यमुना में अवैध खनन को एनजीटी ने क्यों माना प्रदूषण से भी गंभीर समस्या
यमुना नदी का ज़िक्र होने पर सबसे पहले उसके प्रदूषण की बात होती है। किस तरह दिल्ली में दाखिल होने के बाद यमुना किसी गंदे नाले जैसी दिखने लगती है, यह मुद्दा अकसर काफी जोर-शोर से उठाया जाता है। पर, इसके अलावा एक और गंभीर समस्या है, जिसका ज़िक्र अकसर दबकर रह जाता है, जबकि यह यमुना के बढ़ते प्रदूषण की एक बड़ी वजह बनती है।
यह मामला है दिल्ली और गाज़ियाबाद के बीच यमुना में बड़े पैमाने पर हो रहे बालू के अवैध खनन का। अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने इसे गंभीरता से लेते हुए दोनों राज्यों की सरकारों को इस पर तत्काल कदम उठाने का आदेश दिया है। ट्रिब्यूनल ने अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए दोनों राज्यों से एक अंतर-राज्यीय टास्क फोर्स बनाने को कहा है।
एनजीटी ने एक अंग्रेज़ी अखबार दि टाइम्स ऑफ इंडिया की एक न्यूज़ रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए दोनों राज्यों की सरकारों को अंतर-राज्यीय टास्क फोर्स के लिए नामित अधिकारियों की सूची पेश करने को कहा है।
टीओआई की इससे जुड़ी फ़ॉलोअप रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रिब्यूनल ने कहा है कि अवैध खनन से यमुना नदी को गंभीर खतरा है। इससे यमुना नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान हो रहा है। इसे रोकने के लिए तत्काल कदम उठाना ज़रूरी है। इसके लिए, संयुक्त कार्रवाई, प्रभावी निगरानी और जवाबदेही सुनिश्चित करने की जरूरत है।
एनजीटी ने यमुना में हो रहे अवैध उत्खनन पर रोक लगाने के लिए दिल्ली-उत्तर प्रदेश की संयुक्त अंतर-राज्यीय टास्क फोर्स को निरीक्षण की कार्रवाइयां करने और प्रगति की समीक्षा के लिए बैठकें आयोजित करने का भी निर्देश दिया है। साथ ही, दोनों सरकारों से इस मामले में की गई कार्रवाईयों और बैठकों का पूरा कार्यवृत्त कोर्ट में पेश करने को भी कहा गया है।
इस रिपोर्ट को दिल्ली व उत्तर प्रदेश के संबंधित ज़िलों के ज़िलाधिकारियों की वेबसाइटों पर अपलोड करने का भी निर्देश दिया गया है। यह सख्त निर्देश देते हुए अदालत ने मामले की सुनवाई के लिए 29 अक्टूबर की तरीख तय की है। यानी दोनों ही सरकारों को 28 अक्टूबर तक एनजीटी द्वारा मांगी गई जानकारियां हलफ़नामे के साथ दखिल करनी होंगी।
अवैध रेत खनन करने वालों ने यमुना पर सड़क बनाकर धारा को किया बाधित
30 नवंबर 2024 को प्रकाशित टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट का एनजीटी ने संज्ञान लिया। रिपोर्ट के मुताबिक, अवैध रेत खनन करने वालों ने दिल्ली और गाज़ियाबाद के बीच यमुना नदी पर एक अस्थायी सड़क बना ली, ताकि वे ट्रैक्टर और ट्रक के ज़रिये सीधे नदी तल से रेत निकालकर ले जा सकें। इस सड़क ने नदी की प्राकृतिक धारा को दो भागों में बांट दिया, जिससे उसका प्रवाह बाधित हो गया है और कई जगहों पर पानी पूरी तरह से ठहर गया।
इससे नदी की पारिस्थितिक तंत्र के लिए खतरा बढ़ गया है। नदी का प्रवाह रुकने से न केवल इसका ज़हरीले रसायनों से प्रदूषित पानी सड़ने लगा, बल्कि यमुना के जलीय जीवों का जीवन भी खतरे में पड़ गया और प्रवासी पक्षियों के आवास भी नष्ट हो गए। इसके अलावा पानी में मौजूद खतरनाक रसायनों के जमा होने से इस इलाके में बाढ़ मैदान (फ्लड प्लेन) की मिट्टी की गुणवत्ता भी बिगड़ रही है।
रिपोर्ट में उपग्रह चित्रों के हवाले से बताया गया है कि यमुना से भारी मात्रा में किए जा रहे बालू के अवैध उत्खनन से किस तरह नदी के तल की संरचना बुरी तरह बदल गई है और आसपास के इलाकों की वनस्पति नष्ट हो रही है। ईको सिस्टम के बिगड़ने से यमुना की स्वयं शुद्धिकरण क्षमता कमजोर पड़ रही है और प्रदूषण का स्तर और अधिक बढ़ने की आशंका है। इस रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए एनजीटी ने दिल्ली और उत्तर प्रदेश सरकारों को संयुक्त कार्रवाई के निर्देश दिए गए।
दिल्ली और गाज़ियाबाद के बीच यमुना में हो रहा अवैध बालू खनन किस तरह नदी के प्रदूषण और पारिस्थितिकी संतुलन को प्रभावित करता है। इसे कुछ इस प्रकार समझा जा सकता है :
नदी तल का विनाश: अवैध खनन से यमुना का तल (riverbed) असमान हो जाता है, जिससे जल का प्राकृतिक प्रवाह बाधित होता है और गाद (silt) जमने लगती है। यह ठहरा पानी तेज़ी से प्रदूषित और दुर्गंधयुक्त बन जाता है।
भूजल पुनर्भरण पर असर: बहुत ज़्यादा रेत निकालने से नदी की प्राकृतिक फ़िल्टरिंग क्षमता घट जाती है, जिससे भूजल रीचार्ज कम होता है और प्रदूषक ज़्यादा समय तक नदी में बने रहते हैं।
तटीय पारिस्थितिकी को नुकसान: खनन से नदी किनारे के पेड़-पौधे, जलजीव और माइक्रोबियल जीवन प्रभावित होता है, जो प्राकृतिक रूप से जल को स्वच्छ रखने में भूमिका निभाता है।
गाद और ठोस कचरा बहाया जाना : खनन के दौरान भारी मशीनों और ट्रकों से उठने वाली मिट्टी व तेल जैसे अवशेष नदी में घुलकर रासायनिक प्रदूषण बढ़ाते हैं।
इस तरह अवैध खनन यमुना की स्वयं शुद्धीकरण (सेल्फ प्यूरिफिकेशन) की क्षमता को कमजोर कर देता है, जिसमें पानी के प्रवाह, ऑक्सीजन स्तर और तल की प्राकृतिक रेत व जैविक सूक्ष्मजीवों के जरिए प्रदूषकों को छानने और सोखने का काम होता है। अवैध खनन से नदी की रेत और तल की संरचना नष्ट हो जाने पर यह प्रक्रिया बंद हो जाती है, जिससे नदी में गिरने वाले नालों और औद्योगिक अपशिष्टों का असर और भी घातक हो जाता है।
हाईकोर्ट भी दे चुका है सख्ती का निर्देश
यमुना में जारी अवैध खनन पर इस साल मार्च में दिल्ली हाईकोर्ट भी सख्त रवैया दिखा चुका है। एक रिपोर्ट के अनुसार हिरनकी गांव के पास यमुना तट क्षेत्र में हो रहे अवैध रेत खनन पर रोक लगाने के लिए दायर एक याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की बेंच ने कहा था कि स्थिति को देखकर यह बिल्कुल स्पष्ट है कि यमुना में धड़ल्ले से अवैध खनन जारी है।
यूपी और दिल्ली के बीच आने वाले तट क्षेत्र का भी अनुचित फायदा उठाया जा रहा है। कोर्ट ने इसपर गंभीर चिंता ज़ाहिर करते हुए दिल्ली पुलिस और उत्तर प्रदेश पुलिस को नदी के किनारे पर हो रही अवैध गतिविधियों को रोकने के लिए एक संयुक्त कार्य बल बनाने का निर्देश दिया था।
मामले की सुनवाई कर रहीं जस्टिस प्रतिभा सिंह की सिंगल बेंच ने यह आदेश 27 मार्च को दिया। जस्टिस सिंह ने अपने आदेश में यह भी निर्देश दिया कि संयुक्त कार्य बल नियमित रूप से नदी के तटों की निगरानी करे। साथ ही, अवैध खनन को रोकने के लिए वहां गश्त और पिकेट (पुलिस चौकी) की व्यवस्था की जाए।
कोर्ट ने कहा कि दायर की गई रिपोर्ट से पता चलता है कि हिरनकी के पास यमुना तट क्षेत्र का कुछ हिस्सा अलीपुर पुलिस थाने के अंतर्गत आता है, जो बाहरी उत्तर के डीसीपी के अधीन है, जबकि कुछ हिस्सा उत्तर प्रदेश पुलिस के अधिकार क्षेत्र में आता है।
इससे स्पष्ट है कि यूपी और दिल्ली के बीच आने वाले तट क्षेत्र का भी अनुचित फायदा उठाते हुए यहां अवैध खनन किया जा रहा है। कोर्ट ने कहा कि यह बहुत चिंता का विषय क्योंकि अवैध खनन के कारण बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय प्रभाव पड़ रहा है।
शुरू हो गई है कार्यवाही
लोनी क्षेत्र में यमुना नदी में अवैध खनन रोकने के लिए अब दिल्ली और उत्तर प्रदेश के अधिकारी मिलकर काम करेंगे। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दोनों राज्यों के पुलिस और राजस्व अधिकारियों की एक टास्क फोर्स का गठन किया जा रहा है। इसके अलावा अलीपुर से लगे नौ किलोमीटर के क्षेत्र में यमुना नदी की सीमा को फिर से चिह्नित करने के लिए बैठकें की जा रही हैं।
ज़िला प्रशासन की जांच रिपोर्ट के मुताबिक, यमुना नदी का कुल 22 किलोमीटर हिस्सा गाज़ियाबाद में पड़ता है, जिसमें से अलीपुर बांध के पास का नौ किलोमीटर का हिस्सा संवेदनशील माना जाता है। गाज़ियाबाद के लोनी में उत्तर प्रदेश और दिल्ली की सीमा पर अलीपुर बांध 1978 की बाढ़ के दस साल बाद 1986 में बनाया गया था।
इस क्षेत्र में अवैध खनन को पूरी तरह से रोकना प्रशासन के लिए चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि अवैध खनन करने वाले लोग दिल्ली सीमा दाखिल होकर खनन करते हैं और फिर वापस दिल्ली भाग जाते हैं। इसलिए उन्हें पकड़ पाना मुश्किल हो जाता है। सरकार के निर्देश के बाद दिल्ली की सीमा से सटे दिल्ली के करावल नगर और अलीपुर तहसीलों के प्रशासनिक अधिकारियों को इसकी सूचना दे दी गई है। गाज़ियाबाद और दिल्ली के संबंधित अधिकारियों ने अवैध खनन रोकने के लिए बैठकें की हैं और एक टास्क फ़ोर्स बनाने पर सहमति बनी है।
इस नौ किलोमीटर के दायरे में नदी की सीमाओं को फिर से निर्धारित करने की भी तैयारी चल रही है। गाज़ियाबाद के एडीएम (एफआर) सौरभ भट्ट के मुताबिक टास्क फोर्स के गठन के बाद, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के अधिकारी यमुना नदी में अवैध रेत खनन में शामिल लोगों को पकड़ने के लिए मिलकर संयुक्त कार्रवाई करेंगे और इसमें शामिल लोगों को गिरफ़्तार किया जाएगा।


