भूजल संकट आज भी भारत के बहुत से इलाकों की समस्या बना हुआ है।
भूजल संकट आज भी भारत के बहुत से इलाकों की समस्या बना हुआ है।चित्र: द ट्रिब्यून

अटल भूजल योजना के 6 साल: क्या हैं चुनौतियां और हासिल

भारत के कई इलाकों में घटता भूजल स्तर आज खेती, पीने के पानी और आजीविका – तीनों के लिए गंभीर चुनौती बन गया है। इसी चुनौती से निपटने के लिए शुरू की गई अटल भूजल योजना (अटल जल) का मकसद है कि स्थानीय समुदाय खुद अपने पानी के स्रोतों का ज़िम्मा लें और उन्हें टिकाऊ बनाएं।
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अटल भूजल योजना या अटल जल (एबीवाई) की घोषणा 25 दिसंबर 2019 को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की 95वीं जयंती के अवसर पर की गई थी। इसकी घोषणा के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अटल जल योजना और जल जीवन मिशन, देश में हर घर तक पानी पहुंचाने के 2024 के लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में एक बड़ा कदम हैं।

भूजल स्तर में सुधार के अलावा, इस महत्वाकांक्षी योजना में सामुदायिक स्तर पर लोगों को पानी के उचित इस्तेमाल को लेकर जागरूक बनाने पर ज़ोर दिया गया है। यानी इलाके के पानी और उससे जुड़े सभी पहलुओं में स्थानीय लोगों की साझेदारी को सुनिश्चित करना।

शुरुआत और मानदंड

केन्द्र सरकार और विश्व बैंक की संयुक्त पहल इस योजना का मूल लक्ष्य है पानी की कमी वाले क्षेत्रों में स्थानीय समुदायों की भागीदारी के माध्यम से भूजल के घटते स्तर पर रोक लगाना। इसे मुख्य रूप से देश के 7 राज्यों, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में शुरू किया गया। इन राज्यों के कुल 80 ज़िलों और 222 जल-संकटग्रस्त ब्लॉकों को इसके तहत शामिल किया गया।
इन राज्यों के चुनाव के पीछे का कारण वे सभी मानदंड हैं जिनका ज़िक्र योजना के दिशानिर्देश में है।

1. भूजल निष्कर्षण और गिरावट की तीव्रता: उन राज्यों में जहां भूजल बहुत ज़्यादा निकाला जा रहा हो और उसका स्तर लगातार गिर रहा हो।
2. जल की कमी और भूजल का अत्यधिक उपयोग करने वाले ब्लॉक की संख्या: ऐसे राज्यों को शामिल करना जहां भूजल दोहन की समस्या के गंभीर स्तर पर पहुंच चुके क्षेत्रों की संख्या अधिक हो।
3. हाइड्रोलॉजिकल परिस्थितियां: राज्यों में भूजल की संरचना (aquifers), मिट्टी की प्रकृति आदि के विश्लेषण के बाद उन क्षेत्रों में पानी संग्रहण और पुनर्भरण के तरीकों का विश्लेषण करना और उसके आधार पर चयन करना।
4. संस्थागत तत्परता और कानूनी/नियामक आधार: ऐसे राज्य जिनके पास पहले से भूजल प्रबंधन की कुछ तैयारी, अनुभव और ज़रूरी नियम-कानून मौजूद हों। यानी भूजल से जुड़ी योजनाएं चलाने में सक्षम और तैयार राज्यों को प्राथमिकता देना।
5. राज्यों की भागीदारी की इच्छा: योजना में शामिल होने के लिए राज्य सरकारों की सहमति और पहल को ज़रूरी बनाया गया है।

इनमें से कुछ जगहों पर यह योजना अपनी लक्ष्यों पूर्ति की दिशा में बढ़ती नज़र आई है।

कर्नाटक में रीचार्ज ढांचे और सुधार

कर्नाटक में इस योजना के तहत 4 जल-संकटग्रस्त ज़िलों, चिक्काबल्लापुर, चित्रदुर्ग, तुमकुरु और कोलार के 41 ब्लॉकों और 1199 ग्राम पंचायतों को शामिल किया गया। यहां लगभग 24,350 रिचार्ज ढांचे बनाए गए। इन रिचार्ज ढांचों में चेक डैम, रिचार्ज कुएं, नालों का पुनर्भरण और तालाबों की मरम्मत जैसे काम शामिल थे। इनका उद्देश्य बारिश के पानी की मदद से भूजल में सुधार लाना है।

योजना के तहत इस लक्ष्य को पूरा करने में राज्य के जल संसाधन विभाग और ग्रामीण समुदायों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। गांव-स्तर पर ग्राम जल समितियां बनाई गईं। इन समितियों जांच के बाद यह तय किया कि किस खेत या नाले के पास कौन-सा रिचार्ज स्ट्रक्चर बनेगा। इस काम के लिए भूजल निदेशालय और विश्व बैंक के विशेषज्ञों से भी तकनीकी सहायताएं ली गईं।

कर्नाटक सरकार की 2024 की प्रगति रिपोर्ट बताती है कि इन ढांचों और प्रयासों की मदद से 255 ग्राम पंचायतों में भूजल स्तर में औसतन 13 मीटर तक सुधार दर्ज़ हुआ। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के अनुसार इसका एक प्रमुख उदाहरण नोनाविनेकेरे गांव है। जहां साल 2016 में भूजल स्तर 16.6 मीटर नीचे था, जो 2022 तक घटकर 5.46 मीटर पर आ गया।

उत्तर प्रदेश में आधुनिक सिंचाई तकनीकें

उत्तर प्रदेश के आगरा और झांसी जैसे ज़िलों में घटते भूजल स्तर को देखते हुए योजना के तहत ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई तकनीकों को बढ़ावा दिया गया। इसके लिए किसानों को इन तकनीकों को अपनाने के लिए सरकार की तरफ़ से सब्सिडी दी गई। साथ ही, चना, मूंग, अरहर और तिल जैसी कम पानी वाली फसलें अपनाने के लिए प्रेरित किया गया।

वर्षा जल पुनर्भरण की व्यवस्था पर काम किया गया। जिसके तहत गांव स्तर पर पुराने तालाबों और नालों की मरम्मत के साथ रिचार्ज कुओं और पर्कोलेशन पिट्स बनाए गए। राज्य की जल शक्ति विभाग की 2024 की निगरानी रिपोर्ट के अनुसार साल 2020-21 से 2024-25 के बीच इन ज़िलों में सिंचित क्षेत्र 1730 हेक्टेयर से बढ़कर 18,189 हेक्टेयर हो गया। जहां इन तकनीकों को अपनाया गया, वहां भूजल स्तर में सुधार के संकेत भी मिले।

अटल भूजल योजना के तहत ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई तकनीकों को बढ़ावा दिया गया है।
अटल भूजल योजना के तहत ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई तकनीकों को बढ़ावा दिया गया है।चित्र: Unsplash.com

महाराष्ट्र में वॉटरशेड और पंचायत स्तर पर योजना

महाराष्ट्र के जल आपूर्ति एवं स्वच्छता विभाग के अनुसार महाराष्ट्र में यह योजना 13 ज़िलों के 73 वॉटरशेड क्षेत्रों, 1133 ग्राम पंचायतों और 1442 गांवों में लागू की गई। इसके तहत ग्राम पंचायतों द्वारा समुदाय की भागीदारी से जल सुरक्षा योजनाएं बनाई गईं, जिनका उद्देश्य ग्राम पंचायत स्तर पर भूजल के अत्यधिक दोहन को लेकर लोगों को सजग बनाना, वर्षा-जल संग्रहण आदि को लेकर जागरूकता फैलाना है।

जल शक्ति मंत्रालय ने जुलाई 2024 की अपनी प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि इस योजना के तहत विभिन्न राज्यों में गैर-सरकारी संगठनों को इस योजना में जोड़ा गया है, जो ज़रूरत के अनुसार मदद और मार्गदर्शन देते हैं। ये गैर-सरकारी संगठन स्थानीय स्तर पर बैठकें, जागरूकता अभियान, प्रशिक्षण और साक्षरता से जुड़े कार्यक्रम आयोजित करते हैं। यहां गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय समुदायों की भागीदारी से तालाबों की मरम्मत, नालों के पुनर्निर्माण और रिचार्ज कुएं बनाए गए।

इस स्थिति का लाभ उठाते हुए ग्राउंड सर्वे एंड डेवलपमेंट एजेंसी (जीएसडीए) ने योजना के तहत, पंचायतों, किसानों और संस्थाओं को जोड़ने के लिए ‘प्रतियोगिता’ मॉडल लागू किया। इस मॉडल का उद्देश्य उन ग्राम पंचायतों को पहचान देना है जहां भूजल प्रबंधन और जल सुरक्षा योजनाएं अच्छी तरह लागू हो रही हों।

इसके तहत, ​​ग्राम पंचायतों को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन, जल सुरक्षा योजनाओं की तैयारी व उनमें शामिल गतिविधियों के क्रियान्वयन, और योजनाओं के केंद्र या राज्य सरकार की अन्य योजनाओं के साथ तालमेल की स्थिति के मूल्यांकन के आधार पर पुरस्कार दिये जाते हैं।

इसके लिए, अटल भूजल योजना के प्रोत्साहन निधि का उपयोग किया जाता है। इस मॉडल में किसानों, ग्राम जल समितियों, और अन्य स्थानीय संस्थाओं को शामिल किया जाता है।

जीएसडीए की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022-23 में राज्य के 12 ज़िलों के 270 ग्राम पंचायतों ने भाग लिया था, जिनमें से 36 ग्राम-पंचायतों को विजेता घोषित किया गया। जीतने वाले ग्राम-पंचायतों में पहले स्थान पर कराहाटी (तालुका बारामती, जिला पुणे), दूसरे स्थान पर जुरुड (तालुका वरुड, जिला अमरावती) और तीसरे स्थान पर किर्कासले (तालुका खाटव, जिला सतारा) हैं।

साल 2023-24 में भाग लेने वाली ग्राम पंचायतों की संख्या बढ़कर 474 हो गईं।

इसके अलावा, इन किसानों को सूक्ष्म-सिंचाई (माइक्रो-इरिगेशन), मिट्टी की नमी का प्रबंधन और फसल संरचना अनुकूलन को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके लिए ड्रिप और स्प्रिंकलर सिस्टम के लिए सब्सिडी भी दी जा रही है।

हालांकि, योजना का लक्ष्य 75,000 हेक्टेयर माइक्रो-इरिगेशन का था लेकिन सितंबर 2024 तक 132,204 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र को इसमें शामिल किया जा चुका है जो एक बड़ी उपलब्धि है।

हरियाणा में भूजल सूचना केंद्र

जल शक्ति मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि योजना के लागू होने के बाद से हरियाणा के 83 ब्लॉकों में से 1603 ग्राम पंचायतों ने भूजल स्तर में सुधार दर्ज़ किया है। चेक डेम, रिचार्ज बोरवेल्स, और जलाशयों जैसे लगभग 81,000 जल-संरचनाओं के निर्माण और मरम्मत की व्यवस्था की गई, जिससे जल संचयन और भूजल पुनर्भरण में मदद मिली है।

इसके अलावा, लगभग 9 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ड्रिप-स्प्रिंकलर सिंचाई, मल्चिंग और फसल विविधीकरण जैसी जल उपयोग के कुशल तरीकों को अपनाया गया है।

यह सुधार जल संरक्षण उपायों और समुदायों की सक्रिय भागीदारी का नतीजा है। सरकारों और गैर-सरकारी संगठनों की साझेदारी से राज्य के विभिन्न ज़िलों और ग्राम-पंचायतों में ‘भूजल सूचना प्रसार केंद्र’ (ग्राउंडवाटर इनफार्मेशन डिसेमिनेशन सेंटर) स्थापित किए गए हैं।

इन केंद्रों में प्रशिक्षण, स्कूल प्रतियोगिताएं, और कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं ताकि लोगों की भागीदारी और निर्णय-प्रक्रिया में उनकी भूमिका बढ़ाई जा सके। इस पहल के तहत लगभग 1.2 लाख प्रशिक्षण सत्रों का आयोजन किया गया है, जिससे ग्राम पंचायतों और जिलों में जल प्रबंधन क्षमता को मज़बूती मिलीहै।

असफलताएं और चुनौतियां

एक ओर जहां कई जगह इस योजना के अच्छे नतीजे दिखने लगे हैं, वहीं दूसरी तरफ़ राष्ट्रीय नीति रणनीतियों पर सीजीआईएआर (कंसोर्टियम ऑफ इंटरनेशनल एग्रीकल्चरल रिसर्च सेंटर) की एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि मध्य प्रदेश और राजस्थान में इस योजना को कुछ बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा हैं।इनमें सबसे बड़ी चुनौती योजना के तहत सोचे गये स्तर और गति के अनुसार गांवों में लोगों की भागीदारी और सामुदायिक जागरूकता का न बढ़ना है। 

उदाहरण के लिए, राजस्थान के जिन इलाक़ों में सरकारी विभागों के बीच बेहतर तालमेल, स्थानीय लोगों की भागीदारी और किसानों की सक्रिय भूमिका रही, वहां योजना के अच्छे नतीजे देखने को मिले हैं। लेकिन जहां काम सिर्फ़ ऊपर से दिए गए आदेशों के आधार पर (टॉप-डाउन तरीके से) हुआ, वहां प्रदर्शन का स्तर असंतोषजनक था।

इस समस्या से निपटने के लिए सीजीआईएआर के अध्ययन “स्टेट लेवल स्टेकहोल्डर कंसल्टेशन ऑन पार्टिसिपेटरी ग्राउंडवॉटर गवर्नेंस इन मध्य प्रदेश, इंडिया” में नीति-समन्वय और स्थानीय संदर्भों को महत्व देने की ज़रूरत बताई गई है।

जहां एक तरफ़ सफलता की कहानी और आंकड़े हैं, वहीं दूसरी तरफ़ कुछ राज्यों में इस योजना की गति थमने के कुछ नीतिगत कारण सामने आए हैं। इन कारणों में शामिल हैं:

धन की कमी और काम में देरी

हरियाणा के महेंद्रगढ़ ज़िले में इस योजना के तहत शुरू किए गए लगभग 16 विकास कार्य धन की कमी के कारण रुके हुए हैं। इन विकास कार्यों में गांवों के तालाबों को जोड़ने के लिए आरसीसी पाइपलाइन बिछाने, तालाबों की क्षमता बढ़ाने, और नदियों व नालों के पुनर्भरण के लिए पाइपलाइन बिछाने जैसे काम शामिल हैं। कई राज्यों में बजट रिलीज़ और टेंडर प्रक्रियाओं में होने वाली लंबी देरी की शिकायतें भी देखने को मिली हैं।

ऑडिट रिपोर्ट में अनियमितताएं

जल शक्ति मंत्रालय के कार्यक्रमों में वित्तीय अनियमितताएं पाई गई हैं। ऑडिट में लगभग 709 करोड़ रुपये की अनियमितताओं का ज़िक्र है। इनमें क्षेत्रों में लगाई गई मशीनरी का उपयोग न होना, खरीद प्रक्रिया में दोष आदि शामिल है। इन अनियमितताओं की वजह से इन क्षेत्रों में अटल भूजल, स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण (SBM-G) जैसी योजनाओं के काम पर भी असर पड़ा है।

सामुदायिक स्तर पर सीमित भागीदारी

आईएमपीआरआई (इंपैक्ट एंड पालिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट) इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, अटल भूजल योजना में ग्रामीण समुदायों की, विशेषकर महिलाओं और छोटे किसानों की सक्रिय साझेदारी को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा गया था। 

योजना में यह अपेक्षित था कि जल प्रबंधन, तालाब और बोरवेल पुनर्भरण, और स्थानीय जल सुरक्षा योजनाओं के निर्माण में कम से कम 33 प्रतिशत महिला सहभागिता हो और छोटे किसान भी सक्रिय रूप से योजना निर्माण एवं निर्णय प्रक्रिया में शामिल हों। लेकिन रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि कई राज्यों में ग्रामीण समुदायों की भागीदारी केवल 20 प्रतिशत तक सीमित रही।

दरअसल, सामाजिक और आर्थिक सीमाओं के कारण छोटे और सीमांत किसान अक्सर जल प्रबंधन निर्णयों में शामिल नहीं होते, जिससे उनकी भागीदारी सीमित रहती है। इसके अलावा, इनके पास जल प्रबंधन के लिए आवश्यक संसाधनों की कमी, ज़रूरी प्रशिक्षण और कम जागरूकता भी इनकी भागीदारी को प्रभावित करती है।

वहीं इस रिपोर्ट में बड़ी-जोत वाले किसानों की भागीदारी का स्तर अधिक बताया गया है। बड़े किसानों के पास प्रशासनिक अधिकारियों से संपर्क और नेटवर्किंग की सुविधा होती है, जिससे वे योजना में अधिक प्रभावी ढंग से भाग लेते हैं।

पर्याप्त संसाधन, जल-प्रबंधन से जुड़े तकनीकी ज्ञान और उपकरणों की उपलब्धता और प्रशासनिक संपर्कों की वजह से इन किसानों की छोटी जोत के किसानों की अपेक्षा योजना में बेहतर भागीदारी देखने को मिल रही है।

विशेषज्ञों की नज़र में पाई गई कमियां

इंडिया वॉटर पोर्टल के अंग्रेज़ी वेबसाइट पर प्रकाशित लेख इस योजना की महत्वाकांक्षा और वास्तविकता के बीच के बड़े अंतर की ओर संकेत करता है। सिद्धांत और व्यवहार में आ रहे इस अंतर का कारण इसके सुचारू संचालन में आने वाली कुछ चुनौतियां हैं।

इनमें से कुछ चुनौतियां इस प्रकार हैं:

सामुदायिक सक्रियता की कमी: स्थापित समितियां अक्सर सक्रिय नहीं होती हैं और ग्राम सभा की बैठकें अनियमित होती हैं या केवल औपचारिक होती हैं।

रखरखाव की समस्याएं: तकनीकी हस्तक्षेपों, जैसे कि पानी से जुड़ी तकनीकों का रख-रखाव राज्य और पंचायत स्तर पर सुचारू रूप से नहीं होता है।

नीतिगत जटिलताएं: सब्सिडी और बिजली की उपलब्धता जैसी नीतियों के कारण पानी की आपूर्ति अनियंत्रित रहती है, जिससे सिंचाई नियमों के साथ जटिलताएं पैदा होती हैं।

डेटा और निगरानी की कमी: पानी की गुणवत्ता, भूजल स्तर, पानी की मांग और बारिश की मात्रा जैसे ज़रूरी डेटा की सही उपलब्धता और निगरानी में कमी भी एक महत्वपूर्ण समस्या है। 

किसानों द्वारा गहरे ट्यूबवेल और मुफ्त या सस्ती बिजली के कारण जल-उपभोग का बढ़ता पैटर्न: बिना सिंचाई-पैटर्न में परिवर्तन के, केवल रीचार्ज-वर्क से अधूरे परिणाम मिलते हैं। अटल भूजल योजन में इस जटिलता की पहचान तो की गई है लेकिन बिजली-सब्सिडी और सिंचाई-कार्गो के प्रशासकीय फ़ैसले राज्य स्तर पर होने के कारण इसको समेकित रूप से ठीक करना चुनौतीपूर्ण हो रहा है।

राज्यों के पास परियोजना-मानक पूरा करने के लिये आवश्यक प्रशासनिक स्टाफ और लॉजिस्टिक की कमी: योजना के प्रारम्भिक आउटले और विश्वबैंक के डिलीवरेबल-कंडीशनल फंडिंग मॉडल से कुछ फ़ायदे हुए हैं, लेकिन मानव संसाधन और लॉजिस्टिक की कमी के कारण अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पा रहा है।

जल शक्ति मंत्रालय की पहले चरण की रिपोर्ट में बताया गया है कि कई राज्यों में MIS रजिस्ट्रेशन, काम के पूरा होने और उसके सत्यापन (वेरिफ़िकेशन) की प्रक्रिया में होने वाली देरी, साथ ही इन्सेन्टिव-फंड का वितरण और कार्यों के रख-रखाव की ज़िम्मेदारियों का स्पष्ट न होने के कारण भी बाधा खड़ी हो रही है।

इन स्थितियों के विश्लेषण से यह कहा जा सकता है कि इस योजना की सफलता के लिए केवल तकनीक और धनराशि ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि इसमें संस्थागत बदलावों, समुदाय-शिक्षा और जागरूकता की भी बराबर की भूमिका है।

महिला भागीदारी: नियम बनाम हकीकत

इस योजना के तहत ग्राम पंचायत स्तर पर जल उपयोगकर्ता समूहों में महिलाओं की भागीदारी कम से कम 33 प्रतिशत सुनिश्चित की गई। साथ ही ग्राम जल और स्वच्छता समितियों का विस्तार कर उन्हें योजना से जुड़ी ज़िम्मेदारियां सौंपने का भी प्रावधान है।

लेकिन जल शक्ति मंत्रालय के तीसरे चरण के मूल्यांकन रिपोर्ट में नीति-बजट निर्माण में महिलाओं की औसत भागीदारी केवल 20 प्रतिशत पाई गई। हालांकि, कुछ राज्यों में स्थिति बेहतर पाई गई है। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में जहां महिलाओं की भागीदारी क्रमशः 65 और 45 प्रतिशत है वहीं हरियाणा और राजस्थान में यह आंकड़ा 40 और 30 प्रतिशत का है।

जल शक्ति मंत्रालय के तीसरे चरण के मूल्यांकन रिपोर्ट में नीति-बजट निर्माण में महिलाओं की औसत भागीदारी केवल 20 प्रतिशत पाई गई।
जल शक्ति मंत्रालय के तीसरे चरण के मूल्यांकन रिपोर्ट में नीति-बजट निर्माण में महिलाओं की औसत भागीदारी केवल 20 प्रतिशत पाई गई।चित्र: लाइवमिंट

रिपोर्ट में महिलाओं की कम भागीदारी के पीछे के कारणों में सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाओं, साक्षरता और डिजिटल साक्षरता की कमी, अवसरों की असमानता, पारिवारिक जिम्मेदारियां और समय की कमी के साथ ही प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की कमी को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है।

कर्नाटक में विस्तार की मांग, लेकिन अमल में देरी

कर्नाटक में अटल भूजल योजना के विस्तार की मांग तो की गई है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर काम की रफ़्तार धीमी है। राज्य सरकार ने पिछले अनुभवों के आधार पर इस योजना को सभी जिलों तक फैलाने की सिफारिश की है। 

विशेष रूप से अर्कावथी नदी बेसिन के डोड्डातुमुकुर गांव में इस नदी को पुनर्जीवित करने के लिए 9.5 करोड़ रुपये की परियोजना को मंज़ूरी मिल चुकी है। जिसका लक्ष्य नदी के 53.73 किमी हिस्से को पुनर्जीवित करना है। इसमें जलाशयों की सफाई, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की स्थापना, बाढ़ प्रबंधन, और जलाशय के आसपास के क्षेत्रों का विकास शामिल है। लेकिन कागज़ी स्वीकृति के बाद भी काम शुरू नहीं हुआ है।

बजट आवंटन और खर्च की वास्तविक स्थिति

इस योजना में बजट और फंड का आवंटन प्रदर्शन के आधार पर किया जाता है। साथ ही फंड आवंटित करने से पहले पारदर्शी मॉनिटरिंग, राज्यस्तरीय स्टीयरिंग कमेटी (मार्गदर्शन और निर्णय लेने वाली समिति), थर्ड-पार्टी वेरिफिकेशन, और वित्तीय ऑडिट जैसी व्यवस्थाओं को भी ध्यान में रखा जाता है।
योजना के दो मुख्य घटक हैं।

पहला घटक है संस्थागत सुदृढ़ीकरण और क्षमता निर्माण, जिसका उद्देश्य राज्यों में भूजल प्रबंधन प्रणालियों को सुदृढ़ करना है। दूसरे घटक में प्रोत्साहन को रखा गया है। इसमें भूजल प्रबंधन के तरीकों में सुधार लाने और भूजल संसाधनों की स्थिरता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अपनाए गए विभिन्न उपायों के लिए राज्यों को प्रोत्साहित और समय-समय पर पुरस्कृत किया जाता है।

इन दोनों घटकों के लिए क्रमशः 14 सौ करोड़ और 46 सौ करोड़ रुपए की राशि दी गई है। अटल भूजल योजना के आधिकारिक वेबसाइट पर इसके 7वें डिस्बर्समेंट रिपोर्ट के अनुसार विभिन्न राज्यों में बजट आवंटन और खर्च की स्थिति कुछ इस प्रकार है:

अटल भूजल योजना के आधिकारिक वेबसाइट पर इसके 7वें डिस्बर्समेंट रिपोर्ट के अनुसार विभिन्न राज्यों में बजट आवंटन और खर्च की स्थिति।
अटल भूजल योजना के आधिकारिक वेबसाइट पर इसके 7वें डिस्बर्समेंट रिपोर्ट के अनुसार विभिन्न राज्यों में बजट आवंटन और खर्च की स्थिति।चित्र: इंडिया वॉटर पोर्टल

ऊपर दिए गए आंकड़े के विश्लेषण से निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं:

  • अधिकांश राज्यों में सत्यापन और गुणवत्ता नियंत्रण से बजट की सही उपयोगिता सुनिश्चित हुई है।

  • महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे बड़े राज्यों में भूजल स्तर में सुधार और तकनीकी हस्तक्षेप स्पष्ट रूप से दिख रहे हैं।

  • गुजरात और हरियाणा में सत्यापन प्रक्रिया और टीपीजीवीए नमूने के आधार पर फंड की राशि स्वीकृत हुई, जिससे पारदर्शिता बढ़ी।

  • राजस्थान और मध्य प्रदेश ने सटीक और पारदर्शी दावे प्रस्तुत किए, जो योजना के प्रभावी क्रियान्वयन को दर्शाता है।

  • उत्तर प्रदेश में भी अधिकांश दावे सही पाए गए, लेकिन कुल स्वीकृत राशि अपेक्षाकृत कम रही।

योजना में पंजाब राज्य को शामिल नहीं करना
वर्तमान में भूजल संकट से जूझ रहे पंजाब को इस योजना से बाहर रखा गया है। राज्य सभा सांसद विक्रमजीत साहनी ने यह सवाल उठाया कि जबकि राज्य में भूजल का स्तर तेज़ी से गिर रहा है, ऐसे में इसे अटल भूजल योजना में शामिल क्यों नहीं किया गया है। इस सवाल के जवाब में जल शक्ति के केबिनेट मंत्री सीआर पाटिल ने किसी स्पष्ट कारण का उल्लेख नहीं किया है।

विस्तार प्रस्ताव और बजट आवंटन - 5 नए राज्यों में
केंद्र सरकार ने प्रस्तावित किया है कि अटल भूजल योजना को पांच और राज्यों (पंजाब, बिहार, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना) में 82 सौ करोड़ रुपये के बजट के साथ लागू किया जाए। वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग से इस प्रस्ताव को स्वीकृति मिल चुकी है, लेकिन ज़मीन पर इसका असर दिखना शुरू नहीं हुआ है।

क्या बदलने की ज़रूरत

विश्वबैंक औफ सरकार की रिपोर्टों और अलग-अलग संस्थाओं द्वारा किए गए अध्ययनों के हवाले से यह कहा जा सकता है कि अटल भूजल योजना से मिलने वाले परिणाम अपेक्षाकृत संतोषजनक हैं। लेकिन इन्हीं रिपोर्टों और अध्ययनों में योजना के प्रभाव को बढ़ाने के लिए नीचे बताये गए कुछ सुझाव भी दिए जा रहे हैं।

समेकित गवर्नेंस: भूजल प्रबंधन को केवल जल विभाग तक सीमित न रखा जाए। इसमें कृषि, बिजली, वित्त एवं ग्राम-विकास विभागों के बीच आपसी तालमेल ज़रूरी है।

दीर्घकालिक (लॉन्ग-टर्म फंडिंग) और मेंटेनेंस: एक बार रीचार्ज-वर्क करने से काम नहीं चलेगा, रख-रखाव, निगरानी और स्थानीय क्षमता के लिये लगातार मिलने वाली फंडिंग ज़रूरी है।

किसान करें अगुआई: राजनीतिक स्तर पर सिंचाई-तकनीक (ड्रिप/स्प्रिंकलर), पनीर-कृषि और पानी-योग्य फसल-चर्या (स्थानीय जल उपलब्धता के अनुसार की जाने वाली खेती) आदि को लेकर लोगों को प्रोत्साहित किए जाने की ज़रूरत है।

आंकड़े-आधारित फ़ैसले: मजबूत हाइड्रोजियोलॉजिकल डेटा, क्लस्टर-स्तरीय पानी-बजट और नियमित निगरानी को प्राथमिकता दिये जाने की ज़रूरत है।

समुदाय के व्यवहार में बदलाव: किसी भी योजना के मूल में उस समुदाय के लोग होते हैं जो उससे सीधे या किसी ना किसी रूप से प्रभावित होते हैं। इसलिए योजनाओं की सफलता के लिए उसमें उस समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए।

इस भागीदारी को टिकाऊ बनाने के लिए ज़रूरी होता है समुदाय को होने वाले आर्थिक और सामाजिक लाभों को स्पष्ट करना। अटल भूजल योजना के मामले में भी यही बात लागू होती है। इसलिए, इस योजना में छोटे-छोटे स्थानीय प्रदर्शन-प्रोजेक्ट (डेमो-रीचार्ज, पानी बचाने की पायलट योजनाएं) और आत्मनिर्भर राजस्व-मॉडलों से स्थानीय लोगों को जोड़ना ज़रूरी है।

अटल भूजल योजना एक ऐसी पहल है जो पायलट स्तर पर शुरू हुई थी, लेकिन इसका मकसद समुदायों को केंद्र में रखकर और डेटा के आधार पर भूजल प्रबंधन का नया तरीका दिखाना है। इस योजना से कई जगहों पर अच्छे नतीजे मिले हैं, लोगों में जागरूकता बढ़ी है और पानी के स्तर में सुधार दिखा है।

लेकिन इन फ़ायदों का दायरा बढ़ाने के लिए योजना के लिए लंबे समय तक फंडिंग और रख-रखाव की गारंटी को तय करना, बिजली और कृषि से जुड़ी राज्य-स्तरीय नीतियों में तालमेल बनाना, और इसके असर को समझने के लिए पारदर्शी और स्वतंत्र मूल्यांकन प्रणाली अपनाना ज़रूरी है।
अगर इन बातों पर ध्यान दिया जाए, तो अटल भूजल योजना सिर्फ़ एक ‘पायलट परियोजना’ न रहकर पूरे देश में सतत भूजल प्रबंधन का एक सफल मॉडल बन सकती है।

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