स्थान पर वास करता है। लोगों की इस प्रकार की चर्चा में कुछ अंश वास्तविकता का हो सकता है। महाराजा सुदर्शन शाह को भैरव बाबा ने ही सपने में आकर भागीरथी भिलंगना के संगम पर टिहरी नगर की स्थापना करने का आदेश दिया था। लोग कहते हैं कि वही भैरव बाबा सांड के रूप में प्रकट हुए हैं। बसंत पंचमी का त्यौहार धूम-धाम से मनाया जा रहा है। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई प्रत्येक टिहरीवासी अपना एक वस्त्र पीले रंग में रंगते हुए दिखाई दे रहा है। इस दिन भी टिहरी में मेला लगा हुआ है। रानीबाग और मोतीबाग में आम के पेड़ उग आये हैं और लोगों को सुस्वादु फल दे रहे हैं। खच्चर चालक अपने खच्चरों पर बाजार से विभिन्न गाँवों को खाद्य सामग्री लादकर ले जा रहे हैं। श्रीचंद की चौंरी मोटर अड्डा प्रकट हो गया है जिसमें गंगोतरी, यमुनोतरी, उत्तरकाशी, बूढ़ाकेदार को बसें आवागमन कर रही हैं।
स्कूल और कॉलेज के छात्र-छात्रायें अपने-अपने कॉलेजों को जाने लगे हैं। पूरे बाजार की रौनक लौट आयी है। मंदिरों की घंटियाँ, मुल्ला जी की इबादतें और गुरुद्वारे की गुरुवाणी के स्वर सुनाई देने लगे हैं। राजमाता के नरेन्द्र महिला विद्यालय का भवन दिखाई देने लगा है। भवन की छत से बाहर आया हुआ एक पेड़ देखकर हम बच्चे चर्चा किया करते थे कि राजमाता जी ने अपने कमरों के अंदर पेड़ उगा रखे हैं क्योंकि वह पेड़ों को गर्मी-सर्दी और वर्षा से बचाना चाहती थीं। आज वह पेड़ पुनः छत से बाहर निकला मस्ती से झूम रहा है। टिहरी बाँध निर्माण की खबर सुनकर टिहरीवासी प्रसन्न हुए थे उन्हें लगा था कि कोई जादू की छड़ी घूमकर हमारा कायाकल्प करके हमें विकास के शिखर पर पहुँचा देगी किन्तु अब भाई-भाई बिछुड़ गये हैं और अपनी जन्मभूमि से उखड़ गये हैं।
ससुराल गयी हुई बेटियाँ और अन्यत्र विस्थापित किये गये ग्रामवासी, नगरवासी अपने खेत-खलिहान, धारा और (पन्यारा) बाग-बगीचों की एक झलक देखने के लिये तरस गये हैं। मैं देखती हूँ कि रामलीला के मंच पर रामू भाई (विश्वेश्वरानन्द सकलानी) ने एक प्रहसन के द्वारा आज की वास्तविक स्थिति का चित्र खींच दिया है, किन्तु लोग उनका ही उपहास कर रहे हैं तभी झील से ऊपर आकर टिहरी कहती है- तुमने मेरे लिये क्या किया? अब जब मैं डूब गई हूँ तब मेरी दुर्दशा देखकर मनोरंजन कर रहे हो। इसके बाद एक भयानक आवाज के साथ अथाह जलराशि में एक कम्पन होता है और टिहरी पुनः झील में समा जाती है। इस दृश्य के साथ मेरी आँखें खुलती है और मुझे मेरे सपने के टूटने का अहसास होता है। यह स्वप्न मैं नींद में देख रही थी यह एक जाग्रत-स्वप्न था पता नहीं पर डूबी हुई टिहरी को एक बार पुनः देखकर मन प्रसन्न हो रहा था।
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