पारिस्थितिकी के बारे में क्या बताती है कोच्चि में देखी गई ‘बायोल्यूमिनेसेंस’
दक्षिण भारत के पश्चिमी घाट वाले इलाकों में फैले ‘बैक वाटर्स’ पर्यटकों के बीच खासे लोकप्रिय हैं। नारियल के बागानों और स्पाइस प्लांटेशन की सैर के साथ ही बैक वाटर्स में तैरती हाउस बोट्स में वक्त गुज़ारना तो देशी-विदेशी सैलानियों को खूब भाता ही है, पर हाल में हुए कुदरत के एक करिश्मे ने पर्यटकों के लिए एक अनूठा आकर्षण पेश कर दिया है। हम बात कर रहे हैं केरल के बैक वाटर्स में मार्च के अंतिम सप्ताह से अप्रैल के शुरुआती दिनों के दौरान दिखाई दी एक खास नीली चमक के मनमोहक नज़ारों की, जिसे विज्ञान की भाषा में "बायोल्यूमिनेसेंस" (Bioluminescence) के नाम से जाना जाता है। कोच्चि जिले के कुम्बलंगी और चेल्लानम क्षेत्रों के बैकवाटर्स में बायोल्यूमिनेसेंस की हालिया घटना मार्च 2025 के अंत से अप्रैल तक देखी गई। स्थानीय लोग इस चमकदार नीली रोशनी को मलयालम भाषा में 'कवारु' कहते हैं, जो रात में पानी की हलचल से उत्पन्न होती है।
क्या है बायोल्यूमिनेसेंस
बायोल्यूमिनेसेंस प्लवक (Plankton) वर्ग के कुछ जीवों, खासकर डिनोफ्लैजलेट्स के भीतर होने वाली एक प्राकृतिक घटना है, जिसके कारण वे रात के अंधेरे में नीली या हरी रोशनी छोड़ते हैं। यह चमक इन प्लवकों की कोशिकाओं के भीतर ल्यूसीफ़ेरेज़ नाम के एंजाइम के ल्यूसीफ़ेरिन नामक रसायन के साथ प्रतिक्रिया करने के कारण पैदा होती है। कुछ समुद्री जीवों में बैक्टीरियल बायोल्यूमिनेसेंस भी देखने को मिलती है, जिसे इन जीवों में मौजूद बैक्टीरिया पैदा करते हैं।
प्लवक, जल में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीव होते हैं, जो तैरने में सक्षम नहीं होते, बल्कि जल की धाराओं के साथ बहते रहते हैं। प्लवक मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं फाइटोप्लवक और जूप्लवक।फाइटोप्लवक वर्ग में ऐसे सूक्ष्म पौधे आते हैं जो सूर्य के प्रकाश से प्रकाश संश्लेषण करके भोजन बनाते हैं। इनके उदाहरण डायटम्स, डाइनोफ्लैजेलेट्स आदि हैं। जूप्लवक वर्ग में वे सूक्ष्म जीव आते हैं जो फाइटोप्लवक या अन्य सूक्ष्म जीवों को खाते हैं। इनमें एककोशीय प्राणी (जैसे एमिबा), लार्वा और कुछ छोटे क्रस्टेशियन्स शामिल होते हैं। प्लवकों की पानी में अपनी ही उपयोगिता होती है, क्योंकि ये जलीय खाद्य शृंखला का आधार होते हैं। ये पानी में ऑक्सीजन के स्तर को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं (विशेषकर फाइटोप्लवक)। बायोल्यूमिनेसेंस जैसी घटनाओं में Noctiluca scintillans जैसे प्लवक शामिल होते हैं।
कोच्चि के बैक वाटर्स में क्यों होता है बायोल्यूमिनेसेंस?
कोच्चि (केरल) के बैक वाटर्स में यह चमक Noctiluca scintillans जैसे विशेष प्रकार के डिनोफ्लैजलेट्स की मौजूदगी के कारण देखने को मिलती है। दरअसल, बारिश के मौसम के बाद जब बैक वाटर्स के खारे समुद्री पानी में नदियों व झीलों के मीठे जल का मिश्रण होता है, तब इन जीवों की संख्या काफी बढ़ जाती है। ऐसा पोषक तत्वों की अधिकता के कारण होता है।
किस तरह दिखाई देता है बायोल्यूमिनेसेंस?
बायोल्यूमिनेसेंस का नज़ारा कुछ खास स्थितियों में और खास तरीके से ही देखा जा सकता है। बैक वाटर्स में Noctiluca scintillans जैसे डिनोफ्लैजलेट्स के होने पर जब कोई नाव या मनुष्य पानी को हिलाता है, तो पानी के भीतर एक हल्की नीली-सी रोशनी जगमगाने लगती है। रात के घने अंधेरे में इसे आसानी से देखा जा सकता है, खासकर जब आसमान में बादल छाने या अमावस के चलते काफी घना अंधेरा हो, तब यह चमक और भी शानदार नज़र आती है।
बायोल्यूमिनेसेंस का यह दृश्य रात के अंधेरे में समुद्र के भीतर तारों के चमकने जैसा लगता है। यह रात में ही देखने को मिलता है। क्योंकि बायोल्यूमिनेसेंट प्लवकों में एक आंतरिक जैविक घड़ी (Circadian Clock) होती है जो उन्हें केवल रात के समय में ही सक्रिय करती है। दिन में सूरज की तेज रोशनी उनकी रासायनिक प्रतिक्रिया को रोक देती है।
तापमान और प्रदूषण बढ़ने का संकेत
ये जीव आमतौर पर गर्म, स्थिर और प्रदूषित पानी में तेजी से पनपते हैं, जिससे यह संकेत मिल सकता है कि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण या पोषक तत्वों की अधिकता (eutrophication) की स्थिति बन रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार, इन चमकने वाले प्लवकों, खासकर Noctiluca scintillans का असामान्य रूप से और बार-बार दिखना समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि, पोषक तत्वों के असंतुलन और समुद्री जलधाराओं (ocean currents) के बदलाव से जुड़ा होता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर ऐसी घटनाएं किसी इलाके में लगातार बढ़ती हैं, तो यह उस क्षेत्र की समुद्री पारिस्थितिकी (Marine ecology) में असंतुलन का चेतावनी का संकेत हो सकता है, जो मछलियों के प्रवास, ऑक्सीजन स्तर और खाद्य शृंखला को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।
प्लवक समुद्री खाद्य श्रंखला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। पर जब इनकी संख्या बहुत बढ़ जाती है, तो ये डाइमिथाइल सल्फ़ाइड, डिज़ॉल्व्ड ऑर्गैनिक कार्बन और अमोनियम आदि टॉक्सिन पानी में छोड़ने लगते हैं, जिससे पानी की गुणवत्ता खराब होती है और नुकसानदेह एल्गल ब्लूम (HAB) बढ़ने लगता है। यह पानी में ऑक्सीजन की मात्रा घटा देता है, जिससे मछलियां व अन्य समुद्री जीव मरने लगते हैं।
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 1890 से 2023 तक बायोल्यूमिनेसेंस की की 26 घटनाएं दर्ज की गईं, जिसमें से 19 घटनाएं 2011 के बाद की हैं। रिपोर्ट कहती है कि बायोल्यूमिनेसेंस की घटनाओं को नुकसानदेह एल्गल ब्लूम के संकेतक के तौर पर देखा जाना चाहिए। इस विषय पर अधिक रिसर्च की ज़रूरत है, ताकि भारतीय समुद्रों की जैव-विविधता को बनाए रखा जा सके।
भारत में इन जगहों पर दिखता है बायोल्यूमिनेसेंस
केरल के बैक वाटर्स के अलावा बायोल्यूमिनेसेंस को अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप द्वीप समूह, गोवा, चेन्नई, और महाराष्ट्र के मुंबई और भट्याच डोंगरी जैसे कुछ तटीय हिस्सों में देखा जा सकता है। इसके अलावा हिमालय की ऊंचाइयों में स्थित पर्वतीय राज्य मणिपुर की लोकतक झील में भी कुछ मौकों पर बायोल्यूमिनेसेंस दिखाई देता है। हालांकि इन सभी घटनाओं में दिखाई देने वाली चमक का रंग-रूप थोड़ा अलग हो सकता है।
‘रेड टाइड’ कर देता है पानी को लाल
कभी-कभी समुद्र या झील जैसे जलस्रोतों में बायोल्यूमिनेसेंट Noctiluca scintillans के अत्यधिक फैलाव की स्थिति बन जाती है, जिसे रेड टाइड कहा जाता है। कई बार इसमें पानी पूरी तरह से लाल हो जाता है, मानो उसमें लाल रंग या खून घोल दिया गया हो। यह स्थिति समुद्री इकोसिस्टम के लिए एक खतरे की घंटी जैसी होती है। इस स्थिति में पानी में मौजूद प्लवक काफी मात्रा में अमोनिया छोड़ते हैं, जिससे पानी में ऑक्सीजन का स्तर काफी घट जाता है। इससे मछलियां और अन्य जलीय जीव मरने लगते हैं। इसलिए भारत के मछुआरे अपने पारंपरिक ज्ञान के तौर पर तटीय क्षेत्रों में पानी में लालिमा दिखाई देने को चेतावनी के संकेत के रूप में देखते हैं।
मछलियां भी शिकार और चकमा देने के लिए करती हैं 'झूठे बायोल्यूमिनेसेंस' का इस्तेमाल
गहरे समुद्र की कुछ मछलियां, जैसे एंगलरफ़िश अपने सिर के ऊपर एक बायोल्यूमिनेसेंट “लालटेन” जैसी संरचना रखती हैं। इससे वे अपने चारों ओर के छोटे जीवों को भ्रमित कर पास बुलाती हैं और फिर उन्हें खा जाती हैं। इसे "Lure Mechanism" कहते हैं, यानी शिकार को आकर्षित करने का तरीका। इसके अलावा गहरे समुद्र में रहने वाली अटोला जैलीफ़िश या ड्रैगनफ़िश बायोल्यूमिनेसेंस जैसी लाल रोशनी पैदा करके शिकारी को चकमा देने का काम करती हैं, क्योंकि ज़्यादातर समुद्री जीव लाल रोशनी को देख ही नहीं सकते।
केवल समुद्री जीवों तक सीमित नहीं है बायोल्यूमिनेसेंस
ऊपर दी गई जानकारियों के आधार पर यह सोचना सही नहीं है कि बायोल्यूमिनेसेंस केवल समुद्र में रहने वाले जीवों जैसे प्लवक, जेलीफ़िश, या डीप सी फ़िश में ही होता है। यह क्षमता जंगलों में पाए जाने वाले कुछ कवकों (Fungi) में भी होती है। उदाहरण के तौर पर, माइसीना क्लोरोफॉस नाम का एक कवक रात में हल्की हरी चमक पैदा करता है। इसे "फ़ॉक्सफ़ायर" भी कहा जाता है। यह कवक जापान, ब्राजील और भारत के पश्चिमी घाट के वनों में पाया जाता है। इसके अलावा पानी में दिखाई देने वाली हर चमक बायोल्यूमिनेसेंस नहीं होती। असल में, कुछ जीव या रासायनिक यौगिक पराबैंगनी या अन्य प्रकाश में चमक उत्पन्न करते हैं, पर यह बायोल्यूमिनेसेंस नहीं होती। इन्हें फ्लोरेसेंस कहा जाता है। दोनों में अंतर यह है कि बायोल्यूमिनेसेंस जीव के अंदर रासायनिक प्रक्रिया से खुद की रोशनी बनती है, जैसे ल्यूसीफ़ेरिन-ल्यूसीफ़ेरेज़ प्रतिक्रिया। इसके विपरीत फ्लोरेसेंस में किसी बाहरी प्रकाश के असर में अस्थायी चमक पैदा होती है।