हिमालय से निकलने वाली 12 प्रमुख नदी घाटियों के जल प्रवाह में कमी देखी जा रही है
हिमालय से निकलने वाली 12 प्रमुख नदी घाटियों के जल प्रवाह में कमी देखी जा रही है

पहाड़ों पर बीस साल से घटती आ रही बर्फबारी और सिमटती नदियां

एक अध्ययन के अनुसार, साल 2003 के बाद से हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में सबसे कम बर्फबारी हुई है। उच्च हिंदू कुश हिमालय से निकलने वाली 12 प्रमुख नदी घाटियों के जल प्रवाह का लगभग 23 प्रतिशत बर्फ के पिघलने से ही आता है।
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इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट के नए शोध के अनुसार, हिंदू कुश हिमालय (एचकेएच) में इस साल असामान्य रूप से कम बर्फबारी से भारत में गंगा नदी बेसिन में रहने वाले 60 करोड़ से अधिक लोगों सहित अन्य समुदायों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। एचकेएच स्नो अपडेट-2024 के मुख्य लेखक शेर मुहम्मद ने कहा है कि गंगा नदी बेसिन में बर्फ पिघलने का योगदान 10.3 प्रतिशत है, जबकि ग्लेशियर पिघलने का योगदान 3.1 प्रतिशत इसलिए तुलनात्मक रूप से, बर्फ का योगदान काफी महत्वपूर्ण है। यदि शुरुआती सीजन में कम वर्षा हो, तो जल उपलब्धता प्रभावित हो सकती है।

पहाड़ों पर बर्फ पिघलने का योगदान मुख्य रूप से गर्मी के मौसम की शुरुआत में होता है। ताजा शोध से पता चला है कि गंगा के लिए, यह 2003 के बाद से सामान्य से 17 प्रतिशत कम बर्फ की स्थिरता वाला वर्ष है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2003 और 2024 के बीच नवंबर और अप्रैल के बीच बर्फ जमाव के मौसम के दौरान बर्फ की स्थिरता में महत्वपूर्ण उतार-चढ़ाव थे।

पहाड़ों पर कम बर्फबारी

शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि इस साल पहाड़ों पर अत्यधिक कम बर्फबारी का पूरे एचकेएच क्षेत्र और निचले इलाकों में रहने वाले समुदायों पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। बर्फ से जल आपूर्ति का योगदान नदी दर नदी अलग-अलग है, जो अमु दरिया में नदीं के प्रवाह का 74 प्रतिशत, हेलमंद के प्रवाह का 77 प्रतिशत और सिंधु के प्रवाह का 40 प्रतिशत है। हिंदू कुश हिमालय से मिलने वाले मोठे पानी पर करीब 24 करोड़ लोग सीधे निर्भर हैं, जबकि 1.65 लोगों के जीवन पर यह क्षेत्र असर डालता है। आईसीआईएमओडी के विशेषज्ञों ने जल प्रबंधन अधिकारियों को सूखा प्रबंधन रणनीतियां और आपातकालीन जल आपूर्ति शुरू करने की चेतावनी दी है। संबंधित एजेंसियों के लिए आगामी समस्या के समाधान के लिए तेजी से कदम उठाना अनिवार्य हो गया है। सूखे और जल की कमी के बारे में लोगों को सूचित करना जरूरी हो गया है। पहाड़ों पर बनते - हालात लोगों को भी पता होने चाहिए।

लोगों को पहाड़ों की सच्चाई का पता होना चाहिए, ताकि वे प्रतिकूल स्थितियों से निपटने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहें। पहाड़ों पर जब बर्फ घट रही है, तो मैदानों में जल प्रबंधन की योजनाओं को नए सिरे से दुरुस्त करना होगा। सरकारी एजेंसियों को जल प्रबंधन सुधारने के लिए परस्पर सहयोग बढ़ाना पड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सहयोग के साथ चलने की जरूरत है। सीमा पार नदियों के बारे में भी सोचना पड़ेगा। समय के साथ पानी की जरूरत बढ़ती जा रही है, पर पहाड़ों पर बर्फ के घटने से आपूर्ति का प्रभावित होना तय है। अतः विशेषज्ञ दीर्घकालिक योजना बनाने के पक्ष में हैं। हम पहाड़ों पर बर्फ बचाने के लिए प्रयास कर सकते हैं। विशेषज्ञता बढ़ाने की जरूरत है। वैज्ञानिक इस बात को साफ तौर पर महसूस कर रहे हैं कि हिंदू कुश हिमालय से निकलने वाली अन्य नदियां हाल के वर्षों में अभूतपूर्व संकट का सामना कर रही हैं। चेतावनी देने का क्रम भी बना हुआ है, पर वांछित सुधार दूर की कौड़ी है।

इस साल अमु दरिया नदी बेसिन में सबसे कम बर्फबारी दर्ज की गई है, जो सामान्य से 28.2 प्रतिशत कम है। ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन में, साल 2021 में, सबसे कम मौसमी बर्फबारी देखी गई, जो औसत से काफी नीचे 15.5 प्रतिशत थी। 2019 में सबसे अधिक बर्फबारी दर्ज की गई थी, जो सामान्य से 27.1 प्रतिशत पर अधिक थी। इस वर्ष, हिमपात का स्तर सामान्य से काफी कम 14.6 प्रतिशत रहा है। सिंधु नदी बेसिन में भी बर्फ की स्थिरता में उल्लेखनीय कमी आई।

सुखी, बर्फ रहित चोटियों ने कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में पर्यटन पर भी असर डाला है। दिसंबर में, जम्मू-कश्मीर में बारिश की कमी 79 प्रतिशत, हिमाचल प्रदेश में 85 प्रतिशत, उत्तराखंड में 75 प्रतिशत और पंजाब में 70 प्रतिशत थी। जनवरी के आधे महीने में शायद ही बर्फबारी हुई। 

दिवेचा सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज के ग्लेशियोलॉजिस्ट अनिल कुलकर्णी के अनुसार, पहाड़ों पर कम बर्फबारी नदियों में जल प्रवाह को प्रभावित करेगी और जंगलों की बड़ी आग को जन्म देगी। विगत वर्षों में यह सब हम देख ही रहे हैं। कम बर्फबारी का मतलब है, मिट्टी में नमी का कम होना, इससे भूस्खलन को भी बल मिलता है, कटाव की आशंका अधिक होती है। पहाड़ों पर बर्फ का कम बने रहना जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा दुष्प्रभाव है। क्या हम सुधार के लिए कुछ कर सकते हैं?

स्रोत - हिन्दुस्तान, 19 जून 2024, देहरादून संस्करण

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