बिहार में गंगा के मध्य मैदानी इलाके में भूजल में मैंगनीज़ का स्तर बढ़ा हुआ है, जिसे एक अध्ययन ने कैंसर के बढ़ते मामलों से जोड़ा है।
बिहार में गंगा के मध्य मैदानी इलाके में भूजल में मैंगनीज़ का स्तर बढ़ा हुआ है, जिसे एक अध्ययन ने कैंसर के बढ़ते मामलों से जोड़ा है।फ़ोटो: बालोरी राजेश/पिक्साबे

भूजल में आर्सेनिक और मैंगनीज़ संदूषण: क्या बिहार की राजनीति में पानी के लिए कोई जगह नहीं?

साल के शुरुआत में बिहार की विधानसभा में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के साथ दी गई रिपोर्ट में बताया गया कि राज्य के 26 फीसद से ज़्यादा ग्रामीण ब्लॉक भूवैज्ञानिक (खनिज) संदूषण से जूझ रहे हैं। पर यह जानकारी कुछ अखबारों की खबर बनने तक सिमट कर रह गई।
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भारत का पूर्वी राज्य बिहार इन दिनों विधानसभा चुनावों में व्यस्त है। बेरोज़गारी और पलायन जहां लंबे समय से राज्य के मुख्य मुद्दे रहे हैं, वहीं बुनियादी ढांचा, बिजली, सड़क, शिक्षा और घूसखोरी पर भी वादे और सवाल सुनाई देते रहते हैं। पर जो बुनियादी ज़रूरत बिहार को सबसे ज़्यादा प्रभावित करती है, उसके इर्द-गिर्द राज्य में चुनाव नहीं लड़ा जाता है।

चाहे बाढ़ हो, अवैध बालू खनन और प्रदूषण से जूझती नदियां हों, घटता भूजल स्तर हो या फिर पानी में खतरनाक स्तर पर बढ़ी हुई खनिजों की मात्रा, बिहार की जल सुरक्षा के बारे में न जनता सवाल करती है और न ही प्रत्याशी किसी तरह के वादे। ऐसा ही एक मुद्दा है 31 ज़िलों के पानी में लगातार बढ़ रही आर्सेनिक, फ्लोराइड और नाइट्रेट जैसे विषैले खनिजों की मात्रा का, जिसे लेकर चुनावी समय में भी सियासती हलकों में चुप्पी पसरी हुई है।

भूवैज्ञानिक संदूषण से जूझ रहे हैं 26 फीसद से ज़्यादा वार्ड: सरकारी रिपोर्ट

साल की शुरूआत में विधानसभा में बिहार आर्थिक सर्वेक्षण (2024-25) पेश किया गया। इसके साथ दी गई रिपोर्ट में पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट (पीएचईडी) के हवाले से बताया गया कि राज्य के लगभग 26 फीसद ग्रामीण वार्डों के भूजल में आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन की मात्रा इसके मानक स्तर (भारतीय मानक ब्यूरो के अनुसार भूजल में आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन का मानक स्तर क्रमश: 0.01 mg/L, 1.0 mg/L और 0.3 mg/L तय किया गया है) से अधिक पाई गई है।

बिहार की कुल 8053 ग्राम पंचायतों में करीब 1,15,000 वार्ड हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार के कुल 30,207 ग्रामीण वार्ड खनिज प्रदूषण से जूझ रहे हैं, जिनमें से कुल 4709 में आर्सेनिक, 3789 में फ्लोराइड और 21,709 वार्डों के भूजल में आयरन की मात्रा स्वीकृत स्तर से ज़्यादा पाई गई है।

यह समस्या बिहार के 38 ज़िलों में से 31 को प्रभावित करती है। इन ज़िलों में बक्सर, भोजपुर, सीतामढ़ी, पटना, सारण, वैशाली, लखीसराय, दरभंगा, समस्तीपुर, बेगूसराय, भागलपुर वगैरह शामिल हैं।

ये सभी ज़िले अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण भी भूजल पर बहुत ज़्यादा निर्भर हैं। दरअसल गंगा और उसकी सहायक नदियों (जैसे गंडक, घाघरा, बागमती, कोसी) के तटवर्ती या बाढ़-मैदानी क्षेत्रों में आने के कारण इन ज़िलों की मिट्टी की जल-धारण क्षमता बहुत अधिक है। इसलिए हैंडपंप, ट्यूबवेल, और छोटे बोरवेल कम गहराई में होने पर भी आसानी से पानी देने लगते हैं। जिसका नतीजा यह है कि दशकों से इन ग्रामीण इलाकों के लोग पानी की अपनी ज़रूरतों के लिए भूजल पर ही निर्भर हैं।

बिहार के कुल 30,207 ग्रामीण वार्ड खनिज प्रदूषण से जूझ रहे हैं: बिहार आर्थिक सर्वेक्षण (2024-25) की रिपोर्ट

गंगा के मैदानी इलाकों में मैंगनीज़ संदूषण से बढ़ रहा कैंसर

पटना स्थित महावीर कैंसर संस्थान के वैज्ञानिकों की एक टीम ने अपने अध्ययन के हवाले से दावा किया है कि बिहार में गंगा के मैदानी इलाकों में पानी में मैंगनीज़ (Mn) प्रदूषण के कारण कैंसर हो रहा है।

टीम ने कैंसर के 1146 मरीज़ों के खून के नमूनों की जांच की। इनमें से 20.5 फीसद में मैंगनीज़ की मात्रा सामान्य (15 µg/L) पाई गई, जबकि 28.8 फीसद में 16-50 µg/L, 13.8 फीसद में 101-500 µg/L, 4.1 फीसद में 1001-5000 µg/L पाई गई। 

अध्ययन में इन मरीज़ों के घर से लिए गए पानी के सैंपल की भी जांच की गई। हालांकि, 84.8 फीसद घरों में हैंडपंप के पानी में मैंगनीज़ की मात्रा ब्यूरो ऑफ़ इंडियन स्टैंडर्ड के मानक 100 µg/L या उससे कम पाई गई, पर वैज्ञानिकों ने पीने के पानी में लंबे समय से मैंगनीज़ के बढ़े स्तर को कैंसर की एक वजह माना। 

अध्ययन में शामिल कैंसर रोगियों के खून में मैंगनीज़ की मात्रा का भूस्थानिक (जियोस्पैशियल) विश्लेषण करने पर पाया गया कि सबसे ज़्यादा और गंभीर मामले बिहार में मध्य गंगा के मैदान से थे। हालांकि, राज्य के दक्षिण पश्चिमी और उत्तर पूर्वी हिस्सों के नमूनों में भी मैंगनीज़ की काफ़ी ज़्यादा मात्रा देखी गई।

क्यों होता है भूवैज्ञानिक संदूषण

भूवैज्ञानिक संदूषण तब होता है जब भूमिगत चट्टानों और मिट्टी में मौजूद खनिज तत्व (जैसे आर्सेनिक, फ्लोराइड, आयरन, मैंगनीज़, नाइट्रेट आदि) धीरे-धीरे भूजल में घुल जाते हैं। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन भूजल दोहन, जलस्तर में गिरावट, मिट्टी की रासायनिक संरचना और जल प्रवाह की दिशा जैसे कारण इस प्रक्रिया को तेज़ कर देते हैं।

बिहार में भूजल प्रदूषण का एक बड़ा हिस्सा भूवैज्ञानिक संदूषण है। राज्य की भौगोलिक बनावट और गंगा के मैदान की जलोढ़ मिट्टी इस प्रदूषण को बढ़ाने में भूमिका निभाती है। यही कारण है कि बिहार के बक्सर, भोजपुर, पटना, वैशाली, नालंदा, लखीसराय और भागलपुर ज़िले आर्सेनिक और आयरन प्रदूषण से सबसे अधिक प्रभावित हैं।

बिहार में पानी में खनिजों की बढ़ती मात्रा का एक कारण सिंचाई के लिए भूजल का किया जाने वाला अंधाधुंध दोहन भी है। दरअसल बिहार के सीतामढ़ी, भागलपुर, समस्तीपुर और दरभंगा जैसे ज़िलों में धान, गेहूं और गन्ना प्रमुखता से उगाया जाता है और इन फसलों की सिंचाई के लिए यहां के किसान मुख्य रूप से भूजल पर ही निर्भर हैं और अच्छी फसल के लिए भूजल का अंधाधुंध उपयोग करते हैं। जिसका नतीजा यह हुआ है कि इन इलाको में ज़मीन के नीचे पानी का स्तर घटा है और उनमें इन आर्सेनिक, फ्लोराइड, आयरन जैसे विषैले खनिजों की मात्रा और उन का घनत्व दोनों बढ़े हैं।

बिहार के बक्सर, भोजपुर, पटना, वैशाली, नालंदा, लखीसराय और भागलपुर ज़िले आर्सेनिक और आयरन प्रदूषण से सबसे अधिक प्रभावित हैं।
बिहार के बक्सर, भोजपुर, पटना, वैशाली, नालंदा, लखीसराय और भागलपुर ज़िले आर्सेनिक और आयरन प्रदूषण से सबसे अधिक प्रभावित हैं।चित्र: इंडिया वॉटर पोर्टल

इसका कारण यह है कि जब जलस्तर नीचे जाता है, तो हम ज़्यादा मात्रा में पानी निकालने लगते हैं। ऐसे में जलभृत (ऐक्विफ़र) में पानी की मात्रा घटती है, लेकिन मिट्टी और चट्टानों में घुले खनिज पहले जितनी मात्रा में ही मौजूद रहते हैं।

बिहार के भूजल में खनिज तत्वों की अधिकता और उनके स्वास्थ्य प्रभाव

आर्सेनिक, नाइट्रेट, फ्लोराइड और मैंगनीज़ जैसे खनिजों के अत्यधिक सेवन या लंबे समय तक उनके संपर्क में रहने से बिहार के विभिन्न ज़िलों में लोगों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ रहा है।

आर्सेनिक के प्रभाव

  • त्वचा रोग जैसे रंग का बदलना, किडनी, फेफड़ों और मूत्राशय के कैंसर, तंत्रिका तंत्र पर असर, गर्भावस्था में बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रभाव के साथ अन्य दीर्घकालिक प्रभावों में रक्तचाप की समस्या और हृदय संबंधी रोग का बढ़ना।

  • टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार, दक्षिण बिहार और गंगा घाटी क्षेत्रों में इसका खतरा लगभग 2 से 2.4 गुना तक बढ़ रहा है। मुज़फ्फरपुर जिले में लगभग 20 प्रतिशत भूजल नमूनों में आर्सेनिक की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन की तय मानक (0.01 mg/L) से अधिक पाई गई है।

  • बिहार के पटना, भोजपुर, मुज़फ़्फरपुर, भागलपुर आदि ज़िलों में विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानक सीमा यानी 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर से कई गुना अधिक मात्रा में यह रसायन पानी में पाया गया है और लोगों में त्वचा रोग और कैंसर के मामलों में वृद्धि हो रही है।

  • जर्नल ऑफ मेंटल हेल्थ एंड ह्यूमन बिहेवियर की एक पड़ताल में पता चला कि बिहार के बक्सर में आर्सेनिक संपर्क के कारण जिले के स्कूली-बच्चों की स्मरण, ध्यान और व्यवहार क्षमता पर प्रभाव पड़ा है। 

 नाइट्रेट के प्रभाव

  • ब्लूबेबी सिंड्रोम, पाचन तंत्र पर असर, लंबे समय तक सेवन से रक्तचाप और कैंसर का ख़तरा ।

  • बिहार के पूर्णिया, सुपौल, सहरसा और भागलपुर ज़िलों के पानी में इसकी मात्रा बहुत अधिक मिली है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानक सीमा यानी 45 मिलीग्राम प्रति लीटर से कई गुना अधिक मात्रा में यह रसायन पानी में पाया गया है, जिससे गर्भवती महिलाओं में ब्लू बेबी सिंड्रोम के मामलों में तेज़ी देखी जा रही है।

फ्लोराइड के प्रभाव

  • दांतों पर भूरे-पीले धब्बे, दांत भुरभुरे होना, हड्डियों में अकड़न, जोड़ों में दर्द, शरीर अकड़ जाना, हड्डियों का विकास प्रभावित होना, अधिक सेवन पर मांसपेशियों की कमजोरी और नसों पर असर की शिकायत।

  • लगभग 21,709 वार्डों में पानी का रंग, स्वाद और गंध प्रभावित हो चुकी है, जिससे लोगों का साफ़ पानी पर भरोसा कम हुआ है। गया, रोहतास और नवादा में फ्लोराइड की अधिकता (0.37–2.70 mg/L) पाई गई है, जिससे फ़्लोरोसिस के लक्षण देखे गए हैं।

  • नवादा, गया, रोहतास और औरंगाबाद ज़िलों में यह विषैला खनिज अपनी मानक स्वीकार सीमा यानी 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक पाई गई है।

जर्नल ऑफ मेंटल हेल्थ एंड ह्यूमन बिहेवियर की एक पड़ताल बताती है कि बिहार के बक्सर में आर्सेनिक संपर्क के कारण जिले के स्कूली-बच्चों की स्मरण, ध्यान और व्यवहार क्षमता पर प्रभाव पड़ा है।

बिहार में भूजल संकट: नीतियां और असर

बिहार सरकार ने भूजल प्रदूषण से निपटने के लिए जल जीवन मिशन और हर घर नल का जल योजना के तहत कई प्रयास किए जा रहे हैं। हालांकि, इस महत्वाकांक्षी योजना का कोई अपेक्षित प्रभाव देखने को नहीं मिला और उसकी ज़मीनी हक़ीकत कुछ ऐसी है:

जल जीवन मिशन:

  • इस योजना के तहत हर घर नल पहुंचाए गए हैं लेकिन आंकड़े बताते हैं कि अररिया, औरंगाबाद, जमुई आदि ज़िलों में इन नलों में पानी की आपूर्ति नियमित नहीं होती है, नतीजा यह है कि पानी के लिए लोग अब भी पुराने वैकल्पिक स्रोतों पर ही निर्भर हैं जो कि प्रदूषित हो चुका है।

  • जमुई, ज्ञानटोली (बेगूसराय) ,बोध गया ज़िलों में अब भी पाइप बिछाने और नल लगाने का काम चल ही रहा है और निकट भविष्य में पूरा होता नहीं दिख रहा है। नतीजा यह है कि लोग पहले से ही उपलब्ध खनिजों की बहुत अधिक मात्रा वाले पानी के उपयोग के लिए मजबूर हैं।

  • सतही स्रोत जैसे तालाब/टैंक या मल्टी-विलेज सप्लाई योजनाओं में सर्वे/सस्टेनेबिलिटी, ठेकेदार के काम, पाइपलाइन लेआउट, स्थानीय संचालन एवं स्थानीय स्तर पर रख-रखाव जैसे कई लिंक कमजोर पड़े हैं जिससे कि सरकार का हर घर साफ़ जल पहुंचाने का लक्ष्य एक काग़ज़ी दावा बनकर रह गया है और लोगों को दूषित पानी ही मिल रहा है।

 हर घर नल योजना 

  • बिहार के 30,207 ग्रामीण वार्डों में आर्सेनिक, फ्लोराइड और नाइट्रर जैसे खनिजों की बहुत अधिक मात्रा पाए जाने के बाद इस योजना को लागू करने की घोषणा हुई। इसके तहत कई गांवों में नल तो लगाए गए, लेकिन उनका स्रोत आर्सेनिक, फ्लोराइड और नाइट्रेट की बढ़ी हुई मात्रा वाला भूजल ही है। नतीजतन साफ़ पानी देने के लिए लगाए गए नलों से भी वही विषैला पानी बह रहा है। 

  • पानी की गुणवत्ता जांच के बाद भागलपुर, बक्सर और नवादा जिलों में पाइपलाइन से आने वाला पानी भी पीने लायक नहीं पाया गया।

  • इस योजना का ध्यान जल गुणवत्ता निगरानी के लिए किसी तरह की स्थायी व्यवस्था न करके केवल पानी की आपूर्ति पर ही केंद्रित है। नतीजतन, उचित रख-रखाव और निगरानी की कमी के कारण स्थापित ढांचे कुछ ही समय बाद ठप पड़ गए।

कैसे मिल सकता है समाधान

जल‑सुधार की दिशा में तीन प्रमुख स्तम्भ हैं:
(i) प्रदूषण नियंत्रण: जैसे औद्योगिक अपशिष्ट का उपयुक्त उपचार, कृषि रसायनों तथा कीटनाशकों का नियंत्रित उपयोग, और शहरी सीवेज प्रबंधन की व्यवस्था
(ii) भूजल पुनर्भरण: घरों में वर्षा‑जल संचयन के लिए टैंक, सामुदायिक रिचार्ज टैंक निर्माण आदि जैसे उपायों के माध्यम से भूजल स्तर में हो रही गिरावट की दर को धीमा करना ताकि खनिजों का घनत्व बढ़ने से रोका जा सके।
(iii) पानी की गुणवत्ता पर सतत निगरानी: जल गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क का विकास और आंकड़ों का सार्वजनिकीकरण ताकि जल के उपयोग से पहले उसके बारे में जानकारी उपलब्ध हो।

जब स्थानीय समुदाय जल‑मुद्दे को केवल नीति‑विषय नहीं बल्कि अपनी साझा विरासत और सामाजिक दायित्व के रूप में देखेंगे, तभी “स्वच्छ जल सबके लिए” का लक्ष्य एक वास्तविकता बन सकेगा।
जब स्थानीय समुदाय जल‑मुद्दे को केवल नीति‑विषय नहीं बल्कि अपनी साझा विरासत और सामाजिक दायित्व के रूप में देखेंगे, तभी “स्वच्छ जल सबके लिए” का लक्ष्य एक वास्तविकता बन सकेगा।चित्र: इंडिया वॉटर पोर्टल

समुदाय और सामाजिक उत्तरदायित्व: जब स्थानीय समुदाय जल‑मुद्दे को केवल नीति‑विषय नहीं बल्कि अपनी साझा विरासत और सामाजिक दायित्व के रूप में देखेंगे, तभी “स्वच्छ जल सबके लिए” का लक्ष्य एक वास्तविकता बन सकेगा। इस दिशा में जनता की भागीदारी, शिक्षा‑जागरूकता और स्थानीय प्रबंधन थानों का निर्माण विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

कभी जल-संपदा और उपजाऊ मिट्टी के लिए प्रसिद्ध बिहार आज अपने ही जल-संकट से जूझ रहा है। यह विडंबना ही है कि गंगा के किनारे बसे इस प्रदेश में न केवल पानी की कमी की समस्या बढ़ती जा रही, बल्कि सुरक्षितपानीकीकमी का संकट भी गहराता जा रहा है। ज़मीन के नीचे का पानी जहरीला हो चुका है। जिसके कारण इस पानी का उपयोग करने वालों और लंबे समय तक इसके संपर्क में रहने वालों के स्वास्थ्य पर इसका बुरा असर पड़ रहा है।

बिहार में बढ़ते जल-प्रदूषण और उसके प्रभावों को रोकने के लिए समय-समय पर नीतियां बनीं, योजनाओं की घोषणा हुई लेकिन ज़मीन पर उन्हें लागू करने और लागू करने के बाद उनके रखरखाव की कमी ने उन्हें कागज़ों तक सीमित कर दिया। “हर घर नल का जल” जैसी योजनाएं तब तक अधूरी रहेंगी जब तक उस नल से निकलने वाला पानी पीने लायक नहीं होगा। अब ज़रूरत है एक एकीकृत जल प्रबंधन दृष्टिकोण की, जिसमें सतही और भूजल दोनों को एक ही चक्र के रूप में समझा जाए और न केवल जल की नियमित उपलब्धता पर ध्यान दिया जाए बल्कि साफ़-जल की आपूर्ति को भी प्राथमिकता मिले।

जब तक जल प्रदूषण और उसकी रोकथाम को केवल सरकारी योजना का हिस्सा न मानकर, सामाजिक जिम्मेदारी और स्थानीय गर्व का विषय नहीं बनाया जाएगा तब तक इस संकट से उबरने की राह कठिन ही बनी रहेगी। बिहार को साफ़ पानी को केवल संसाधन न मानकर एक आवश्यक अधिकार के रूप में देखने की ज़रूरत है, क्योंकि स्वच्छ और सुरक्षित पानी केवल जीवन का आधार नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के अस्तित्व की गारंटी है।

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