क्या रेट्रोफिट इलेट्रिक गाड़ियां दिल्ली वालों को दे सकती हैं वायु प्रदूषण से राहत ?
सर्दियां आते ही देश की राजधानी दिल्ली की हवाएं जहरीले प्रदूषण की चपेट में आकर लोगों का जीना मुहाल कर देती हैं। तकरीबन हर साल जाड़े में वायु प्रदूषण के नए रिकॉर्ड के साथ दिल्ली अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आ जाती है। प्रदूषण की बात आने पर अकसर पहला नाम आता है खेतों में पराली जलाए जाने का, जिसे दिल्ली में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण माना जाता है। पर, यह हकीक़त नहीं है। पराली अब दिल्ली के वायु प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह नहीं रही।
दिल्ली की हवा ख़राब करने का काम कर रहा है गाड़ियों का धुआं, बड़े पैमाने पर कूड़े का जलाया जाना और निर्माण गतिविधियों से होने वाला प्रदूषण। ऐसे में तेल-गैस से चलने वाले पुराने वाहनों को इलेक्ट्रिक व्हीकल में बदल कर गाड़ियों के धुएं को कम करना वायु प्रदूषण घटाने का एक कारगर विकल्प हो सकता है।
दिल्ली में 19.7% प्रदूषण वाहनों से
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीबीसी) की रिपोर्ट के मुताबिक पराली जलाने में 2021 के बाद से 77.5% की कमी आई है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की हालिया रिपोर्ट के हवाले से एनडीटीवी की एक ख़बर में बताया गया है कि दिल्ली के कुल प्रदूषण में इस साल अक्टूबर–नवंबर में पराली जलाने का योगदान का 5% से भी कम रहा।
डिसीजन सपोर्ट सिस्टम (डीएसएस) डेटा के अनुसार वाहन (ट्रांसपोर्ट) का योगदान 19.7% रहा। इसमें वाहनों से निकलने वाली ज़हरीली गैस कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) स्तर कई मॉनिटरिंग स्टेशनों पर तय सीमा से ऊपर पाया गया। इसके अलावा सुबह और शाम के समय ट्रैफिक पीक आवर्स में नाइट्रस ऑक्साइड (NO₂) और पीएम-2.5 कणों की मात्रा भी काफ़ी तेजी से बढ़ती है।
यह आंकड़े गाड़ियां के इंजनों से होने वाले प्रदूषण का सीधा संकेत हैं। यह गैसें और सूक्ष्म कण मुख्यतः वाहनों में इंजन में ईंधन के सही से न जल पाने (अपूर्ण दहन) के कारण निकलते हैं। ऐसा वाहन के पुराना होने पर उसके इंजन की दक्षता कम होने और तकनीकी ख़ामियों के चलते होता है। पुराने डीजल और पेट्रोल वाहनों को बैन करना इस प्रदूषण में कमी लाने का एक तात्कालिक रास्ता हो सकता है, पर यह लोगों की जेब पर भारी पड़ने वाला अलोकप्रिय उपाय होने के साथ ही एक अस्थायी समाधान ही पेश करता है। ऐसे में तेल-गैस से चलने वाले इन पुराने वाहनों को रेट्रोफिटिंग के ज़रिये इलेक्ट्रिक वाहनों में बदल कर इस ज़हरीले प्रदूषण में कमी लाई जा सकती है।
विशेषज्ञों के मुताबिक दिल्ली की सड़कों पर गाड़ियों की भरमार है, जबकि इनमें इलेक्ट्रिक गाड़ियों की संख्या तकरीबन नगण्य है। ऐसे में मौजूदा गाड़ियों को ही बड़े पैमाने पर रेट्रोफिटिंग से अपग्रेड करने से वायु प्रदूषण घटाने में बड़ी मदद मिल सकती है।
डब्लूआरआई (वारी) की रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली और देश के अन्य महानगरों में वायु प्रदूषण की स्थिति में प्रभावी बदलाव लाने के लिए चार महत्वपूर्ण कदम आवश्यक हैं। पहला, हवा की गुणवत्ता यानी एयर क्वालिटी (AQI) की निगरानी करना। दूसरा, शहरों में वायु प्रदूषण का विस्तृत डेटा एकत्र कर के प्रदूषण के मुख्य स्रोतों की पहचान करना और कारणों व कारकों का विश्लेषण करना। तीसरा, प्राप्त डेटा के आधार पर नीतियां बनाना और चौथा, एकीकृत और सुदृढ़ व्यवस्था बना कर इन नीतियों को लागू करना।
दिल्ली के मामले में इनमें से पहले चरण का काम तो पर्याप्त रूप से कर लिया गया है। यानी डेटा जुटा लिया गया है, पर उसके गहन विश्लेषण, नीति निर्माण और उसके क्रियान्वयन का काम बाकी है। वाहनों की रेट्रोफिटिंग करके उन्हें ईवी में बदलने का काम इन्हीं के तहत आता है।
पुराने डीजल वाहनों को स्क्रैप करने, ईवी की खरीद पर सब्सिडी, रोड टैक्स और रजिस्ट्रशन शुल्क में छूट और चार्जिंग स्टेशनों पर छूट जैसे प्रोत्साहन प्रदान करके इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को बढ़ावा देने के कदम तो उठाए गए हैं, पर इनमें से ज़्यादातर नए वाहनों की ख़रीद पर ही लागू होते हैं। नए इलेक्ट्रिक वाहनों की ऊंची कीमतें, इसे लेकर लोगों में भरोसे की कमी और ज़रूरत के मुताबिक चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर का न होना जैसी चीज़ें इनमें बाधक बन रही हैं। इसमें भी कीमतें सबसे बड़ी बाधा बन रही हैं, जिसका काफ़ी हद तक समाधान ईंधन वाले पुराने वाहनों को ईवी में बदलने को बढ़ावा देकर किया जा सकता है।
सड़कों पर ईवी के चलन को बढ़ाने के लिए यह ज़रूरी भी है, क्योंकि आंकड़ों के मुताबिक 2022 तक महज़ 1.60 लाख इलेक्ट्रिक वाहन ही दिल्ली की सड़कों पर थे, जिनमें दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) के बेड़े में 150 इलेक्ट्रिक बसें शामिल थीं। सरकारी खरीद के ज़रिये आने इलेक्ट्रिक बसों की संख्या तो करीब दस गुना बढ़कर 1500 तक पहुंचने की उम्मीद है, पर निजी इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए रेट्रोफिटिंग जैसे सस्ते विकल्पों को बढ़ावा दिया जाना ज़रूरी है। नीति आयोग की वर्ष 2025 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में ईवी को 7.6% हिस्सेदारी हासिल करने में करीब एक दशक का समय लगा है। अगले पांच साल में यानी 2030 तक इसे बढ़ाकर 22% के लक्ष्य को हासिल करने के लिए इसमें उछाल लाना होगा। पुराने वाहनों को ईवी में बदलना इस अंतर को दूर करने में अहम भूमिका निभा सकता है।
दिल्ली में दिसंबर 2023 तक कुल वाहनों की संख्या करीब 79.45 लाख थी, जिसमें 20.7 लाख कारें व एसयूवी, 3 हज़ार ऑटो/टैक्सी/बसें, 52.9 लाख दो पहिया और करीब 73 हज़ार ईवी थे। ईवी की संख्या अब बढ़कर 3 लाख तक पहुंचने का अनुमान है।
दिल्ली प्लानिंग (दिल्ली सरकार) के आंकड़े
क्या होती है ईवी रेट्रोफिटिंग
पेट्रोल या डीजल से चलने वाले वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहन में बदलने को ईवी रेट्रोफिटिंग कहते हैं। इसमें मौजूदा वाहन के इंजन को हटाकर नई मोटर और ड्राइव ट्रेन लगाया जाता है, जबकि वाहन के बाकी पार्ट्स बरक़रार रहते हैं। इससे तेल या गैस से चलने वाली गाड़ी बिजली से चलने वाली ईवी बन जाती है। इस इलेक्ट्रिक वाहन को चार्जिंग स्टेशन या घर पर चार्ज करके चलाया जा सकता है। परिवहन विभाग (आरटीओ) सिर्फ रेट्रोफिटिंग एजेंसियों को ही अनुमति देता है, जो नियमों का सख्त पालन करते हैं । इसमें बैटरियों का पूरी तरह से परीक्षण किया जाता है और उसके बाद ही वाहनों पर इस्तेमाल करने की मंजूरी दी जाती है।
कैसे होती है रेट्रो फिटिंग ?
वाहनों की रेट्रो फिटिंग की प्रक्रिया आसान है। हालांकि इसमें कई तकनीकी बारीकियों, मानकों और नियमों का ध्यान रखना पड़ता है। इसे चरणबद्ध तरीके से कुछ इस प्रकार समझा जा सकता है :
प्री-चेक और फिटनेस : रेट्रो फिटिंग के लिए वाहन को पहले फिटनेस सर्टिफिकेट के ज़रिये आरटीओ की ओर से फिट घोषित किया जाना जरूरी है। इसके बाद गाड़ी के रजिस्ट्रेशन (RC) में बदलाव के लिए भी RTO से मंज़ूरी लेनी होती है।
किट/सिस्टम इंस्टॉलेशन : इलेक्ट्रिक रेट्रो फिटिंग : इंजन, गियरबॉक्स और इंधन टैंक हटाए जाते हैं। इनकी जगह पर इलेक्ट्रिक मोटर, बैटरी पैक, कंट्रोलर/चार्जर लगाए जाते हैं।
ARAI/ICAT सर्टिफिकेशन : रेट्रोफिटिंग के बाद ईवी में परिवर्तित हुए वाहनों को किट और संशोधित वाहन को ARAI/ICAT से मान्यता के लिए जांच से परीक्षण से गुजरना पड़ता है, ताकि वे सड़क पर चलने के लिए सुरक्षित हों।
आरटीओ रजिस्ट्रेशन अपडेट : ARAI/ICAT की जांच में सफल होने के बाद RTO में परिवर्तित फ्यूल/पावरट्रेन को RC में दर्ज किया जाता है।
EV रेट्रोफिटिंग में होता है कितना खर्च?
चार पहिया वाहन की EV रेट्रो फिटिंग में मोटे तौर पर 3 से 6 लाख रुपये तक का खर्च आता है। यह वाहन के आकार, गाड़ी की कंडीशन, उसमें लगाई जाने वाली मोटर और बैटरी की क्षमता और तकनीक जैसी चीजों पर निर्भर करता है। नया इलेक्ट्रिक व्हीकल खरीदने की लागत की तुलना में रेट्रोफिटिंग का काम ज़्यादा महंगा नहीं होता। यह नए ईवी से करीब 40 से 50% तक सस्ता पड़ता है, क्योंकि व्यक्ति के पास वाहन का मूल ढांचा पहले से ही मौज़ूद होता है। हालांकि ज़्यादा क्षमता वाले और कॉमर्शियल वाहनों की रेट्रोफिटिंग में यह नए ईवी की लागत का लगभग 70% तक हो सकता है। रेट्रोफिटिंग के लिए उसे केवल ईवी किट और बैटरी खरीदनी होती है। हालांकि इस समय किट की ऊंची कीमत में जीएसटी इसमें एक बड़ी बाधा बन रही है। सरकार अगर टैक्स में कटौती करे तो यह और भी सस्ता हो सकता है। अगर दो पहिया वाहन की रेट्रोफिटिंग की बात करें, तो बेंगलूरु की कंपनी सन मोबिलिटी ने हाल ही में करीब 30,000 रुपये की औसत लागत पर सामान्य स्कूटर को ई-स्कूटर में बदलना शुरू किया है।
रेट्रोफिटिंग करने वाली प्रमुख कंपनियां
पारंपरिक पेट्रोल-डीज़ल कारों को इलेक्ट्रिक वाहन में बदल कर भारत में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को बढ़ावा देने के लिए कई कंपनियां बाज़ार में आ गई हैं। रेट्रोफिटिंग का काम करने वाली यह कंपनियां तकनीकी रूप से सक्षम किट उपलब्ध कराने के साथ ही वाहनों को ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ARAI) या इंटरनेशनल सेंटर फ़ॉर ऑटोमोटिव टेक्नोलॉजी (ICAT) से प्रमाणित भी करा रही हैं, ताकि ये सड़क पर वैध और सुरक्षित रूप से चल सकें।
E-Trio Automobiles इस क्षेत्र की प्रमुख कंपनियों में से एक है, जो खास तौर पर छोटे और मिड-साइज पैसेंजर वाहनों के लिए इलेक्ट्रिक रेट्रोफिट किट उपलब्ध कराती है। कंपनी की तकनीक को ARAI से मान्यता मिली हुई है और इसका उपयोग मारुति ऑल्टो, वैगन-आर, डिज़ायर जैसे लोकप्रिय मॉडलों में किया जा रहा है। ई-ट्रायो का फोकस शहरी उपयोग के लिए कम लागत पर भरोसेमंद ईवी सॉल्यूशन देना है।
Tadpole Projects : यह IIT दिल्ली से जुड़ा एक स्टार्ट-अप है, जो इलेक्ट्रिक रेट्रोफिटिंग करने के साथ ही इससे जुड़ी उन्नत तकनीकों को भी विकसित कर रहा है। यह कंपनी खास तौर पर बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम, मोटर इंटीग्रेशन और ऊर्जा दक्षता पर काम करती है। इसका फोकस इस बात पर है कि पारंपरिक पेट्रोल-डीज़ल कारों को बिना ज्यादा संरचनात्मक बदलाव के इलेक्ट्रिक में बदला जा सके।
BharatMobi (Bharat EV Kits) : यह भी इलेक्ट्रिक रेट्रोफिटिंग के बाजार में एक अहम नाम है, जो विभिन्न हैचबैक और सेडान मॉडलों के लिए ईवी कन्वर्ज़न किट उपलब्ध कराता है। इन किट्स को ICAT/ARAI मानकों के अनुसार डिजाइन किया गया है। इन्हें खासतौर पर कमर्शियल व फ्लीट सेगमेंट को ध्यान में रखकर विकसित किया गया है, ताकि ऑपरेशनल लागत घटाई जा सके।
Folks Motor : यह एक ऐसी कंपनी है जो पारंपरिक EV रेट्रोफिटिंग के साथ-साथ हाइब्रिड और री-जनरेटिव टेक्नोलॉजी पर भी काम कर रही है। इसका फोकस उन वाहनों पर है जो पूरी तरह इलेक्ट्रिक होने से पहले चरणबद्ध तरीके से ईंधन खपत और उत्सर्जन कम करना चाहते हैं। कंपनी का दावा है कि उसके समाधान से ईंधन दक्षता में उल्लेखनीय सुधार होता है।
RetroEV : यह कंपनी भी पुराने पेट्रोल या डीज़ल वाहनों को पूरी तरह इलेक्ट्रिक में बदलने की सेवाएं देती हैं। यह बैटरी पैक, मोटर, कंट्रोलर और चार्जिंग सिस्टम का एकीकृत समाधान उपलब्ध कराती है, जिससे वाहन को दोबारा रजिस्ट्रेशन और रोड-लीगल प्रमाणन दिलाया जा सके।
रेट्रोफिटिंग के फायदे?
रेट्रोफिटिंग यानी पुराने पेट्रोल-डीज़ल वाहनों को इलेक्ट्रिक में बदलना, आज इको-फ्रेंडली परिवहन के लिए एक व्यावहारिक और टिकाऊ विकल्प बनात जा रहा है। यह न सिर्फ वायु प्रदूषण को कम करने का तरीका है, बल्कि संसाधनों के बेहतर उपयोग, दोबारा इस्तेमाल और रोजगार पैदा करने में भी मददगार साबित हो रहा है। नीचे इसके प्रमुख फायदों को इन बिंदुओं के ज़रिये समझा जा सकता है -
वायु प्रदूषण घटाने में मददगार : रेट्रोफिट किए गए इलेक्ट्रिक वाहन टेलपाइप एमिशन लगभग खत्म कर देते हैं, जिससे PM2.5, NOx और CO जैसे प्रदूषकों में उल्लेखनीय कमी आती है। भीड़भाड़ वाले शहरों में जहां पुराने वाहन सबसे बड़ा प्रदूषण स्रोत हैं, वहां रेट्रोफिटिंग तेज़ी से हवा की गुणवत्ता सुधारने का कारगर साधन बन सकती है।
बनी रहती है पुराने वाहनों की उपयोगिता : इससे पुराने वाहनों को कबाड़ में डालने (स्क्रैप करने) के बजाय नया जीवन मिलता है, जिससे संसाधनों की बर्बादी रुकती है और वाहन मालिकों का आर्थिक नुकसान नहीं होता।
कम खर्च वाला विकल्प : नया इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने की तुलना में रेट्रोफिटिंग कहीं सस्ती पड़ती है, छोटे कारोबारियों के लिए तो यह व्यापार की लागत घटाने में काफ़ी मददगार हो सकती है।
ईंधन के खर्च में बड़ी बचत : पेट्रोल-डीज़ल की जगह बिजली से चलने के कारण वाहनों को चलाने का प्रति किलोमीटर खर्च काफी घट जाता है। इससे खासकर लॉजिस्टिक्स और ट्रांसपोर्ट कंपनियों की परिचालन लागत में काफ़ी कमी आ जाती है।
सर्कुलर इकॉनमी को बढ़ावा : रेट्रोफिटिंग “री-यूज़ और री-पर्पज़” की अवधारणा को मजबूत करती है, जहां पुराने वाहनों के ढांचे का दोबारा उपयोग होता है और नए वाहनों की मैन्युफैक्चरिंग की जरूरत कम होती है। इससे खर्च में कमी के साथ ही पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलती है।
ग्रीन जॉब्स और गिग इकोनॉमी को सहारा : रेट्रोफिटिंग के काम से इस तकनीक से जुड़े तकनीशियन, इलेक्ट्रिशियन, बैटरी सर्विसिंग, सॉफ्टवेयर और मेंटेनेंस जैसे क्षेत्रों में नए रोजगार के अवसर पैदा होते हैं, इसके अलावा कोरियर, होम डिलिवरी, टैक्सी व राइड एप्स जैसे प्लेटफार्म से जुड़े कामगारों को रोज़गार देने वाली गिग इकॉनमी को मजबूती मिलती है।
पर्यावरणीय लक्ष्य हासिल करने में मददगार : यह भारत सरकार द्वारा तय किए गए 2070 तक नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य, 2030 तक 30% इलेक्ट्रिक वाहन अपनाने और राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन नीति के अनुरूप है, जिन्हें भारत ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (COP26, ग्लासगो) सहित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर औपचारिक रूप से घोषित किया है। साथ ही यह स्क्रैपेज नीति पर दबाव भी कम करता है।
लॉजिस्टिक्स, फ्लीट ऑपरेटरों के लिए फ़ायदेमंद : डिलीवरी, ई-कॉमर्स और शहरी परिवहन से जुड़ी कंपनियां अपने मौजूदा बेड़े को चरणबद्ध तरीके से इलेक्ट्रिक बनाकर परिचालन लागत और कार्बन फुटप्रिंट दोनों घटा सकती हैं।
ईवी रेट्रोफिटिंग में आने वाली बाधाएं और चुनौतियां
रेट्रोफिटिंग को पर्यावरण-अनुकूल और भविष्य उन्मुख विकल्प मानने के बावज़ूद ज़मीनी स्तर पर इसकी राह में कई व्यावहारिक, तकनीकी और नीतिगत चुनौतियां बनी हुई हैं। नवंबर 2021 में दिल्ली सरकार ने 10 साल पुराने डीजल वाहनों को इलेक्ट्रिक में बदलने करने का रास्ता साफ कर इस दिशा में पहला कदम बढ़ाया था। हालांकि अब भी इस दिशा में कई कदम उठाने की ज़रूरत है, ताकि इस सस्ते विकल्प को बढ़ावा दिया जा सके। जब तक इन अड़चनों को दूर नहीं किया जाता, तबतक इसके लोकप्रिय होने और बड़े पैमाने पर अपनाया जाना मुश्किल बना रहेगा। इसकी प्रमुख बाधाओं को इन बिंदुके ज़रिये समझा जा सकता है—
शुरुआती खर्च ज़्यादा होना : इलेक्ट्रिक रेट्रोफिटिंग की शुरुआती लागत कई मामलों में 3–6 लाख रुपये तक पहुंच जाती है, जो आम वाहन मालिकों और छोटे व्यवसायों के लिए एक बड़ा खर्चा है। इसके चलते ज़्यादा लोग इसे अपना नहीं पा रहे हैं।
सब्सिडी जैसे प्रोत्साहनों का अभाव : नया ईवी खरीदने पर जहां सरकार की ओर से सब्सिडी, कर छूट और रजिस्ट्रेशन शुल्क में छूट जैसे प्रोत्साहन मिलते हैं, वहीं ईंधन से चलने वाले पुराने वाहनों की इलेक्ट्रिक रेट्रोफिटिंग के लिए ऐसा कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता, जिससे लोगों को इसे अपनाने के लिए प्रेरित नहीं किया जा पा रहा है।
मंज़ूरी की जटिल प्रक्रिया : इलेक्ट्रिक रेट्रोफिटिंग वाले वाहनों को सड़क पर चलाने के लिए ARAI या ICAT जैसी संस्थाओं से नियामकीय मज़ूरी लेना समय लेने वाली और तकनीकी रूप से जटिल प्रक्रिया है। इसके चलते निजी तौर पर काम करने वाले छोटे वर्कशॉप्स और स्टार्टअप को कठिनाई होती है।
चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी : देश के ज़्यादातर शहरों में अभी जक ईवी की चार्जिंग के लिए पर्याप्त संख्या में चार्जिंग स्टेशन उपलब्ध नहीं हैं। इसके कारण भी इलेक्ट्रिक रेट्रोफिटेड वाहनों को लोकप्रिय बनाने में व्यवहारिक दिक्कतें आ रही हैं।
कुशल तकनीशियनों की कमी : इलेक्ट्रिक रेट्रोफिटिंग के लिए प्रशिक्षित तकनीशियनों, बैटरी एक्सपर्ट्स और सेफ्टी इंजीनियरों की अभी सीमित उपलब्धता है।
वारंटी और बीमा से जुड़ी समस्याएं : रेट्रोफिटिंग के बाद कई बार वाहन की मूल कंपनी की वारंटी समाप्त हो जाती है और बीमा कंपनियां भी ऐसे वाहनों को बीमा कवर देने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही हैं।
उपभोक्ताओं में जागरूकता की कमी : आम वाहन मालिकों को रेट्रोफिटिंग की प्रक्रिया, फायदे और विश्वसनीय प्रदाताओं की जानकारी नहीं होती, जिससे वे इसे जोखिम भरा समझते हैं।
परफॉर्मेंस को लेकर आशंकाएं : बैटरी रेंज, चार्जिंग समय और वाहन के पेलोड पर असर जैसी परफॉर्मेंस से जुड़ी आशंकाएं अकसर कई उपभोक्ताओं को निर्णय लेने से रोकती हैं।
नीतिगत स्पष्टता का अभाव : रेट्रोफिटिंग को लेकर केंद्र सरकार और राज्यों की एक समान नीति न होने से निवेशकों और सेवा प्रदाता कंपनियों के लिए दीर्घकालिक योजना बनाना मुश्किल हो रहा है, जिससे उनका कारोबारी विस्तार नहीं हो पा रहा है।
इस तरह कुल मिलाकर, रेट्रोफिटिंग के एक प्रभावी और पर्यावरण हितैषी समाधान होने के बावज़ूद इसके क्रियान्वयन में कई बड़ी बाधांएं बनी हुई हैं। मजबूत नीतिगत समर्थन, एकीकृत राष्ट्रीय नीति का अभाव, वित्तीय प्रोत्साहनों की कमी, तकनीकी मंज़ूरियों की जटिलता के अलावा कुशल तकनीशियनों की कमी जैसी व्यावहारिक दिक्कतों के चलते इसका दायरा फि़लहाल काफ़ी सीमित बना हुआ है। सही नीतिगत कदमों के साथ पुराने वाहनों की रेट्रोफिटिंग वायु प्रदूषण में कमी लाने का एक व्यावहारिक विकल्प हो सकती है।

