अपशिष्ट जल का उपयोग : तो प्रकृति होगी प्रशन्न
भारत में उत्पन्न होने वाले कुल शहरी अपशिष्ट जल और सीवेज में से मात्र 28 प्रतिशत (20,236 मिलियन लीटर प्रति दिन या एमएलडी) का ही उपचार किया जाता है, जबकि 72 प्रतिशत जल का उपचार नहीं किया जाता और उसे नदियों, झीलों और भूमि में बहने को छोड़ दिया जाता है। यह सारा उपचारित और अनुपचारित जल-अपने आप में एक अवसर रखता है, भारत के शहरी जल संकट को कम करने का अवसर। यह बात सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा जारी की एक नई रिपोर्ट में कही गई है।
सीएसई रिपोर्ट के बारे मेंः
सात भारतीय राज्यों के 16 शहरों में 35 केस स्टडीज के व्यापक विश्लेषण के आधार पर तैयार की गई यह रिपोर्ट भारत में उपचारित अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग की वर्तमान स्थिति का आकलन करती है। यह मौजूदा नीतियों, कार्यक्रमों और जमीनी स्तर पर प्रथाओं की जांच करती है, नीति निर्माताओं और चिकित्सकों के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। यह सार्वजनिक उपयोग के रूप में उपचारित अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग को प्राथमिकता देने के महत्वपूर्ण महत्व पर भी प्रकाश डालता है, विशेष रूप से सिंचाई और भूजल पुनर्भरण के लिए, जबकि वंचित समुदायों के लिए समानता और न्याय सुनिश्चित करना भी एक लक्ष्य है। यह नीति और व्यवहार दोनों दृष्टिकोण से उपचारित अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग के महत्वपूर्ण पुनर्मूल्यांकन का आग्रह करता है। पानी की कमी की तात्कालिकता एक नए और महत्वपूर्ण जल संसाधन के रूप में उपचारित अपशिष्ट जल को कैसे प्राथमिकता दें और उसका उपयोग करें, इस पर एक नया दृष्टिकोण मांगती है। समानता को बढ़ावा देने, जलवायु संधारणीयता को बढ़ावा देने और टिकाऊ जल प्रबंधन प्रथाओं की वकालत करके, यह रिपोर्ट पूरे भारत में उपचारित अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग के लिए एक मजबूत ढांचे के निर्माण हेतु एक खाका प्रस्तुत करती है।
विज्ञानी व शोधकर्ता इस बात की आशंका जता रहे हैं कि इस साल जलसंकट अपने पिछले सारे रिकार्ड तोड़ देगा। सेंटर फार साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा बीते दिनों जारी रिपोर्ट 'वेस्ट टू वर्थः मैनेजिंग इंडियाज अर्बन वाटर क्राइसिस थ्रू वेस्टवाटर रीयूज' के अनुसार शहरों से निकलने वाले गंदे पानी व सीवेज में से केवल 28 प्रतिशत का ही उपचार किया जा रहा है, बाकी 72 प्रतिशत गंदा पानी बिना उपचार के नदियों, झीलों और खाली जगहों पर बह रहा है। यदि इस पानी का भी उपचार करके दोबारा से इस्तेमाल किया जाए तो भारत के शहरी जल संकट को काफी हद तक काबू किया जा सकता है। सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण के अनुसार, 'भारत तेजी से शहरीकरण, औद्योगिक विकास, जनसंख्या विस्तार और जलवायु परिवर्तन के कारण जल संकट का सामना कर रहा है। अपशिष्ट जल का पुनः उपयोग इन चिंताओं को दूर करने और जल चक्रीयता और स्थिरता को बढ़ावा देने की रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकता है।'
पहुंच से दूर यह संसाधन
यह रिपोर्ट भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के तहत सीएसई और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित एक राष्ट्रीय कार्यशाला में जारी की गई। रिपोर्ट जारी करने के अवसर पर एनएमसीजी के महानिदेशक राजीव मित्तल ने कहा, 'संसाधित जल का उपयोग और निपटान इसकी क्षमता का दोहन किए बिना का मतलब है कि हम एक महत्वपूर्ण संसाधन का उपयोग करने से वंचित हो रहे हैं। चुनौती यह है कि हम इस क्षेत्र में जो काम कर रहे हैं, उसका विस्तार करें और सुनिश्चित करें कि वह प्रभावशाली हो। जल शक्ति मंत्रालय का निर्देश है कि शहरों को अपने द्वारा उपयोग किए जाने वाले पानी का कम से कम 20 प्रतिशत पानी पुनर्चक्रित और पुनः उपयोग करना चाहिए। सीएसई के जल कार्यक्रम के वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक सुन्नत चक्रवर्ती कहते हैं, 'यह इस सोच के अनुरूप है कि एक सतत और जलवायु-सुचिंतित भविष्य को प्राप्त करने और मीठे पानी की लगा लगातार बढ़ती मांग के प्रबंधन के लिए एक चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना आवश्यक है।'
नीतियां ला रहीं परिवर्तन
सीएसई की रिपोर्ट बताती है कि सीवेज जल और उसके उपचार में अंतर उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक है, उसके बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु, दिल्ली और हरियाणा (इसी क्रम में) है। हालांकि रिपोर्ट में अच्छे उदाहरणों पर भी प्रकाश डाला गया है। ऐसे राज्यों के मामले जिन्होंने उपचारित अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए नीतियां पेश की हैं। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र ने शहरी क्षेत्रों में उद्योगों को उपचारित अपशिष्ट जल का उपयोग करना अनिवार्य कर दिया है। गुजरात ने कृषि और उद्योग में अनुप्रयोगों के साथ 100 प्रतिशत पुनः उपयोग का लक्ष्य रखा है, और तमिलनाडु ने औद्योगिक और शहरी हरियाली परियोजनाओं के लिए पुनः उपयोग को बढ़ावा दिया है। राष्ट्रीय शहरी स्वच्छता नीति (एनयूएसपी) और नमामि गंगे कार्यक्रम जल सुरक्षा पहलों के प्रमुख घटकों के रूप में अपशिष्ट जल प्रबंधन और पुनः उपयोग पर जोर देते हैं।
तब दूर होंगी मुश्किलें
नागपुर, बेंगलुरु और चेन्नई जैसे शहरों ने अपशिष्ट जल पुनः उपयोग प्रथाओं को लागू करने में अग्रणी भूमिका निभाई है। नागपुर बिजली संयंत्रों को उपचारित अपशिष्ट जल की आपूर्ति करता है, जिससे मीठे पानी का उपयोग काफी कम हो जाता है, जबकि बेंगलुरु इसका उपयोग कृषि, झील पुनरुद्धार और भूजल पुनर्भरण के लिए करता है। चेन्नई में औद्योगिक अनुप्रयोगों, शहरी भूनिर्माण और भूजल पुनर्भरण के लिए उपचारित अपशिष्ट जल को उपयोग पयोग किया गया है। अपशिष्ट जल पुनः उपयोग को के बढ़ावा देने में कई चुनौतियां हैं, जिनमें सीवेज उपचार और वितरण में बुनियादी ढांचे की कमी, पुनः उपयोग मानकों को पूरा करने के लिए गुणवत्ता आश्वासन, सांस्कृतिक मान्यताओं के कारण सार्वजनिक प्रतिरोध और उपचार सुविधाओं की उच्च परिचालन लागत शामिल हैं। आंकड़ों के अनुसार, 28 प्रतिशत उपचारित जल पुनः उपयोग के लिए उपलब्ध है। शहरी नियोजन व औद्योगिक आवश्यकताओं के साथ नीतियों को संरेखित करने के अलावा विकेंद्रीकृत और लागत प्रभावी उपचार प्रौद्योगिकियों में प्रगति से यह कमी दूर की जा सकती है।
स्रोत - अनिल अश्विनी शर्मा (डाउन टू अर्थ से साभार)