दो राज्यों की तकरार में ढह सकता है श्रीशैलम बांध, लाखों लोगों के सिर पर मंडरा रहा खतरा
कृष्णा नदी पर बने श्रीशैलम बांध के प्लंज पूल (Plunge Pool) में क्रैक के कारण बांध के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है। विशेषज्ञों की टीम ने फरवरी में बांध का निरीक्षण करने के बाद उसमें बड़ी दरार पड़ने या उसके किसी भी वक्त ढह जाने का खतरा जताया था। इसे देखते हुए राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण (NDSA) ने मार्च में ही आंध्र प्रदेश सरकार को बांध की तत्काल मरम्मत शुरू कर 31 मई तक इसे पूरा करने का निर्देश दिया था। पर, हाल यह है कि मई का पहला हफ्ता बीतने तक मरम्मत का काम शुरू भी नहीं हुआ है। इससे बांध के आसपास के इलाकों में रहने वाले लाखों लोगों के सिर पर जान-माल का खतरा मंडरा रहा है।
क्या कहना है विशेषज्ञों की टीम का
राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण (NDSA), केंद्रीय जल आयोग (CWC) और केंद्रीय जल एवं शक्ति अनुसंधान केंद्र (CWPRS) के विशेषज्ञों की एक टीम के अनुसार बांध के स्पिलवे के पास बने एक बड़े प्लंज पूल में दरार आने के कारण बांध के चटकने या ढह जाने का गंभीर खतरा पैदा हो गया है। प्लंज पूल में हुआ गहरा क्रैक बढ़ता ही जा रहा है और अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो बांध की स्थिरता को खतरा हो सकता है।
स्पिलवे बांध का वह हिस्सा होता है, जिससे जरूरत से ज्यादा पानी जमा होने पर उसे सुरक्षित रूप से बाहर निकाला जाता है, ताकि बांध टूटने का खतरा न हो। प्लंज पूल वह गहरा गड्ढा या क्षेत्र होता है जो स्पिलवे से गिरते हुए पानी को सोखता या थामता है।
इसके अलावा बांध के स्ट्रक्चर की सुरक्षा से जुड़े कई अन्य मुद्दे भी थे, जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता जताई गई थी। इस टीम ने अपनी रिपोर्ट फरवरी में सौंपी थी। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि श्रीशैलम बांध से जुड़े कई मुद्दे हैं जिन पर ‘तत्काल ध्यान’ देने की आवश्यकता है। इनमें प्लंज पूल का मामला सबसे अहम है, क्योंकि प्लंज पूल का निचला स्तर बांध की नींव के स्तर से बहुत नीचे है।
2009 से शुरू हुई दरारों की समस्या
प्लंज पूल में गहरे कटाव (scour) की समस्या पहली बार 2009 की भारी बाढ़ के बाद देखी गई थी, जब कृष्णा नदी में 25 लाख क्यूसेक से अधिक पानी बहा था। जबकि, बांध की क्षमता 14 लाख क्यूसेक की ही है। तब से यह कटाव समय के साथ बढ़ता ही गया और अब इसकी गहराई लगभग 143 फीट (43.5 मीटर) तक पहुंच गई है, जो बांध की नींव की गहराई से भी नीचे है। रिपोर्ट में बांध की नींव गैलरी (Foundations Gallery) में बने जल निकासी छिद्रों (Drainage holes) के बंद होने पर भी गंभीर चिंता जताते हुए कहा गया कि इससे बांध की पानी का दबाव झेलने की क्षमता प्रभावित हो रही है। साथ ही इससे बांध की स्थिरता भी प्रभावित हो रही है।
ड्रेनेज होल, फाउंडेशन गैलरी और ब्लॉक 17, 18 में भी दरारें
रिपोर्ट में कहा गया है कि बांध के ड्रेनेज होल को साफ करवाने की जरूरत है, क्योंकि इसके जाम होने से फाउंडेशन गैलरी में बहुत अधिक पानी निकल रहा है। बांध के ब्लॉक 17 और 18 में दो दरारें हैं, जिनकी तुरंत मरम्मत करने की जरूरत है। रिपोर्ट में कहा गया है कि "संकट" की वास्तविक गंभीरता निर्धारित नहीं की जा सकी है, क्योंकि फिलहाल उस बांध के कई इस्सों में जाना संभव नहीं है। बांध की सभी समस्याओं का पता लगाने और उनका समाधान खोजने के लिए इसकी गहन जांच किए जाने की जरूरत है। रिपोर्ट में कहा गया है, "ऐसी हालत में यदि बांध के गेटों को अगले मानसून के सीजन में संचालित किया जाता है, तो इनके तेजी से खराब होने की संभावना है।"
तेलंगाना ने एनडीएसए से लगाई मरम्मत की गुहार
टीम के इस दौरे के बाद तेलंगाना ने एनडीएसए से आग्रह किया था कि आंध्र प्रदेश तत्काल आवश्यक मरम्मत का कार्य करे। तेलंगाना के इंजीनियर-इन-चीफ (जनरल) जी अनिल कुमार ने एनडीएसए के अध्यक्ष अनिल जैन की 30 अप्रैल की हैदराबाद यात्रा के दौरान भी मरम्मत तत्काल कराए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया था। उन्होंने एनडीएसए से कहा कि वह आंध्र प्रदेश को कम से कम सीमेंट कंक्रीट टेट्रापोड्स से प्लंज पूल को भरने का निर्देश दे ताकि पूरी तरह से मरम्मत करने से पहले पानी के प्रभाव को कम किया जा सके। अनिल कुमार ने कहा, "मानसून आने में बस एक महीना बचा है । आंध्र प्रदेश को मरम्मत का काम शुरू कर देना चाहिए, क्योंकि बांध को कोई भी खतरा होने पर नीचे के इलाकों में पानी भर सकता है, जो नागार्जुनसागर बांध तक को प्रभावित कर सकता है। बांध में अगर कोई विनाशकारी घटना होती है तो विजयवाड़ा पूरे पर भी इसका असर पड़ेगा।" इसके बाद एनडीएसए के अध्यक्ष अतुल जैन ने तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कृष्णा नदी प्रबंधन बोर्ड (केआरएमबी) के अधिकारियों के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंस मीटिंग की थी।
आंध्र प्रदेश ने केंद्र के पाले में डाली गेंद
एनडीएसए ने मीटिंग के बाद आंध्र प्रदेश सरकार को श्रीशैलम बांध के प्लंज पूल क्षेत्र की तत्काल मरम्मत करने और 31 मई तक इसे पूरा करने का निर्देश दिया था। यह काम आंध्र प्रदेश की सरकार को इसलिए सौंपा गया, क्योंकि एनडीएसए ने आंध्र प्रदेश को श्रीशैलम बांध का मालिक घोषित किया है। हालांकि, एनडीएसए के निर्देश के बावजूद अभी तक मरम्मत का काम शुरू नहीं हुआ है। आंध्र प्रदेश ने इसके लिए केंद्र से धन प्राप्त होने में देरी होने का हवाला दिया है। आंध्र प्रदेश सरकार ने मरम्मत कार्य के लिए केंद्र सरकार से 284 करोड़ रुपये की सहायता मांगी है। हालांकि एनडीएसए ने राज्य सरकार से कहा है कि वह केंद्र से धनराशि मिलने की प्रतीक्षा किए बिना अपने संसाधनों से मरम्मत कार्य प्रारंभ करे।
दोनों राज्यों के बीच बांध को लेकर क्यों है विवाद
श्रीशैलम बांध को लेकर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच लंबे समय से प्रशासनिक, तकनीकी और जल प्रबंधन से जुड़े विवाद चले आ रहे हैं। बांध दोनों राज्यों की सीमा पर स्थित है। तेलंगाना के अलग राज्य बनने से पहले यह बांध आंध्र प्रदेश में था। पर, राज्यों के बंटवारे के बाद यह बांध के कुछ हिस्से दोनों राज्यों की सीमा में आ गए। डैम की संरचना का मुख्य भाग आंध्र प्रदेश के नंद्याल ज़िले में आता है। जबकि इसके ऊपरी जलाशय और बिजली उत्पादन केंद्रों का एक हिस्सा तेलंगाना के नलगोंडा और नागरकर्नूल ज़िले में आता है। इसलिए दोनों राज्यों का इस पर अधिकार और दावे हैं। तेलंगाना आरोप लगाता है कि आंध्र प्रदेश अकसर बिना सूचना के ज्यादा पानी छोड़ देता है, जिससे तेलंगाना को नीचे के इलाकों में पानी भरने का संकट पैदा हो जाता है। तेलंगाना चाहता है कि पानी बिजली उत्पादन की जरूरत के हिसाब से ही छोड़ा जाए, ताकि जल की बर्बादी और जलभराव का खतरा न हो। इसके अलावा तेलंगाना का आरोप है कि आंध्र प्रदेश बांध की मरम्मत में लापरवाही बरत रहा है, जबकि आंध्र का दावा है कि वह सही ढंग से काम कर रहा है। विवाद की इस स्थिति को देखते हुए कृष्णा नदी प्रबंधन बोर्ड (KRMB) को बांध पर नियंत्रण देने की बात भी कई बार उठी। लेकिन, दोनों राज्य बांध के नियंत्रण को KRMB को देने से हिचकते रहे हैं।
क्या होगा असर, कितने लोग होंगे प्रभावित
बांध के डाउनस्ट्रीम क्षेत्र में तेलंगाना व आंध्र प्रदेश के 30-40 लाख लोग रहते हैं। यह मुख्य रूप से गुंटूर, विजयवाड़ा, कृष्णा और पश्चिम गोदावरी जिलों को कवर करता है। ऐसे में बांध टूटन से इतनी बड़ी आबादी को खतरा हो सकता है। इस बारे में तेलंगाना राज्य बांध सुरक्षा प्राधिकरण के अध्यक्ष अनिल कुमार ने कहा, "अगर भारी बाढ़ के बाद बांध टूट जाता है, तो तेलंगाना और आंध्र प्रदेश दोनों के निचले इलाके जलमग्न हो सकते हैं। इससे इन इलाकों में लाखों लोगों को जानमाल का खतरा हो सकता है। इसके अलावा सिंचाई, बिजली उत्पादन और पेयजल आपूर्ति प्रणालियों को भी भारी नुकसान हो सकता है। इससे चेन्नई की जल आपूर्ति भी बाधित होगी और नागार्जुन सागर बांध, पुलीचिंतला बांध, प्रकाशम बैराज के लिए भी खतरा पैदा हो सकता है।"
आगे क्या होगा
यदि बांध की मरम्मत का काम तुरंत शुरू होता है और मानसून आने से पहले काम चलाने भर के इंतजाम कर लिए जाते हैं, तो काफी हद तक बांध की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी। डाउनस्ट्रीम आबादी को बाढ़ के संभावित खतरे से राहत मिल सकती है। बिजली और जल आपूर्ति पर भी शायद असर न पड़े। दूसरी ओर, यदि मानसून आने से पहले जरूरी मरम्मत नहीं होती है तो प्लंज पूल में कटाव बढ़ेगा, जिससे बांध की नींव कमजोर हो सकती है। बेसमेंट को भी खतरा हो सकता है। यदि बांध आंशिक या पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त होता है, तो फ्लड वेव के कारण डाउनस्ट्रीम में नागार्जुन सागर बांध के लिए भी खतरा पैदा हो सकता है।