जीएसटी में सरकार की ओर से किए गए हालिया बदलाव पर्यावरण के लिए कई तरह से फायदेमंद हो सकते हैं।
जीएसटी में सरकार की ओर से किए गए हालिया बदलाव पर्यावरण के लिए कई तरह से फायदेमंद हो सकते हैं। स्रोत : दैनिक जागरण

क्या पर्यावरण बचाने और जलवायु परिवर्तन रोकने में मददगार होंगे जीएसटी सुधार?

सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा उपकरणों और ई-वाहनों की कीमतें घटने से क्‍लीन एनर्जी और ग्रीन मोबिलिटी को मिल सकेगा बढ़ावा। वेस्‍ट मैनेजमेंट, बायो-डिग्रेडेबल उत्‍पादों को भी मिल सकता है सहारा।
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गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) में किए गए हालिया बदलाव पर्यावरण को बचाने और जलवायु परिवर्तन को रोकने के लक्ष्यों में कई तरह से मददगार साबित हो सकते हैं। जीएसीटी की दरों के बदलने से नवीकरणीय ऊर्जा, वेस्‍ट मैनेजमेंट, बायो-डिग्रेडेबल उत्पादों की कीमतों में कमी आएगी। इलेक्ट्रिक व्‍हीकल्‍स के दाम घटने से ग्रीन मोबिलिटी का भी विस्‍तार हो सकेगा। इससे, भारत को साल 2070 तक शून्‍य कार्बन एमिशन तक पहुंचने के अपने जलवायु लक्ष्यों की बढ़ने में मदद मिल सकती है। 

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कर की दरों में कटौती से लागत में होने वाली कमी और बिक्री की बढ़ोतरी से इन चीज़ों के स्‍वदेशी उत्‍पादन को बढ़ावा मिलेगा। इससे स्वच्छ ऊर्जा और प्रदूषण नियंत्रण के समाधानों को अपनाने में तेज़ी आने की उम्‍मीद है। केंद्र सरकार ने हाल ही में जीएसटी की चार मुख्य दरों में से दो को खत्‍म कर केवल 5% और 18% की दो दरों को लागू किया है। 

साल 2017 में लागू की गई चारों दरों में से 12% और 28% के स्‍लैब को खत्‍म कर इनमें शामिल सामानों को बाकी बचे 5% और 18% के दो स्लैब में ट्रांसफर किया गया है। इससे रोजमर्रा के करीब 99% सामानों की कीमतों में कमी आने की बात कही जा रही है। 

जीएसटी में कमी से सौर पैनलों, पीवी सेल, पवन टर्बाइनों और संबंधित उपकरणों की कीमतों में सीधे तौर पर कमी आएगी। इससे सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं की आर्थिक व्यवहार्यता बढ़ेगी, जिसका लाभ ग्राहकों को बिजली की दरों में कमी के रूप में मिलेगा। वहीं, बिजली बनाने के लिए घरों में सोलर पैनल और पवन चक्‍की लगाने की ओर भी लोगों का रुझान बढ़ेगा। इससे स्‍वच्‍छ ऊर्जा को बढ़ावा मिलेगा। 

पीआईबी की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में दी गई आधिकारिक सूचना के मुताबिक जीएसटी सुधारों के तहत स्‍वच्‍छ ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र को ये राहतें दी गई हैं-

  • सौर और पवन उपकरणों पर जीएसटी 12% से घटाकर 5% किया गया। इसमें सौर कुकर, बायो-गैस संयंत्र, सौर ऊर्जा आधारित उपकरण, सौर ऊर्जा जनरेटर, पवन चक्कियां, पवन संचालित विद्युत जनरेटर (डब्ल्यूओईजी), अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्र/उपकरण, सौर लालटेन/सौर लैंप, समुद्री लहरें/ज्वारीय लहरें ऊर्जा उपकरण/संयंत्र, फोटो वोल्टिक सैल, चाहे वे मॉड्यूल में असेम्‍बल किए गए हों या पैनल में बनाए गए हों शामिल हैं। 

  • अपशिष्ट उपचार (सीईटीपी) संयंत्रों पर जीएसटी 12%  से घटाकर 5% किया गया।

  • कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं पर जीएसटी जीएसटी 12%  से घटाकर 5% किया गया।

  • बायोडिग्रेडेबल बैग पर जीएसटी 18% से घटाकर 5% किया गया।

  • दस से ज़्यादा व्यक्तियों के बैठने की क्षमता वाली बसों पर जीएसटी 28% से घटाकर 18% किया गया। इसे निजी वाहनों के बजाय पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग को बढ़ावा देने के लिए किया गया है। 

  • वाणिज्यिक माल वाहन जैसे ट्रक, डिलीवरी-वैन, आदि पर जीएसटी 28% से घटाकर 18% किया गया। इससे लोग कम ईंधन खपत वाले नए मॉडल के वाहन लेने को प्रोत्‍साहित होंगे और कम माइलेज वाले व ज़्यादा प्रदूषण फैलाने वाले पुराने ट्रकों की जगह साफ-सुथरे और कम उत्सर्जन वाले कमर्शिलय वाहन इस्तेमाल में आएंगे।

जीएसटी दरों में परिवर्तन के विवरणों के अलावा विज्ञप्ति में इन जानकारियों को भी प्रमुखता दी गई -

  • नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय 24,000 करोड़ रुपये के खर्च के साथ उच्च दक्षता (हाई एफिसिएंसी) वाले सौर पीवी मॉड्यूल के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना चला रहा है। इसका उद्देश्य उच्च दक्षता वाले सौर पैनलों का उत्पादन करने के लिए भारत में बड़े पैमाने पर कारखानों का निर्माण करना है। इससे देश में स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन बढ़ेगा और तेल, गैस, कोयला जैसे जीवाश्‍म ईंधन के आयात पर हो रहे भारी-भरकम खर्च में कमी आएगी। साथ ही, इससे भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिलेगी।

  • भारत में सौर ऊर्जा की स्थापित क्षमता 2014 में 2.82 गीगावॉट से 42 गुना से अधिक बढ़कर 31 जुलाई 2025 में 119.54 गीगावॉट हो गई है। इससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में भी कमी हुई है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की उत्सर्जन तीव्रता (इमिशन इंटेंसिटी) 2005 से 2020 के बीच 36 प्रतिशत कम हुई है। जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता यह बताती है कि देश की आर्थिक गतिविधियों से प्रति इकाई सकल घरेलू उत्पाद के लिए कितनी ग्रीनहाउस गैसें उत्सर्जित हो रही हैं। सरल भाषा में कहें, तो यह अर्थव्यवस्था की “कार्बन दक्षता” को दर्शाती है। अगर उत्सर्जन तीव्रता घटती है, तो इसका मतलब है कि देश अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ा रहा है, लेकिन अपेक्षाकृत कम उत्सर्जन के साथ। उत्सर्जन तीव्रता की गणना जीडीपी से कुल ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन को विभाजित करके की जाती है।

  • बीते 4 अगस्त 2025 तक पूरे भारत में कुल 222 सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्र (सीईटीपी) काम कर रहे थे, जिनमें से 53 सीईटीपी विभिन्न राज्यों में शून्य तरल निर्वहन (जेडएलडी) प्राप्त करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। सीईटीपी में शून्य तरल निर्वहन का मतलब यह है कि उद्योग या संयंत्र अपने गंदे पानी को बिना बाहर छोड़े पूरी तरह से शुद्ध करके दोबारा इस्‍तेमाल करता है। इसमें दूषित जल का ट्रीटमेंट और रीसाइक्लिंग करके उसे दोबारा औद्योगिक प्रक्रियाओं में इस्तेमाल किया जाता है। इसका मकसद जल प्रदूषण को रोकना और जल संसाधनों का संरक्षण करना है।

सोलर पैनल, सोलर कुकर, सोलर वाटर हीटर, पीवी सेल, पवन चक्कियों, बायोगैस प्‍लांट जैसी चीजों पर जीएसटी घटने से ग्रीन एनर्जी सेक्‍टर को बढ़ावा मिलने की उम्‍मीद है।
सोलर पैनल, सोलर कुकर, सोलर वाटर हीटर, पीवी सेल, पवन चक्कियों, बायोगैस प्‍लांट जैसी चीजों पर जीएसटी घटने से ग्रीन एनर्जी सेक्‍टर को बढ़ावा मिलने की उम्‍मीद है।स्रोत : पीआईबी

खत्म हो सकेगा सिंगल-यूज प्लास्टिक का चलन 

केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से जारी बयान के अनुसार बायोडिग्रेडेबल बैग पर जीएसटी में कमी ग्राहक और दुकानदार दोनों ही को सिंगल-यूज प्लास्टिक की थैलियों से दूरी बनाने के लिए प्रेरित करेगी। यह पहल भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022 के साथ-साथ एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध के अनुपालन को बढ़ावा देगी। इससे प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने में मदद मिलेगी। 

साथ ही यह उपाय बायो-पॉलीमर, स्टार्च-आधारित और कम्पोस्टेबल सामग्रियों के उत्पादन को भी बढ़ावा देगा। बायोडिग्रेडेबल बैगों का प्रयोग बढ़ने से मिट्टी, नदियों और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में प्लास्टिक कचरे में कमी आएगी। बायोडिग्रेडेबल बैग की मांग बढ़ने पर इन्‍हें बनाने वाले छोटे उद्योग और स्टार्टअप शुरू करने में आसानी होगी। साथ ही इससे इस क्षेत्र में अनुसंधान और विकास में निवेश को बढ़ावा मिलेगा।

साल 2030 तक स्‍वाच्‍छ ऊर्जा उत्‍पादन में 300 गीगावाट की बढ़ोतरी

समाचार एजेंसी भाषा की एक खबर के अनुसार, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय का कहना है कि जीएसटी को युक्तिसंगत बनाये जाने से साल 2030 तक देश में स्वच्छ ऊर्जा के उत्‍पादन की क्षमता में 300 गीगावाट की बढ़ोतरी होगी। साथ ही, कम लागत वाले इस बिजली उत्‍पादन से करीब 1.5 लाख करोड़ रुपये तक की बचत हो सकती है। यह भारत के 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा प्राप्त करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को देखते हुए काफ़ी महत्वपूर्ण है। 

बीते 31 अगस्त, 2025 तक बड़े जलविद्युत संयंत्रों को छोड़कर लगभग 193 गीगावाट स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता थी। इसमें 123 गीगावाट सौर ऊर्जा और लगभग 53 गीगावाट पवन ऊर्जा शामिल है।

नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने कहा है कि साल 2030 तक लगभग 300 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता जोड़ने की योजना है, ऐसे में लागत में दो से तीन प्रतिशत की मामूली कमी से भी 1.0 से 1.5 लाख करोड़ रुपये की बचत हो सकती है। 

उदाहरण के लिए सौर परियोजना की पूंजीगत लागत आमतौर पर लगभग 3.5 से 4.0 करोड़ रुपये प्रति मेगावाट होती है। जीएसटी में कटौती से अब इसमें 20 से 25 लाख रुपये प्रति मेगावाट की बचत होगी। इससे पांच सौ मेगावाट के सौर पार्क के पैमाने पर, परियोजना लागत में 100 करोड़ रुपये से अधिक की कमी आएगी, जिससे बिजली की दरों में कमी आएगी। इससे वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) पर बिजली खरीद का वित्तीय बोझ कम होगा। इससे देश भर में बिजली खरीद लागत में सालाना 2,000-3,000 करोड़ रुपये की बचत हो सकती है। उपभोक्ताओं को सस्ती स्वच्छ बिजली तक बेहतर पहुंच का लाभ मिलेगा, जिससे भारत के पर्यावरण अनुकूल बिजली क्षेत्र को बल मिलेगा।

इसके अलावा, जीएसटी सुधार से घरों के लिए रूफ़टॉप यानी छतों पर लगने वाली सौर प्रणाली भी और अधिक किफ़ायती हो जाएगी। इससे, एक सामान्य तीन किलोवाट रूफ़टॉप प्रणाली अब 9,000-10,500 रुपये सस्ती हो जाएगी, जिससे लाखों परिवारों के लिए सौर ऊर्जा अपनाना आसान हो जाएगा और पीएम सूर्य घर : मुफ्त बिजली योजना के क्रियान्वयन में तेजी आएगी। 

पीएम-कुसुम योजना के तहत किसानों को भी काफी लाभ होगा। लगभग 2.5 लाख रुपये की कीमत वाला पांच एचपी का सौर पंप अब लगभग 17,500 रुपये सस्ता हो जाएगा। इससे किसानों के लिए स्‍वच्‍छ ऊर्जा से अपने खेतों की सिंचाई करना सस्‍ता हो जाएगा। इसे 10 लाख सौर पंपों के पैमाने पर देखा जाए, तो कुल 1,750 करोड़ रुपये की बचत होगी।

ईवी, वेस्‍ट मैनेजमेंट उपकरणों और बायो डिग्रेडेबल उत्‍पादों जैसी चीज़ों पर जीएसटी घटने से प्रदीषण नियंत्रण में मदद मिलेगी।
ईवी, वेस्‍ट मैनेजमेंट उपकरणों और बायो डिग्रेडेबल उत्‍पादों जैसी चीज़ों पर जीएसटी घटने से प्रदीषण नियंत्रण में मदद मिलेगी। स्रोत : पीआईबी

चुनौतियां और सावधानियां

जीएसटी में बड़े पैमाने पर की गई कटौती से आर्थिक मोर्चे पर कई तरह की चिंताएं भी उभरने की संभावना है। कर सुधार को सफल बनाने के लिए इन चुनौतियों या समस्‍याओं के समाधान का रास्‍ता सरकार को अवश्‍य ही ढूंढना होगा। इसके प्रमुख पहलुओं को इस प्रकार समझा जा सकता है-

राजस्व घटने से अर्थव्‍यवस्‍था को लग सकता है झटका

जीएसटी सुधार को लेकर आर्थिक मोर्चे पर चिंता भी जताई जा रही है कि एक साथ इतनी सारी चीज़ों पर टैक्स घटाने से सरकार की कमाई (राजस्व) में भारी गिरावट आ सकती है। आईसीआईसीआई डायरेक्‍ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक इससे देश की अर्थव्‍यवस्‍था को झटका लग सकता है और सरकार को बजट बनाने में दिक्‍कत आ सकती है। ऐसे में उसे या तो कहीं और टैक्स बढ़ाना पड़ेगा या फिर अपने खर्चे घटाने पड़ेंगे। 

इसे उदाहरण के ज़रिये कुछ इस तरह समझा जा सकता है कि जीएसटी घटने से मोबाइल फोन या टीवी जैसी तमाम चीज़ें सस्ती हो जाएंगी। इसका मतलब यह है कि सरकार को इनपर लगने वाले टैक्स से जो पैसा मिलता था, वह अब कम हो जाएगा। सरकार के पास कम पैसा होगा तो उसे सड़क, स्कूल या अस्पताल जैसे विकास कार्यों और जनकल्‍याण की योजनाओं पर खर्च घटाना पड़ सकता है। इसकी भरपाई के लिए कहीं और टैक्स बढ़ाना पड़ता है। 

इस घाटे को पूरा करने के लिए सरकार महंगी और विलासिता वाली वस्तुओं पर ज़्यादा टैक्स लगाती है, जैसे बड़ी कारें या महंगे गहने। सरकार ने इसी तरकीब को अपनाते हुए महंगी और लक्ज़री चीज़ों पर 40% तक जीएसटी लगाया है, पर इससे नुकसान की भरपाई करने में दिक्‍कत हो सकती है, क्‍योंकि हमारे देश में लग्‍ज़री आइटम्‍स का इस्‍तेमाल करने वाले ग्राहकों का वर्ग काफ़ी सीमित होने के कारण इन चीज़ों के बाज़ार का आकार काफ़ी छोटा है। 

ग्राहकों को लाभ मिलने में हो सकती है दिक्‍कत

समाचार एजेंसी रायटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक जीएसटी दरों में कमी के बावज़ूद कई मामलों में लोगों को इसका फायदा न मिलने की आशंका है। रिपोर्ट में विशेषज्ञों के हवाले से बताया गया है कि कई सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं के अनुबंध पुराने समय में हुए थे, जब जीएसटी की दरें ज़्यादा थीं। अब सरकार ने टैक्स घटा दिया है, तो ऐसे मामलों में दिक्कत यह आएगी कि पुराने कॉन्‍ट्रैक्‍ट पुरानी अधिक दर के हिसाब से बने हैं। 

ऐसे में, ग्राहकों को नई दरों का लाभ मिलने में दिक्‍कत हो सकती है। आसान शब्दों में कहें, तो टैक्स घटने से लागत तो कम होगी, लेकिन सभी प्रोजेक्ट इसका फायदा उपभोक्ताओं तक पहुंचा पाएं, यह ज़रूरी नहीं है। कुछ पुराने अनुबंधों के मामलों में यह लाभ केवल कंपनियों तक ही सीमित रह सकता है।

इसके अलावा, कई परियोजनाओं में यह व्यवस्था नहीं होती कि टैक्स दर घटने से मिलने वाला फायदा (यानी लागत कम होना) उपभोक्ता या बिजली खरीदने वाली कंपनी (डिस्‍कॉम) को “पास-थ्रू” करके दे दिया जाए। इसका मतलब यह हुआ कि कुछ प्रोजेक्ट्स टैक्स घटने के बावजूद वह लाभ सीधे जनता तक नहीं पहुंचा पाएंगे, क्योंकि उनके कॉन्ट्रैक्ट में ऐसी कोई शर्त शामिल ही नहीं है।

अनुपालन और व्‍यवस्‍थागत चुनौतियां

सरकार की ओर से टैक्स घटाए जाने का फ़ायदा सबको मिलना चाहिए, लेकिन कई बार कंपनियां या दुकानदार उस बचत को ग्राहकों तक नहीं पहुंचाते। रोज़ाना के सामान, फ्रिज, टीवी, मोबाइल, बाइक, कार जैसी चीज़ों की खरीद में तो लोगों को अकसर टैक्‍स में कमी की जानकारी के कारण कर कटौती का फ़ायदा मिल जाता है। लेकिन, जिन सेवाओं या उत्पादों का दाम और टैक्स स्ट्रक्चर लोगों को पता ही नहीं होता, वहां कई बार दुकानदारों या कंपनियों को लाभ रोकने का मौका मिल जाता है। 

मिसाल के तौर पर अपशिष्ट प्रबंधन (वेस्ट मैनेजमेंट) सेवाएं, जैसे सीवेज ट्रीटमेंट, बायो-वेस्ट कलेक्शन या अपशिष्ट निपटान प्लांट के मामले में। इन पर जीएसटी कम किए जाने की जानकारी सामान्य उपभोक्ता को नहीं होती, क्योंकि ये सेवाएं नगर निगम या हाउसिंग सोसाइटी के ज़रिये ली जाती हैं। ऐसे में कंपनियां कई बार कर घटने का फ़ायदा अपनी जेब में रख लेती हैं और सोसाइटी/लोगों तक असली बचत नहीं पहुंचातीं। 

कभी-कभी सोसाइटी या अन्‍य बीच की कडि़यां भी लाभ को डकार जाती हैं। इसी तरह नवीकरणीय ऊर्जा उपकरणों के स्पेयर पार्ट्स जैसे कि सोलर पैनल के इन्वर्टर, कंट्रोलर या पवन टर्बाइन के छोटे उपकरणों में भी हो सकता है। टैक्स कटौती से इनकी लागत घटी है, लेकिन आम उपभोक्ता को इनकी मूल कीमत और टैक्स स्ट्रक्चर जानकारी नहीं होने के कारण इंस्टॉलेशन कंपनियां ग्राहकों से पुरानी कीमतें ही वसूलत सकती हैं। 

इससे, टैक्स में कटौती का फायदा उपभोक्ता तक नहीं पहुंच पाएगा। ऐसे में सरकार को यह देखना होगा कि कोई कंपनी टैक्स चोरी न करे और नए नियमों के हिसाब से ठीक से काम करे। यानी सरकार को दोनों चीज़ों की व्‍यवस्‍था करनी होगी कंपनियां धोखा न दें और ग्राहक टैक्स कटौती का लाभ लेने के प्रति सजग रहें।

जीएसटी के हालिया बदलावों से एक ओर सरकार के टैक्‍स से होने वाली आय में कमी आने की आशंका है, पर उद्योगों और अर्थव्‍यवस्‍था को बूस्‍ट मिलने से इस राजस्‍व हानि के काफ़ी हद तक पूरा हो जाने की उम्‍मीद है।
जीएसटी के हालिया बदलावों से एक ओर सरकार के टैक्‍स से होने वाली आय में कमी आने की आशंका है, पर उद्योगों और अर्थव्‍यवस्‍था को बूस्‍ट मिलने से इस राजस्‍व हानि के काफ़ी हद तक पूरा हो जाने की उम्‍मीद है।स्रोत : डीडी न्‍यूज़

लॉक-इन प्रभाव का असर

लॉक-इन प्रभाव भी ग्राहकों तक जीएसटी कटौती तत्‍काल पहुंचने में बाधक बन सकता है। डब्‍लूआरआई का एक लेख बताता है कि किस प्रकार कई बार जीवाश्म ईंधन आधारित प्रणालियां स्वयं-बाधक बन जाती हैं और नई तकनीकों को अपनाने में बाधा डालती हैं। मिसाल के तौर पर पेट्रोल/डीज़ल/सीएनजी से चलने वाली गाडि़यां चलाने वाले लोग इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर आसानी से शिफ्ट नहीं कर पा रहे हैं।

इसकी एक वजह पारंपरिक वाहनों के मुकाबले ईवी की कीमतें ज्‍़यादा होना है। जबकि ड्राइविंग रेंज (माइलेज), चार्जिंग जैसी चीज़ों से जुड़ी आशंकाओं के चलते भी ईवी के विकल्‍प को अपनाने में हिचकिचाहट देखी जा रही है। जबकि ईंधन वाले वाहनों में उन्‍हें इसे लेकर कोई शंका नहीं है। यह एक प्रकार का लॉक-इन इफ़ेक्‍ट ही है, जो उन्‍हें ईवी को अपनाने से रोक रहा है।

लॉक-इन प्रभाव दो प्रकार का हो सकता है। एक समय से जुड़ा और दूसरा सिस्‍टम या प्रणाली से जुड़ा हुआ। समय से जुड़े लॉक-इन प्रभाव को सेवाओं और वस्‍तुओं के मामले में इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि जीएसटी में कमी किए जाने से पूर्व ही, पहले से तयशुदा अवधि के लिए कोई सेवा लिए जाने पर उसकी दरों में कमी तत्‍काल लागू नहीं होगी। दरों में कटौती इस अवधि के बाद ही लागू होगी। मान लीजिए आपने किसी सर्विस का एनुअल सब्‍सक्रिप्‍शन लिया है, तो पुरानी दर इस सब्‍सक्रिप्‍शन के खत्‍म होने तक लागू रहेगी। घटी हुई नई दर इसके बाद से लागू की जाएगी। 

प्रणालीगत लॉक-इन प्रभाव को इस प्रकार समझा जा सकता है कि जीएसटी घटने से सोलर पैनल सस्ते हो गए और इसके चलते लोग उन्हें लगाना भी चाहते हैं, पर अगर पैनल से बनने वाली बिजली का इस्‍तेमाल ग्रिड की बिजली के (बिजली आपूर्ति) साथ मिलाकर करने यानी सोलर पावर और ग्रिड इंटीग्रेशन की सुविधा उनके इलाके में मौजूद नहीं है, तो उन्‍हें सोलर पैनल लगवाने में दिक्‍कतें आएंगी। एक समय में वह या तो सोलर पावर का इस्‍तेमाल कर सकेंगे या फिर ग्रिड की बिजली का। यह प्रणालीगत लॉक-इन प्रभाव उन्‍हें सोलर पैनल लगवाने से रोक सकता है। 

इसी तरह, पूरी प्रणाली से जुड़ी अन्‍य चीज़ों पर अगर कर कटौती नहीं हुई है, तो इसका भी नकारात्‍मक असर पड़ सकता है। मिसाल के तौर पर मान लीजिए कि पैनल सस्‍ते हो गए, पर उनसे जुड़े इनवर्टर या अन्‍य उपकरण या फिर बिजली स्टोर करने के लिए ज़रूरी बैटरी महंगी हो, तो यह भी एक बाधा बन सकती है। इसलिए लॉक-इन प्रभाव को खत्‍म करने के लिए ज़रूरी है कि कर कटौती का लाभ पूरे ज़रूरी ढांचे (इनफ़्रास्ट्रक्चर) पर मिले। एमडीपीआई की एक रिपोर्ट ऊर्जा क्षेत्र पर लॉक-इन प्रभावों की गहन व्याख्या की गई है।

‘रीबाउंड इफ़ेक्ट’ का झटका 

येल स्‍कूल ऑफ इनवायर्नमेंट की एक रिपोर्ट बता‍ती है कि किस प्रकार ऊर्जा दक्षता में सुधार या बचत की उम्मीदें कई बार उपभोक्ताओं के व्‍यवहार और बाज़ार विपरीत प्रतिक्रिया के चलते निरर्थक हो जाती हैं। उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि टैक्स घटने की वजह से पंखे सस्ते हो गए। अब लोग सोचेंगे कि सस्ते मिल रहे हैं तो एक और खरीद लो। इससे उनके इस्तेमाल में अचानक बहुत बढ़ोतरी हो जाएगी। 

नतीजा यह होगा कि बिजली की खपत घटने की बजाय और बढ़ सकती है। इसे ही रीबाउंड इफ़ेक्ट कहते हैं। 

साइंस जर्नल साइंस डायरेक्‍ट में प्रकाशित एक रिसर्च में बताया गया है कि यह स्थिति बिजली की दरों में कटौती होने पर भी देखने को मिलती है। जब बिजली सस्ती हो जाती है, तो अकसर लोग एसी या पंखे लंबे समय तक चलाते हैं। इससे उनका बिजली का बिल बढ़ने के साथ ही बिजली की खपत भी बढ़ जाती है। 

 इस समस्या से बचने के लिए ज़रूरी है कि सरकार ऐसे नियम बनाए कि लोग उपकरण तो खरीदें, लेकिन उनका इस्तेमाल ऊर्जा बचत के हिसाब से ही करें। जैसे स्मार्ट मीटर लगाना, जिससे ज़्यादा बिजली खपत पर बिल भी ज़्यादा आता है।

इसके अलावा, बिजली के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए समय-आधारित शुल्क या पीक/ऑफ पीक टाइम की अलग-अलग दरें, और सघन उपयोग पर अधिभार (सरचार्ज) और सर्ज प्राइसिंग यानी मांग बढ़ने पर किसी सेवा या उत्पाद की कीमत का अस्थायी रूप से बढ़ जाना जैसे उपाय भी उपयोगी हो सकते हैं। इससे, बिजली के बेजा इस्‍तेमाल पर लगाम लगाई जा सकती है, जोकि पर्यावरण लक्ष्‍यों को प्राप्‍त करने में मददगार साबित हो सकता है।

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