मध्‍य प्रदेश, बिहार, उत्‍तर प्रदेश में बहने वाली सोन नदी सदियों से घड़ियालों, मगरमच्‍छों और कछुओं का  प्राकृतिक आवास रही है। पर अवैध बालू खनन के कारण अब यह आवास संकट में है।
मध्‍य प्रदेश, बिहार, उत्‍तर प्रदेश में बहने वाली सोन नदी सदियों से घड़ियालों, मगरमच्‍छों और कछुओं का प्राकृतिक आवास रही है। पर अवैध बालू खनन के कारण अब यह आवास संकट में है।स्रोत: विकीकॉमंस

घड़ियालों समेत पूरे ईको सिस्टम पर खतरे के बावजूद क्यों जारी है सोन नदी में अवैध खनन

मामले की जांच में देरी पर एनजीटी ने सोनभद्र के डीएम पर लगाया 10 हज़ार का ज़ुर्माना, रिपोर्टें बताती हैं कि इलाके में खनन माफिया और सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से भारी मात्रा में हो रही रेत की खुदाई
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घड़ियालों, मगरमच्‍छों और कछुओं के प्राकृतिक आवास के लिए मशहूर सोन नदी बालू माफियाओं के अवैध रेत उत्‍खनन का शिकार हो रही है। मनमाने ढंग से भारी मात्रा में की जा रही रेत की खुदाई से नदी की धाराएं बुरी तरह प्रभावित हुई हैं और इसका जलस्‍तर भी घटता जा रहा है। इसका काफ़ी बुरा असर नदी में रहने वाले घड़ियालों, मगरमच्‍छों सहित सोन नदी के पूरे पार‍िस्थितिक तंत्र पर पड़ रहा है।

अवैध खनन के ऐसे ही एक मामले में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने सख्‍ती दिखाई है। ट्रिब्‍यूनल ने उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में अवैध खनन के आरोपों की जांच के मामले में ढिलाई बरतने पर ज़िले के डीएम पर 10 हज़ार रुपए का ज़ुर्माना लगाया है। अदालत ने यह कार्रवाई कोर्ट के निर्देश के बावज़ूद जांच पूरी करने में देरी के चलते की है। एनजीटी ने ज़िला मजिस्ट्रेट (ज़िलाधिकारी) को कड़ी फटकार भी लगाई है।

लॉ बीट की रिपोर्ट के अनुसार इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव, अध्यक्ष और डॉ. ए. सेंथिल वेल, विशेषज्ञ सदस्य ने 13 नवंबर 2025 को की। पीठ ने कहा कि ज़िला मजिस्ट्रेट के आचरण से न्यायाधिकरण के आदेशों का पालन करने में तत्परता की कमी दिखी, जिससे कार्यवाही में देरी हुई।

ट्रिब्‍यूनल ने अवैध खनन के मामले की जांच कर रिपोर्ट देने के लिए 23 अप्रैल को एक समिति गठित की थी, जिसमें डीएम को नोडल एजेंसी के रूप में नामित किया गया था। समिति को साइट का दौरा करके 23 जून तक रिपोर्ट देनी थी। पर, एनजीटी को रिपोर्ट नहीं दी गई।

एनजीटी के आदेश के तहत संयुक्त समिति को अवैध उत्खनन की सीमा की जांच करनी थी। उसे इस बात का आकलन करना था कि क्या खनन सोन नदी की मध्य धारा में हुआ था। इसके अलावा इस संबंध में पर्यावरणीय मंज़ूरी और उसकी वैधता का भी सत्यापन (वेरिफिकेशन) करना था।

इस संयुक्त समिति में नोडल एजेंसी के रूप में सोनभद्र के ज़िला मजिस्ट्रेट और पर्यावरण मंत्रालय के लखनऊ क्षेत्रीय कार्यालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) के प्रतिनिधि शामिल थे। एनजीटी ने समिति से साइट का दौरा करने और आठ सप्ताह के भीतर तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। यानी 23 जून तक इसकी रिपोर्ट एनजीटी को दी जानी थी।

मनमाने ढंग से भारी मात्रा में किया जा रहा बालू खनन सोन नदी की सतह प्रभावित कर रहा है, जिससे इसकी धाराओं में बदलाव हो रहा है और पानी के न रुकने से नदी का जलस्‍तर भी घट रहा है।
मनमाने ढंग से भारी मात्रा में किया जा रहा बालू खनन सोन नदी की सतह प्रभावित कर रहा है, जिससे इसकी धाराओं में बदलाव हो रहा है और पानी के न रुकने से नदी का जलस्‍तर भी घट रहा है।स्रोत: विकीकॉमंस

अधिकारियों ने सबूत मिटाने में की मदद : याचिकाकर्ता 

एनजीटी ने 23 अप्रैल 2025 को दायर पवन कुमार बनाम भारत संघ एवं अन्य के मामले की 19 अगस्‍त को सुनवाई की। जिसमें कोर्ट को बताया गया कि संयुक्त समिति ने 30 जून को निरीक्षण किया था, लेकिन रिपोर्ट अभी भी तैयार नहीं हुई है। आवेदक पवन कुमार के वकील आशीष मदान ने इस देरी पर आपत्ति जताते हुए कहा कि समिति के गठन के दो महीने से भी ज़्यादा समय बाद निरीक्षण करके अधिकारियों ने घटनास्‍थल से अवैध खनन के सबूतों को गायब या मिटाने में मदद की है। 

इस शिकायत पर संज्ञान लेते हुए, न्यायाधिकरण ने जिला मजिस्ट्रेट को एक हलफ़नामा दाखिल कर यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि निरीक्षण में देरी क्यों हुई? साथ ही संयुक्त समिति की रिपोर्ट तैयार करने और दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का अतिरिक्त समय दिया गया। इन निर्देशों के बावजूद समिति ने ट्रिब्यूनल को रिपोर्ट नहीं सौंपी। ज़िला मजिस्ट्रेट की ओर से पेश वकील ने 13 नवंबर को सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया कि रिपोर्ट उसी सुबह दाखिल कर दी गई।

न्यायाधिकरण ने कहा कि लगातार हो रही देरी से त्वरित अनुपालन में कमी का पता चलता है, जिसके चलते कार्यवाही लंबी खिंच गई और अवैध खनन के आरोपों पर आगे विचार करने में देरी हुई। इसे देखते हुए एनजीटी ने सोनभद्र के ज़िला मजिस्ट्रेट को 10,000 रुपये बतौर जुर्माना एक सप्ताह के भीतर राष्ट्रीय हरित अधिकरण बार एसोसिएशन के पास जमा कराने का आदेश दिया है। 

न्यायाधिकरण ने निर्देश दिया है कि इस राशि का उपयोग पुस्तकालय और अन्य संबंधित सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए किया जाए। साथ ही, ट्रिब्‍यूनल ने सभी संबंधित पक्षों को चार सप्ताह के भीतर संयुक्त समिति की रिपोर्ट पर अपनी आपत्तियां दर्ज़ कराने की अनुमति दी है।

पीठ ने मामले की सुनवाई के लिए 28 जनवरी 2026 की तारीख दी है। साथ ही, पूर्व में दिए गए अंतरिम निर्देशों को भी जारी रखा है, जिसमें सुनिश्चित किया है कि मामले की सुनवाई जारी रहने तक पहले से मौजूद सुरक्षा उपाय लागू रहेंगे।

मध्‍य प्रदेश के उमरिया ज़िले में सोन नदी के तट पर धूप सेंकता घड़ियाल का बच्‍चा।
मध्‍य प्रदेश के उमरिया ज़िले में सोन नदी के तट पर धूप सेंकता घड़ियाल का बच्‍चा।स्रोत: विकीकॉमंस

कार्रवाइयों के बावजूद नहीं रुक रहा अवैध खनन

नदियों से रेत के अवैध खनन के काले धंधे में कितना पैसा है और बालू माफियाओं का नेटवर्क कितना तगड़ा है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एनजीटी और अन्‍य अदालतों व निकायों द्वारा कई बार सख्‍त आदेश देने और कार्रवाइयां किए जाने के बावजूद यह रुक नहीं रहा है। इसकी अहम वजह रेत माफियाओं की ऊंची राजनीतिक पहुंच और प्रशासनिक तंत्र से उनका गुपचुप गठजोड़ है। 

कुछ उदाहरणों की बात करें, तो ऊपर बताए गए मामले से पहले साल 2023 में भी एनजीटी ने सोनभद्र में रेत खनन बंद करने का आदेश दिया था, क्योंकि दो कंपनियों ने पर्यावरण मंजूरी की शर्तों का उल्लंघन किया था। इन कंपनियों पर लगभग 15.96 करोड़ रुपये का ज़ुर्माना लगाए जाने की खबर भी आई थी। इसके बावजूद इसपर लगाम नहीं लगी। 

एनजीटी ने इस मामले में सोनभद्र में भी सोन नदी में खनन के लिए दिए गए सभी पट्टों की फिर से जांच करने के लिए ज़िला मजिस्ट्रेट, सोनभद्र और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) तथा राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण के प्रतिनिधियों की एक संयुक्त समिति गठित की थी। इसके बावजूद, अवैध खनन बदस्‍तूर जारी है, जिसकी पुष्टि एक हालिया मीडिया रिपोर्ट से होती है। इसके मुताबिक, छत्तीसगढ़ के गौरेला-पेंड्रा-मरवाही ज़िले में खनिज विभाग ने हाल में 10 ट्रैक्टर और 1 जेसीबी जब्त की हैं, जो सोन नदी के किनारों से अवैध रेत निकासी में इस्तेमाल हो रहे थे। संकेत साफ है कि सोन नदी के विभिन्न हिस्सों में से खनन माफिया सक्रिय हैं और बड़े पैमाने पर अवैध गतिविधियां बेखौफ़ चल रही हैं।

अवैध खनन से बदल रही सोन नदी की धारा

सोन नदी उत्तर भारत की प्रमुख नदियों में से एक है। यह मध्य प्रदेश के अनूपपुर ज़िले में अमरकंटक पहाड़ियों (मैकल पर्वत श्रेणी) से निकलकर उत्तर प्रदेश और बिहार होते हुए पटना के पास गंगा में मिलती है। पिछले एक दशक में इस नदी में अवैध बालू खनन बेहद गंभीर समस्या बन गया है। नदी के तटों और तल से मशीनों की मदद से बड़े पैमाने पर बालू निकाले जाने से इसकी प्राकृतिक धाराएं बदल रही हैं, जिससे नदी का जलस्तर घट रहा है और किनारों का कटाव भी तेज हुआ है।  

इसके कारण कई जगह नदी पर बने पुल, सड़कें और तटबंध भी खतरे में पड़ चुके हैं। स्थानीय बालू माफियाओं और सरकारी अधिकारियों की मिली भगत से ट्रकों और पोकलैंड मशीनों से किया जा रहे इस अवैध रेत खनन से सरकार को बड़ी राजस्व हानि तो हो ही रही है, साथ ही यह नदी के पारिस्थितिक तंत्र और पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुंचा रहा है। इसे देखते हुए नजीटी ने कई मौकों पर सोन नदी क्षेत्र में अवैध उत्खनन को रोकने के लिए जिला प्रशासन को सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। इन निर्देशों के बावजूद सरकारी तंत्र की ढिलाई के चलते अवैध खनन बदस्‍तूर जारी है।

नदियों में अवैध खनन और शिकार के चलते घड़ियाल और मगरमच्‍छ जैसे जीव अब चिडि़याघरो में ही देखने को मिलते हैं। दिल्‍ली ज़ू में आराम फ़रमाते घड़ियाल।
नदियों में अवैध खनन और शिकार के चलते घड़ियाल और मगरमच्‍छ जैसे जीव अब चिडि़याघरो में ही देखने को मिलते हैं। दिल्‍ली ज़ू में आराम फ़रमाते घड़ियाल।स्रोत: विकीकॉमंस

गायब हो गए घड़ियाल, जैव विविधता खतरे में

सोन नदी में कुछ वर्ष पहले तक अच्‍छी खासी संख्‍या में घड़ियाल पाए जाते थे। पर बीते डेढ़-दो दशकों में भारी पैमाने पर अवैध रेत खनन से सोन के घड़ियालों और जैव विविधता के लिए गंभीर संकट पैदा हो गया है। खासकर मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश की सीमा में हो रहे अवैध खनन ने सोन घड़ियाल वन्यजीव अभयारण्य यानी सोन घड़ियाल वाइल्‍ड लाइफ सेंक्‍चुअरी को बुरी तरह प्रभावित किया है। यह घड़ियालों की यह सेंक्‍चुअरी मध्य प्रदेश के सीधी ज़िले में सोन नदी के किनारे स्थित है। इसे घड़ियाल और मगरमच्छ, कछुओं, तथा अन्य जलीय-स्थलीय जीवों के संरक्षण के लिए बनाया गया था। 

टाइम्‍स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार नदी में बचा एकमात्र नर घड़ियाल अब गायब है। रिपोर्ट में वन विभाग के अंदरूनी सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि वन रेंजर इस प्रजनन काल (मार्च-अप्रैल) में एक भी नवजात शिशु का पता लगाने में नाकाम रहे हैं। सोन नदी बेसिन के आसपास अवैध खनन के खिलाफ़ कानूनी लड़ाई लड़ रहे सामाजिक कार्यकर्ता और वकील नित्यानंद मिश्रा ने आशंका जताई है कि सोन नदी में अब कोई भी नर घड़ियाल नहीं बचा है। 

मिश्रा ने बताया कि रेत के टीलों का खनन घड़ियालों के लिए विनाशकारी है, क्योंकि वे उनके घोंसले बनाने और धूप सेंकने के लिए ज़रूरी हैं। घड़ियाल रेत के बिस्तरों के नीचे अंडे देते हैं, लेकिन अवैध खनन करने वाले उनके घोंसलों और अंडों को नष्ट कर देते हैं। डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2021 तक सोन नदी में संख्या घटकर करीब 20 हो गई थी। इसके अलावा कछुओं और नदी में रहने वाले अन्‍य कई जीव-जंतुओं के बसेरों और प्रजनन स्थलों को भी अवैध खनन से गंभीर खतरा है। 

इसे देखते हुए मिश्रा ने 2019 में इसे लेकर एनजीटी में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि सोन नदी के आसपास रेत खनन उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में फैले इस अभयारण्य में घड़ियालों के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर रहा है।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 2013 में सोन नदी में केवल 19 घड़ियाल बचे थे, जो 2016 में बढ़कर 72 हो गए थे, पर 2023 में केवल 48 बचे। सीधी ज़िले में चुरहट, खड़बड़ा, पिपरोहर, अकौरी, गऊघाट और पटपारा अवैध खनन से सबसे ज़्यादा प्रभावित इलाके हैं, जहां स्थानीय अधिकारियों और पुलिस के एक वर्ग की मिलीभगत से अवैध खनन बेरोकटोक जारी है। खनन पर कोई नियंत्रण नहीं है। हमें भी शिकायत न करने की धमकी भी दी जा रही है।
-नित्यानंद मिश्रा, वकील व सामाजिक कार्यकर्ता

खनन माफिया ने वन अधिकारियों पर किया हमला

ट्रिब्‍यूनल ने सोन घड़ियाल अभयारण्य के आसपास अवैध रेत खनन पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली उनकी याचिका को गंभीरता से लेते हुए मध्य प्रदेश और केंद्र सरकार के शीर्ष वनअधिकारियों को तलब किया था। साथ ही राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने का आदेश दिया कि क्षेत्र में कोई भी अवैध रेत खनन न हो। इस आदेश के बाद जब वन अधिकारियों की एक टीम घड़ियाल अभयारण्य के आसपास अवैध रेत खनन की जांच करने गई, तो उन पर खनन माफिया ने कथित तौर पर उनपर जानलेवा हमला किया।

इसके अलावा सोन नदी के आसपास निर्माण कार्यों और खेती से भी घडि़यालों का प्राकृतिक आवास प्रभावित हो रहा है। नित्‍यानंद मिश्रा बताते हैं कि मध्य प्रदेश सरकार ने कुछ वर्ष पहले सोन घड़ियाल वन्यजीव अभयारण्य के जोगदाह में बहरी-हनुमान रोड (एसएच-52) पर एक पुल बनाने का प्रस्ताव रखा था। जोगदाह अभयारण्य में घड़ियालों का एकमात्र ज्ञात प्रजनन स्थल है। यहां एक 50 फुट गहरा कुंड है, जहां सोन घड़ियाल और अन्य प्रजातियां निवास करती हैं। ऐसे में इस पुल के निर्माण से इन प्रजातियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। 

घड़ियाल मार्च-अप्रैल में अपने अंडे देते हैं। इसी समय, बिहार अपने हिस्से का पानी मांगता है। नवंबर में, पानी दो मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) की दर से बहता है, जो दिसंबर में बढ़कर 200 एमएलडी हो जाता है। जल स्तर में वृद्धि घड़ियालों के अंडे बहा ले जाती है।

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