धरती को बचाना है, तो बचाइये पानी : समझनी होगी पूरी ‘कहानी’
22 अप्रैल को मनाया जाने वाला विश्व पृथ्वी दिवस हमें पृथ्वी और उसके प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की याद दिलाने के लिए मनाया जाता है। समझने वाली बात यह है कि धरती को पानी का संरक्षण किए बिना नहीं बचाया जा सकता। क्योंकि, धरती का तीन चौथाई हिस्सा पानी ही है और धरती पर जीवन तभी संभव है जबतक धरती पर हमारे पीने और इस्तेमाल करने लायक पानी मौजूद है।
पृथ्वी पर जीवन के लिए पानी की अनिवार्यता को इसी बात से समझा जा सकता है कि हमारी आकाश गंगा में मौजूद तमाम ग्रहों में से केवल पृथ्वी पर ही जीवन इसलिए पाया जाता है, क्योंकि यहां पानी मौजूद है। धरती पर अगर पानी न होता तो यह भी अन्य ग्रहों की तरह वीरान होती। इसके बावजूद पृथ्वी पर जीवों और पेड़-पौधों के जीवन को संभव बनाने वाला यह संसाधन संकट में घिरता जा रहा है। हमें समझना होगा कि जल की उपलब्धता सीमित है, जबकि बढ़ती आबादी के चलते इसकी मांग लगातार बढ़ती ही जा रही है। यह स्थितिआने वाली पीढ़ियों के लिए भी गंभीर चिंता का विषय है।
पृथ्वी पर कहां-कहां और किन रूपों में मौजूद है पानी
धरती पर मौजूद कुल पानी का लगभग 97.5% हिस्सा समुद्रों और महासागरों में है जोकि खारा पानी है। इस तरह धरती पर केवल 2.5% मीठा पानी है, जिसमें से लगभग 68.7% ग्लेशियरों और बर्फ की चोटियों में जमा है। करीब 30.1% मीठा पानी भूजल के रूप में है और नदियों, झीलों, तालाबों, पोखरों आदि के रूप में दिखाई देने वाला पानी महज़ 0.3% की हिस्सेदारी रखता है। मतलब साफ है कि इंसानों के उपयोग के लिए बहुत ही सीमित मात्रा में उपलब्ध है और वह भी लगातार घटता जा रहा है। इसके बावजूद यह बात हमें समझ में नहीं आ रही है।
भूजल के अंधाधुंध दोहन से गहरा रहा जल-संकट
लगातार बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए कृषि के विस्तार और शहरी विकास ने भूजल (ग्राउंड वाटर) पर अत्यधिक दबाव डाला है। ट्यूबवेल और बोरवेल का अंधाधुंध इस्तेमाल भूमिगत जल भंडार को तेजी से खत्म कर रहा है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में भूजल स्तर हर साल 1-2 मीटर तक गिर रहा है। इसका सीधा असर खेती, पीने के पानी और पारिस्थितिक संतुलन पर पड़ रहा है।
रोकना होगा जल संसाधन का दुरुपयोग
भारत में जल संसाधनों का प्रबंधन बेहद कमजोर है। खेती में 70% से अधिक पानी का इस्तेमाल पारंपरिक सिंचाई पद्धति से किया जा रहा है, जिसमें बहुत अधिक पानी बर्बाद होता है। इसके अलावा शहरी इलाकों में पाइपलाइन से लीकेज, खुले नल, और सैकड़ों लीटर पानी से कार धुलाई जैसी वजहों के चलते प्रतिदिन करोड़ों लीटर पानी बेकार हो जाता है। जल कर की दरें काफी कम होने के कारण लोग इसके मूल्य को गंभीरता से नहीं लेते।
समुद्रों में बढ़ते प्रदूषण से जलीय जीवन खतरे में
रिसर्च रिपोर्ट्स के मुताबिक शहरी नालों और नदियों के जरिये हर साल करीब 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा समुद्रों में जा रहा है। भारत में 130 से अधिक बड़े तटीय शहरों का untreated सीवेज सीधे समुद्रों में डाला जाता है, जिससे समुद्री पारिस्थितिकी खतरे में पड़ रही है। समुद्र में बढ़ते प्रदूषण के कारण जलीय जीवों की हजारों प्रजातियों और वनस्पतियों का जीवन संकट में है। मछलियों, कछुओं और व्हेल जैसे समुद्री जीवों की मौतें प्लास्टिक और रासायनिक कचरे के कारण हो रही हैं।
जलवायु परिवर्तन से गड़बड़ा रहा वर्षा का चक्र
सागरों-महासागरों में मौजूद खारे पानी को मीठे पानी में बदल कर हमारे उपयोग लायक बनाने का सबसे महत्वपूर्ण साधन बारिश है। प्रकृति ने इतनी कमाल की व्यवस्था हमारे लिए कर रखी है। पर, हमारी कारगुजारियों के चलते पृथ्वी पर वर्षा का चक्र भी गड़बड़ाता जा रहा है। प्रदूषण और ग्लोबल वॉर्मिग जैसी चीजों के चलते हो रहे जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा का पैटर्न अस्थिर हो गया है। ऐसे में देश के कुछ हिस्सों में अत्यधिक वर्षा और बाढ़, जबकि अन्य भागों में सूखे की स्थिति देखने को मिल रही है। हिमालयी ग्लेशियर (हिमनद), जो भारत की नदियों के सबसे बड़ा जल स्रोत हैं, तेजी से पिघल रहे हैं। IPCC रिपोर्ट (2021) के अनुसार आने वाले दशकों में तापमान में वृद्धि से हिमनदों के पिघलने की गति और तेज हो सकती है। इससे अस्थायी रूप से जल स्रोत बढ़ सकते हैं, लेकिन दीर्घकाल में इसके खत्म होने का खतरा रहेगा।
धरती को डुबा देगा समुद्रों का बढ़ता जल स्तर
ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण बर्फ के पिघलने और समुद्रों के गर्म होने से समुद्री जल स्तर हर साल औसतन 3.3 मिमी की दर से बढ़ रहा है। यह दर पिछले कुछ दशकों में दोगुनी हुई है। भारत के कोलकाता, चेन्नई, मुंबई जैसे शहरों के निचले हिस्से समुद्री जल स्तर में वृद्धि के कारण बाढ़ और स्थायी जलभराव की चपेट में आ सकते हैं। कई छोटे द्वीपों के समुद्र में डूबने का खतरा मंडरा रहा है।
समाधान की दिशा में संभावनाएं
धरती को बजाने के लिए जल संकट का समाधान जरूरी है और यह काम बहुआयामी प्रयासों से ही संभव है। खेती-बाड़ी में पानी की बर्बादी को रोकने के लिए ड्रिप और स्प्रिंकलर सिस्टम जैसी सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों यानी माइक्रो इरिगेशन को बड़े पैमाने पर अपनाने की जरूरत है, जिससे 30-40% तक की बचत हो सकती है। शहरों में, खासकर अपार्टमेंट्स जैसी रिहायशी इमारतों वर्षा जल संचयन यानी रेन वाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य रूप से लागू किया जाना चाहिए। इसके अलावा घरों में पानी की बर्बादी रोकने के लिए जलापूर्ति के पानी की मीटरिंग से बड़ी मात्रा में जल की बचत की जा सकती है। कारखानों (फेक्ट्रियों) में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के जरिये जल प्रदूषण पर नियंत्रण किया जाना चाहिए, पर इसके लिए इन प्लांट्स की नियमित निगरानी और कठोर नियमों की जरूरत है। आने वाली पीढ़ी को पानी का महत्व समझाने के लिए पर्यावरण और जल शिक्षा को पाठ्यक्रमों में अनिवार्य रूप से शामिल करते हुए स्कूली स्तर पर जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए। हमें अपने बच्चों को इस बात को अच्छी तरह से समझाना होगा कि यदि हमने आज भी जल संरक्षण की दिशा में गंभीर कदम नहीं उठाए, तो आने वाले दिनों में ज़मीन, तेल या व्यापार के लिए नहीं, बल्कि पानी के लिए युद्ध होंगे और यह जुमला सच साबित हो सकता है कि 'तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए लड़ा जाएगा।’
जानिए पानी के कुछ महत्त्वपूर्ण आंकड़े
पूरी दुनिया में 1.1 अरब से अधिक लोग सुरक्षित पेयजल से वंचित हैं।
भारत विश्व का सबसे बड़ा भूजल उपयोगकर्ता है, जो वैश्विक उपयोग का लगभग 25% अकेले करता है।
FAO (2017) के अनुसार, 1 किलो चावल उत्पादन में लगभग 2,500 लीटर, और 1 किलो गेहूं में लगभग 1,500 लीटर पानी खर्च होता है।
शहरी भारत में औसतन प्रति व्यक्ति जल उपयोग 135 लीटर प्रतिदिन है, लेकिन इसका 40-50% हिस्सा रिसाव और बर्बादी में चला जाता है।
NITI Aayog (2018) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 21 शहरों में भूजल 2030 तक समाप्त हो सकता है।
एक कप चाय में 35 लीटर पानी !
हमें अपनी पानी की खपत का अगर ठीक-ठीक अंदाज़ा हो जाए, तो हो सकता है कि हम पानी का मोल समझ कर उसकी बचत करें। रोज़मर्रा के कई कामों में जितना हम सोचते हैं उससे कहीं ज्यादा पानी खर्च होता है। मिसाल के तौर पर अगर पूछा जाए कि एक कप चाय बनाने में कितना पानी लगता है? तो आमतौर पर लोग 150 से 200 मिलीलीटर पानी के इस्तेमाल की बात कहेंगे। पर, आप हैरान हो जाएंगे, अगर हम आप से कहें कि जो एक कप चाय आप पीते हैं, उसमें करीब 30 लीटर पानी खर्च होता है। पानी के इस वर्चुअल वॉटर कंजंप्शन में बागान में चाय पत्ती की खेती, टी प्लांट में उसकी प्रोसेसिंग, दूध और चीनी के उत्पादन सहित कुल मिलाकर एक कप चाय पर औसतन 30 लीटर वर्चुअल वॉटर खर्च होता है। इसका गणित कुछ प्रकार समझा जा सकता है -