चीन के शंघाई में बनाए जा रहे एक अंडर वाटर एआई डेटा सेंटर का ग्राफ़िक चित्र।
चीन के शंघाई में बनाए जा रहे एक अंडर वाटर एआई डेटा सेंटर का ग्राफ़िक चित्र।स्रोत : न्‍यूज़ बाइट

एआई के साइड इफ़ेक्‍ट: वैश्विक जल संकट को कैसे बढ़ा रहे हैं डेटा सेंटर

दो साल में ही दिखने लगे हैं एआई के खतरे। डेटा सेंटरों में बिजली-पानी की भारी खपत अब पर्यावरणीय चिंता का विषय बन चुकी है।
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ओपन एआई के चैट जीपीटी के बाद एलन मस्‍क के ग्रोक के आने से सारी दुनिया में एआई का इस्‍तेमाल बहुत तेज़ी से बढ़ा है। एआई के तेज़ी से इस बढ़ते दायरे से भारत भी अछूता नहीं है। बल्कि भारत के विशाल बाज़ार को देखते हुए दुनिया की दिग्‍गज टेक कंपनियां इसे अपनी एआई की भावी प्रयोगशाला के रूप में देख रही हैं। 

बीते दिनों हैदराबाद में 200 एकड़ की मेगा एआई सिटी बनाने के लिए माइक्रोसॉफ्ट, एनवीडिया, एडब्ल्यूएस जैसी दिग्‍गज टेक कंपनियों ने तेलंगाना सरकार के साथ सहमति पत्र पर हस्‍ताक्षर भी किए हैं। हालांकि, प्रखर खबर की एक हालिया मीडिया रिपोर्ट में एआई की इस तेज़ रफ्तार को लेकर गंभीर चिंताएं भी जताई जाने लगी हैं। एआई के चलते रोजगार पर पड़ने वाली मार और एआई के बेकाबू होने के खतरों के साथ ही अब इसके पर्यावरणीय दुष्‍प्रभावों को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। 

इसके हाईटेक डाटा सेंटर आने वाले दिनों में हमारे पर्यावरण और ईको सिस्टम पर भारी पड़ सकते हैं। खासकर, एआई को चलाने वाले डेटा सेंटरों में पानी की भारी-भरकम खपत से जल संकट पैदा होने की चुनौती सर उठा रही है। 

रोज़ाना 250 करोड़ लीटर पानी ‘पी’ रहा चैट जीपीटी !

अमेरिकी कंपनी ओपन एआई के एआई मॉडल चैट जीपीटी ने आर्टिफ़िशयल इंटेलीजेंस की दुनिया में क्रांति ला दी है।  पर, क्या आप जानते हैं कि रोज़ाना तकरीबन 2.5 अरब सवालों के जवाब देने वाले चैट जीपीटी को चलाने में प्रतिदिन 250 करोड़ लीटर पानी खर्च हो रहा है। 

यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया की रिपोर्ट में यह चौंकाने वाली बात सामने आई है कि हमारी ज़िंदगी आसान बनाने वाली एआई तकनीक किस तरह पर्यावरण के लिए एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। एआई डेटा सेंटरों को चलाने में भारी मात्रा में बिजली की खपत के साथ ही प्रतिदिन करोड़ों लीटर पानी भी खर्च हो रहा है। 

रिपोर्ट के मुताबिक एआई मॉडल से एक सवाल का जवाब प्राप्‍त करने की प्रक्रिया में लगभग आधे से एक लीटर पानी खर्च होता है। एआई डेटा सेंटर के संचालन में बड़ी मात्रा में पानी का यह इस्तेमाल शक्तिशाली कूलिंग टावर के ज़रिये इनके दमदार सर्च इंजन, प्रोसेसर और सर्वरों को ठंडा रखने के लिए किया जाता है, क्‍योंकि भारी तादाद में डेटा (बिग डेटा) की प्रोसेसिंग से यह प्रणाली बहुत तेज़ी से गर्म हो जाती है। 

यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया रिवरसाइड (यूसीआर) की एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, चैट जीपीटी रोज़ाना औसतन 2.5 अरब सवालों के जवाब देता है। ऐसे में यदि हर प्रॉम्प्ट के लिए आधा लीटर पानी की न्‍यूनतम खपत भी मानी जाए, तो रोज़ाना लगभग 125 करोड़ लीटर पानी तो खर्च हो रहा है। हालांकि, यूसीआर की रिपोर्ट के आधार पर तैयार की गई मीडिया रिपोर्टों में प्रति प्रॉम्प्ट 1 लीटर पानी की खपत के हिसाब से गणना करते हुए इस आंकड़े को प्रतिदिन 250 करोड़ लीटर बताया गया है। 

इससे स्‍पष्‍ट है कि चैट जीपीटी में प्रतिदिन 250 करोड़ लीटर पानी की खपत की बात एक अनुमानित आंकड़ा है, पर इतना तो तय है कि डेटा सेंटर में प्रतिदिन करोड़ों लीटर पानी की खपत हो रही है, जिसकी मात्रा इस आंकड़े के आसपास हो सकती है। 

इस शोध में भविष्यवाणी की गई है कि यदि इस तरह के एआई के उपयोग और उसके वर्कलोड में इसी रफ्तार से बढ़ोतरी जारी रहती है, तो महज़ दो साल बाद यानी सन् 2027 तक दुनिया भर में एआई प्रणालियों में सालाना पानी की खपत 4.2-6.6 अरब क्यूबिक मीटर तक पहुंच जाएगी। 

इसमें भी गौरतलब बात यह कि यह खपत पेयजल के रूप में इस्‍तेमाल होने वाले ताज़े यानी मीठे पानी की होगी, क्‍योंकि खारे पानी का इस्‍तेमाल इस काम में नहीं किया जाता। ताज़े पानी की यह खपत कितनी बड़ी है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह यूरोप के कुछ देशों के कुल वार्षिक जल उपभोग से भी ज्‍़यादा है।

एआई डेटा सेंटर का सर्वर रूम कुछ इस तरह का होता है, जिसे ठंडा रखने के लिए आमतौर पर हवा और पानी से चलने वाले कूलिंग सिस्‍टम का इस्‍तेमाल किया जाता है।
एआई डेटा सेंटर का सर्वर रूम कुछ इस तरह का होता है, जिसे ठंडा रखने के लिए आमतौर पर हवा और पानी से चलने वाले कूलिंग सिस्‍टम का इस्‍तेमाल किया जाता है। स्रोत : नेरिट

कुओं और नलों को सुखा रहा मेटा का डेटा सेंटर

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि जॉर्जिया के न्यूटन काउंटी में मेटा (फेसबुक) के विशाल डेटा सेंटर ने आसपास के कुओं को सुखा दिया। साथ ही इससे लोगों के घरों के नल तक सूख गए। रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 7.5 करोड़ डॉलर की लागत से मेटा का यह डेटा सेंटर 2018 में शुरू हुआ था। यह एआई सेंटर रोज़ाना 5 लाख गैलन पानी इस्तेमाल करता है, जो पूरी न्यूटन काउंटी के कुल दैनिक पानी उपयोग का लगभग 10% है। 

इस तरह मेटा का विशाल डेटा सेंटर स्थानीय जल संसाधनों पर गंभीर दबाव डाल रहा है। रिपोर्ट में स्थानीय निवासियों के हवाले से बताया गया है कि गर्मी के महीनों में पहले जिन क्षेत्रों में 100 फीट की गहराई पर भूजल उपलब्ध था, अब वहां 300 फीट तक खुदाई करने पर भी पर्याप्त पानी नहीं मिलता। 

इसके अलावा आने वाले समय में कई इससे भी ज़्यादा पानी की खपत वाले नए एआई प्रोजेक्‍ट आने वाले हैं, जिनसे इस इलाके का जल संकट और भी गंभीर होने की संभावना है। इसे देखते हुए अमेरिका के स्थानीय प्रशासन ने चेतावनी दी है कि 2030 तक जॉर्जिया के आसपास का एक बड़ा इलाका जल संकट में घिर सकता है। साथ ही, स्थानीय प्रशासन मेटा से अपने डेटा सेंटर में पारदर्शी जल उपयोग नीति लागू करने और वाटर रीसाइक्लिंग सिस्‍टम लगाने को कहा है।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि मेटा के इस डेटा सेंटर ने न केवल पानी की अत्यधिक खपत बढ़ाई, बल्कि स्थानीय भूजल-स्रोतों के पुनर्भरण (रीचार्ज) को भी बाधित कर दिया है। क्‍योंकि, डेटा सेंटर के निर्माण की गतिविधियों से भूमिगत जल के प्रवाह मार्ग अवरुद्ध हो गए हैं। इसके चलते इलाके के कई प्राकृतिक झरने और तालाब सूखने लगे हैं। 

साथ ही, चिंताजनक बात यह भी है कि डेटा सेंटर के कूलिंग सिस्टम में इस्तेमाल किया गया पानी दोबारा ज़मीन में नहीं लौट रहा है, बल्कि यह वाष्पित होकर हवा में उड़ जाता है। रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि मेटा ने स्थानीय समुदायों को पर्याप्त जानकारी दिए बिना भूजल के एक बड़े हिस्‍से पर कब्ज़ा जमा लिया है। 

इससे स्‍थानीय लोगों, किसानों और छोटे व्यवसायों को पानी की सीमित मात्रा में ही आपूर्ति मिल पा रही है। इस तरह एआई डेटा सेंटर “वॉटर-हंग्री इन्फ़्रास्ट्रक्चर” के रूप में उभर रहे हैं। इसलिए स्‍थानीय जल-संतुलन पर इनके दीर्घकालिक प्रभाव का ठोस मूल्यांकन किया जाना बेहद ज़रूरी होता जा रहा है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2021 में ओरेगन शहर में गूगल के डेटा केंद्र ने 27.45 करोड गैलन (1.04 अरब लीटर) पानी का इस्‍तेमाल किया। 2022 में यह खपत 30% बढ़कर 1.35 अरब लीटर हो गई। एक अन्‍य रिपोर्ट के मुताबिक, इसी अवधि में माइक्रोसॉफ्ट की पानी की खपत 4.7 अरब लीटर (1.2 अरब गैलन) से 34% बढ़कर 6.3 अरब लीटर (1.6 अरब गैलन) प्रति वर्ष हो गई।
स्रोत : https://www.knkx.org और datacenterdynamics.com

एआई डेटा सेंटरों में पानी की लगातार बढ़ती खपत से जुड़े ये आंकड़े इसलिए और भी चिंताजनक हो जाते हैं, क्‍योंकि सेंटरों को ठंडा करने के लिए स्वच्छ, बैक्टीरिया मुक्त पानी की आवश्यकता होती है, जैसाकि आमतौर पर  पीने और खाना पकाने जैसे ज़रूरी कामों में इस्‍तेमाल किया जाता है। 

इस तरह से देखा जाए तो डेटा सेंटरों में सीधे तौर पर हमारी मानवीय ज़रूरतों से जुड़ा हुआ साफ़ पानी इस्‍तेमाल किया जा रहा है। हालांकि जो डेटा सेंटर अपने कूलिंग सिस्टम में पानी का इस्तेमाल करते हैं यानी वाटर-कूल्ड डेटा सेंटर कम बिजली का इस्तेमाल करने के कारण एयर-कूल्ड डेटा सेंटरों की तुलना में लगभग 10% कम कार्बन उत्सर्जन करते हैं, पर इसमें होने वाली पानी की भारी खपत इस कमी को दरकिनार कर देती है, क्‍योंकि डेटा सेंटरों को की जाने वाली पानी की सप्‍लाई का अपने आप में एक अच्‍छा खासा कार्बन फ़ुटप्रिंट होता है। 

बहरहाल, पानी की खपत के इन आंकड़ों से इतना तो स्‍पष्‍ट है कि एआई आने वाले दिनों में  किस तरह हमारे पर्यावरण के लिए एक बड़ी समस्‍या बन सकता है। एआई के पर्यावरण पर असर के बारे में अभी लोगों को काफी कम जानकारी है, जिसके कारण लोग इस खतरे से बेखबर बने हुए हैं।

डेटा सेंटर के कूलिंग सिस्‍टम के संचालन में पानी और बिजली की खपत कुछ इस तरह होती है।
डेटा सेंटर के कूलिंग सिस्‍टम के संचालन में पानी और बिजली की खपत कुछ इस तरह होती है।स्रोत: साइंस डेव नेट

आने वाले समय में एआई किस-किस तरह से हमारे पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों को प्रभावित करने वाला है। इसके ख़तरों को कुछ इस प्रकार से समझा जा सकता है : 

1. भारी मात्रा में बिजली की खपत

जलवायु के लिए एआई का सबसे बड़ा जोखिम इसके लिए आवश्यक भारी-भरकम कंप्यूटिंग और डेटा प्रोसेसिंग के चलते पैदा होता है। किसी भी एआई मॉडल के संचालन और उसको विकसित व प्रशिक्षित करने के लिए भारी मात्रा में डेटा प्रोसेसिंग की जाती है, जिसके लिए भारी मात्रा में बिजली की खपत होती है। 

एक बड़े एआई मॉडल में हज़ारों किलोवाट-घंटे बिजली इस्‍तेमाल होती है, जो लाखों घरों की सालाना बिजली की खपत के बराबर हो सकती है। इसमें से ज्‍़यादातर बिजली फिलहाल थर्मल पावर प्‍लांट से ली जा रही है। कोयले जैसे फ़ॉसिल फ़्यूल से चलने वाले इन पावर प्‍लांट के कारण धरती पर काफी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन हो रहा है, जो धरती के तापमान में बढ़ोतरी यानी ग्‍लोबल वॉर्मिंग का कारण बन रहा है। इस तरह एआई के व्यापक उपयोग से जलवायु परिवर्तन की समस्या और विकराल हो सकती है। 

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) की एक रिपोर्ट के अनुसार 2022 में दुनिया भर के डेटा सेंटरों ने लगभग 240-340 TWh बिजली खपत की। यानी दुनिया की कुल बिजली खपत का 1.3% हिस्‍सा डेटा सेंटरों में इस्‍तेमाल हो रहा था। तकनीकी क्षेत्र से जुड़े जर्नल टेक्निकली की एक रिपोर्ट में पेंसिलवानिया यूनिवर्सिटी के आईटी विभाग के प्रोफेसर बेंजामिन सी. ली ने बताया है कि आईटी सेक्‍टर की बिजली खपत में पिछले कई वर्षों में इसमें कोई खास बदलाव नहीं आया है, पर एआई का इस्‍तेमाल बढ़ने से इसमें तेज बढ़ोतरी होने की संभावना नज़र आ रही है। साल 2030 तक यह 8% तक पहुंच सकती है। 

जैट जीपीटी जैसे जेनरेटिव एआई मॉडल कम्प्यूटेशन में सर्च इंजन के पारंपरिक डेटा सेंटरों की तुलना में बहुत ज़्यादा पावर की खपत करते हैं। उदाहरण के लिए एआई से की गई एक एलएलएम (लॉन्‍ग लैंग्‍वेज मॉडल) क्वेरी के लिये 2.9 वाट-घंटे बिजली की खपत होती है, जबकि नियमित इंटरनेट सर्च के लिये 0.3 वाट-घंटे की आवश्यकता होती है। इसे इस तरह से सरलता से समझा जा सकता है कि गूगल पर किसी वेब सर्च में अगर 1 मात्रा में ऊर्जा की खपत होती है, तो जैट जीपीटी से जवाब मांगने पर 7 से 10 गुना ज़्यादा ऊर्जा की खपत हो सकती है। ऐसे अगर हर कोई सर्च इंजन की तरह चैट जीपीटी का इस्तेमाल करना शुरू कर देगा, तो हम बिजली की खपत में एक बड़ी वृद्धि देखेंगे।

-बेंजामिन सी. ली, प्रोफेसर, पेंसिलवानिया यूनिवर्सिटी

एक वैज्ञानिक आकलन के मुताबिक, 100 मेगावाट क्षमता वाले एक सामान्य डेटा सेंटर में इस्तेमाल होने वाली बिजली से 80,000 घरों की ज़रूरत पूरी हो सकती है। आईईए के आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया में इस समय लगभग 9,000 से 11,000 क्लाउड डेटा सेंटर काम कर रहे हैं। ये सेंटर बड़ी मात्रा में बिजली की खपत कर रहे हैं। 

इसके अलावा कई डेटा सेंटर निर्माणाधीन हैं। चालू होने पर ये एआई डेटा सेंटर आने वाले समय में बिजली नेटवर्क पर स्थानीय स्‍तर पर एक बड़ा दबाव डाल सकते हैं। आईईए के अनुमान के अनुसार अगले साल यानी 2026 तक डेटा सेंटरों की कुल बिजली खपत 1,000 टेरावाट तक पहुंच सकती है, जो जापान के वर्तमान कुल बिजली उपयोग के बराबर है।

अमेरिकी साइंस जरनल साइंस फ्राईडे को दिए एक साक्षात्‍कार में सिएटल स्थित एलन इंस्टीट्यूट फॉर एआई के रिसर्च साइंटिस्‍ट जेस्‍सी डॉज ने डेटा सेंटरों में बिजली की भारी-भरकम खपत पर गंभीर चिंता जताई है।

जेएलएल में डेटा-सेंटर मार्केट के प्रबंध निदेशक एंडी सेवेंग्रोस ने एक इंटरव्‍यू में वाशिंगटन पोस्ट से कहा एआई बूम बिजली उत्‍पादन में अक्षय ऊर्जा (रिन्‍युएबल एनर्जी) के योगदान को बढ़ाने के अभियान की रफ्तार को धीमा कर हर है, "क्योंकि फिलहाल हम एआई सेंटर्स की बिजली की भारी मां को रिन्‍युएबल एनर्जी से पूरा कर पाने की स्थिति में नहीं पहुंच पाए हैं। ऐसे में  एआई लॉबी फ़ॉसिल फ़्यूल से चल रहे पावर प्‍लांट को रिटायर (बंद) करने के प्‍लान को टालने के लिए लॉबींग कर रहे हैं। एआई लॉबी के साथ ही पेट्रोलियम कंपनियां भी इस लॉबींग में शामिल हैं। 

"क्लाइमेट एक्शन अगेंस्ट डिसइनफॉर्मेशन'’ गठबंधन ने  इसका खुलासा करते हुए अपनी रिपोर्ट में कहा है फ़ॉसिल फ़्यूल कंपनियों और उनके पेड नेटवर्क ने राजनेताओं और प्रभावशाली लोगों के ज़रिये ऐसे दुष्‍प्रचार में लगे हुए हैं। ये लोग दशकों से जलवायु संबंधी चिंताओं को नकारने और इसके खिलाफ जागरूकता फैलाने के अभियानों को बदनाम करने का काम कर रहे हैं।

बिजली की आपूर्ति हमारे विचार से कहीं अधिक जोखिम में है। बिजली कंपनियां कह रही हैं, 'हमें नहीं पता कि हम इस लोड को संभाल पाएंगे या नहीं। हमें अपने सिस्टम का ऑडिट करना होगा, क्‍योंकि हमने पहले कभी इस तरह की पावर डिमांड का सामना नहीं किया है।

जेस्‍सी डॉज, साइंटिस्‍ट, एलन इंस्टीट्यूट फॉर एआई

अमेरिका के एक डेटा सेंटर का मॉडल।
अमेरिका के एक डेटा सेंटर का मॉडल। स्रोत: फ्रीपिक

2. डेटा सेंटरों से बढ़ रहा कार्बन उत्सर्जन 

एआई का सुचारु रूप से संचालन करने के लिए सैकड़ों-हजारों डेटा सेंटरों को 24/7 चालू रखना पड़ता है। एआई सिस्टम्स को लगातार चलाए रखने के लिए डेटा सेंटरों में सर्वर और कूलिंग सिस्टम्स चलते रहते हैं, जिससे भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन होता है। 

वैज्ञानिक जेसी डॉज का कहना है, "हमारे लिए इन बड़ी एआई प्रणालियों से हो रहे कार्बनडाई ऑक्‍साइड उत्सर्जन के पर्यावरणीय प्रभावों को समझना महत्वपूर्ण है। यह पता लगाना भी ज़रूरी है कि एआई वास्तव में जलवायु को कितना प्रभावित करेगा, क्योंकि विभिन्न प्रकार के एआई मॉडल जैसे कि मशीन लर्निंग या एआई आधारित किसी बड़े भाषा मॉडल (एलएलएम) को प्रशिक्षित करने और चलाने के लिए अलग-अलग मात्रा में कंप्यूटिंग शक्ति की आवश्यकता होती है।" 

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि ओपनएआई के बड़े भाषा मॉडल जीपीटी-3 के विकास के दौरान करीब 500 मीट्रिक टन कार्बन उत्पन्न हुआ।

एक बड़े एआई मॉडल से उतनी ही कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होती है जितनी 5 कारों के पूरे जीवनकाल में उत्सर्जित होती है। एआई हार्डवेयर और डेटा सेंटर वर्तमान में वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन में 1% का योगदान करते हैं, जिसके 2026 तक दोगुना हो जाने की उम्मीद है।

3. भारी मात्रा में पैदा हो रहा इलेक्‍ट्रॉनिक कचरा

एआई आधारित हार्डवेयर और कंप्यूटिंग सिस्टम का तेज़ी से विकास हो रहा है, जिससे इलेक्ट्रॉनिक कचरे की समस्या भी बढ़ रही है। पुराने सर्वर, प्रोसेसर और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब अनुपयोगी हो जाते हैं, तो उन्हें फेंक दिया जाता है, जिससे पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता है। इनमें मौजूद जहरीले रसायन मिट्टी और जल स्रोतों को प्रदूषित कर सकते हैं। 

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 तक दुनिया भर में कुल 5.36 करोड़ टन,  ई-कचरा निकला। साल 2021 में यह तकरीबन 5.74 करोड़ टन हो गया। जनरेटिव एआई आने के बाद वर्ष 2030 तक दुनिया में कुल 74.7 करोड़ मीट्रिक टन ई-कचरा निकलने का अनुमान है। इसे देखते हुए वैज्ञानिकों का कहना है कि ई-कचरे का सही प्रबंधन न होने पर यह मिट्टी और जल प्रदूषण को बढ़ा सकता है। 

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (डब्‍लूएचओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में निकलने वाला ई-कचरा पर्यावरण में 1,000 से अधिक विभिन्न रासायनिक पदार्थों को छोड़ सकता है। मौजूद सीसा, पारा, कैडमियम जैसे विषाक्त पदार्थ (न्यूरोटॉक्सिकेंट्स) मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं, जो विभिन्न बीमारियों का कारण बन सकते हैं। 

ये खासतौर पर गर्भवती महिलाओं और बच्‍चों की सेहत के लिए काफ़ी ज्‍़यादा खतरनाक होते हैं। एआई के कारण ई-कचरे की तेज़ी से बढ़ती मात्रा, पर्यावरणीय असंतुलन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। इसके समाधान के लिए रीसाइक्लिंग और स्थायी तकनीकी विकास आवश्यक है।

एआई डेटा सेंटर की प्रोसेसिंग यूनिट का ग्राफिकल मॉडल।
एआई डेटा सेंटर की प्रोसेसिंग यूनिट का ग्राफिकल मॉडल। स्रोत: प्रखर खबर

4. प्राकृतिक संसाधनों का बढ़ रहा है दोहन

एआई सिस्टम को कार्यशील बनाने के लिए सिलिकॉन, लीथियम, और अन्य दुर्लभ खनिजों की आवश्यकता होती है। इन खनिजों के खनन से प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन होता है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचता है। सीबीएस न्‍यूज की एक रिपोर्ट में विशेषज्ञों के हवाले से बताया गया है कि खनन कार्यों से मिट्टी के क्षरण के साथ ही भारी मात्रा में प्रदूषण की भी समस्‍या पैदा हो रही है। 

इसके अलावा माइनिंग में अंधाधुंध तरीके से बढ़ोतरी होने के चलते काफी बड़े इलाकों में जैव विविधता को भी नुकसान पहुंच रहा है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर शाओली रेन का कहना है, '’एआई सिस्टम्स के हार्डवेयर को तैयार करने के लिए कच्चे माल के खनन की आवश्यकता होती है। यह एक लेबर इंटेंस काम होने के साथ ही पर्यावरण की दृष्टि से भी हानिकारक होता है।"

छत्‍तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में मुख्‍यमंत्री विष्णु देव साय ने मई 2025 में देश के पहले एआई डेटा सेंटर पार्क की आधारशिला रखी।
छत्‍तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में मुख्‍यमंत्री विष्णु देव साय ने मई 2025 में देश के पहले एआई डेटा सेंटर पार्क की आधारशिला रखी। स्रोत: न्‍यूज़ बाइट

एआई के साइड इफ़ेक्‍ट को रोकने के लिए अबतक क्या किया गया है?

राहत की बात यह है कि एआई से पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्‍प्रभावों को रोकने के लिए अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर कुछ नीतिगत प्रयासों की शुरुआत हो गई है। हालांकि, ये कोशिशें अपने शुरुआती स्‍तर में होने के चलते फ़िलहाल नाकाफ़ी दिखाई दे रही हैं, पर उम्‍मीद है कि आने वाले वर्षों में इसमें तेजी और सक्रियता में बढ़ोतरी देखने को मिलेगी। एआई के पर्यावरणीय प्रभावों से निपटने के लिए अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर अबतक उठाए गए कदमों को इस प्रकार देखा जा सकता है: 

  • संयुक्‍त राष्‍ट्र का COP 29 प्रस्‍ताव : अंतरराष्‍ट्रीय दूरसंचार संघ द्वारा अज़रबैजान के बाकू में आयोजित यूएनएफसीसीसी 2024 व सीओपी 29 सम्‍मेलन में एआई कंपनियों की ओर से अपने डेटा सेंटरों में इनवायर्नमेंट फ्रेंडली प्रक्टिसेज को बढ़ाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया गया है। इसकी एक रिपोर्ट में एआई को क्लाइमेट एक्शन एवं ग्रीन डिजिटल एजेंडा के माध्यम से जोड़ने की पहल का वर्णन है।

  • कानूनी कार्यवाहियां : टेक्‍नोलॉजिकल इनोवेशन और सस्‍टेनबिलिटी को बढ़ा कर एआई के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए यूरोपीय संघ ने जून 2024 में पहला प्रमुख एआई-विनियमन अपनाया है। ईयू की वेबसाइट पर प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, यूरोप में यूरोपीय संघ ने जहां एआई अधिनियम 2024 को लागू किया है, वहीं अमेरिका में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एनवायर्नमेंटल इंपैक्‍ट एक्‍ट 2024 कानून पारित हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक इसमें एआई के पर्यावरणगत प्रभावों का अध्ययन तथा डेटा सेंटर-जल-उपयोग की सूचना देने जैसे प्रावधानों को शामिल किया गया है। 

  • ग्‍लोबल एथिकल एआई गाइडलाइंस : कुल 190 से अधिक देशों ने यूनेस्‍को की ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता की नैतिकता पर अनुशंसा’ में एथिकल एआई गाइडलाइंस को अपनाने की बात कही है। यूनेस्‍को की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, गाइडलाइंस में पर्यावरण व पारिस्थितिकी को भी नीति कारकों में शामिल किया गया है। हालांकि, फ़िलहाल इसे गैर-बाध्यकारी रखा गया है। फिर भी, इससे एआई के कार्बन फुटप्रिंट और बिजली की खपत पर कुछ हद तक काबू होने की उम्‍मीद है।

  • एआई एक्शन समिट 2025 : संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने एआई तकनीक में अग्रणी देशों से आग्रह किया है कि वे ऐसे एआई एल्गोरिदम और अवसंरचना डिजाइन करें, जो कम ऊर्जा की खपत करें तथा ऊर्जा उपयोग को अनुकूलित करने के लिये एआई को स्मार्ट ग्रिड में एकीकृत करें। यूएन की वेबसाइट पर एआई सम्‍मेलन में दिए गए महासचिव के पूरे भाषण की जानकारी उपलब्‍ध है। 

  • यूएनईपी की सिफारिशें : यूएनईपी ने एआई डेटा सेंटरों को पर्यावरण के लिए एक बड़ी चुनौती माना है। यूएनईपी की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के अनुसार उसने एआई के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये प्रमुख रणनीतियां प्रस्तावित की हैं।

तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में आईआईटी हैदराबाद और  एनवीएआईटीसी के सहयोग से बन रहा एआई डेटा सेंटर।
तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में आईआईटी हैदराबाद और एनवीएआईटीसी के सहयोग से बन रहा एआई डेटा सेंटर।स्रोत: इंडिया टुडे

कैसे बनाया जाए एआई को पर्यावरण के अनुकूल

हालांकि, एआई के नकारात्मक प्रभाव चिंताजनक हैं, लेकिन कुछ उपायों से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। इनमें तकनीकी और नीतिगत दोनों उपाय शामिल हैं। तकनीकी पक्ष की बात करें, तो एआई सिस्टम को पर्यावरण दक्षता (एनवायर्नमेंट एफिसिएंशी) को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन किया जाना चाहिए। इसमें ग्रीन कंप्यूटिंग, इको-डिज़ाइन और जीवन चक्र मूल्यांकन (लाइफ साइकल एसेसमेंट) जैसे सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए। 

इस तरह एआई सिस्टम को अपनी ऊर्जा खपत, सामग्री उपयोग और ई-कचरे को कम से कम करना चाहिए और अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाते हुए रीसाइक्लिंग को बढ़ाना चाहिए। नीतिगत पक्ष पर की बात की जाए तो सरकारों को एआई प्रणाली को नियंत्रित करने के लिए ऐसा व्यापक फ्रेमवर्क बनाना चाहिए, जिसमें एआई सिस्टम के पूरे जीवन काल में उससे पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को ध्यान में रखा जाए। 

इसमें पर्यावरणीय प्रभाव को मापने के लिए स्पष्ट लक्ष्य और संकेतक (इंडिकेटर) निर्धारित करना, ग्रीन एआई प्रैक्टिसेज को बढ़ावा देने के लिए कानूनी ढांचा तैयार व लागू करना चाहिए। इसके साथ ही इन मामलों में निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में स्‍टेकहोल्‍डर्स के सहयोग और सार्वजनिक भागीदारी को बढ़ावा देना चाहिए। मोटे तौर पर नीतिगत स्‍तर पर यह कदम उठाए जा सकते हैं :

मानकों पर आधारित जवाबदेही तय करना : सरकारों को विभिन्‍न तकनीक, उत्‍सर्जन और कचरे के निपटान जैसी चीज़ों के लिए मानक तय करके एआई डेटा सेंटरों की जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए। इसके साथ ही एआई डेटा सेंटरों को चलाने वाली टेक कंपनियों को एआई के एआई पर्यावरणीय प्रभावों की जानकारी देने की एक पारदर्शी व्‍यवस्‍था लागू की जानी चाहिए।

नियामक ढांचा तैयार करना: स्थिरता लक्ष्यों के साथ एआई डेटा सेंटरों में संसाधनों के उपयोग की निगरानी और इसपर लगाम लगाने वाले नियम-कानूनों को लागू करना। ऊर्जा और जल संरक्षण तकनीकों का उपयोग कर डेटा सेंटरों में बिजली और पानी की खपत कम की जानी चाहिए।

टेक्निकल इनोवेशन को बढ़ावा: हरित एआई समाधानों के लिए रिसर्च एंड डेवलपमेंट (आरएंडडी) पर निवेश करना तथा प्रदर्शन को बनाए रखते हुए पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जाए। इसके लिए एनर्जी एफिसिएंट एआई मॉडल विकसित किए जाएं।

रीसाइक्लिंग और सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा: संसाधनों की खपत को घटाने और  ई-कचरे के निपटान के लिए संसाधनों की रीसाइक्लिंग पर ज़ोर देने वाली अर्थव्यवस्था (सर्कुलर इकॉनमी) के सिद्धांत को अपनाया जाना चाहिए। इसके तहत एआई डेटा सेंटरों को अक्षय ऊर्जा (रिन्‍यूएबल एनर्जी) से चलाने की व्‍यवस्‍था लागू की जानी चाहिए। साथ ही, डेटा सेंटरों के ई-कचरे की रीसाइक्लिंग और रीयूज़ को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

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