मज़दूर दिवस: श्रमिकों के लिए कार्यस्थल पर जल संकट और प्रदूषण की गंभीर चुनौतियां
हमारे घर, कल-कारखानों को बनाने और चलाने से लेकर देश-दुनिया के निर्माण में सबसे अहम और आधारभूत भूमिका किसी की है, तो वह हैं मज़दूर। मज़दूर यानी वह मेहनतकश श्रमिक वर्ग जिसके दम पर दुनिया भर में खेती-बारी से लेकर औद्योगिक उत्पादन और सारे निर्माण कार्य चलते हैं। इस तरह मजदूरों के सहारे ही दुनिया और उसके देशों की अर्थव्यवस्थाएं चल रही हैं। इसके बावजूद दुनिया के आर्थिक इंजन का पहिया घुमाने वाला मज़दूर इस कदर उपेक्षित है कि उसे अपने कार्य स्थल (work place) पर मूलभूत सुविधाएं तक मयस्सर नहीं होतीं और कई बार तो उन्हें अमानवीय दशाओं में या ऐसे गंदे और घुटन भरे माहौल में काम करना पड़ता है, जिसे कुछ पलों के लिए भी बर्दाश्त कर पाना हमारे-आपके जैसे आम लोगों के लिए मुश्किल है। आज मज़दूर दिवस पर हम श्रमिकों से जुड़े इसी अहम पहलू पर बात करने जा रहे हैं।
भारत सहित दुनिया भर में श्रमिक वर्ग केयोगदान को सम्मान देने के लिए1 मई को मज़दूर दिवस मनाया जाता है। यानी यह एक ऐसा दिन है, जब श्रमिकों की मेहनत, संघर्ष और योगदान को दुनिया सलाम करती है। पर, क्या यह दिन सिर्फ बधाई देने और छुट्टी मनाने तक ही सीमित रह गया है? क्योंकि, जब हम देश की तरक्की की बात करते हैं, तो हमें उन लाखों श्रमिकों की स्थिति पर भी ध्यान देना चाहिए, जो हर दिन अत्यंत दयनीय और खराब परिस्थितियों में काम करने को मजबूर हैं। खासकर, कार्यस्थल पर गंदगी, प्रदूषण और स्वच्छ पेयजल तक उपलब्ध न होने के चलते उन्हें कई तरह की गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना पड़ता है।
गंदगी, धूल और प्रदूषण में घिरे श्रमिक
चाहे वो निर्माण स्थल हो, कल-कारखाने (फैक्टरी) हों या खेत या ईंट-भट्ठे श्रमिकों को दिनभर धूल, धुएं, रसायनों, और कचरे और शोर-शराबे के बीच काम करना पड़ता है। कई बार हालात इतने बदतर और खतरनाक होते हैं कि इसके चलते मज़दूरों को सांस की बीमारी, त्वचा संक्रमण और आंखों की समस्या जैसे रोग पैदा हो जाते हैं। इसकी वजह यह है कि ज्यादातर कार्यस्थलों पर न तो पर्यावरणीय नियमों का पालन होता है और न ही साफ-सफाई और प्रदूषण नियंत्रण की उचित व्यवस्था होती है। श्रमिकों के लिए मास्क या सुरक्षात्मक गियर तक नहीं होते।
स्वच्छ पेयजल जैसी मूल सुविधा से भी वंचित
भारत जैसे देश में जहां जल संकट लगातार गहराता जा रहा है, वहां सबसे अधिक असर कमजोर वर्गों पर पड़ता है। फैक्ट्रियों और निर्माण स्थलों पर कई बार साफ पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं होता। मजदूरों को दूषित या अधपका पानी पीने को मजबूर होना पड़ता है, जिससे उन्हें डायरिया, टाइफाइड और पेट की गंभीर बीमारियां हो जाती हैं।कई बार पानी भरने की जिम्मेदारी भी इन्हीं मजदूरों की होती है, जो काम से पहले या बाद में दूर-दराज से पानी लाते हैं। गर्मी में ये स्थिति और भी भयावह हो जाती है।
महिला श्रमिक दोहरी मार की शिकार
महिला श्रमिकों के लिए हालात और भी कठिन हैं। उन्हें काम के साथ-साथ जल-संकट का सामना घरेलू स्तर पर भी करना पड़ता है। निर्माण स्थलों पर न शौचालय की सुविधा होती है, न ही स्वच्छता संबंधी बुनियादी व्यवस्था। इसके चलते खासतौर पर मासिक धर्म यानी पीरियड्स के दिनों में महिला श्रमिकों को काम करने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कई बार तो वह साफ-सफाई और उचित देखभाल के अभाव में संक्रमण का शिकार भी हो जाती है। कार्य स्थल के बुरे हालात के चलते उन्हें शारीरिक और मानसिक दोनों ही स्तर पर परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
पर्यावरणीय अन्याय की परछाईं
इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है कि जो लोग देश का बुनियादी ढांचा खड़ा करते हैं, वे ही पर्यावरणीय अन्याय के सबसे बड़े शिकार हैं। जलवायु परिवर्तन, औद्योगिक कचरा, और शहरीकरण का सीधा असर इन्हीं समुदायों पर पड़ता है। अक्सर ये मजदूर झुग्गियों में रहते हैं, जहां जल निकासी और कचरा प्रबंधन जैसी सुविधाएं नहीं होतीं।
ज़रूरत है बड़े ज़मीनी स्तर पर बड़े बदलावों की
श्रमिकों को सिर्फ काम नहीं, सम्मानजनक कार्यदशा भी मिलनी चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि सरकार, उद्योग और समाज तीनों मिलकर कुछ ठोस कदम उठाएं—जैसे हर कार्यस्थल पर स्वच्छ पेयजल की अनिवार्य व्यवस्था, सुरक्षित और प्रदूषण-मुक्त कार्य वातावरण, और महिला श्रमिकों के लिए अलग स्वच्छता सुविधा। इसके साथ ही, श्रम कानूनों को सख्ती से लागू करना और स्थानीय निकायों की जवाबदेही तय करना भी जरूरी है। यदि हम सही मायनों में मज़दूरों का सम्मान करना चाहते हैं, तो हमें मजदूर दिवस को सिर्फ एक छुट्टी और रस्म अदायगी के तौर पर नहीं लेना चाहिए। उद्योगों, संगठनों, सरकारों से लेकर हम सबको इस दिन श्रमिकों की बुरी कार्य दशाओं (Working Conditions) और उनके जीवन की कड़वी हकीक़तों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। जल संकट और प्रदूषण से जूझते इन मजदूरों की स्थिति सुधारना हमारी सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी है। जब तक हर मजदूर को स्वच्छ पर्यावरण, साफ पानी और गरिमा से काम करने का अधिकार नहीं मिलता, तब तक असली मजदूर दिवस मनाना निरर्थक रहेगा। याद दखें, श्रमिकों को एक बेहतर ज़िंदगी जीने का अवसर देकर ही मजदूर दिवस के आयोजन का कोई अर्थ होगा। इसके लिए कुछ जरूरी उपायों को किया जाना आवश्यक है।
श्रमिकों के कार्यस्थल सुधारने के लिए कुछ कारगर उपाय:
स्वच्छ पेयजल की कानूनी अनिवार्यता
हर फैक्ट्री, निर्माण स्थल या कार्यस्थल पर श्रमिकों के लिए च्छ और सुरक्षित पेयजल की सुविधा उपलब्ध कराने बाध्यता हो।श्रमिकों के लिए बेसिक स्वच्छता सुविधाएं
शौचालय, नहाने के स्थान और साफ-सफाई के लिए सफाईकर्मियों की व्यवस्था जैसी न्यूनतम बुनियादी व्यवस्थाओं को अनिवार्य किया जाए। खासतौर पर महिला श्रमिकों के लिए यह सुविधाएं प्राथमिका के आधार पर उपलब्ध कराई जानी चाहिए।प्रदूषण मानकों का सख्त पालन
कार्यस्थलों पर वायु, ध्वनि और जल प्रदूषण के लिए नियमित निगरानी हो और मानकों के उल्लंघन पर कड़ी कार्रवाई के प्रावधान किए जाएं।श्रमिकों की स्वास्थ्य जांच और बीमा कवर
नियोक्ताओं के लिए अपने श्रमिकों की समय-समय पर स्वास्थ्य जांच करवानाअनिवार्य हो और उन्हें न्यूनतम स्वास्थ्य बीमा की सुरक्षा भी प्रदान की जाए।श्रमिक प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम
श्रमिकों को स्वच्छता, सुरक्षा उपायों और पर्यावरणीय खतरों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाएं।श्रम कानूनों का प्रभावी क्रियान्वयन
श्रम निरीक्षण तंत्र को पारदर्शी बनाया जाए और नियमों का उल्लंघन करने वाले नियोक्ताओं पर जुर्माने या दंड की व्यवस्था लागू की जाए।सामुदायिक निगरानी तंत्र की स्थापना
स्थानीय स्तर पर मजदूर संगठनों या एनजीओ के सहयोग से कार्यस्थलों की निगरानी हो। इसके लिए एक कार्यदल या टास्क फोर्स भी बनाई जा सकती है।ग्रीन लेबर पॉलिसी की हो शुरुआत
ऐसी नीतियां बनें, जो श्रमिक हितों को पर्यावरण सुरक्षा से जोड़ती हों। जैसे कि श्रमिकों को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने पर काम कराने वालों को कुछ प्रोत्साहन दिया जाना।