केवल पेड़ लगाने से नहीं रुकेगी ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन
धरती के बिगड़ते पर्यावरण, ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) जैसी समस्याओं का सबसे कारगर समाधान पेड़ (पौधे) लगाने को समझा जाता है। पर, ए अध्ययन के मुताबिक पर्यावरण विज्ञानियों का मानना है कि केवल पौधरोपण करके इन समस्याओं से निजात नहीं पाई जा सकती है। इसके लिए हमें कई तरह के प्रयास एक साथ करने होंगे। बहुस्तरीय प्रयासों के बिना वृक्षारोपण की कवायद हालात में कोई खास बदलाव नहीं ला पाएगी। इसलिए पर्यावरण की रक्षा के लिए हमें वृक्षारोपण की रणनीति की सीमाओं को समझना जरूरी है। इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि केवल पेड़ लगाने पर निर्भर रहने से जलवायु परिवर्तन की चुनौती का समाधान क्यों नहीं हो पाएगा और हमें अधिक व्यापक नज़रिया अपनाने की ज़रूरत क्यों है?
प्रदूषण के मुकाबले काफी धीमी रफ्तार से बढ़ते हैं पेड़
पेड़ प्रकाश संश्लेषण नामक प्रक्रिया के माध्यम से CO₂ को अवशोषित करके हमारे वातावरण को ग्रीन हाउस इफेक्ट से बचाने का काम करते हैं। लेकिन समस्या यह है कि तेजी से बढ़ रहे प्रदूषण और ग्लोबल वॉर्मिंग के मुकाबले यह प्रक्रिया काफी धीमी होती है। इसके अलावा पेढ़ों की वृद्धि (ग्रोथ) भी काफी धीरे-धीरे होती है। इस कारण एक पेड़ को पर्याप्त मात्रा में कार्बन को सोखने लायक बनने में कई साल या कभी-कभी दशकों तक का समय लग जाता है। निश्चित रूप से हमारे पास इंतजार करने के लिए इतना समय नहीं है।
समझने वाली बात यह है कि जब पेड़ बढ़ रहे होते हैं, तबतक जलवायु परिवर्तन का कारण बनने वाली गैसें काफी मात्रा में बढ़ चुकी होती हैं। इसलिए ग्लोबल वॉर्मिंग की स्थिति में असरदार बदलाव लाने के लिए हमें सिर्फ़ पेड़ लगाने से ज़्यादा कुछ करने की ज़रूरत है। हमें हवा में छोड़ी जाने वाली गैसों को कम करने के उपायों पर भी ध्यान देना होगा, जैसे जीवाश्म ईंधन जलाने से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा घटाना। इन गैसों के उत्सर्जनों को कम करके, हम जलवायु परिवर्तन की तेज रफ्तार को धीमा कर सकते हैं और पेड़ों को उनकी ग्रोथ के लिए वह समय दे सकते हैं, जिसकी उन्हें ज़रूरत है।
ग्रीनहाउस गैस गैसों का भारी उत्सर्जन
जलवायु परिवर्तन की समस्या को पूरी तरह से समझने के लिए हमें सबसे पहले इस तथ्य को समझना होगा कि कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी कई ग्रीनहाउस गैसें रोज-ब-रोज भारी मात्रा में हवा में छोड़ी जा रही हैं। ये गैसें मुख्य रूप से मनुष्यों द्वारा किए जाने वाले कामों से आती हैं, जैसे कार चलाना, कारखाने चलाना और खेती के लिए पम्प या जेनरेटर चलाना। इसके अलावा ज्वालामुखी और जंगल की आग जैसी प्राकृतिक घटनाओं से भी ग्रीनहाउस गैस गैसों का उत्सर्जन होता है । हालांकि, प्राकृतिक घटनाएं मानवीय गतिविधियों की तुलना में काफी कम उत्सर्जन करती हैं। वास्तव में मानवीय गतिविधियों से होने वाले उत्सर्जन की मात्रा पर्यावरण की इन गैसों को सोखने की क्षमता से कहीं अधिक है। इस कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है और इससे हमारी धरती के लिए गंभीर समस्याएं पैदा हो रही हैं। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के अलावा, जंगलों को काटने, कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों का उपयोग करने और भूमि का उपयोग करने के तरीके को बदलने से भी जलवायु परिवर्तन हो रहा है। यह सभी क्रिया-कलाप बड़ी मात्रा में हानिकारक गैसों को वातावरण में छोड़ते हैं और यह उत्सर्जन हमारे ग्रह की प्रणालियों के काम करने के तरीके को प्रभावित करता है। अगर हम भावी पीढ़ियों की बेहतरी की खातिर बदलाव लाना चाहते हैं, तो हमें इन सभी चीजों को सुधारने के सम्मिलित प्रयास करने होंगे। हमें कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन का कम इस्तेमाल करना होगा और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों (clean energy sources) का इस्तेमाल करना शुरू करना चाहिए। हमें ऐसे तरीकों से खेती करने की भी ज़रूरत है जो पर्यावरण को नुकसान न पहुँचाएँ। इन चीज़ों को करके, हम जलवायु परिवर्तन के खिलाफ़ लड़ाई में वास्तविक प्रभाव डाल सकते हैं और अपने ग्रह को स्वस्थ रख सकते हैं।
वनों की कटाई और जंगल की आग पर काबू पाना जरूरी
ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए हमें हमारे पास पहले से मौजूद जंगलों की रक्षा करने के कड़े उपाय करने होंगे। क्योंकि इन जंगलों के बड़े-बड़े पेड़ बड़ी मात्रा में कार्बन को सोख कर प्रदूषण को कम करने और तापमान के नियंत्रण में सक्षम हैं। इसका मतलब है कि हमें जंगलों की कटाई रोकने के लिए कड़े उपाय करने होंगे। इसके साथ ही जंगल की आग पर भी काबू पाना होगा, क्योंकि आग में एक झटके में हजारों एकड़ जंगल एक झटके में जलकर नष्ट हो जाते हैं। साथ ही ये आग भारी मात्रा में कार्बन को हवा में छोड़ कर जलवायु परिवर्तन की स्थिति को और भी बदतर बनाती है। जंगल की आग न केवल पेड़ों को जलाती है, बल्कि गर्मी से उन्हें नुकसान भी पहुँचाती है। जंगल की आग से निकलने वाला धुआँ सूरज की रोशनी को रोककर बिना जले पेड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है और उनके लिए प्रकाश संश्लेषण की आवश्यक प्रक्रिया को पूरा करना मुश्किल बना सकता है। हाल के वर्षों में दुनिया भर में जंगलों में आग लगने की घटनाओं की संख्या और उनकी तीव्रता में वृद्धि देखी गई है। इस तरह जंगल की आग से निपटना, जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध हमारी लड़ाई में वृक्षारोपण से भी अधिक प्रभावी उपाय है। अत: जंगलों को जलने से बचाने के उपाय हमें ऊंची प्राथमिकता के तहत करने होंगे।
पुराने जंगलों को फॉरेस्टेशन से दें नया जीवन
इसके साथ ही हमें वानिकी (फॉरेस्टेशन) का काम इस तरह से करना चाहिए, जो पर्यावरण की जरूरतों के मुताबिक हो और मौजूदा के लिए जंगलों को हरा-भरा बनाए रखने में मददगार हो। हमें समझना होगा कि नए और हरे-भरे पेड़ों वाले जंगलों में आग कम लगती है और धीमी गति से बढ़ती है, क्योंकि हरे पेड़ों का जलना मुश्किल होता है और इसमें ज्यादा वक्त लगता है। इसके विपरीत पुराने पेड़ों वाले जंगलों में काफी भारी मात्रा में पेड़ों की सूखी लकडि़यां और पत्ते गिरे होते हैं, जिनमें काफी आसानी से आग लगती है और बहुत तेजी से फैलती भी है। इसलिए फॉरेस्टेशन की गतिविधियों के तहत पुराने जंगलों में लगातार नए पेड़ लगाकर उन्हें नया जीवन देना भी बेहद जरूरी है।
उत्सर्जन से निपटने के लिए कार्बन कैप्चर की तकनीकों को अपनाना
ऐसी तकनीकों में निवेश करना बहुत ज़रूरी है जो हवा से कार्बन को सीधे सोखती हैं। ये तकनीकें कार्बन डाइऑक्साइड की महत्वपूर्ण मात्रा को हटा सकती हैं, जिससे ज़रूरी उत्सर्जन में कमी लाने में मदद मिलती है। इसलिए ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने के लिए "कार्बन कैप्चर" (Carbon Capture) तकनीकें बेहद कारगर मानी जाती हैं, जो वातावरण या स्रोत से निकलने वाली CO₂ को पकड़कर उसे सुरक्षित रूप से संग्रहित या पुनः प्रयोग करती हैं। कुछ प्रमुख प्रकार की तकनीकें इस प्रकार हैं :
1. पॉइंट सोर्स कार्बन कैप्चर (Point Source Capture) : इसमें थर्मल पावर प्लांट, सीमेंट या स्टील फैक्ट्री जैसे स्थिर स्रोतों से भारी मात्रा में निकलने वाली CO₂ को चिमनी से निकलते ही कैप्चर कर लिया जाता है। फिर इसे भूमिगत साल्ट कैविटी, खाली गैस क्षेत्रों या बेसाल्ट चट्टानों में इंजेक्ट करके स्टोर किया जाता है। इसे Carbon Capture and Storage (CCS) कहा जाता है।
2. डायरेक्ट एयर कैप्चर (DAC) : यह तकनीक वायुमंडल से सीधे कार्बन डाइऑक्साइड को खींचती है, जैसे एयर प्यूरीफायर। इसमें पंखे व फिल्टर लगे होते हैं जो हवा में फैली CO₂ को खींचते हैं और फिर उसे कंपाउंड में बांधकर संग्रहित कर लिया जाता है या ईंधन, प्लास्टिक जैसी चीजों के निर्माण में इसका प्रयोग करते हैं। DAC-इनेबल्ड एयर-कंडीशनिंग सिस्टम हवा को ठंडा करने के साथ-साथ उसमें मौजूद CO₂ को भी खींचते हैं। DAC-युक्त बिल्डिंग वॉल्स और विंडोज़ भी कुछ इसी तरह का काम करते हैं। इसके तहत ऐसे वॉल और विंडो पैनल बनाए जा रहे हैं जिनमें CO₂ सोखने वाली लेयर्स लगी होती हैं। कुछ इसी तर्ज पर DAC-सक्षम चार्जिंग स्टेशन/स्मार्ट पोल्स का भी इस्तेमाल किया जा रहा है, जो आसपास की हवा से CO₂ हटाने का काम करते हैं। DAC तकनीक पर आधारित इस तरह के उपकरणों और सिस्टम्स का उपयोग विकसित देशों में बढ़ रहा है। स्विट्ज़रलैंड की कंपनी Climeworks इस तकनीक पर आधारित उपकरण बनाने में अग्रणी है।
3. बायो-एनर्जी विद कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (BECCS) : यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें जैविक स्रोतों से तैयार ईंधन (जैसे लकड़ी, फसल अपशिष्ट, बायोगैस आदि) को जलाकर ऊर्जा प्राप्त की जाती है। फिर उस दहन से निकली कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) को कैप्चर करके भूमिगत संग्रहित किया जाता है। चूंकि पौधे अपने जीवन-काल में वातावरण से पहले ही CO₂ अवशोषित कर चुके होते हैं, इसलिए इस प्रक्रिया में अगर दहन से निकली CO₂ को पूरी तरह से कैप्चर कर लिया जाए, तो यह एक "नेट-नेगेटिव" एमिशन तकनीक बन जाती है, इससे यानी वातावरण से कुल CO₂ की मात्रा घटती है। BECCS को इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5°C तक सीमित करने के लिए जरूरी समाधानों में से एक माना है। हालांकि, यह तकनीक भूमि उपयोग, जैव ईंधन की उपलब्धता और लागत जैसी चुनौतियों से भी जुड़ी हुई है।
जरूरी है यह बात समझना
इस तरह हम देखते हैं कि पेड़ लगाना जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने के का एक महत्वपूर्ण उपाय है, लेकिन यह अकेले इन तेजी से बढ़ती समस्याओं से हमें निजात नहीं दिला सकता है। प्रभावी बलदावों के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन घटाने और कार्बन कैप्चर की तकनीकों को अपनाने जैसे कदम भी उठाने होंगे। साथ ही इन सारे प्रयासों में बेहतर समन्वय भी बैठाना होगा, ताकि हमें असरदार नतीजे मिल सकें।