पुराने मोबाइल फोन को कबाड़ में फेकने के बजाय अब मिनी डेटा सेंटर के रूप में इस्‍तेमाल करने का प्रयोग शुरू हो चुका है, जिससे इलेक्‍ट्रॉनिक कचरा कम करने में मदद मिलेगी।
पुराने मोबाइल फोन को कबाड़ में फेकने के बजाय अब मिनी डेटा सेंटर के रूप में इस्‍तेमाल करने का प्रयोग शुरू हो चुका है, जिससे इलेक्‍ट्रॉनिक कचरा कम करने में मदद मिलेगी। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर, फ्रीपिक

पुराने स्‍मार्टफ़ोन को माइक्रो डेटा सेंटर में बदलकर घटाया जा सकता है ई-कचरा

एस्टोनिया की टार्टू यूनिवर्सिटी की टीम ने तैयार किया किफ़ायती विकल्‍प। समुद्री जीवों की निगरानी और यात्रियों की ट्रैकिंग जैसे कामों में किया जा रहा है इस इनोवेटिव आइडिया का शुरुआती इस्‍तेमाल।
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संचार के क्षेत्र में तेजी से होते तकनीकी विकास और फोन निर्माता कंपनियों के बीच बढ़ती प्रतिस्‍पर्धा ने बीते एक दशक में मोबाइल फ़ोन के बाज़ार का आकार कई गुना बढ़ा दिया है। दुनिया भर में हर रोज़ दर्ज़नों नए स्‍मार्ट फ़ोन लॉन्‍च हो रहे हैं। ऐसे में, लोग जल्‍दी-जल्‍दी नए फ़ोन खरीद रहे हैं, जिससे पुराने मोबाइल इस्‍तेमाल से बाहर होकर इलेक्‍ट्रॉनिक कचरे के ढेर को बढ़ा रहे हैं। 

इस समस्‍या का एक सस्‍ता, कारगर और व्‍यावहारिक समाधान कंप्‍यूटर विज्ञानियों की एक टीम ने खोज निकाला है। यूरोपीय देश एस्‍टोनिया के टार्टू विश्वविद्यालय में कंप्यूटर विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं ने पुराने स्मार्टफ़ोन को कूड़ा बनने से बचाते हुए उन्हें फिर से इस्‍तेमाल करने की एक इनोवेटिव पहल की है। इन्‍होंने पुराने फ़ोन को फेंकने के बजाय माइक्रो डेटा सेंटर के रूप में इस्‍तेमाल करने का क्रांतिकारी समाधान निकाला। अच्‍छी बात यह है कि उनका यह नवाचार काफ़ी कम लागत वाला है, जिसमें सिर्फ़ 8 यूरो प्रति फ़ोन के मामूली खर्च पर पुराने स्‍मार्टफ़ोन को माइक्रो डेटा सेंटर में बदला जा सकता है।

पुराने फोन में कुछ तकनीकी बदलाव करके तीन-चार स्‍मार्टफोनों को आपस में जोड़कर मिनी डेटा सेंटर के रूप में बदला जा रहा है।
पुराने फोन में कुछ तकनीकी बदलाव करके तीन-चार स्‍मार्टफोनों को आपस में जोड़कर मिनी डेटा सेंटर के रूप में बदला जा रहा है।प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर, फ्रीपिक

किन चीजों में हो रहा इस्‍तेमाल

ये छोटे डेटा सेंटर अब समुद्री जीवन की निगरानी जैसे जटिल कार्यों को भी सहज बना रहे हैं। इन फ़ोनों में लगे कैमरे पानी के भीतर जाकर तस्वीरें खींचते हैं और ऑन-बोर्ड प्रोसेसिंग की मदद से मछलियों और अन्य समुद्री प्रजातियों की गिनती करते हैं, जिससे महंगी और जटिल तकनीकों की आवश्यकता कम होती है। इसके अलावा इन्हें शहरी परिवहन में भी इस्तेमाल किया जा रहा है, जैसे सबवे या बस स्टॉप पर यात्रियों की संख्या और आवागमन पैटर्न का रियल टाइम विश्लेषण करके शहरों की ट्रैफ़िक और ट्रांसपोर्ट योजनाओं को बेहतर बनाने में मदद मिल रही है। इसके अलावा, इन्हें अस्थायी सर्विलांस के लिए प्रशासनिक क्षेत्र में, स्मार्ट फ़ार्मिंग के लिए कृषि क्षेत्र में और क्लासरूम ऑब्ज़र्वेशन के लिए शिक्षा के क्षेत्र में भी सीमित पैमाने पर आज़माया जा रहा है। इसके इस्‍तेमाल के शुरुआती दौर के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-

एस्टोनिया (टार्टू) — उपनगरीय बसों के रूट और यात्रियों की आवाजाही को मोबाइल डेटा सेंटर से ट्रैक किया गया और डेटा का विश्लेषण किया जा रहा है।

कनाडा, नॉर्वे — समुद्री वातावरण में इंटरनेट ऑफ थिंग्‍स (IoT) आधारित निगरानी प्रणालियों को इस्तेमाल करते हुए जहाज़ों और मछलियों की गिनती और समुद्र से संबंधित अन्य डेटा को एकत्र करने का काम किया जा रहा है।

फिनलैंड, रोमानिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, इटली, जापान, तुर्की — मोबाइल फोन के GPS और एक्सेलेरोमीटर का इस्तेमाल सड़कों पर गड़बड़ी और ट्रैफ़िक पैटर्न मॉनिटर करने के लिए किया जा रहा है।

भारत में इसकी उपयोगिता की संभावनाएं

एस्ट्यूट एनालिटिका (Astute Analytica) और इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स एवं आईटी मंत्रालय के मुताबिक ई-वेस्ट की मात्रा के मामले में भारत दुनिया में चौथे नंबर पर है। ग्लोबल न्यूज़वायर में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल लगभग 35 लाख टन ई-वेस्ट उत्पन्न होता है। इसमें से केवल 5–7% ही सही तरीके से रिसाइकल किया जाता है, जबकि शेष विषाक्त पदार्थों के रूप में हवा, मिट्टी और जल स्रोतों को प्रदूषित करता रहता है। ऐसे में पुराने फ़ोन को फिर से इस्‍तेमाल करने की यह सस्‍ती टेक्नोलॉजी भारत जैसे देशों में इलेक्‍ट्रॉनिक कचरे को घटाने में काफी उपयोगी साबित हो सकती है। 

पुराने फ़ोन से बने ऐसे माइक्रो डेटा सेंटरों के जरिये हम छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों के ऐसे क्षेत्रों में जानकारी इकट्ठा कर सकते हैं, जहां इंटरनेट कनेक्टिविटी सीमित होती है। हाइपर लोकल लेवल पर जल स्तर मापन, मौसम प्रोफ़ाइलिंग, जैव विविधता की निगरानी, पशुपालन के ऑटोमेशन जैसे कामों में इनका इस्‍तेमाल किया जा सकता है। बिजली की सीमित आपूर्ति वाले इलाकों में इन्हें सीधे छोटे सोलर पैनलों से जोड़ा जा सकता है, जो कि एक ग्रीन और लो-एनर्जी समाधान होगा

इसके अलावा, इन्हें इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) तकनीक से जोड़कर जलवायु परिवर्तन की निगरानी, स्मार्ट खेती, मिट्टी की नमी, तापमान और प्रदूषण जैसे पर्यावरणीय मापदंडों की रियल टाइम जानकारी जुटाई जा सकती है। ग्रामीण क्षेत्रों में इन सेंटरों को छोटे स्तर पर डेयरी निगरानी, पीने के पानी की गुणवत्ता की जांच और पशुओं की गिनती जैसे व्यावहारिक कामों के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। 

किफ़ायती होने के चलते शहरी इलाकों और महानगरों में भी इनसे बस स्टॉप या बस अड्डों पर CCTV के ज़रिये मॉनिटरिंग और यात्रियों की ट्रैकिंग जैसे काम किए जा सकते हैं। इससे ज़ोन-आधारित ट्रैफिक सुधार, भीड़‑नियंत्रण व पर्यावरण की निगरानी संभव है। यह सस्‍ती प्रणाली स्मार्ट सिटी मिशन में भी इस्तेमाल की जा सकती है।

शैक्षणिक संस्थानों, जैसे IIT और NIT में छात्र इन्हें प्रयोगशाला उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर सस्ते, नवाचारी हार्डवेयर प्रोजेक्ट्स पर काम कर सकते हैं। इस तरह, यह तकनीक न केवल ई-वेस्ट की समस्या को कम करने में मदद करेगी, बल्कि ऊर्जा, शिक्षा और ग्रामीण विकास के क्षेत्रों में नई संभावनाओं के द्वार भी खोलेगी।

मोबाइल फोन का चलन बढ़ने से हाल के वर्षों में दुनिया भर में इलेक्‍ट्रॉनिक कचरे में तेजी से बढ़ोतरी देखने को मिली है।
मोबाइल फोन का चलन बढ़ने से हाल के वर्षों में दुनिया भर में इलेक्‍ट्रॉनिक कचरे में तेजी से बढ़ोतरी देखने को मिली है।it-recycle

मोबाइल फ़ोन तेजी से बढ़ा रहे ई-कचरे की समस्‍या

आज हर साल 120 करोड़ स्मार्टफ़ोन बनाए जाते हैं। ट्रेंडफ़ोर्स की रिपोर्ट के अनुसार 2023 में कुल 116.6 करोड़ स्मार्टफ़ोन बनाए गए। इन आंकड़ों का सबसे नकारात्‍मक पहलू यह है कि हर साल बाज़ार में नए फ़ोन आने के चलते, करोड़ों फ़ोनों की कार्यक्षमता समाप्त होने से पहले ही उनका इस्‍तेमाल बंद कर दिया जाता है। साथ ही, केवल 20 से 22 फीसदी फ़ोन ही औपचारिक रूप से रीसायकल होते हैं। 

संख्‍या के हिसाब से देखें, तो दुनिया के कुल ई-वेस्‍ट में मोबाइल फ़ोन की एक तिहाई हिस्सेदारी है। WEEE Forum के अनुसार 2022 में दुनिया में लगभग 1600 करोड़ मोबाइल फ़ोन उपयोग में थे, जिनमें से करीब 530 करोड़ फ़ोन (एक-तिहाई) उसी वर्ष ई‑कचरा बन गए।

ग्‍लोबल आंकड़ों की बात करें, तो 2020 में अमेरिका में बेचे गए 84.7 लाख मोबाइल फ़ोनों में से केवल 13.4 लाख (15.9%) ही औपचारिक रूप से रीसायकल होने के लिए वापस आए। ब्रिटेन में सिर्फ़ 12% और चीन में 5% फोन ही रिसाइकल हुए। 

खुली उपलब्धता वाले साइंस जर्नल प्रकाशित करने वाले संस्थान मल्टीडिसिप्लिनरी डिजिटल पब्लिशिंग इंस्टीट्यूट (MDPI) के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में महज 5% मोबाइल फ़ोन ही औपचारिक रूप से रीसाइकल होते हैं। हालांकि, वास्‍तव में इसका आंकड़ा 10% तक हो सकता है, क्‍योंकि भारत में रीसाइकल करने का ज़्यादातर काम अनौपचारिक स्‍तर पर होता है।

हमारे जल स्रोतों को दूषित कर रहा ई-वेस्‍ट 

ई-वेस्ट की समस्‍या केवल कचरा बढ़ने और धरती पर पड़ रहे इसके असर तक सीमित नहीं है। रिसर्च के मुताबिक इलेक्‍ट्रॉनिक कचरा हमारे जल स्रोतों को भी दूषित कर रहा है। ई-कचरे और पानी की समस्या आपस में कई तरह से जुड़ी हुई हैं। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है:

  1. भूमिगत जल प्रदूषण: ई-कचरे को जब लैंडफ़िल्स में फेंका जाता है, तो उसमें मौजूद लेड, मरकरी, कैडमियम जैसे जहरीले तत्व धीरे-धीरे रिसकर मिट्टी और चट्टानों के नीचे एक्विफ़र के रूप में मौजूद हमारे भूमिगत जल स्रोतों को दूषित कर देते हैं।

  2. सतही जल स्रोतों में ज़हर: ई-कचरा रीसाइकल करने वाली इकाइयों में कचरे की प्रोसेसिंग के लिए तेजाब और कई ज़हरीले रसायनों का प्रयोग होता है। इनके अपशिष्ट को अकसर सही ढंग से उपचार किए बिना ही सीवर या नालों में बहा दिया जाता है, जो नदियों और झीलों में गिरकर उनके पानी को प्रदूषित करता है।

  3. ग्रामीण जल स्रोतों पर असर: हमारे देश में ई-साइकलिंग का काम ज़्यादातर छोटे शहरों, कस्‍बों या गांवों में काफ़ी गैरपेशेवर तरीके से होता है। इसमें काफी मात्रा में ई-कचरे के अनुपयोगी भाग को खेतों या खुले मैदान में जला दिया जाता है। इनसे ज़हरीला धुआं निकलता है, जो हवा व ज़मीन को खराब करने के साथ ही स्थानीय तालाबों, पोखरों के पानी को भी बुरी तरह प्रभावित करता है।

    दिल्ली के बाहरी इलाके कृष्णा विहार में डाउन टू अर्थ के एक अध्ययन में पाया गया कि अनधिकृत ई-कचरा निपटान स्थल पर खुले में इलेक्ट्रॉनिक कचरे के जलने से निकलने वाले विषैले रसायन—जैसे लेड, कैडमियम, क्रोमियम और ताँबा—मिट्टी एवं भूजल में मिल रहे हैं, जिससे स्थानीय तालाबों, पोखरों और भूमिगत जल स्रोतों का प्रदूषण हो रहा है ।

  4. मछलियों व जलीय जीवन पर प्रभाव: ई-कचरे में अकसर पानी में घुलने वाले रसायन और भारी धातुओं के विषैले तत्व शामिल होते हैं। इनके जल स्रोतों में मिलने से मछलियों और अन्‍य जलीय जीवों व वनस्‍पतियों को काफी नुकसान पहुंचता है। कुल मिलाकर इससे पूरी जलीय खाद्य शृंखला प्रभावित होती है।

ऐसे में, ई-कचरे को घटाने में मदद करके यह प्रणाली पानी और पर्यावरण को बचाए रखने में मददगार साबित हो सकती है। 

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