श्रीदेव सुमन के लिये

3 Feb 2017
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एक थी टिहरीतुम्हें डुबाने वाली टिहरी लो देखो खुद डूब गई।
तुम्हें कुचलने वाली राजशाही, लो देखो खुद डूब गई।

डूब गई कारागार की वो ऊँची दीवारें,
तुम्हें मिटाने वाली क्रूर निगाहें डूब गईं।

निष्ठुरता की साक्षी रहीं, जो वो सभी तारीखें डूब गई।
नदियों के रेतीले तट की वे सभी निशानियाँ डूब गई।

पर तुम्हारी खुशबू अब तक हम सबको सहलाती है
वो निर्मम तानाशाही की काली अमावस बीत गई।

 

एक थी टिहरी  

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें)

क्रम

अध्याय

1

डूबे हुए शहर में तैरते हुए लोग

2

बाल-सखा कुँवर प्रसून और मैं

3

टिहरी-शूल से व्यथित थे भवानी भाई

4

टिहरी की कविताओं के विविध रंग

5

मेरी प्यारी टिहरी

6

जब टिहरी में पहला रेडियो आया

7

टिहरी बाँध के विस्थापित

8

एक हठी सर्वोदयी की मौन विदाई

9

जीरो प्वाइन्ट पर टिहरी

10

अपनी धरती की सुगन्ध

11

आचार्य चिरंजी लाल असवाल

12

गद्य लेखन में टिहरी

13

पितरों की स्मृति में

14

श्रीदेव सुमन के लिये

15

सपने में टिहरी

16

मेरी टीरी

 

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