जल संरक्षण एवं पर्यावरण विधि


एक जागरूक नागरिक होने के नाते हमें पर्यावरण और पारिस्थितिक संतुलन से सम्बन्धित कानूनों की जानकारी होनी चाहिए। जन साधारण की जानकारी के लिये पर्यावरण प्रदूषण से सम्बन्धित कुछ महत्त्वपूर्ण कानूनों का उल्लेख यहाँ पर किया जा रहा है।

धारा 268, लोक उपताप (Public Nuisance) :- वह व्यक्ति लोग उपताप का दोषी है जो कोई ऐसा कार्य करता है जिससे जन साधारण को कोई सामान्य क्षति, संकट, बाधा या क्षोभ कारित हो। कोई सामान्य उपताप इस आधार पर माफी योग्य नहीं है कि उससे कुछ सुविधा या भलाई कारित होती है।

धारा 290 - ऐसे उपताप के लिये दंड का प्रावधान करती है। वह जुर्माना देने का आदेश देती है। फिर भी उपताप को चालू रखने पर, पुनरावृत्ति करने पर छः महीने की सजा या जुर्माना या दोनों से दंडित करने का आदेश देती है।

धारा 277 - लोग जलस्रोत या जलाशय का जल कलुषित करना (Fouling water of public spring or Reservoir) इसके लिये 3 माह की जेल 500 रुपये जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

धारा 269 - उपेक्षापूर्ण कार्य, जिससे जीवन के लिये संकटपूर्ण रोग का संक्रमण फैलना संभाव्य हो (Negligent act likely to spread infection or disease dangerous to life)

इस अपराध के लिये 6 माह की जेल या जुर्माना अथवा दोनों हो सकते हैं। द्वेषवश, जानबूझ कर किए गए इस अपराध के लिये 2 वर्ष तक की जेल या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

खुली या बंद नाली जिससे मल या कोई व्यावसायिक बहिस्राव होता हो, जिससे प्रदूषण होता हो, रोग फैलने की संभावना बनती हो भी उपेक्षापूर्ण कार्य के अंतर्गत दंडनीय अपराध है। धारा 25 एवं 26 के अंतर्गत इस अपराध के लिये 6 माह से लेकर छः वर्ष तक का कारावास और जुर्माना दोनों हो सकते हैं।

यह उल्लेख करना बहुत ही उपयुक्त होगा कि मानव पर्यावरण कॉन्फ्रेन्स के बाद सबसे पहला कदम, जो भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के हित में लिया वह संविधान में दो संशोधन थे, जिन्हें अनुच्छेद 48 ए तथा 51 ए (जी) नाम दिये गये, वे निम्न प्रकार हैं-

भारत का संविधान : अनुच्छेद 48A
‘‘पर्यावरण का संरक्षण और सुधार तथा वन एवं वन्य जीवों की सुरक्षा- सरकार पर्यावरण के संरक्षण और सुधार तथा देश के वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण का प्रयास करेगी।’’

भारत का संविधान : अनुच्छेद 51 A(g) :


‘‘यह भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह प्राकृतिक पर्यावरण का संरक्षण और सुधार करे, जिसमें वन, झीलें, नदी और अन्य जीव सम्मिलित हैं तथा प्रत्येक जीवधारी के प्रति सहानुभूति (संवेदनशीलता) रखे।’’

उल्लेखनीय है कि इन दोनों अनुच्छेदों तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21, जिसमें कहा है ‘‘संविधान यह आश्वस्त करता है कि प्रत्येक व्यक्ति को उस गतिविधि से बचाया जाना चाहिये जिससे उसके जीवन, स्वास्थ्य और शरीर को हानि पहुँचती हो’’ (It ensures that every individual may be saved from any activity which injures his life, health and physique) से विद्वान न्यायाधीशों ने अनेक पर्यावरण सम्बन्धी मुकदमों के ऐतिहासिक निर्णय दिये हैं और इस प्रकार भारतीय संविधान की महत्ता को बढ़ाया है। साथ ही यह भी कहें कि भारत के संविधान ने पर्यावरण के परिप्रेक्ष्य में देश को संकट से बचाने की अहम भूमिका निभाई तो भी यह अतिशयोक्ति नहीं होगी।

पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण की दृष्टि से तीन अति महत्त्वपूर्ण अधिनियमों का यहाँ विवरण दे रहे हैं-

1. जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम 1974 (The Water Prevention and Control of Polution) Act, 1974 :-


(अ) संसद में विधेयक प्रस्तुत करने के पीछे उद्देश्य व कारण : इस विधेयक को संसद में प्रस्तुत करने के पीछे जो उद्देश्य व कारण रहा है उसे भारत सरकार के राजपत्र में प्रकाशित किया गया है। (दिनांक 05.12.1969 पृष्ठ 1153 से 1185 तक), जो निम्न प्रकार है :- ‘‘उद्योगों की वृद्धि तथा शहरीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति के फलस्वरूप इन हाल के वर्षों में नदी तथा दरियाओं के प्रदूषण की समस्या काफी आवश्यक और महत्त्वपूर्ण बन गई है। अतः यह आश्वस्त किया जाना आवश्यक हो गया है कि घरेलू तथा औद्योगिक बहिस्राव उस जल में नहीं मिलने दिया जाये जो पीने के पानी के स्रोत, कृषि उपयोग तथा मत्स्य जीवन के पोषण के योग्य न हो। नदियों का प्रदूषण भी देश की अर्थव्यवस्था को निरन्तर हानि पहुँचाने का कारण बनती है।’’

(ब) अधिनियम का विवरण : उपर्युक्त विधेयक पूरी प्रक्रिया से होकर 30 नवम्बर 1972 को संसद में प्रस्तुत हुआ। दोनों सदनों से पारित होकर इस विधेयक को 23 मार्च, 1974 को राष्ट्रपति से स्वीकृति मिली। जो अब जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम, Act No. 6 of 1974 कहलाया। यह अधिनियम भारत के राजपत्र Extra, Part 2, Section 2 दिनांक 25.03.1974 (pp. 295-325) को प्रकाशित हुआ तथा इसे 26.03.1974 से पूरे देश में लागू माना गया।

इस अधिनियम में 8 अध्यायों के अंतर्गत 64 धाराएँ हैं, जो मोटेतौर से अध्याय-1 (प्रारम्भिक), अध्याय-2 जल प्रदूषण नियंत्रण हेतु केन्द्रीय तथा राज्य स्तरीय बोर्डों का गठन, अध्याय-3 (संयुक्त बोर्डों का गठन,) अध्याय-4 (बोर्ड की शक्तियाँ तथा कार्य), अध्याय-5 (जल प्रदूषण से बचाव व नियन्त्रण), अध्याय-6 (वित्त सम्बन्धी प्रक्रियाएँ), अध्याय-7 (सजाएँ तथा कार्य विधियाँ) अध्याय-8 (विविध) के प्रकार से विभाजित हैं।

अध्याय-7 की धारा 41 से 46 तक में सजाओं का प्रावधान है जो निम्नलिखित हैं-

(1) धारा 41 : अधिनियम की धारा 20 की उपधारा 2 व 3 अथवा 32 की उपधारा 1 (c) में वर्णित निर्देशों (जलस्रोत से अधिक पानी लेने अथवा मल मूत्र और उद्योग से निकले बहिस्राव के मिलने को रोकने) की अनुपालना न होने पर 3 माह तक का कारावास अथवा 5,000 रु. का जुर्माना अथवा दोनों की सजा है। यदि यह अनुपालना लगातार चलती है तो आर्थिक दण्ड 1000 रु. प्रतिदिन तक अतिरिक्त हो सकता है।

यही सजा का प्रावधान कोर्ट द्वारा निर्देशन देने के उपरान्त भी अनुपालना न करने पर धारा 31 की उपधारा (2) के तहत है।

(2) धारा 42 : वर्ण (a) से (g) तक में वर्णित कार्यों के करने पर 3 माह तक का कारावास तथा/अथवा 1000 रु. तक का जुर्माना अथवा दोनों की सजा का प्रावधान है।

(3) धारा 24 : धारा 24 के तहत नदी अथवा कुएँ में प्रदूषित सामग्री के निस्तारण पर लगाई गई रोक के दोषी पाये जाने पर 6 माह से 6 वर्ष तक का कारावास व आर्थिक दंड दिया जायेगा।

(4) धारा 44 : जल (प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण) अधिनियम, 1974 की धारा 25 नये विकास अथवा बहिस्राव पर रोक (restrictions on new outlets and new discharges) तथा 26- वर्तमान में चल रहे मलमूत्र अथवा उद्योग बहिस्राव सम्बन्धी प्रावधान (Provision regarding existing discharge of sewage or trade effluent) के सन्दर्भ में दोषी को 6 माह से 6 वर्ष तक की कैद तथा जुर्माना की सजा दी जायेगी।

(5) धारा 45 : यदि धारा 24, 25 व 26 के तहत कोई दोषी व्यक्ति को अधिनियम के अन्तर्गत सजा मिलती है और फिर भी वह निरन्तर उन्हीं प्रावधानों का पुनः दोषी होता है, तो उसे 1 वर्ष से 7 वर्ष तक का कारावास तथा आर्थिक दण्ड दिया जा सकेगा।

पर्यावरण के क्षेत्र में स्वयंसेवी संस्थाओं से अपेक्षाएँ :(Expectations from NGO's in the field of Environment)


हम चाहे प्रशासन स्तर की बात करें चाहे सामाजिक उत्तरदायित्व की, स्वयंसेवी संस्थाओं की कार्य सीमाएँ कहाँ तक सम्भव हैं, यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है? जहाँ केवल प्रशासन अपने सभी कार्यों को अपने स्तर पर कर पाने में समर्थ नहीं है, वहीं स्वयंसेवी संस्थाएँ, चाहे उन्हें कितनी भी सुविधा उपलब्ध करायी जाए अथवा कितनी ही धनराशि उपलब्ध करायी जाए, भी सभी कार्य अपने स्तर पर कर पाने में सक्षम नहीं है। इसके अतिरिक्त स्वयंसेवी संस्थाओं को एक और विकट समस्या से जूझना पड़ता है और वह यह है कि चाहे वह देश और समाज के हित में काम कर रहे हो, अथवा सरकार द्वारा आवंटित और स्वीकृत काम को अंजाम दे रहे हों, उन्हें अन्य विभागों से सम्बन्धित कार्य करवाने में वही कष्ट झेलना पड़ता है जो एक आम आदमी अपने व्यक्तिगत कार्य के लिये सहन करता है।

जल प्रदूषण निरोधन एवं नियंत्रण अधिनियम 1974 :


इस अधिनियम के अंतर्गत कुछ ऐसे अनुच्छेद हैं, जिनके तहत नगर पालिकाओं को जल प्रदूषण रोकने के नीचे लिखे अधिकार दिए गए हैं-

अनुच्छेद 192 (1)- शहर की नाली, नदी या अन्य जल राशि में कूड़ा-करकट, गंदगी फेंकना निषिद्ध है।

अनुच्छेद 200- निर्धारित घाटों को छोड़कर धोबियों द्वारा अन्य स्थानों पर कपड़ा धोना निषिद्ध है।

अनुच्छेद 201- नदी, पोखर, तालाब आदि को स्नान से गंदा करना तथा उसमें गंदी वस्तुएँ डालना निषिद्ध है।

आम जनता को इन कानूनों से अवगत कराया जाये और उनमें चेतना जगाई जाये तथा पालन करने वालों को प्रोत्साहित किया जाये तथा पालन न करने वालों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही की जाये, तभी जल प्रदूषण को रोका जा सकता है। स्वयं सेवी संस्थायें प्रदूषण दूर करने और जन-जागृति में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकती हैं।

ऊपर लिखे नियमों कानूनों के अलावा पर्यातंत्र से सम्बन्धित नीचे लिखे नियमों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए-

1. वेटलैंड पर पर्यावरण मंत्रालय एवं वन मंत्रालय के नियम (2010)
2. जैव विविधता संरक्षण कानून-2004
3. जैव विविधता संरक्षण अधिनियम 2002
4. वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972
5. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986
6. जैव चिकित्सा कचरा प्रबंधन एवं निष्पादन कानून-1998
7. घातक कचरा प्रबंधन एवं निष्पादन कानून 1998
8. शोर प्रदूषण कानून-2000
9. नगर निगम ठोस कचरा निपटन नियम-2001
10. (इलेक्ट्रॉनिक) ई-कचरा निपटान एवं प्रबंधन-2008
11. वायु प्रदूषण अधिनियम 1972
12. भारतीय वन अधिनियम-1927
13. भारतीय मत्स्य अधिनियम 1857
14. म.प्र. टाउन एवं कंट्री प्लानिंग अधिनियम 1973
15. म.प्र. नगर निगम अधिनियम

 

भोजवेटलैंड : भोपाल ताल, 2015


(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)

1

जल और जल-संकट (Water and Water Crisis)

2

वेटलैंड (आर्द्रभूमि) (Wetland)

3

भोजवेटलैंड : इतिहास एवं निर्माण

4

भोजवेटलैंड (भोपाल ताल) की विशेषताएँ

5

भोजवेटलैंड : प्रदूषण एवं समस्याएँ

6

भोजवेटलैंड : संरक्षण, प्रबंधन एवं सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल प्लानिंग एण्ड टेक्नोलॉजी (CEPT) का मास्टर प्लान

7    

जल संरक्षण एवं पर्यावरण विधि

8

जन भागीदारी एवं सुझाव

 

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