जम्मू-कश्मीर के रामबन में बादल फटना 2025: फ्लैश फ्लड का कहर
जम्मू-कश्मीर में ‘रामबन बादल फटना 2025’ की घटना ने प्रकृति की अनिश्चितता और मानव निर्मित कमियों को उजागर किया। 20 अप्रैल 2025 को रामबन जिले में बादल फटने से भारी तबाही मची, जिसमें तीन लोगों की जान चली गई, 40 घर क्षतिग्रस्त हुए, और सैकड़ों लोग बेघर हो गए। चिनाब नदी के आई उफान ने स्थिति को और भयावह बना दिया। रामबन की त्रासदी, फ्लैश फ्लड जम्मू-कश्मीर, और नदी किनारे अतिक्रमण के खतरों की कड़ियों को जोड़ने की जरूरत है।
बादल फटने की वैज्ञानिक परिभाषा
बादल फटना (Cloudburst) एक चरम मौसमी घटना है, जिसमें छोटे क्षेत्र (10 किमी x 10 किमी) में एक घंटे में 100 मिमी से अधिक बारिश होती है। यह पहाड़ी क्षेत्रों में आम है, जहां नमी से भरे बादल तेजी से ऊपर उठते हैं और ठंडी हवाओं के संपर्क में आने पर अचानक भारी बारिश करते हैं। जलवायु परिवर्तन ने इन घटनाओं को और घातक बना दिया है।
रामबन में कैसे शुरू हुई तबाही?
19 अप्रैल 2025 की रात से रामबन में मूसलाधार बारिश शुरू हुई। 20 अप्रैल की सुबह 4:30 बजे बादल फटने की तेज आवाज के साथ सेरी बगना और धर्मकुंड गांवों में फ्लैश फ्लड ने कहर बरपाया। स्थानीय निवासी मोहम्मद हाफिज ने बताया, "आवाज इतनी तेज थी कि लगा कोई धमाका हुआ।" इस आपदा में दो नाबालिग भाई अकीब अहमद (12), मोहम्मद साकिब (10), और मुनिराम (65) मलबे में दबकर मर गए। जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग (NH-44) भूस्खलन और मलबे से बंद हो गया।
नुकसान का दायरा
रामबन बादल फटना 2025 की इस घटना ने भारी तबाही मचाई:
- जनहानि: तीन लोगों की मौत, एक व्यक्ति लापता।
- संपत्ति: 40 घर पूरी तरह या आंशिक रूप से नष्ट, दो होटल और दुकानें मलबे में दब गईं।
- यातायात: NH-44 पर सैकड़ों वाहन फंसे, 15 फीट मलबे में गाड़ियां दबीं।
- कृषि: ओलावृष्टि और बारिश से भारी मात्रा में फसलों को नुकसान।
चिनाब नदी का खतरा
चिनाब नदी के जलस्तर में वृद्धि ने रामबन में खतरे की घंटी बजा दी। प्रशासन ने नदी किनारे बसे गांवों को खाली करने की चेतावनी दी है। नदी किनारे अतिक्रमण ने स्थिति को और जटिल बनाया।
जलवायु परिवर्तन और भविष्य की चुनौतियां
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, 20 अप्रैल को रामबन में सामान्य से छह गुना अधिक बारिश (16.9 मिमी) हुई। जलवायु परिवर्तन ने बादल फटने की घटनाओं को बढ़ाया है।
हिमालय क्षेत्र में बादल फटने की घटनाएं हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ी हैं, जो जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय असंतुलन का स्पष्ट संकेत है। हिमालय के संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र में अचानक मूसलाधार बारिश, अनियोजित शहरीकरण, और जंगलों की कटाई ने इन घटनाओं को और घातक बना दिया है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, और जम्मू-कश्मीर जैसे क्षेत्रों में बादल फटने से फ्लैश फ्लड और भूस्खलन की घटनाएं आम हो गई हैं, जो स्थानीय समुदायों, आजीविका, और बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचाती हैं। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग के कारण वायुमंडलीय नमी में वृद्धि और अनियमित मौसमी पैटर्न इन चरम घटनाओं को बढ़ावा दे रहे हैं। इन आपदाओं से निपटने के लिए सटीक मौसम पूर्वानुमान, टिकाऊ विकास, और सामुदायिक जागरूकता जैसे कदम जरूरी हैं।
जम्मू-कश्मीर में बादल फटने की घटनाओं का तुलनात्मक विश्लेषण
2024 में देशभर में बाढ़, भूस्खलन, और बादल फटने से 2,803 लोग मारे गए। जम्मू-कश्मीर में 2023 की तुलना में 2024 में इन घटनाओं की आवृत्ति बढ़ी, लेकिन 2025 में रामबन जैसी घटनाओं की गंभीरता अधिक रही।
कश्मीर में ऐतिहासिक बाढ़ और नदी किनारों पर अतिक्रमण का प्रभाव
कश्मीर घाटी में बाढ़ का इतिहास पुराना और भयावह है, जो फ्लैश फ्लड और नदी किनारों पर अतिक्रमण से होने वाले खतरों को रेखांकित करता है। 1893 की बाढ़ ने श्रीनगर को तबाह कर दिया, जिसमें 25,426 एकड़ फसलें डूब गईं, 2,225 घर नष्ट हुए, और 329 मवेशी मारे गए, जिससे राज्य को 64,804 रुपये की राजस्व हानि हुई। 2014 की बाढ़, जिसे सदी की सबसे भीषण बाढ़ माना जाता है, ने जम्मू-कश्मीर में 300 लोगों की जान ली, 67,000 घर पूरी तरह नष्ट हुए, और 1.4 मिलियन लोग प्रभावित हुए, जिससे 18 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ। 2010 में लद्दाख में बादल फटने से हुई फ्लैश फ्लड ने सैकड़ों लोगों की जान ली और हजारों घरों को नष्ट कर दिया। इन घटनाओं की भयावहता दर्शाती है कि अनियोजित शहरीकरण, जम्मू-कश्मीर में झेलम और अन्य नदियों के किनारों पर अतिक्रमण, और प्राकृतिक जल निकासी तंत्रों जैसे वेटलैंड्स का ह्रास बाढ़ के प्रभाव को बढ़ाता है। डल झील, जो 1200 ईस्वी में 75 वर्ग किमी थी, अब अतिक्रमण के कारण एक-छठे क्षेत्र में सिमट गई है, जिससे बाढ़ नियंत्रण की प्राकृतिक क्षमता कमजोर हुई। इन आपदाओं से बचने के लिए नदी किनारों पर निर्माण को विनियमित करना, वेटलैंड्स को संरक्षित करना, और प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करना अनिवार्य है।
एक रिपोर्ट के अनुसार नदी किनारे अतिक्रमण और वेटलैंड्स का ह्रास बाढ़ के प्रभाव को बढ़ाता है। डल झील अब अपने मूल क्षेत्र का एक-छठे हिस्सा रह गई है।
आगे की राह
रामबन में राहत कार्य जारी हैं। NH-44 जल्द बहाल होने की उम्मीद है। मौसम विभाग ने 24-26 अप्रैल तक बारिश की चेतावनी दी है।
रामबन बादल फटना 2025 की त्रासदी जलवायु परिवर्तन और नदी किनारे अतिक्रमण की चुनौतियों को दर्शाती है। ऐतिहासिक बाढ़ हमें टिकाऊ विकास और आपदा प्रबंधन की आवश्यकता की याद दिलाती हैं।
स्रोत और संदर्भ -
1. भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD): 20 अप्रैल 2025 को रामबन में 169 मिमी बारिश।
2. आज तक: रामबन में बादल फटने से तीन मौतें, 100 से अधिक लोग बचाए गए।
3. रिपब्लिक भारत: रामबन में 25 घर जमींदोज, NH-44 बंद।
4. दैनिक जागरण: जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर मलबा, हजारों वाहन फंसे।
5. दृष्टि IAS: बादल फटने की वैज्ञानिक परिभाषा और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव।
6. X पोस्ट: रामबन में तबाही, 40 घर क्षतिग्रस्त, बाढ़ में गाड़ियां बहीं।
7. दैनिक नवज्योति: धर्मकुंड में तीन मौतें, राष्ट्रीय राजमार्ग बंद।