ओडिशा में ओलिव रिडले कछुओं ने बनाया 'अरिबाडा' का नया रिकॉर्ड
गंगा, यमुना, नर्मदा, ब्रह्मपुत्र जैसी विश्व विख्यात नदियों से इतर हमारे देश में एक ऐसी छोटी सी नदी भी है, जिसे विदेश तो क्या, देश के लोग भी बहुत कम ही जानते हैं। पर, यह अनजानी सी नदी एक ऐसा महत्वपूर्ण प्राकृतिक काम करती है, जिसके चलते भारत के तटीय राज्य ओडिशा ने दुनिया के पर्यावरणीय नक्शे (Environmental Map) पर अपना नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज कराया है। यह है ऋषिकुल्या नदी, जा ओडिशा के गंजाम जिले में यह नदी बंगाल की खाड़ी में मिलती है। करीब 4 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली इस नदी के एस्चुरी (Estuary) क्षेत्र में हर साल लाखों की संख्या में ओलिव रिडले (Olive Ridley) प्रजाति के कछुओं की मादाएं अंडे देने के लिए आती हैं। इस प्रजाति का वैज्ञानिक नाम लेपिडोचिल्स ओलिवेसिया है। वैसे, तो ओलिव रिडले कछुओं का प्रजनन प्रवास पास ही स्थित देवी नदी के मुहाने और गाहिरमाथा समुद्री अभयारण्य के इलाके में भी होता है, पर सबसे व्यापक स्तर पर इसे ऋषिकुल्या नदी के मुहाने पर ही देखा जाता है।
सर्दियों के मौसम में प्रजनन के लिए लाखों की संख्या में पहुंचने वाले ओलिव रिडले प्रजाति के कछुए करीब 7 हफ्ते तक यहां प्रवास करके अपने अंडों की सुरक्षा और उन्हें सेने (Hatching) का काम करते हैं। कछुओं के अंडे देने की इस प्रक्रिया को अरिबाडा (Arribada) कहा जाता है। अरिबाडा एक स्पेनिश शब्द है, जिसका मतलब है – सामूहिक आगमन। स्थानीय भाषा में उड़िया लोग इसे 'अर्रिभद्द' कहते हैं। इसके तहत लाखों की संख्या में ओलिव रिडले मादाएं समुद्र तट पर एक ही समय पर अंडे देने के लिए आती हैं, जिसे "नैटल होमिंग" कहा जाता है। अरिबाडा को दुनिया की सबसे बड़ी समुद्री कछुआ सामूहिक नेस्टिंग घटनाओं में से एक माना जाता है। साथ ही कछुओं के इस प्रवास को प्रशांत महासागर की बंगाल की खाड़ी के समुद्री इको सिस्टम के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे देखते हुए भारतीय वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 1972 के तहत इन कछुओं की सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम किए गए हैं। इस संरक्षण की बदौलत पिछले महीने ऋषिकुल्या नदी के मुहाने और गहिरमाथा में 13 लाख से अधिक ओलिव रिडले कछुओं ने अंडे दिए, जो कि 2023 में 11.5 लाख के पिछले रिकॉर्ड से करीब डेढ़ लाख अधिक रहा।
हैरान करने वाली है ‘अरिबाडा’ की प्रक्रिया
अरिबाडा के नाम से मशहूर प्रजनन प्रवास के लिए ओलिव रिडले कछुए ओडिशा के तीन प्रमुख तटीय क्षेत्रों पर पहुंचते हैं। यह क्षेत्र हैं गाहिरमाथा समुद्री अभयारण्य, रुशिकुल्या नदी का मुहाना और देवी नदी का मुहाना। हैरान करने वाली बात यह है लगभग 25 से 30 साल बाद यह कछुए जब प्रजनन के योग्य होते हैं, तो ठीक उसी जगह पर अंडे देने आते हैं, जहां उनका जन्म हुआ था। जबकि, उनका स्थायी निवास सैकड़ों-हजारों किलोमीटर दूर प्रशांत, अटलांटिक और हिंद महासागर के गर्म पानी में होता है। जहां वह सामान्य रूप से अपनी जिंदगी बिताते हैं। ऐसे में करीब 30 साल बाद प्रजनन के लिए हजारों मील दूर उड़ीसा के तट पर आने की बात और वहां पहुंचने का रास्ता उन्हें कैसे पता चलता है, यह आपने आप में एक रहस्य है। कछुए अपनी इस अनूठी यात्रा के दौरान भारत में गोवा, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश के समुद्री तटों से गुज़रते हैं, लेकिन प्रजनन करने और घर बनाने के लिये ज्यादातर आलिव रिडले कछुए ओडिशा के समुद्री तटों की रेत को ही चुनते हैं।
अरिबाडा की समय-सीमा और अंडे देने की प्रक्रिया
अंडे देने के लिए उड़ीसा तट पर मादा कछुओं का आगमन नवंबर से जनवरी के बीच होता है। इस दौरान मादा कछुए तट के पास मंडराने लगते हैं। अंडे देने की प्रक्रिया फरवरी से मार्च तक चलती है। हज़ारों मादा कछुए एक साथ अंडे देने के लिए समुद्र तट की रेत में एक से डेढ़ फीट गहरे गड्ढे खोद कर घोंसले बनाती हैं। इन घोंसलों में 80-120 अंडे तक देकर वे अंडों को रेत में दबा देती हैं, ताकि वे गर्मी से बचे रहें और उन्हें पनपने के उपयुक्त माहौल मिल सके। इन अंडों से बच्चे निकलने में लगभग 45-60 दिन लगते हैं। इसके बाद अप्रैल से मई तक अंडों से बच्चे निकलने यानी हैचिंग की प्रक्रिया चलती है। इस दौरान हजारों छोटे-छोटे कछुए अंडों से निकलकर समुद्र की ओर जाते देखे जा सकते हैं। अप्रैल–मई में रात के समय अंडों से बाहर आए ये बच्चे खुद ही रेत के गड्ढों से निकल कर सीधे समुद्र की ओर रेंगने लगते हैं। इस दौरान वे चंद्रमा और समुद्र की चमक के प्राकृतिक प्रकाश की ओर आकर्षित होते हैं। इस दौरान समुद्र तट पर किसी भी तरह की कृत्रिम रोशनी और शोर से उनके रास्ते भटकने का खतरा रहता है। इसलिए इस दौरान समुद्र तट के आसपास के क्षेत्रों में लोगों का आना-जाना बंद कर दिया जाता है।
खतरे और संरक्षण के कदम
ओलिव रिडले कछुओं के लिए सबसे बड़ा खतरा इनके मछुआरों के जाल में फंसने का होता है। वैसे तो ये कछुए समुद्र की गहराई में तैरते हैं लेकिन तकरीबन 40 मिनट बाद इन्हें सांस लेने के लिये समुद्र की सतह पर आना पड़ता है। इस दौरान ये मछली पकड़ने वाले जालों या ट्रॉलरों में फंस जाते हैं। हालांकि इस संबंध में ओडिशा हाईकोर्ट ने आदेश दे रखा है कि कछुओं के आगमन के रास्ते में संचालित होने वाले ट्रॉलरों में ‘टेड’ यानी टर्टल एक्सक्लूजन डिवाइस (ऐसा यंत्र, जिससे कछुए मछुआरों के जाल में नहीं फंसते) लगाया जाए। सरकार का भी आदेश है कि समुद्र तट के 15 किलोमीटर इलाके में कोई ट्रॉलर मछली नहीं पकड़ सकता। पर, चिंता की बात यह है कि इस आदेश का सख्ती से पालन नहीं होता है। समुद्र तट पर मानव गतिविधियों से होने वाला प्रदूषण और कृत्रिम रोशनी भी कछुओं की प्रजनन-प्रक्रिया को प्रभावित करती है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन और तापमान में वृद्धि अंडों के लिंग निर्धारण को प्रभावित कर सकती है। इन सब समस्याओं से कछुओं को बचाने के लिए संरक्षण के उपाय के तौर पर ओडिशा के समुद्र तटों को कुछ महीनों के लिए बंद कर दिया जाता है और आसपास के समुद्री इलाकों में मछुआरों को टर्टल एक्सक्लूजन डिवाइस (TED) का इस्तेमाल करने का निर्देश है। साथ ही संरक्षण की प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करते हुए वन विभाग और स्वयंसेवी संगठनों द्वारा मानव शृंखला बनाकर गश्त करने और निगरानी का अभियान भी चलाया जाता है। अरिबाडा के दौरान काफी सीमित गतिविधियों के साथ केवल ‘इको-टूरिज्म’ के लिए आए चुनिंदा पर्यटकों को जाने की इजाज़त होती है, जिन्हें सख्ती से नियमों का पालन करना होता है। इसके तहत हर साल सैकड़ों की संख्या में वैज्ञानिक, प्रकृति प्रेमी, पर्यावरणविद् और फोटोग्राफर यहां आते हैं।
तमिलनाडु तट पर मरे मिले थे 1100 कछुए
इस साल जनवरी में तमिलनाडु के समुद्र तट पर करीब 1100 ओलिव रिडले कछुओं के मरने की खबरों के चलते अरिबाडा के लिए ओडिशा तट पर कम कछुओं के आने की आशंका जताई जा रही थी। इनमें से अधिकतर कछुए राज्य की राजधानी चेन्नई के बीच पर पाए गए। वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा कई साल बाद हुआ है, जब तमिलनाडु के तटों पर इस तरह से बड़ी संख्या में ओलिव रिडले कछुओं के मरने की खबर आई है। आखिरी बार ऐसी घटना 2014 में देखने को थी, जब प्रजनन के दौरान चेन्नई की तटों पर लगभग 800 कछुए मृत पाए गए थे। पर्यावरणविदों द्वारा इसपर चिंता जताए जाने के बाद तमिलनाडु सरकार ने प्वाइंट कैलिमेरे या कोडियाकरई में एक जुड़ा हुआ जैव विवधता संरक्षण केंद्र (IBCC) स्थापित करने का फ़ैसला किया है। यह केंद्र मुख्यतौर पर ओलिव रिडले कछुओं से जुड़ी जागरुकता फैलाने का काम करेगा।
जागरूकता और सक्रियता ने दिखाया असर
समुद्र तट पर प्रदूषण और मानवीय गतिविधियां बढ़ने के चलते 2019 से 2021 के बीच ओलिव रिडले कछुओं का अरिबाडा के लिए पहुंचना काफी कम हो गया था। इसपर कई पर्यावरण कार्यकर्ताओं की सक्रियता के बाद हाईकोर्ट के निर्देश पर ओडिशा सरकार की ओर से संरक्षण और निगरानी के कई उपाय किए गए। भारतीय रक्षा अनुसंधान संगठन (डीआरडीओ) ने भी अपनी ओर से पहल करते हुए घोषणा की कि वह जनवरी से मार्च तक ओडिशा के व्हीलर द्वीप (अब्दुल कलाम द्वीप) पर कोई भी मिसाइल परीक्षण नहीं करेगा, क्योंकि इस समय ओडिशा के समुद्र तट पर ओलिव रिडले कछुए अंडे देने आते हैं। इन उपायों के चलते हाल के वर्षों में एक बार फिर स्थिति में सुधार देखने को मिला है। राहत की बात यह है कि और इस साल अरिबाडा में अंडों का एक नया रिकार्ड बना है।