प्रतिकात्मक तस्वीर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट। फोटो: रोहित पराशर, डॉउन टू अर्थ
प्रतिकात्मक तस्वीर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट। फोटो: रोहित पराशर, डॉउन टू अर्थ

ऊहल नदी प्रदूषण मामला: शानन पावर प्रोजेक्ट पर 12 लाख का जुर्माना, हिमाचल-पंजाब विवाद फिर गरमाया

हिमाचल व पंजाब सरकार में चल रही खींचतान के बीच जुर्माने की कार्रवाई। एनजीटी के तहत पीसीबी के आंकलन निरीक्षण में पाई कमियां।
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हिमाचल प्रदेश की ऊहल नदी, जो कि मंडी और कुल्लू जिलों के लिए महत्वपूर्ण जलस्रोत है, इन दिनों जल प्रदूषण, राज्यों के बीच टकराव और पर्यावरणीय लापरवाही के कारण सुर्खियों में है। नदी से जुड़ा प्रमुख शानन पावर प्रोजेक्ट इस बार 12 लाख रुपये के भारी जुर्माने के कारण चर्चा में है, जो हिमाचल प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (HPPCB) द्वारा लगाया गया।

दैनिक जागरण संवाददाता की एक खबर के अनुसार शानन पावर प्रोजेक्ट पर मालिकाना हक को लेकर रस्साकशी चल रही है। हिमाचल व पंजाब सरकारों की खींचतान के दौर में हिमाचल प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचपी पीसीबी) ने प्रोजेक्ट प्रबंधन पर12 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। यह जुर्माना प्रदूषण नियंत्रण मानदंडों का पालन न करने और जल गुणवत्ता को नुकसान पहुंचाने के लिए किया गया है। इसमें गाद निकालने में नियमों की अनदेखी, ऊहल नदी का पानी गाद से खराब करने और 15 प्रतिशत पानी नियमानुसार न छोड़ना शामिल है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के नियमानुसार प्रोजेक्ट प्रबंधन गाद निकालने के नियमों की अनदेखी कर रहा था। पीसीबी ने शानन की वार्षिक रखरखाव अनुसूची व गाद निकालने के दौरान ऊहल नदी पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए अपनाए जाने जले तरीकों और जल गुणवत्ता निगरानी व्यवस्था की जानकारी दो दिसंबर 2024 को मांगी थी, जिसका प्रबंधन संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया। इसके बाद 30 दिसंबर 2024 को पीसीबी के क्षेत्रीय प्रभारी ने मौके पर निरीक्षण किया तो पाया कि गाद निकालने का कार्य जारी था लेकिन जल गुणवत्ता निगरानी के लिए कोई व्यवस्था नहीं की थी।

पानी की गुणवत्ता जांच के दौरान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) की टीम ने ऊहल नदी में फोरवे के पास अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम से दो सैंपल एकत्र किए। 28 जनवरी 2025 को आई रिपोर्ट में यह स्पष्ट हुआ कि नदी के डाउनस्ट्रीम हिस्से में टोटल सस्पेंडेड सॉलिड्स (TSS) की मात्रा 2812.0 मिलीग्राम प्रति लीटर थी, जबकि अपस्ट्रीम हिस्से में यह मात्रा केवल 3.0 मिलीग्राम प्रति लीटर पाई गई। यह अंतर न केवल चिंताजनक है, बल्कि यह दर्शाता है कि नदी के प्रवाह में किसी बिंदु के बाद प्रदूषण का स्तर असामान्य रूप से बढ़ रहा है। TSS दरअसल पानी में मौजूद वे ठोस कण होते हैं जो घुलते नहीं हैं—जैसे गाद, मिट्टी या अन्य अवशिष्ट तत्व। इतनी अधिक मात्रा में TSS का पाया जाना जलीय जीवन के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है और पारिस्थितिकी तंत्र को असंतुलित कर सकता है। यह स्थिति शानन पावर प्रोजेक्ट की कार्यप्रणाली और उसकी पर्यावरणीय ज़िम्मेदारियों पर बड़े सवाल खड़े करती है।

शानन पावर प्रोजेक्ट द्वारा न्यूनतम जल प्रवाह सुनिश्चित करने के नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, प्रोजेक्ट प्रबंधन की वेबसाइट पर उपलब्ध डिजिटाइज्ड रिकॉर्ड से यह स्पष्ट होता है कि ऊहल नदी में छोड़ा गया पानी निर्धारित न्यूनतम सीमा से करीब 15 प्रतिशत कम था। यह न केवल जल कानूनों का उल्लंघन है, बल्कि नदी के पारिस्थितिक संतुलन और स्थानीय समुदायों की जल जरूरतों के लिए भी गंभीर चिंता का विषय है। बोर्ड का कहना है कि इस तरह की लापरवाही नियमों के अनुरूप नहीं है और इसके खिलाफ आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।

प्रशासनिक कार्रवाई और जवाबदेही

फरवरी 2025 में प्रोजेक्ट को नोटिस भेजा गया, और बाद में नियमों के उल्लंघन पर 12 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया। प्रदूषण बोर्ड ने यह स्पष्ट किया कि यदि भविष्य में भी अनदेखी की गई, तो सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी। दिनेश कुमार, क्षेत्रीय अधिकारी, HPPCB मंडी ने बताया कि अभी तक जुर्माना जमा नहीं किया गया है।

प्रोजेक्ट प्रबंधन ने उच्च न्यायालय में दायर की याचिका

पीसीबी के आदेश पर शानन प्रोजेक्ट ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। इस याचिका में प्रोजेक्ट प्रबंधन ने नियमों के पालन के लिए दिए गए आदेश पर पुनर्विचार की मांग की है। प्रबंधन का दावा है कि नदी में डिस्चार्ज किए जाने वाले पानी की मात्रा ऊपरी धाराओं से प्रभावित होती है। इसी वजह से कुछ समय के लिए न्यूनतम जल बहाव प्रभावित हो सकता है। - शिवम कुमार, उपअधीक्षण अभियंता, शानन पावर प्रोजेक्ट

हिमाचल-पंजाब में स्वामित्व विवाद: एक पुरानी जंग

शानन पावर प्रोजेक्ट का संचालन पंजाब सरकार द्वारा किया जाता है, जबकि परियोजना भौगोलिक रूप से हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में स्थित है। यह स्थिति लंबे समय से राज्यीय अधिकार और राजस्व को लेकर विवाद का कारण रही है।

हिमाचल प्रदेश सरकार का मानना है कि राज्य की प्राकृतिक संपदा पर उसका पहला हक होना चाहिए, वहीं पंजाब सरकार ब्रिटिश कालीन समझौते और संचालन अनुभव का हवाला देती है।

स्थानीय लोग और पर्यावरणविदों की चिंता

ऊहल नदी न केवल मंडी और कुल्लू जिलों की सिंचाई और पेयजल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत है, बल्कि यह क्षेत्र की जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र का अभिन्न हिस्सा भी है। हालिया प्रदूषण और जल बहाव में कमी को लेकर स्थानीय ग्रामीणों और पर्यावरण संगठनों ने चिंता जताई है। उनका कहना है कि लगातार गिरती जल गुणवत्ता और गाद का बढ़ता स्तर कृषि, मत्स्य पालन और पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है।

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