गहराता जल संकट : पानी के लिए जान जोखिम में डाल रहीं महिलाएं
भूजल यानी ग्राउंड वाटर के अंधाधुंध दोहन से देश-दुनिया में जल संकट गहराता ही जा रहा है। यह खेती-बारी से लेकर हमारी तमाम तरह की सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। गर्मी के मौसम में देश के विभिन्न भागों में बढ़ते जल संकट का सीधा और तगड़ा असर हमारे देश की आधी आबादी कही जाने वाली महिलाओं पर पड़ता साफ दिखाई देने लगा है। इसकी वजह बहुत सीधी और स्पष्ट है। क्योंकि जल संकट वाले इलाकों में घरेलू उपयोग और पीने के पानी की व्यवस्था का जिम्मा आमतौर पर घर की महिलाओं पर ही होता है।
जल संकट किस तरह महिलाओं के जीवन को दुश्वार कर रहा है और उनकी जिंदगी को भी खतरे में डाल रहा है इसका नज़ारा महाराष्ट्र के नासिक जिले के ग्रामीण इलाकों में अभी से दिखाई देने लगा है। यहां महिलाओं को एक घड़े पानी के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर कुओं में उतरना पड़ रहा है। नासिक से एक ऐसा ही दहला देने वाला वीडियो सामने आया है, जिसमें एक औरत अपने मटके में पानी भरने के लिए पथरीली चट्टानों के बीच गहराई में बने जलस्रोत में उतर रही है। महज़ एक मटका पानी निकालने के लिए यह महिला अपनी जान की बाज़ी लगा रही है। अफसोस की बात यह है कि वह अकेली नहीं है। उसके साथ और भी कई महिलाएं वहां खड़ी नज़र आ रही हैं, जो उसके बाहर निकलने पर खुद उस गहरे जल स्रोत में उतर कर पानी लाने के लिए अपनी बारी का इंतज़ार कर रही हैं। कई फीट की जोखिम भरी गहराई में जमा थोड़े से पानी को भरकर ले जाने के लिए औरतों में होड़ सी मची हुई है। जल संकट की यह तस्वीर हैरान और परेशान करने वाली है। सोचने वाली बात यह है कि गर्मी अभी अपने चरम पर नहीं पहुंची है, पर अभी से देश के कई इलाकों में जल संकट इतना गंभीर रूप ले चुका है। आने वाले महीनों में इसका क्या हाल होगा, यह भी एक गंभीर सवाल है।
क्यों है महिलाओं के सिर पर पानी का बोझ
महिलाओं के जीवन पर जल संकट के इस गंभीर असर की एक वजह यह भी है कि हम इस बारे में गंभीरता से नहीं सोचते कि किस तरह पानी की जद्दोजहद हमारे घरों की मां ओं, बहू-बेटियों की जिंदगी दुश्वार कर रही है। क्या हमने कभी सोचा है कि जल संकट का सबसे अधिक बोझ महिलाओं पर ही क्यों पड़ता है? जल संकट वाले ज़्यादातर रेगिस्तानी और पहाड़ी इलाकों में महिलाएं ही परिवार के लिए पानी लाने की जिम्मेदारी उठाती हैं। इसके लिए उन्हें कई किलोमीटर पैदल चलकर जल स्रोतों तक जाना पड़ता है। यह न केवल शारीरिक रूप से थका देने वाला काम है बल्कि इससे उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन शैली यानी लाइफ स्टाइल पर भी काफी बुरा असर पड़ता है। सच कहें तो जल संकट का एक अहम पहलू यह है कि महिलाएं जल संकट की समस्या में इतनी बुरी तरह उलझी हुई हैं कि चाह कर भी वह इससे अपना दामन नहीं छुड़ा सकती हैं।
सोचने वाली बात है कि पानी लाने की जिम्मेदारी महिलाओं पर ही क्यों होती है? इसका जवाब है हमारी सामाजिक व्यवस्था और सांस्कृतिक परंपराओं में औरतों के प्रति अपनाया जाने वाला पक्षपाती रवैया। इसके चलते ही ज़्यादातर ग्रामीण समाजों में पानी लाने का काम परंपरागत रूप से महिलाओं का दायित्व माना जाता है।
इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं की कमी के चलते घरों तक पाइपलाइन से पानी की सुविधा आज़ादी के दशकों बाद तक उपलब्ध नहीं कराया जा पाना भी इसकी दूसरी सबसे बड़ी वजह है। इसके चलते महिलाओं को दूर-दराज़ के जल स्रोतों तक जाना पड़ता है। राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र जैसे राज्यों के सूखाग्रस्त इलाकों में तो महिलाएं अपने सिर पर चार-पांच भारी मटके रखकर रोजाना 5 से 10 किलोमीटर दूर से पानी लाने के लिए मजबूर होती हैं।
सेहत से लेकर शिक्षा तक पर पड़ता है असर
गौर करने वाली बात यह है कि ये महिलाएं केवल पानी ही नहीं लातीं, बल्कि उन्हें खाना पकाने, बर्तन धोने, कपड़े और घर की साफ- सफाई करने और पशुओं के लिए चारे-पानी की व्यवस्था तक के थका देने वाले काम भी रोज़ाना करने पड़ते हैं। रोज़मर्रा की ज़िंदगी में पानी की इस जद्दोजहद के कारण महिलाएं अकसर पढ़ाई-लिखाई और आर्थिक विकास से भी दूर रह जाती हैं। देश के कई इलाकों में पानी लाने के काम में काफी अधिक समय लगने के कारण लड़कियों को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ती है।
रेगिस्तानी इलाकों में जहां भीषण गर्मी और लू के थपेड़े कई बार उनकी जान के दुश्मन बन जाते हैं, वहीं पहाड़ी इलाकों में महिलाओं को अकसर तेज ढलान वाले खतरनाक रास्तों से गुजरना पड़ता है, जिससे दुर्घटनाओं की आशंका बनी रहती है। क्योंकि यहां पानी के स्रोत अक्सर गहरी घाटियों में होते हैं, जहां तक पहुंचना काफी कठिन होता है।
जल संकट महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी काफी बुरा असर डालता है। भारी मटके या बर्तन सिर और कमर पर उठाने से उन्हें लगातार थकावट, बदन दर्द, गर्दन टेढ़ी होना और कुपोषण जैसी समस्याएं होती हैं। हद तो तब हो जाती है, जब महिलाओं को अपने मासिक धर्म यानी पीरियड्स के दिनों में भी इस थका देने वाले काम से निज़ात नहीं मिलती। इसके चलते कई बार महिलाएं पीरियड्स में अपनी शारीरिक स्वच्छता और देखभाल ठीक से नहीं कर पातीं। इस कारण वह संक्रमण और अन्य बीमारियों का शिकार भी हो जाती हैं।
क्या है समस्या का समाधान
इस समस्या के समाधान की बात करें, तो सबसे पहला काम गांवों तक जलापूर्ति की व्यवस्था करने के साथ ही जल संरक्षण पर ध्यान देने का करना होगा। क्योंकि पानी की बचत और जल संरक्षण की तकनीकों को अपना कर ही घरों के आसपास कुएं, हैंडपंप, पोखरों और तालाबों जैसे सुलभ जल स्रोतों को पानी से भरा पूरा रखा जा सकता है। इसके लिए महिलाओं को जल प्रबंधन के काम में अग्रणी भूमिका देने की जरूरत है। महिलाएं जब जल प्रबंधन में सक्रिय भूमिका निभाएंगी, तो वे परिवार के स्तर से ही जल संरक्षण और स्वच्छता को बेहतर बनाएंगी, क्योंकि यह सीधे तौर पर उनकी रोज़ाना की ज़िंदगी से जुड़ा हुआ मुद्दा है। केवल गांवों के जल-प्रबंधन में ही नहीं, बल्कि जल संकट से जुड़ी नीतियां बनाने में भी महिलाओं को शामिल करने और उन्हें जल संरक्षण योजनाओं में भागीदार बनाने की भी जरूरत है। ऐसा करके ही उनकी ज़िंदगियों को पानी की जद्दोजहद से उबारा जा सकता है।