Flood in Lalitpur District in 2025
2025 में कुछ इस तरह ललितपुर जिले में बाढ़ ने तबाही मचाई फोटो - पीआईबी

2025 की 10 सबसे ज़्यादा नुकसान पहुँचाने वाली जलवायु आपदाएँ, भारत ने क्या कीमत चुकाई?

रिकॉर्ड बारिश, बाढ़ और भूस्खलन - 2025 की जलवायु आपदाओं ने भारत को गहरे संकट में डाल दिया। प्रस्तुत है उंटिंग द कॉस्ट 2025 रिपोर्ट के प्रमुख अंश जो बताते हैं कि इस साल प्राकृतिक आपदाओं ने किस देश में कितना नुकसान पहुँचाया।
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साल 2025 को जलवायु इतिहास में एक और टर्निंग पॉइंट के रूप में देखा जाएगा। यह वह साल रहा जब दुनिया भर में मौसम घटनाएँ अपने चरम पर रहीं। जंगलों की आग, रिकॉर्डतोड़ बाढ़, विनाशकारी चक्रवात, सूखा और हीटवेव, जैसी आपदाओं ने न केवल हज़ारों जानें लीं, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी अरबों डॉलर का नुकसान पहुँचाया। इन नुकसान से भारत भी अछूता नहीं रहा। भारत में विनाशकारी आपदाओं का प्रभाव न केवल इंफ्रास्‍ट्रक्चर पर पड़ा बल्कि देश का कृषि उत्पादन भी प्रभावित हुआ। 

इसी पृष्ठभूमि में वैश्‍व‍िक संगठन क्रिश्चियन एड ने अपनी एक रिपोर्ट “Counting the Cost 2025: A Year of Climate Breakdown” जारी की है। इस रिपोर्ट में 2025 की दस सबसे महंगी और प्रभावशाली जलवायु आपदाओं का विश्लेषण किया गया है। यह रिपोर्ट केवल आर्थिक नुकसान की गणना नहीं करती, बल्कि यह भी दिखाती है कि जलवायु परिवर्तन से पैदा हो रही इन आपदाओं का बोझ किस तरह आम लोगों, खासकर विकासशील देशों पर पड़ रहा है।

दुनिया की सबसे महंगी जलवायु आपदाएँ 

रिपोर्ट के अनुसार, 2025 में सबसे महंगी जलवायु आपदा अमेरिका के लॉस एंजिलिस क्षेत्र में लगी जंगलों की आग रही, जिससे 60 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ। इसके बाद दक्षिण और दक्षिण–पूर्व एशिया में आए चक्रवातों और बाढ़ ने लगभग 25 अरब डॉलर की क्षति पहुँचाई।

चीन में जून से अगस्त के बीच आई बाढ़, कैरेबियन क्षेत्र में श्रेणी-5 के बराबर का तूफान, फिलीपींस में लगातार आए टाइफून, ब्राज़ील का भीषण सूखा, ये सभी घटनाएँ इस बात का संकेत हैं कि जलवायु संकट अब किसी एक देश या क्षेत्र तक सीमित नहीं है।

इस वैश्विक सूची में भारत और पाकिस्तान का मानसूनी संकट भी शामिल किया गया है, क्योंकि यहाँ नुकसान सिर्फ पैसों में नहीं, बल्कि जीवन, आजीविका और सामाजिक ढाँचे में मापा जाता है।

2025 की 10 सबसे विनाशकाली जलवायु आपदाएं:

नोट- टेबल में दी गई कीमत अमेरिकी डॉलर में है।

भारत–पाकिस्तान मानसून 2025: असामान्य बारिश, असाधारण तबाही

रिपोर्ट बताती है कि 2025 में भारत और पाकिस्तान ने असाधारण रूप से भारी मानसून का सामना किया। भारत में मानसून की शुरुआत ही असामान्य रही। मई का महीना अब तक का सबसे अधिक वर्षा वाला मई दर्ज हुआ। सितंबर तक देश में औसत से 8% अधिक वर्षा हो हुई और पूरे मानसून काल में 2,277 से अधिक बाढ़ और भारी बारिश की घटनाएँ दर्ज की गईं।

मानवीय त्रासदी

इस मानसूनी तबाही में भारत और पाकिस्तान मिलाकर 1,860 से अधिक लोगों की मौत हुई। खासकर हिमालयी और पहाड़ी राज्यों में बादल फटना, अचानक बाढ़ (फ्लैश फ्लड) और भूस्खलन से भारी नुकसान हुआ। इन घटनाओं ने हालात को और भयावह बना दिया। नदियाँ उफान पर आ गईं, हज़ारों गाँव और कस्बे जलमग्न हो गए और लाखों लोग अस्थायी राहत शिविरों में शरण लेने को मजबूर हुए।

आर्थिक नुकसान

रिपोर्ट के अनुसार, भारत–पाकिस्तान में मानसून से जुड़ा कुल आर्थिक नुकसान लगभग 5.6 अरब अमेरिकी डॉलर आँका गया। इसमें:

  • कृषि फसलों को भारी क्षति

  • सड़क, पुल और अन्य बुनियादी ढाँचों का नुकसान

  • शहरी क्षेत्रों में जलभराव से व्यापारिक गतिविधियों का ठप होना

शामिल है। यह आंकड़ा वास्तविक नुकसान से कम भी हो सकता है, क्योंकि भारत जैसे देशों में बीमा कवरेज सीमित है और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के नुकसान अक्सर दर्ज नहीं हो पाते।

Flood in Supaul Bihar
बिहार के सुपौल जिले में आयी बाढ़ से नष्‍ट हुई फसलों की तस्वीर फोटो - नीतू सिंह

कृषि पर सबसे गहरा असर

भारत के संदर्भ में इस मानसून का सबसे गंभीर प्रभाव कृषि क्षेत्र पर पड़ा। कृषि भारत की GDP का लगभग 18% योगदान देती है। यह करोड़ों किसानों और मज़दूरों की आजीविका का आधार है। 

अत्यधिक और असमय वर्षा के कारण कई इलाकों में:

  • फसलें जलमग्न हो गईं

  • बुआई और कटाई चक्र प्रभावित हुआ

  • उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई

इसका सीधा असर ग्रामीण आय, खाद्य सुरक्षा और महँगाई पर पड़ता है—जो अंततः शहरी उपभोक्ताओं तक भी पहुँचता है।

जलवायु परिवर्तन की भूमिका क्या है?

रिपोर्ट साफ तौर पर कहती है कि यह केवल “खराब मानसून” नहीं था। वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार:

  • गर्म होते महासागर अधिक वाष्पीकरण करते हैं

  • गर्म वातावरण अधिक नमी धारण कर सकता है

  • नतीजतन, कम समय में अत्यधिक वर्षा होती है

एक अहम निष्कर्ष यह है कि हर 1°C वैश्विक तापवृद्धि पर मानसूनी वर्षा लगभग 5% तक बढ़ सकती है। यानी अगर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर लगाम नहीं लगी, तो भविष्य में ऐसे मानसून और अधिक विनाशकारी हो सकते हैं।

Flood in Supaul
बिहार के सुपौल जिले में आयी बाढ़ का नज़ारा फोटो - नीतू सिंह

भारत बनाम विकसित देश: नुकसान की असमानता

दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका जैसे देशों में आपदाओं का आर्थिक नुकसान बहुत बड़ा दिखता है, क्योंकि वहाँ:

  • बीमा कवरेज अधिक है

  • हर नुकसान को आर्थिक मूल्य में मापा जाता है

वहीं भारत में:

  • जान-माल का नुकसान अधिक होता है

  • वास्तविक आर्थिक क्षति का बड़ा हिस्सा आँकड़ों में दर्ज नहीं हो पाता है 

  • भारत में की आपदाएं लोगों की आज‍ीविका, सामाजिक जीवन और आर्थिक स्थिति पर दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ते हैं

इससे यह स्पष्ट होता है कि जलवायु संकट का सबसे बड़ा बोझ उन्हीं देशों पर पड़ रहा है, जिन्होंने इस संकट में सबसे कम योगदान दिया है

कीमत जो बढ़ती जा रही है

रिपोर्ट काउंटिंग द कोस्ट 2025 यह स्पष्ट करती है कि जलवायु परिवर्तन की कीमत अब केवल भविष्य की चेतावनी नहीं, बल्कि वर्तमान की वास्तविकता है। भारत में 2025 का मानसून एक चेतावनी है कि यदि विकास, पर्यावरण और जलवायु नीतियों के बीच संतुलन नहीं बनाया गया, तो आने वाले वर्षों में यह कीमत और बढ़ेगी। यह प्रभाव लोगों के जीवन के साथ-साथ उनकी आजीविका और देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है।  अब सवाल यह नहीं है कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है या नहीं, बल्कि यह है कि हम इससे निपटने के लिए कितनी जल्दी और कितनी गंभीरता से कदम उठाते हैं

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