बेंगलुरू वासियों को ट्रैफिक जाम की समस्‍या से निजात दिलाने के लिए कर्नाटक सरकार ने हेब्‍बल-सिल्‍क बोर्ड सुरंग सड़क परियोजना को मंज़ूरी दी है, जिसे लेकर पर्यावरण संबंधी चिंताएं जताई जा रही हैं।
बेंगलुरू वासियों को ट्रैफिक जाम की समस्‍या से निजात दिलाने के लिए कर्नाटक सरकार ने हेब्‍बल-सिल्‍क बोर्ड सुरंग सड़क परियोजना को मंज़ूरी दी है, जिसे लेकर पर्यावरण संबंधी चिंताएं जताई जा रही हैं। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर , स्रोत : फ्री पिक

क्या बेंगलुरू का जल संकट बढ़ा सकती है 40 हज़ार करोड़ की हेब्‍बल-सिल्‍क बोर्ड सुरंग सड़क परियोजना?

विशेषज्ञों का मानना है कि शहर के भूजल स्रोतों और दो झीलों के लिए खतरा बन सकती है ज़मीन से 120 फीट नीचे बनने वाली सुरंग। इस बात पर भी आपत्ति जताई जा रही है कि बड़ी लागत से बनने वाली यह सुरंग सिर्फ़ निजी वाहनों के लिए क्यों होनी चाहिए।
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देश की आईटी राजधानी के रूप में मशहूर बेंगलुरू की दो सबसे बड़ी समस्‍याएं हैं भारी-भरकम ट्रैफिक और पानी की कमी। हाल में सरकार ने ट्रैफिक की समस्‍या के समाधान के लिए महत्‍वाकांक्षी भूमिगत सड़क परियोजना को हरी झंडी दी है, पर माना जा रहा है कि इससे पानी की समस्‍या गहरा सकती है।

पर्यावरणविदों और जलविज्ञानियों को इससे शहर में जल संकट गहराने की आशंका है, क्‍योंकि 120 फीट की गहराई में बनाए जाने के कारण यह सुरंग भूजल को रीचार्ज करने वाले कई जलभृत (एक्‍विफ़र) चैनलों को बाधित कर सकती है। प्रस्‍तावित सुरंग मीठे पानी की दो बड़ी झीलों हेब्बल झील और नागवाड़ा झील के करीब से भी गुजरती है, जिससे इन झीलों के अस्तित्‍व को भी खतरा हो सकता है। ऐसे में, इस प्रोजेक्‍ट से बेंगलुरू का जलसंकट और भी विकराल होने की आशंका है। 

परियोजना की रूपरेखा और उद्देश्य 

कर्नाटक सरकार बेंगलुरू में यातायात दबाव को कम करने के उद्देश्य से एक विशाल भूमिगत सड़क नेटवर्क परियोजना की योजना पर काम कर रही है, जिसकी अनुमानित लागत लगभग ₹40,000 करोड़ बताई गई है। रिपोर्ट के मुताबिक कर्नाटक सरकार की कैबिनेट ने 22 अगस्त 2024 को प्रोजेक्‍ट को सैद्धांतिक मंजूरी दी थी, जिसके बाद दिसंबर 2024 में प्रोजेक्‍ट की डीटेल प्रोजेक्‍ट रिपोर्ट (डीपीआर) पेश हुई। इसके पश्‍चात 6 जून 2025 को प्रकाशित समाचार के मुताबिक कैबिनेट ने पहले चरण हेब्‍बल से सिल्‍क बोर्ड तक सुरंग सड़क निर्माण के डीपीआर को मंज़ूरी दी। 

ज़मीनी स्‍तर पर परियोजना का काम अगले वर्ष से निर्माण शुरू होने की संभावना है। परियोजना का कुल कार्यकाल लगभग 50 महीने (लगभग 4‑5 साल) रखा गया है। इस तरह 2029–30 तक परियोजना के पूरा होने की संभावना है। इसमें पहले 24 महीने सुरंग खुदाई का काम होना है और अंतिम 12‑13 महीनों में अन्य निर्माण कार्य किए जाने हैं। 

प्रोजेक्‍ट के डीपीआर में दावा किया गया कि परियोजना पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन यानी एनवायरनमेंट इम्पैक्ट एसेसमेंट (ईआईए) की श्रेणी A या B में नहीं आती, इसलिए इसके लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) या राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की मंज़ूरी की आवश्‍यकता नहीं है। डीपीआर के मुताबिक यह अंडरग्राउंड टनल सड़क परियोजना न तो राष्ट्रीय राजमार्ग है, न ही इसमें किसी नए भू-भाग पर निर्माण किया जाना है। इसलिए यह ईआईए नोटिफ़िकेशन 2006 में उल्लिखित "निर्माण/इन्फ्रास्ट्रक्चर" श्रेणी के अंतर्गत नहीं आती। अत: इसके लिए पर्यावरण मंत्रालय या एनजीटी की मंज़ूरी नहीं चाहिए।

परियोजना के तहत दो प्रमुख भूमिगत सड़क मार्गों का निर्माण किया जाएगा, एक उत्तर-दक्षिण (North-South) दिशा में और दूसरा पूर्व-पश्चिम (East-West) दिशा में। इसका पूरा निर्माण दो चरणों में किया जाएगा। यह सुरंगें बहु-स्तरीय (multi-layered) होंगी और इनका निर्माण इस तरीके से करने का प्रस्‍ताव है कि वे मौजूदा शहर के ढांचे को बिना बाधित किए भूमिगत रूप से यातायात का समाधान दे सकें। रिपोर्ट के मुता‍बिक दोनों चरणों का प्रारूप कुछ इस प्रकार रहेगा -

  • फ़ेज़‑1 (उत्तर‑दक्षिण कॉरिडोर): इसमें हेब्बल के एस्‍टीम माल जंक्शन से एचएसआर लेआउट स्थि‍त सिल्क बोर्ड जंक्शन तक लगभग 18.5 किलोमीटर लंबी ट्विन‑ट्यूब सुरंग का निर्माण किया जाएगा। जिसकी अनुमानित लागत करीब 19,000 करोड़ रुपये है। इस मार्ग में हेब्बल, लालबाग, मेखरी सर्कल, रेंज कोर्स रोड, और सिल्क बोर्ड जैसे प्रमुख इंटरचेंज शामिल होंगे।

  • फ़ेज़‑2 (पूर्व‑पश्चिम कॉरिडोर): दूसरे चरण में आर के पुरम से नैंदहल्ली (मैसूर रोड) तक लगभग 22 किलोमीटर लंबा मार्ग प्रस्तावित है, जिसकी अनुमानित लागत 19,000-22,000 करोड़ रुपये है। इसका उद्देश्य पूर्वी और पश्चिमी बेंगलुरू के बीच एक इंटिग्रेटेड ट्रैफिक सिस्‍टम की स्‍थापना करना है।

दोनों चरणों के तहत 50 महीनों में निर्माण पूरा करने की योजना है। निर्माण कार्य पूरा होने के पश्‍चात टेंडर के जरिये निजी कंपनी ठेके पर इसे 30–34 वर्षों तक ऑपरेट करेगी। इस टनल रोड प्रोजेक्‍ट के पीछे सरकार का उद्देश्य यात्रा समय को वर्तमान लगभग 60 मिनट से घटाकर 20–25 मिनट करना है। हालांकि, विशेषज्ञों के अनुसार यह उपाय केवल अस्थायी समाधान दे सकता है, क्‍योंकि शहर में वाहनों की संख्‍या को नियंत्रित किए बिना ट्रैफिक की समस्‍या को खत्‍म कर पाना संभव नहीं है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक बेंगलुरू में प्रति दिन लगभग 2,500 से 3,000 नए वाहन पंजीकृत हो रहे हैं। इसके चलते सड़कों पर गाडियों की भीड़ बेतहाशा बढ़ती जा रही है, जो ट्रैफिक जाम की समस्‍या पैदा कर रही है। वित्त वर्ष 2024‑25 में बेंगलुरू में 7.22 लाख से अधिक नए वाहन पंजीकृत हुए थे, जिसका औसत 60,000 वाहन प्रतिमाह के करीब बैठता है।

ज़मीन के 120 फिट नीचे खुदाई करके बनाई जाने वाली सुरंग के चलते शहर के भूजल स्रोतों के प्रभावित होने की आशंका पर्यावरणविदों ने जताई है।
ज़मीन के 120 फिट नीचे खुदाई करके बनाई जाने वाली सुरंग के चलते शहर के भूजल स्रोतों के प्रभावित होने की आशंका पर्यावरणविदों ने जताई है। स्रोत : इंडियन एक्‍सप्रेस

भूविज्ञानियों की चिंताएं और आशंकाएं

भूवैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों के मुताबिक यह परियोजना कागज़ पर भले ही आशाजनक लगे, लेकिन इससे शहर को एक स्थायी और अपूरणीय क्षति हो सकती है। खासकर, शहर में पानी की समस्‍या और भी गहरा सकती है। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि बेतरतीब निर्माण के चलते शहर के लगभग 93% भूजल भराव की क्षमता पहले ही कम हो चुकी है। इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) की एक रिपोर्ट बताती है कि पिछले 50 वर्षों में शहर में जल क्षेत्र एवं वनाच्‍छादित (फॉरेस्‍ट कवर) इलाके लगभग 70% घटे हैं। 

साल 1973 में बेंगलुरू का निर्मित क्षेत्र (कंस्‍ट्रक्‍टेड एरिया) केवल 8% था, जो  2023 तक बढ़कर 93.3% हो गया। इसके विपरीत जल-विस्तार क्षेत्र 1973 के 2,324 हेक्टेयर से घटकर 2023 में केवल 696 हेक्टेयर रह गया। ऐसे में, 120 फीट गहरी सुरंग के निर्माण की गतिविधियां एक्‍वि़फ़र और रिचार्जिंग जोन को प्रभावित कर सकती हैं, जिससे बेंगलुरू की जल सुरक्षा को दीर्घकालिक खतरा हो सकता है। इससे परियोजना के आसपास के इलाकों के भूजल स्तर में और भी गिरावट आ सकती है। बड़ी संख्‍या में इलाके के बोरवेल सूख सकते हैं, जिससे पेयजल संकट और गहरा सकता है। 

डेकन हेराल्‍ड की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यह परियोजना इलाके के भू‑विज्ञान और हाइड्रोलॉजी का गहन अध्ययन के बिना ही प्रस्तावित की गई है। रिपोर्ट में जीवी हेगड़े और के सी सुभाष चंद्र जैसे भूवैज्ञानिकों के हवाले से बताया गया है कि बेंगलुरू एक जटिल और हाई-फ्रैक्चर्ड हार्ड रॉक स्‍ट्रक्‍चर वाले भू‑भाग पर बसा है। यहां ज़मीन में मौजूद प्राकृतिक दरारें (नेचुरल फ्रैक्चर) भूजल के प्रवाह और भराव के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। टनल रोड प्रोजेक्‍ट के लिए प्रस्‍तावित 16–17 किलोमीटर लंबी सुरंग इनके नेटवर्क को बाधित कर सकती है। इससे भूजल के स्तर में गिरावट, बोरवेल सूखने और आसपास के सतही जल स्रोतों के प्रभावित होने की आशंका है।

हालांकि, बेंगलुरू में पिछले 39 सालों से पानी पर काम कर रहे पर्यावरणविद एस. विश्वनाथ नहीं मानते कि यह टनल जल संकट को बढ़ा सकती है।

पहली बात तो ये है कि 120 फीट की गहराई रीचार्ज ज़ोन में नहीं डिस्चार्ज ज़ोन में आती है। टनल बनाते समय ज़रूर एक्विफ़र को नुकसान होगा, पर ये इतना बड़ा नुकसान नहीं होगा। टनल के रास्ते में आने वाले बोरवैल हटा दिए जाएंगे और हो सकता है कि आस-पास के बोरवैल सूख भी जाएं। उस दौरान ब्लास्टिंग के कारण भी पानी टनल में आएगा, पर टनल बनने के बाद उसके आस पास की ज़मीन को कंक्रीट से भर दिया जाएगा, ताकि पानी रिसकर टनल में न आए। निर्माण पूरा होने के बाद टनल सतही जल स्रोतों या एक्विफ़र के लिए किसी तरह की समस्या नहीं बनेगा। बैंगलोर में पहले भी मेट्रो के लिए टनल बनी है। भूजल पर उसके असर का अध्ययन किया गया है और ऐसा कोई कारण नहीं मिला है कि आगे टनल न बनाई जाए। झील सूखने का खतरा बेमानी है। निर्माण के समय ब्लास्टिंग, शोर और प्रदूषण के कारण झीलों की जैव-विविधता पर असर दिख सकता है, पर ऐसा कहना गलत है कि झीलें सूख जाएंगी। यह टनल केवल निजी वाहनों के लिए है, जबकि इसे बनाने में इतनी बड़ी लागत लग रही है। इस बात पर परियोजना की आलोचना होनी चाहिए। पानी को इससे कोई खतरा नहीं होने वाला।
एस. विश्वनाथ बायोम ट्रस्ट से जुड़े हुए हैं और वे पिछले 39 सालों से विशेषकर बेंगलुरू में पानी से जुड़े विषयों पर काम कर रहे हैं
टनल प्रोजेक्‍ट की डीटेल्‍ड प्रोजेक्‍ट रिपोर्ट में दो लेन वाली दोहरी सड़क बनाने का प्रस्‍ताव किया गया है।
टनल प्रोजेक्‍ट की डीटेल्‍ड प्रोजेक्‍ट रिपोर्ट में दो लेन वाली दोहरी सड़क बनाने का प्रस्‍ताव किया गया है। स्रोत : इंडियन एक्‍सप्रेस

बेंगलुरू के जलापूर्ति मॉडल पर टनल प्रोजेक्‍ट का असर

बेंगलुरू की जलापूर्ति मुख्य रूप से दो स्रोतों पर टिकी है: कावेरी नदी और भूमिगत जलस्रोत। शहर की कुल पेयजल आवश्यकताओं का 70-75% जल कावेरी नदी से प्राप्त होता है। इसे बेंगलुरू वॉटर सप्लाई एंड सीवरेज बोर्ड (BWSSB) द्वारा लगभग 100 किलोमीटर दूर से पंप कर शहर तक पहुंचाया जाता है। इसलिए यह एक महंगा और पर्यावरण के प्रतिकूल विकल्प है, क्‍योंकि इसके लिए बड़ी मात्रा में ऊर्जा (बिजली) और इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता होती है।

इसके आलावा, शहर में 25-30% जल आपूर्ति बोरवैल जैसे भूमिगत जल स्रोतों से होती है। लेकिन, लगातार भारी मात्रा में भूजल के दोहन और वर्षा जल संचयन की कमी के कारण बेंगलुरू का भूमिगत जल स्तर खतरनाक रूप से नीचे जा रहा है। पहले हेब्बल और नागवाड़ा जैसी झीलें भी शहर की जलापूर्ति और जल पुनर्भरण में भूमिका निभाती थीं, लेकिन जल प्रदूषण बढ़ने और शहरीकरण के चलते इन झीलों का आकार घटने से इनका योगदान नगण्य हो गया है। 

इस तरह, बेंगलुरू का मौजूदा जल मॉडल अस्थिर और अत्यधिक दबाव वाला तंत्र बन गया है। सुरंग सड़क परियोजना शहर की भूमिगत जल संचयन प्रणाली को प्रभावित करके स्थिति को और भी गंभीर बना सकती है। इस परियोजना तहत शहर में ज़मीन की सतह के नीचे लगभग 100 किलोमीटर लंबी सुरंगों का जाल बनाया जाएगा।  कंक्रीट से बनी ये सुरंगें शहर की 30% तक जलापूर्ति करने वाली भूमिगत जलवाहक परतों (aquifers) और झीलों के प्राकृतिक जल-प्रवाह में बाधक बनेंगी। इसलिए सुरंगों के निर्माण से भूजल रिचार्ज क्षमता में कमी आ सकती है। व

र्षा जल संचयन विशेषज्ञ एआर शिवकुमार ने न्‍यू इंडियन एक्‍सप्रेस को बताया कि बेंगलुरू के भूजल भंडार (ग्राउंड वाटर यील्‍ड) में 40% की गिरावट आई है। उन इलाकों में यह संकट और भी ज़्यादा हो सकता है, जहां जलस्रोत पहले ही संकट में हैं। भूमिगत जल स्रोतों के अलावा सतह पर मौजूद झीलों पर भी इसका गंभीर असर पड़ने की आशंका है, क्‍योंकि सुरंग निर्माण के दौरान झीलों के आसपास की पारगम्य परतों के टूटने से झीलों का जल रिसाव बढ़ सकता है, जिससे उनके सूखने का खतरा बढ़ जाएगा। इस तरह बिना व्यापक हाइड्रोजियोलॉजिकल अध्ययन के आगे बढ़ाए जाने पर यह परियोजना बेंगलुरू की पहले से ही नाजुक जलापूर्ति प्रणाली के लिए और भी बड़ा संकट खड़ा कर सकती है।

‘अमीरों की सुरंग’ में नहीं जा सकेंगे आम जन

इतनी ज़्यादा लागत के चलते इस टनल कॉरिडोर की टोल दरें भी काफ़ी ज़्यादा होने की आशंका है। ऐसे में पर्यावरणविद इसे 'विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के लिए निजी एक्सप्रेसवे' और ‘अमीरों की सुरंग’ जैसे नाम भी दे रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार भूमिगत सड़क के लिए टोल 19 रुपये प्रति किलोमीटर हो सकती है। इस तरह सुरंग के लिए कारों का टोल 330 रुपये तक होगा। ऑटो और दोपहिया वाहनों को इस टनल रोड से गुज़रने की अनुमति नहीं होगी। 

मसौदा विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) में उल्लिखित समर्पित बस लेन को भी परियोजना के डीपीआर से हटा दिया गया है। इसका मतलब बसों को भी इससे गुज़रने नहीं दिया जाएगा। इस तरह इसे केवल कारों के लिए ही सीमित कर दिया गया है। इसे लेकर भी प्रोजेक्‍ट की आलोचना हो रही है। कहा जा रहा है कि जनता के पैसे से बन रही यह सड़क जब आम लोगों के इस्‍तेमाल के लिए होगी ही नहीं, तो इतनी बड़ी रकम इसपर क्यों खर्च की जा रही है? 

दी इंडियन एक्‍सप्रेस ने अपनी एक खबर में बेंगलुरू सेंट्रल के सांसद पीसी मोहन की एक्स पोस्ट का हवाला दिया है, जिसमें उन्होंने कहा है, "सुरंग सड़क की अंतिम डीपीआर में चुपचाप बस लेन को हटा दिया गया है, जिससे एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया है कि सुरंग केवल उन अमीर लोगों के लिए है जो 660 रुपये का महंगा टोल चुका सकते हैं, यह आम बेंगलुरू वासियों के लिए नहीं। एक तरफ, वे (सरकार) मुफ्त बस यात्रा की बात करते हैं, दूसरी तरफ वे बस के बुनियादी ढांचे को ही खत्म कर रहे हैं।" 

सांसद ने परियोजना के औचित्‍य पर सवाल उठाते हुए कहा, "कितने बेंगलुरूवासी वास्तव में 660 रुपये प्रतिदिन खर्च कर सकते हैं? इस सुरंग का उपयोग करने के लिए लगभग 20,000 रुपये प्रति माह खर्च होंगे। इसलिए यह कोई सार्वजनिक बुनियादी ढांचा नहीं, बल्कि आम करदाताओं के पैसे से विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के लिए बन रहा एक निजी एक्सप्रेसवे है। यह एक भेदभावपूर्ण, और सार्वजनिक परिवहन विरोधी कदम है, जिसका बहिष्कार किया जाना चाहिए।" 

इसी रिपोर्ट में अर्बन मोबिलिटी एक्‍सपर्ट सत्य अरिकुथारम कहते हैं "सुरंग सड़क परियोजना के दायरे को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है। डीपीआर में पहले इलेक्ट्रिक ट्रॉली बस-आधारित प्रणाली का प्रस्ताव था, जिसे अंतिम डीपीआर में हटा दिया गया है। इससे खराब प्रस्ताव अब और भी बदतर हो गया है। 

दूसरी ओर, इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए बेंगलुरू स्मार्ट इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (बी-स्माइल) के तकनीकी निदेशक बीएस प्रहलाद ने कहा, "सुरंग सड़क परियोजना के तहत सार्वजनिक परिवहन को प्राथमिकता दी जाएगी। सुरंग सड़क परियोजना में एक डेडिकेटेड बस लेन का बुनियादी ढांचा योजना का हिस्सा है। हालांकि, बस लेन के डिज़ाइन को अंतिम रूप देने के लिए यातायात विश्लेषण सहित कुछ अध्ययन अभी भी किए जाने हैं।"

प्रोजेक्‍ट के फाइनल डीपीआर से डेडिकेटेड बस लेन को हटाए जाने की बात सामने आने से इस परियोजना के औचित्‍य पर ही सवाल उठने लगा है कि क्‍या इतने भारी-भरकम खर्च से यह सुरंग केवल कारों के गुज़रने के लिए बनाई जा रही है?
प्रोजेक्‍ट के फाइनल डीपीआर से डेडिकेटेड बस लेन को हटाए जाने की बात सामने आने से इस परियोजना के औचित्‍य पर ही सवाल उठने लगा है कि क्‍या इतने भारी-भरकम खर्च से यह सुरंग केवल कारों के गुज़रने के लिए बनाई जा रही है?स्रोत : इंडियन एक्‍सप्रेस

क्‍या हो सकते हैं विकल्प

इकानॉमिक टाइम्‍स की एक रिपोर्ट के मुताबिक उद्योगपति व बायोकॉन लिमिटेड की प्रमुख किरण मज़ुमदार शॉ, इंफोसिस के पूर्व मुख्य वित्तीय अधिकारी (CFO) मोहनदास पई और भाजपा सांसद (बंगलौर, दक्षिण) तेजस्‍वी सूर्या जैसी प्रमुख हस्तियों ने सुझाव दिया है कि सरकार अगर 19,000 करोड़ रुपये खर्च करके टनल रोड बनाने के बजाय शहर की सड़कों को चौड़ा करने मेट्रो नेटवर्क के विस्तार, बीएमटीसी की नगर बस सेवा को बढ़ा कर सार्वजनिक परिवहन को सुधारने जैसे व्‍यावहारिक उपाय करे तो, यह ट्रैफिक की समस्‍या के समाधान में अधिक प्रभावी और टिकाऊ साबित होंगे। ये उपाय पर्यावरण की दृष्टि से भी सुरक्षित होंगे।

खासकर, मेट्रो के विस्‍तार पर ज़ोर देते हुए तीनों ने कहा कि छह‑लेन वाली सुरंग केवल कार मालिकों के लिए होगी, जो पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर दबाव की समस्या का समाधान नहीं कर सकती। इसके विपरीत मास ट्रांजिट सिस्टम आम जनता को सेवा देता है और यह स्थायी विकास की दिशा में सहायक है। इसलिए सरकार को टनल प्रोजेक्‍ट के बजाय इन कारगर और व्‍यावहारिक विकल्‍पों पर ध्‍यान देना चाहिए। 

फ्लॉप हो चुके टनल प्रोजेक्‍ट्स से सीखें सबक

विशेषज्ञ कर्नाटक सरकार को देश के विभिन्‍न इलाकों में फ्लॉप हो चुके इस तरह टनल प्रोजेक्‍ट्स की असफलताओं से सीख लेने की नसीहत दे रहे हैं। देश की राजधानी दिल्‍ली में प्रगति मैदान टनल इसका एक हालिया उदाहरण है। इस टनल में दोषपूर्ण डिज़ाइन, खराब ड्रेनेज के चलते जल भराव और निर्माण कार्य व सामग्री में गड़बड़ी के कारण टनल में जल रिसाव से यात्रियों के लिए खतरनाक स्थिति उत्पन्न हो गई। रिपोर्ट के मुताबिक कई तकनीकी समीक्षाओं में दोषपूर्ण माने जाने के बावजूद इसे जिस प्रकार मंज़ूरी दी गई, उससे पता चलता है कि बिना भू‑हाइड्रोलॉजी और पर्यावरणीय अध्ययन के सुरंग निर्माण खतरनाक हो सकता है। 

इसी तरह नवंबर 2023 में उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में राष्ट्रीय राजमार्ग 134 पर सिल्क्यारा सुरंग के ढहने से उसमें  41 मज़दूरों के फंसने के उदाहरण को भी देखा जा सकता है। इन श्रमिकों की जान बचाने के लिए बड़े पैमाने पर बचाव अभियान चलाना पड़ा था। सौभाग्य से कई दिनों की मशक्‍कत के बाद इन्‍हें रैट-होल माइनर्स की मदद से बचा लिया गया, पर घटना ने सुरंग सड़क परियोजनाओं को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए। रिपोर्ट के मुताबिक इस हादसे को देखते हुए भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को देशभर में निर्माणाधीन 29 सुरंगों का सुरक्षा ऑडिट करने का आदेश देना पड़ा था। ऐसे में टनल प्रोजेक्‍ट्स के इन खतरों को देखते हुए बंगलुरु सुरंग सड़क परियोजना पर भी सुरक्षा, पर्यावरणीय व भूगर्भीय दृष्टिकोण से गंभीरतापूर्वक पुनर्विचार करने की आवश्‍यकता है।

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